नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने प्रशांत किशोर को लेकर जो सपने देखे थे, आरसीपी सिंह (RCP Singh) की जिम्मेदारी उनको हकीकत में बदलने की मिली है. नीतीश कुमार को प्रशांत किशोर से काफी उम्मीदें थीं - लेकिन उम्मीदें भी तो उम्र का मोहताज नहीं होतीं. प्रशांत किशोर के जेडीयू से रिश्ते की उम्र बहुत छोटी रही. छोटी इतनी कि भविष्य को भूत में बदलते देर भी नहीं लगी. प्रशांत किशोर को जेडीयू ज्वाइन कराते हुए नीतीश कुमार ने उनको पार्टी का भविष्य ही बताया था.
आरसीपी सिंह को जेडीयू का अध्यक्ष बनाये जाने को बाहर तो लोग अचरज से देख ही रहे हैं, पार्टी के भीतर तो बहुतों के पैरों तले जमीन भी खिसक चुकी होगी. हाल फिलहाल जो लोग आरसीपी सिंह की जगह नीतीश कुमार के आगे पीछे खुद को पा रहे थे, उनका तो मन ही जानता होगा कि ये अचानक से क्या हो गया?
दरअसल, नीतीश कुमार ने आरसीपी सिंह को जेडीयू का अध्यक्ष बनाकर मांझी एपिसोड ही दोहराया है.
2014 के आम चुनाव में जेडीयू की हार के बाद नीतीश कुमार ने अपनी सरकार में सबसे भरोसेमंद जीतनराम मांझी को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी थी. तमाम कारणों में से एक तो यही था कि चूंकि मुख्यमंत्री होने के नाते प्रधानमंत्री बन जाने पर नरेंद्र मोदी को औपचारिक तौर पर अटेंड करना पड़ता इसलिए नीतीश कुमार ने बचने की तरकीब खोज डाली थी, लेकिन दांव उलटा पड़ गया और जीतनराम मांझी तो नीतीश कुमार की नाव ही डुबोने में जुट गये. अब समय के चक्र की कौन कहे, वो दिन भी आया जब नीतीश कुमार को भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को नेता मान लेना पड़ा और जीतनराम माझी भी हाथ जोड़े नीतीश कुमार के पास लौट ही आये.
आरसीपी सिंह का पहला बयान ही बता रहा है कि उनको जेडीयू अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपने के पीछे नीतीश कुमार की दूरगामी सोच क्या रही होगी - लेकिन अब बीजेपी को समझ लेना चाहिये कि नीतीश कुमार को वो उतना ही डराये कि डर बना रहे, वरना किसी का भी डर खत्म हो जाता है तो वो कहीं ज्यादा खतरनाक हो जाता है.
नीतीश कुमार ने आरसीपी सिंह की जबान से अरुणाचल...
नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने प्रशांत किशोर को लेकर जो सपने देखे थे, आरसीपी सिंह (RCP Singh) की जिम्मेदारी उनको हकीकत में बदलने की मिली है. नीतीश कुमार को प्रशांत किशोर से काफी उम्मीदें थीं - लेकिन उम्मीदें भी तो उम्र का मोहताज नहीं होतीं. प्रशांत किशोर के जेडीयू से रिश्ते की उम्र बहुत छोटी रही. छोटी इतनी कि भविष्य को भूत में बदलते देर भी नहीं लगी. प्रशांत किशोर को जेडीयू ज्वाइन कराते हुए नीतीश कुमार ने उनको पार्टी का भविष्य ही बताया था.
आरसीपी सिंह को जेडीयू का अध्यक्ष बनाये जाने को बाहर तो लोग अचरज से देख ही रहे हैं, पार्टी के भीतर तो बहुतों के पैरों तले जमीन भी खिसक चुकी होगी. हाल फिलहाल जो लोग आरसीपी सिंह की जगह नीतीश कुमार के आगे पीछे खुद को पा रहे थे, उनका तो मन ही जानता होगा कि ये अचानक से क्या हो गया?
दरअसल, नीतीश कुमार ने आरसीपी सिंह को जेडीयू का अध्यक्ष बनाकर मांझी एपिसोड ही दोहराया है.
