उपचुनाव में मिली हार के बाद लोजपा प्रमुख रामविलास पासवान ने पटना में कहा कि वैसे तो राज्य और केंद्र सरकार अल्पसंख्यक हितों में पहले से अधिक काम कर रही है, लेकिन लोगों के मन में यह धारणा है कि भाजपा अल्पसंख्यक विरोधी है. केंद्रीय मंत्री ने कहा कि बिहार उपचुनाव के परिणाम से कोई आश्चर्य नहीं हुआ क्योंकि वहां का परिणाम अपेक्षा के अनुरूप था. उनके अनुसार उत्तर प्रदेश के गोरखपुर व फुलपुर लोकसभा सीट पर उपचुनाव हारने से भाजपा सहित एनडीए के घटक दल चिंतित हैं.
बिहार प्रदेश के अपने पार्टी कार्यालय में संवाददाता सम्मेलन में लोजपा प्रमुख ने कहा, 'एनडीए के नेताओं को टिप्पणी के दौरान बचने और चुनाव के दौरान ज्यादा होशियारी बरतने की जरूरत है. पासवान ने केंद्र में सत्तारूढ़ एनडीए के कुछ नेताओं द्वारा समय-समय पर की जाने वाली टिप्पणियों को लेकर यह चिंता जताई. उन्होंने कहा कि इन टिप्पणियों से ऐसा संदेश गया है कि गठबंधन समाज के कुछ वर्गों के खिलाफ है'.
हालांकि लोजपा प्रमुख रामविलास पासवान ने कहा कि किसी बयान का यह कतई अर्थ नहीं है कि पार्टी कोई निर्णय लेने जा रही है. पर इसके बावजूद रजनीतिक गलियारों में उनके अगले कदम की चर्चाएं गर्म हैं.
रामविलास पासवान ने अपने सहयोगी दल भाजपा को नसीहत भी दी है कि वह उपचुनाव के परिणाम को देखते हुए नई रणनीति बनाए. उन्होंने कहा कि हमें सभी वर्गों को साथ लेकर चलना होगा. कांग्रेस ने सभी वर्गों को साथ लेकर ही राज किया था. पासवान ने कहा कि अगर हमारा नारा 'सबका साथ, सबका विकास' का है तो हमें सबको साथ लेकर भी चलना होगा. यानी की भाजपा को भी कांग्रेस के बताये हुए रास्ते पर चलना पड़ेगा. इसका मतलब यह कि कांग्रेस का रास्ता ही सबका साथ, सबका विकास का है....
उपचुनाव में मिली हार के बाद लोजपा प्रमुख रामविलास पासवान ने पटना में कहा कि वैसे तो राज्य और केंद्र सरकार अल्पसंख्यक हितों में पहले से अधिक काम कर रही है, लेकिन लोगों के मन में यह धारणा है कि भाजपा अल्पसंख्यक विरोधी है. केंद्रीय मंत्री ने कहा कि बिहार उपचुनाव के परिणाम से कोई आश्चर्य नहीं हुआ क्योंकि वहां का परिणाम अपेक्षा के अनुरूप था. उनके अनुसार उत्तर प्रदेश के गोरखपुर व फुलपुर लोकसभा सीट पर उपचुनाव हारने से भाजपा सहित एनडीए के घटक दल चिंतित हैं.
बिहार प्रदेश के अपने पार्टी कार्यालय में संवाददाता सम्मेलन में लोजपा प्रमुख ने कहा, 'एनडीए के नेताओं को टिप्पणी के दौरान बचने और चुनाव के दौरान ज्यादा होशियारी बरतने की जरूरत है. पासवान ने केंद्र में सत्तारूढ़ एनडीए के कुछ नेताओं द्वारा समय-समय पर की जाने वाली टिप्पणियों को लेकर यह चिंता जताई. उन्होंने कहा कि इन टिप्पणियों से ऐसा संदेश गया है कि गठबंधन समाज के कुछ वर्गों के खिलाफ है'.
