दिवाली के दिन पहले यानी छोटी दिवाली के दिन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अयोध्या में वर्ल्ड रिकॉर्ड वाली दिवाली मनाने में व्यस्त थे. जहां पिछले एक दशक से अयोध्या को लोग सिर्फ बाबरी मस्जिद और राम जन्मभूमि विवाद के कारण ही जानते थे. योगी आदित्यनाथ ने रावण को हराकर और 14 साल के वनवास के बाद भगवान राम के घर वापसी के जश्न को धमाकेदार तरीके से मनाने का फैसला किया.
राम-सीता और लक्ष्मण की भूमिका में रामलीला के कलाकारों के लिए एक हेलीकॉप्टर की व्यवस्था की गई थी. उत्तर प्रदेश सरकार के एक प्रवक्ता ने कहा, "लोगों को दिखाने के लिए ये व्यवस्था की गई है कि कैसे रावण का वध करने के बाद 'पुष्पक विमान' से भगवान राम सीता को लेकर आए. अयोध्या को दुल्हन की तरह सजाया गया है. लोगों ने ऐसी अयोध्या आज के पहले कभी नहीं देखी है."
ये सारा ताम-झाम सिर्फ लोगों के बीच ये संदेश देने के लिए था कि मुख्यमंत्री के लिए भगवान राम और हिंदु धर्म ही सर्वोपरि है. यही नहीं भगवान राम और हिंदुत्व के प्रति अपनी आस्था दिखाने के लिए मुख्यमंत्री जी ने सरयू नदी पर प्रभु श्रीराम की 100 मीटर लंबी प्रतिमा भी स्थापित करने की घोषणा कर दी है. इन सब के बीच मुख्यमंत्री ने बड़ी ही सफाई से लोगों की भावनाओं को हवा देने में कामयाब रहे. लोगों की कमजोर नस को मुख्यमंत्री ने पकड़ लिया और राम की जन्मस्थली में बड़े ही महीन तरीके से अयोध्या को फिर से सुर्खियों में ले आए.
6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद के ध्वंस होने के बाद से शुरु हुए हिन्दु-मुस्लिम बंटवारे के बाद से ही यहां का माहौल तनावपूर्ण ही रहता था. जब-जब राम मंदिर का मुद्दा उठता शहर में तनाव अपने चरम होता. लेकिन छोटी दिवाली के दिन के कार्यक्रम में पहली बार शहर के...
दिवाली के दिन पहले यानी छोटी दिवाली के दिन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अयोध्या में वर्ल्ड रिकॉर्ड वाली दिवाली मनाने में व्यस्त थे. जहां पिछले एक दशक से अयोध्या को लोग सिर्फ बाबरी मस्जिद और राम जन्मभूमि विवाद के कारण ही जानते थे. योगी आदित्यनाथ ने रावण को हराकर और 14 साल के वनवास के बाद भगवान राम के घर वापसी के जश्न को धमाकेदार तरीके से मनाने का फैसला किया.
राम-सीता और लक्ष्मण की भूमिका में रामलीला के कलाकारों के लिए एक हेलीकॉप्टर की व्यवस्था की गई थी. उत्तर प्रदेश सरकार के एक प्रवक्ता ने कहा, "लोगों को दिखाने के लिए ये व्यवस्था की गई है कि कैसे रावण का वध करने के बाद 'पुष्पक विमान' से भगवान राम सीता को लेकर आए. अयोध्या को दुल्हन की तरह सजाया गया है. लोगों ने ऐसी अयोध्या आज के पहले कभी नहीं देखी है."
ये सारा ताम-झाम सिर्फ लोगों के बीच ये संदेश देने के लिए था कि मुख्यमंत्री के लिए भगवान राम और हिंदु धर्म ही सर्वोपरि है. यही नहीं भगवान राम और हिंदुत्व के प्रति अपनी आस्था दिखाने के लिए मुख्यमंत्री जी ने सरयू नदी पर प्रभु श्रीराम की 100 मीटर लंबी प्रतिमा भी स्थापित करने की घोषणा कर दी है. इन सब के बीच मुख्यमंत्री ने बड़ी ही सफाई से लोगों की भावनाओं को हवा देने में कामयाब रहे. लोगों की कमजोर नस को मुख्यमंत्री ने पकड़ लिया और राम की जन्मस्थली में बड़े ही महीन तरीके से अयोध्या को फिर से सुर्खियों में ले आए.
6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद के ध्वंस होने के बाद से शुरु हुए हिन्दु-मुस्लिम बंटवारे के बाद से ही यहां का माहौल तनावपूर्ण ही रहता था. जब-जब राम मंदिर का मुद्दा उठता शहर में तनाव अपने चरम होता. लेकिन छोटी दिवाली के दिन के कार्यक्रम में पहली बार शहर के लोगों में उत्साह का माहौल दिखा.