2014 के आम चुनाव में जेडीयू की हार के बाद नीतीश कुमार ने अपनी सरकार में सबसे भरोसेमंद जीतनराम मांझी को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी थी. तमाम कारणों में से एक तो यही था कि चूंकि मुख्यमंत्री होने के नाते प्रधानमंत्री बन जाने पर नरेंद्र मोदी को औपचारिक तौर पर अटेंड करना पड़ता इसलिए नीतीश कुमार ने बचने की तरकीब खोज डाली थी, लेकिन दांव उलटा पड़ गया और जीतनराम मांझी तो नीतीश कुमार की नाव ही डुबोने में जुट गये. अब समय के चक्र की कौन कहे, वो दिन भी आया जब नीतीश कुमार को भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को नेता मान लेना पड़ा और जीतनराम माझी भी हाथ जोड़े नीतीश कुमार के पास लौट ही आये.
आरसीपी सिंह का पहला बयान ही बता रहा है कि उनको जेडीयू अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपने के पीछे नीतीश कुमार की दूरगामी सोच क्या रही होगी - लेकिन अब बीजेपी को समझ लेना चाहिये कि नीतीश कुमार को वो उतना ही डराये कि डर बना रहे, वरना किसी का भी डर खत्म हो जाता है तो वो कहीं ज्यादा खतरनाक हो जाता है.
नीतीश कुमार ने आरसीपी सिंह की जबान से अरुणाचल प्रदेश में बीजेपी की हरकत को लेकर अमित शाह (Amit Shah) को जो मैसेज दिया है वो वास्तव में महज एक चेतावनी है - अगर बीजेपी नेतृत्व ने सबक नहीं लिया तो लेने के देने भी पड़ सकते हैं.
नीतीश की चेतावनी बीजेपी को समझ लेनी चाहिये
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बड़ी ही साफगोई से कहा है - 'सोच समझकर और जानबूझकर आरसीपी सिंह को अध्यक्ष बनाया. हम ज्यादा से ज्यादा काम कर सकें, इसके लिए अध्यक्ष बनाया.'
साथ ही, ये भी जोड़ दिया, 'अब पूरे तौर पर आरसीपी सिंह अध्यक्ष पद का काम देखेंगे.'
आरसीपी सिंह के पूरे तौर पर अध्यक्ष पद का काम देखने का मतलब कि जेडीयू के साथ बीजेपी को अब आरसीपी सिंह से ही डील करनी होगी. जब मुख्यमंत्री की बात होगी तो नीतीश कुमार तो बीजेपी नेतृत्व के लिए एक पैर पर खड़े रहेंगे ही, लेकिन जेडीयू को लेकर कोई फैसला लेना होगा तो नीतीश कुमार या तो हवा का रुख आरसीपी सिंह की तरफ मोड़ देंगे या फिर एक बार विमर्श कर लेने के नाम पर किसी भी फैसले के लिए मोहलत बढ़ा लेंगे.
अरुणाचल प्रदेश को लेकर बीजेपी कोटे की बिहार की डिप्टी सीएम रेणु देवी ने भले ही पल्ला झाड़ने की कोशिश की हो, लेकिन नीतीश कुमार उस वाकये को काफी गंभीरता से ले रहे हैं. आरसीपी सिंह ने नीतीश कुमार का संदेश बीजेपी नेतृत्व तक पहुंचाने की कोशिश भी की है.
आरसीपी सिंह ने साफ तौर पर समझा दिया है कि जनता दल यूनाइटेड कभी किसी को धोखा नहीं देती और न ही किसी के खिलाफ साजिश रचती है. मतलब, जेडीयू का मानना है कि बीजेपी ने अरुणाचल प्रदेश के मामले में जेडीयू को धोखा दिया है.
अरुणाचल प्रदेश की घटना पर आरसीपी सिंह बीजेपी नेतृत्व को सीधे और साफ साफ शब्दों में नीतीश कुमार का संदेश देने की कोशिश की है, “हम किसी को धोखा नहीं देते, साजिश नहीं रचते... हम जिनके साथ रहते हैं पूरी ईमानदारी के साथ रहते हैं.”