हालांकि लोजपा प्रमुख रामविलास पासवान ने कहा कि किसी बयान का यह कतई अर्थ नहीं है कि पार्टी कोई निर्णय लेने जा रही है. पर इसके बावजूद रजनीतिक गलियारों में उनके अगले कदम की चर्चाएं गर्म हैं.
रामविलास पासवान ने अपने सहयोगी दल भाजपा को नसीहत भी दी है कि वह उपचुनाव के परिणाम को देखते हुए नई रणनीति बनाए. उन्होंने कहा कि हमें सभी वर्गों को साथ लेकर चलना होगा. कांग्रेस ने सभी वर्गों को साथ लेकर ही राज किया था. पासवान ने कहा कि अगर हमारा नारा 'सबका साथ, सबका विकास' का है तो हमें सबको साथ लेकर भी चलना होगा. यानी की भाजपा को भी कांग्रेस के बताये हुए रास्ते पर चलना पड़ेगा. इसका मतलब यह कि कांग्रेस का रास्ता ही सबका साथ, सबका विकास का है. पासवान के इस बयान के एक दिन बाद बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार उनके समर्थन में सामने आए. नीतीश ने कहा कि रामविलास पासवान अगर कुछ बोल रहे हैं तो बिना सोचे समझे नहीं बोलेंगे. पर इस तरह की बयानबाजी भाजपा को कतई अच्छी नहीं लगेगी.
पर सवाल यह उठता है कि रामविलास पासवान क्यों राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में परेशान हैं? दरअसल, नीतीश एवं भाजपा के साथ आने से भाजपा के सारे पुराने सहयोगी परेशान हैं. 2014 नीतीश एवं भाजपा अलग-अलग चुनाव लड़े थे. भाजपा को 22 सीटों पर जीत मिली थी. पासवान की लोजपा 7 सीटों पर लड़कर 6 सीट जितने में सफल हुई थी. केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा के राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) को चार में से तीन जगह सफलता मिली थी. जनता दल 40 सीटों पर लड़कर महज दो सीटों पर जीत हासिल कर पाई थी. अब 2019 के लोक सभा चुनाव में नीतीश के पार्टी के इस गठबंधन के आने से अन्य दलों को कुछ सीटें छोड़नी पड़ेंगी. भाजपा के खुद के 22 संसद हैं. ये अपनी सीट तो नीतीश कुमार को देने से रही. इसका मतलब ये है कि पासवान एवं कुशवाहा की पार्टियों को कुछ त्याग करना पड़ सकता है. गठबंधन के नेताओं का मानना है कि लोजपा के भले ही 6 सांसद हैं पर इसके केवल दो ही विधायक हैं. अर्थात उनकी पार्टी को इसकी क्षमता से ज्यादा सीटें मिली हुई हैं एवं उनको कुछ ज्यादा ही त्याग करना होगा. स्वाभाविक है कि पासवान को ऐसा कोई भी प्रस्ताव अच्छा नहीं लगेगा. इसलिए वो और संभावनाएं तलाशेंगे.
2014 के लोक सभा चुनाव से ठीक पहले लालू यादव का साथ छोड़कर पासवान भाजपा के साथ आ गए थे. मोदी लहर का उनको भरपूर फायदा हुआ एवं उनकी पार्टी 6 सीट जीत गई. उनको मोदी के कैबिनेट में जगह भी मिल गई. लालू ने रामविलास पासवान के दल बदलने पर चुटकी लेते हुए उनको मौसम वैज्ञानिक कहा. उन्होंने कहा कि वह मौसम का मिजाज देखकर पाले बदल लेते हैं. यानी, उनको राजनीतिक दशा-दिशा की पूरी समझ है. वो उसी पाले में चले जाते हैं जो जीतने वाली होती है. उपचुनाव में भाजपा की हार के बाद रामविलास पासवान के बयानों को भी इसी परिपेक्ष्य में देखा जा रहा है.
तो क्या लालू के 'मौसम वैज्ञानिक' को फिर से आने वाले चुनावों में क्या होगा इसका एहसास हो गया है? क्या वो अपने इन बयानों से एक बार फिर पाला बदलने की भूमिका तैयार कर रहे हैं?
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