शहर की वो सुबह लोगों को साधु-संतों के जत्थे के दर्शन के साथ हुई. हैरानी इस बात की थी कि साधु-संतों ने राम जन्मभूमि से दूरी भी बना रखी थी. कार्यक्रम की शुरुआत हैलीकॉप्टर रुपी पुष्पक विमान के आगमन से हुई. इस हैलिकॉप्टर में राम-सीता और लक्ष्मण को लाया गया था. खुद मुख्यमंत्री ने भरत की भूमिका धारण कर हैलीपैड पर तीनों का स्वागत किया. यूपी के गवर्नर राम नाईक और पूरी योगी कैबिनेट ने भी मुख्मंत्री का साथ दिया. सारा दृश्य ऐसा था मानो वो फिर से 'त्रेता युग' को जीवंत कर रहे हों.
इसी के साथ ही सरयू के घाट पर राम की पौड़ी में शानदार जश्न शुरु हुआ. यहां पर शहरवासियों ने अविश्वसनीय लेजर शो देखा जो शायद उनमें से ज्यादातर ने जीवन में पहली बार देखा था. शहर में मुख्यमंत्री के आगमन पर 1,80,000 दिए जलाए गए. इसके जरिए गिनीज बुक में अपना नाम दर्ज कराने का भी इरादा था. इस मौके पर मुख्यमंत्री ने उपेक्षित शहर के लिए 133 करोड़ के विकास परियोजनाओं की भी घोषणा की.
जिस कुशलता के साथ यूपी के मुख्यमंत्री ने अपना स्पष्ट एजेंडा किया वो प्रशंसनीय है. उन्हें पता है कि अयोध्या में दिवाली मनाने के लिए उनपर जितनी उंगलियां उठेंगी वो उनके लिए ही फायदेमंद होगी. लेकिन एक सवाल जिसका वो जवाब नहीं दे पाए कि आखिर उन्होंने ये जश्न छोटी दिवाली को क्यों मनाया? क्योंकि इस दिन का न तो कोई ऐतिहासिक महत्व है और न ही धार्मिक. हो सकता है कि शायद योगी आदित्यनाथ दिवाली के पावन दिन गोरखनाथ मंदिर से दूर नहीं रहना चाहते थे.
इससे साफ जाहिर है कि अगर योगी जी को अयोध्या और गोरखनाथ के बीच चुनना हो तो वो गोरखनाथ को ही चुनेंगे. इससे राम के प्रति उनकी आस्था पर थोड़ा सवाल तो खड़ा होता ही है. योगी आदित्यनाथ ने निस्संदेह अपना कार्ड अच्छी तरह से खेला था. भाजपा-आरएसएस गठबंधन ने इस दावे को बार-बार खारिज किया कि इस आयोजन के पीछे कोई राजनीतिक कारण है. लेकिन वो ये बताने में भी असफल रहे कि फिर उन्हें आखिर क्यों इतने साल तक अयोध्या में दिवाली मनाने से किसी ने रोका था? आखिर क्यों न तो बाबरी विध्वंस के वास्तुकार कल्याण सिंह और न ही राजनाथ सिंह जिन्होंने दो बार यहां के मुख्यमंत्री पद को भी संभाला है ने भी यहां दिवाली मनाने की पहल नहीं की गई.
लेकिन अगर सत्ता में न होते हुए भी उन्होंने अयोध्या में दीवाली मनाने का फैसला किया होता तो कोई उन्हें रोक देता? साफ है कि इस तरह के आयोजन के लिए पार्टी को जनता का भरपूर सहयोग मिलता. ऐसा करने के बाद ही राम और हिंदुत्व के प्रति उनकी सच्ची आस्था ही साबित होती. अब ये तो कोई नहीं मानेगा कि पार्टी को किसी आयोजन के लिए फंडिंग की जरुरत पड़ेगी. वो भी भाजपा जैसी पार्टी को.
अब ये और बात है कि कोई भी खुद की जेब से पैसा नहीं खर्च करना चाहता. फिर चाहे बात राम लल्ला की ही क्यों न हो.
सच्चाई ये है कि अयोध्या में दिवाली समारोह के पीछे एक छिपा एजेंडा है. इसके दो मुख्य कारण हैं: 5 दिसम्बर से दशकों से चल रहे अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में रोजाना सुनवाई शुरु होने वाली है. 6 दिसम्बर 1992 को बाबरी विध्वंस के मामले के 25वीं वर्षगांठ के ठीक 24 घंटे पहले. दूसरा ये कि 2019 के चुनावों के पहले मतदाताओं के ध्रुवीकरण की शुरुआत कर देना.
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