अरुणाचल प्रदेश में जेडीयू के 7 में से 6 विधायकों को बीजेपी के पार्टी में ले लेने से नीतीश कुमार बेहद गुस्से में हैं. निश्चित तौर पर नीतीश कुमार इसे भी वैसे ही देख रहे होंगे जैसे बीजेपी नेतृत्व ने चिराग पासवान को बिहार विधानसभा चुनाव में वोटकटवा बना कर जेडीयू को कई सीटों पर नुकसान पहुंचाया था. चुनाव नतीजे आने पर बीजेपी के मुकाबले कम सीटें आने के बाद नीतीश कुमार ने बीजेपी के सामने किसी और को मुख्यमंत्री बनाने का प्रस्ताव रख दिया था. एक बार फिर नीतीश कुमार ने जेडीयू कार्यकर्ताओं के बीच उसी बात को दोहराया.
नीतीश कुमार ने कहा, “मेरी जरा भी इच्छा नहीं थी मुख्यमंत्री बनने की... मुझ पर दबाव डाला गया था तब मैंने मुख्यमंत्री पद का पदभार ग्रहण किया. कोई भी मुख्यमंत्री बने... किसी का भी मुख्यमंत्री बना दिया जाये - मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता है.”
बीजेपी के लिए इससे बड़ी बात कोई नहीं हो सकती कि किसी को भी मुख्यमंत्री बना देने से नीतीश कुमार को कोई फर्क नहीं पड़ता. वैसे भी चुनावों के दौरान नीतीश कुमार ने बोल ही दिया था कि ये उनका आखिरी चुनाव होगा - अंत भला तो सब भला.
पीके 'भूत' हो गये - और अब RCP 'भविष्य' हैं!
राजनीति में खुल कर आने से पहले रामचंद्र प्रसाद सिंह, नीतीश कुमार के रेल मंत्री रहते पीएस हुआ करते थे. आरसीपी सिंह यूपी कैडर के आइएएस रहे और यूपी के ही एक नेता ने उनकी नीतीश कुमार से परिचय कराया था - ये कहते हुए कि ये आपके ही इलाके के हैं. थोड़ी सी बातचीत में ही नीतीश कुमार को मालूम हो गया कि आरसीपी सिंह न सिर्फ उनके इलाके नालंदा से आते हैं, बल्कि स्वजातीय भी है.
कभी नीतीश कुमार ने प्रशांत किशोर को जेडीयू का भविष्य बताया था, लेकिन अब आरसीपी सिंह जेडीयू के भविष्य बन चुके हैं और प्रशांत किशोर भूतकाल का किस्सा बन चुके हैं. प्रशांत किशोर को पीके के नाम से भी पहचाना जाता है.
2015 का बिहार विधानसभा चुनाव जीतने के बाद नीतीश कुमार ने प्रशांत किशोर को सरकार का सलाहकार बनाकर मंत्री का दर्जा दे डाला था, लेकिन प्रशांत किशोर की उस रूप में कोई खास योगदान नहीं देखने को मिला.
जब सितंबर, 2018 में प्रशांत किशोर को जेडीयू का उपाध्यक्ष बनाये की बात पक्की हुई तो वो खासे उत्साहित दिखे. उसी वक्त प्रशांत किशोर ने ट्विटर भी ज्वाइन किया और अपनी खुशी का इजहार भी.
प्रशांत किशोर को जेडीयू का उपाध्यक्ष बनाने के बाद हुई प्रेस कांफ्रेंस में भी एक राजनीतिक मैसेज छिपा हुआ था. नीतीश कुमार की एक तरफ तो वशिष्ठ नारायण सिंह बैठे थे, लेकिन दूसरी तरफ वाली जगह प्रशांत किशोर ने ले ली थी. वो जगह जो बरसों से आरसीपी सिंह अपनी मानते रहे और अक्सर बैठे भी देखे जाते रहे. नहीं भी बैठते तो उनकी मौजूदगी में दूसरे किसी को भी वो जगह तो नहीं ही मिलती.
प्रशांत किशोर उस दिन से आरसीपी सिंह की नजर में चढ़ गये, लेकिन मीडिया की तरफ से सवाल पूछे जाने पर संयम नहीं खोया, बल्कि बताया कि उनकी पोजीशन कोई ले नहीं सकता.
आरसीपी सिंह से पूछ भी लिया गया - क्या प्रशांत किशोर को आपका कद कम करने के लिए लाया गया है?
