यूनाईटेड नेशन ने 'वन बेल्ट, वन रोड' के से जुड़े सारे देशों को चेताया है. यू.एन. के अनुसार इससे जुड़े देशों पर चीन के इस बेल्ट एण्ड रोड इनिशटिव (BRI) का उनके इकोनोमीक, फाईनेंशियल, सोशल और इंवोरमेंटल स्टेटस पर बड़ा गहरा प्रभाव पड़ेगा.
1. 2013 के अंत में हुए चीन और उज़्बेकिस्तान के बीच 96,825.9 करोड़ों का डील को ही देख लीजिए. ये रकम उज़्बेकिस्तान के GDP का एक-चौथाई है.
2. 2014-15 में हुए कजाकिस्तान के साथ 2,38,820.57 करोड़ का करार भी उस देश के GDP के 20% हिस्से जितनी है.
3. 2,38,820.57 करोड़ का पाकिस्तान के साथ हुआ करार भी उसके लिए घातक है. उस देश के GDP के 20% हिस्से जितनी कीमत वो चीन से लेने वाला है. अब तो ये सौदा बढ़कर 4,00,233.56 करोड़ रूपए की हो गई है. खैर पहले से भी चीन पाकिस्तान को अपने इशारों पर नचाता आया है. अब तो वो पुरे हक के साथ, पाकिस्तान पर राज करने वाला है.
4. बांग्लादेश के साथ हुआ करार भी इससे अलग नहीं है. 154927.92 करोड़ का ये समझैता, जो कि उसके GDP का 1/5 वां हिस्सा है, कभी भी मुसिबत बन सकती है.
इस स्टडी में चाइनीज लोन को लेकर ये भी कहा गया है कि "रियायती दर पर मिले इंफ्रास्ट्रकचर प्रोजेक्टों के लिए इतना बड़ा लोन, कभी भी ट्रेड बैलेंस में जरा सी गड़बड़ी के कारण मुसिबत बन सकती है".
श्रीलंका के साथ जो हुआ, वो तो...
यूनाईटेड नेशन ने 'वन बेल्ट, वन रोड' के से जुड़े सारे देशों को चेताया है. यू.एन. के अनुसार इससे जुड़े देशों पर चीन के इस बेल्ट एण्ड रोड इनिशटिव (BRI) का उनके इकोनोमीक, फाईनेंशियल, सोशल और इंवोरमेंटल स्टेटस पर बड़ा गहरा प्रभाव पड़ेगा.
1. 2013 के अंत में हुए चीन और उज़्बेकिस्तान के बीच 96,825.9 करोड़ों का डील को ही देख लीजिए. ये रकम उज़्बेकिस्तान के GDP का एक-चौथाई है.
2. 2014-15 में हुए कजाकिस्तान के साथ 2,38,820.57 करोड़ का करार भी उस देश के GDP के 20% हिस्से जितनी है.
3. 2,38,820.57 करोड़ का पाकिस्तान के साथ हुआ करार भी उसके लिए घातक है. उस देश के GDP के 20% हिस्से जितनी कीमत वो चीन से लेने वाला है. अब तो ये सौदा बढ़कर 4,00,233.56 करोड़ रूपए की हो गई है. खैर पहले से भी चीन पाकिस्तान को अपने इशारों पर नचाता आया है. अब तो वो पुरे हक के साथ, पाकिस्तान पर राज करने वाला है.
4. बांग्लादेश के साथ हुआ करार भी इससे अलग नहीं है. 154927.92 करोड़ का ये समझैता, जो कि उसके GDP का 1/5 वां हिस्सा है, कभी भी मुसिबत बन सकती है.
इस स्टडी में चाइनीज लोन को लेकर ये भी कहा गया है कि "रियायती दर पर मिले इंफ्रास्ट्रकचर प्रोजेक्टों के लिए इतना बड़ा लोन, कभी भी ट्रेड बैलेंस में जरा सी गड़बड़ी के कारण मुसिबत बन सकती है".
श्रीलंका के साथ जो हुआ, वो तो किसी से छुपा नहीं है. श्रीलंका पर ये कर्ज बढ़कर 3,87,289.80 करोड़ रूपए से ज्यादा हो गए है, जो की चीन पर कुल बकाया रूपयों का 10% से ज्यादा हिस्सा है. इस कर्ज को खत्म करने के लिए श्रीलंकाई सरकार को उसे इक्विटी में बदलने के लिए राजी हो गया है. जिससे उस प्रोजेक्ट पर अंतत: चीन का मालिकाना अधिकार हो जाएगा.
अगर इन देशों ने समय रहते हाथ वापस ना लिए तो 21वीं सदी के इस आर्थिक गुलामी में फंसने से इन देशों को कोई नही बचा सकता है.
कंटेंट- श्रीधर भारद्वाज (इंटर्न, आईचौक)
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