सवाल सुन कर तो आरसीपी सिंह का खून खौल ही उठा होगा, लेकिन वो चेहरे के भाव तक नहीं बदलने दिये - और बड़े ही सहज होकर बोले, "मैं तो महज पांच फुट चार इंच का हूं - आप मुझे कितना छोटा कर सकते हैं?"
ज्यादा दिन नहीं लगे. 2019 का आम चुनाव आने से काफी पहले ही आरसीपी सिंह प्रशांत किशोर को उस काम से बेदखल कर चुके थे जिसके वो सबसे बड़े माहिर माने जाते हैं - ट्विटर पर ये दर्द भी प्रशांत किशोर ने खुद ही व्यक्त किया था.
चुनाव भी बीत गया और केंद्र में नयी सरकार भी बन गयी. आरसीपी सिंह मंत्री बनते बनते भी रह गये - क्योंकि एनडीए सहयोगियों के लिए एक ही मंत्री का कोटा होने की बीजेपी की शर्त नीतीश कुमार को नागवार गुजरी थी. आरसीपी सिंह को तो प्रशांत किशोर के खिलाफ मौके की तलाश थी. मौका मिल भी गया. सीएए को लेकर जब प्रशांत किशोर लगातार ट्वीट कर रहे थे और नीतीश कुमार को सलाह के साथ साथ नसीहतें भी, तो आरसीपी सिंह को मौका मिल गया. बयानबाजी के बीच, आरसीपी सिंह ने प्रशांत किशोर को अपने लिए अलग रास्ता खोज लेने की सलाह दे डाली. आखिरकार वो दिन भी आ ही गया जिसका आरसीपी सिंह को सितंबर, 2018 से इंतजार था - प्रशांत किशोर को नीतीश कुमार ने न सिर्फ उपाध्यक्ष पद से बल्कि जेडीयू से ही बाहर का रास्ता दिखा दिया. जितने दिन भी प्रशांत किशोर जेडीयू के उपाध्यक्ष रहे, नंबर दो की पोजीशन उनके नाम रही. प्रशांत किशोर को जेडीयू से बेदखल किये जाने के बाद नंबर दो वाली पोजीशन फिर से आरसीपी सिंह के पास लौट आयी - ठीक वैसे ही जैसे प्रशांत किशोर के आने से पहले हुआ करती रही.
एक सवाल ये जरूर उठ रहा है कि आखिर नीतीश कुमान ने नंबर दो पोजीशन वाले आरसीपी सिंह को पार्टी में नंबर वन की पोजीशन क्यों और कैसे दे दी?
ये तो कहना मुश्किल है कि आरसीपी सिंह की पोजीशन अध्यक्ष बनने भर से बदल जाएगी. ऐसा तब जरूर हो सकता था अगर आरसीपी सिंह का अपना अलग चेहरा और जनाधार होता. आरसीपी सिंह भी नीतीश कुमार की बिरादरी और उनके इलाके नालंदा से ही आते हैं, लेकिन पोजीशन जो औपचारिकताओं के दायरे में बंधी हो और जो व्यावहारिक हो उसमें फर्क होता है. नंबर एक की पोजीशन कागजों पर दस्तखत करने वाली तो होगी, लेकिन कहां दस्तखत करनी है आरसीपी सिंह को पूछना नीतीश कुमार से ही पड़ेगा - जब तक राणा की पुतली फिरेगी नहीं चेतक के मुड़ जाने का सवाल ही नहीं उठता.
असल बात तो ये है कि नीतीश कुमार ने आरसीपी सिंह को जेडीयू का नया प्रवक्ता बनाया है. जो बात कहने वे खुद असहज महसूस करेंगे आरसीपी सिंह अपने मत्थे रख कर बोल देंगे - अहमियत के हिसाब से ऐसे मामलों में आवाज तो नीतीश कुमार की ही होगी, लेकिन लिपसिंक (Lip Sync) आरसीपी सिंह करते देखे जाएंगे - और बीजेपी को ये बोल कर कि वो धोखा देने में विश्वास नहीं करते, आरसीपी सिंह ने नीतीश कुमार के मन की बात अमित शाह और प्रधानमंत्री मोदी को बता दी है. कम बोलने को भी अब बीजेपी को ज्यादा समझने के लिए तैयार रहना होगा.
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