फायदे के मकसद से हुई किसी भी पार्टनरशिप के घाटे के बाद टिके रहने की गुंजाइश कम ही बचती है. यूपी में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के गठबंधन को लेकर यही बात सबसे सटीक लग रही है. ताजा खबर तो यही है कि यूपी के लड़कों को अब साथ नहीं पसंद है - खासतौर पर अखिलेश यादव को राहुल गांधी का.
अखिलेश यादव को ये मामूली सी बात समझने में इतनी देर क्यों लगी, समझ में नहीं आ रहा - लेकिन इसे समझना जरूरी भी है. कहीं इसके पीछे राहुल गांधी को लेकर लोगों में बदलती धारणा तो नहीं?
अब वो साथ पसंद नहीं है
यूपी में चुनावी माहौल जब पीक पर पहुंच चुका था, समाजवादी पार्टी में अंदरूनी कलह भी शवाब पर नजर आ रहा था. फिर भी अगर कांग्रेस के साथ किसी तरह के गठबंधन की बात होती, मुलायम सिंह यादव हत्थे से उखड़ जाते.
ये उन्हीं दिनों की बात है जब अखिलेश यादव गठबंधन की बात करते नहीं थकते रहे. अखिलेश कहा करते - 'हाथ का साथ मिल जाने के बाद साइकिल की स्पीड कितनी तेज हो सकती है, सोचो जरा!' वैसे बाद में एक दौर ऐसा भी आया जब मुलायम सिंह यादव के दूत बन कर शिवपाल यादव कई नेताओं से दिल्ली में मिले. याद कीजिए चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की पहल पर ही संभव हुई इस मुलाकात के बाद पूछे जाने पर शिवपाल ने उन्हें पहचानने से भी इंकार कर दिया था.
समाजवादी पार्टी और कांग्रेस का गठबंधन भी लगातार सस्पेंस बने रहने के बाद अचानक एक दिन हो ही गया. बताया ये भी गया कि ये सब आधी रात को प्रियंका गांधी के एक फोन के बाद ही मैटीरियलाइज हो पाया. हालांकि, सीटों को लेकर, खासकर अमेठी में, थोड़ी किचकिच भी हुई लेकिन बाद में चुनाव प्रचार में ऐसा कभी नहीं लगा कि अंदर कहीं कोई खटास है. अखिलेश यादव और राहुल गांधी ने हाथों में हाथ...
फायदे के मकसद से हुई किसी भी पार्टनरशिप के घाटे के बाद टिके रहने की गुंजाइश कम ही बचती है. यूपी में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के गठबंधन को लेकर यही बात सबसे सटीक लग रही है. ताजा खबर तो यही है कि यूपी के लड़कों को अब साथ नहीं पसंद है - खासतौर पर अखिलेश यादव को राहुल गांधी का.
अखिलेश यादव को ये मामूली सी बात समझने में इतनी देर क्यों लगी, समझ में नहीं आ रहा - लेकिन इसे समझना जरूरी भी है. कहीं इसके पीछे राहुल गांधी को लेकर लोगों में बदलती धारणा तो नहीं?
अब वो साथ पसंद नहीं है
यूपी में चुनावी माहौल जब पीक पर पहुंच चुका था, समाजवादी पार्टी में अंदरूनी कलह भी शवाब पर नजर आ रहा था. फिर भी अगर कांग्रेस के साथ किसी तरह के गठबंधन की बात होती, मुलायम सिंह यादव हत्थे से उखड़ जाते.
ये उन्हीं दिनों की बात है जब अखिलेश यादव गठबंधन की बात करते नहीं थकते रहे. अखिलेश कहा करते - 'हाथ का साथ मिल जाने के बाद साइकिल की स्पीड कितनी तेज हो सकती है, सोचो जरा!' वैसे बाद में एक दौर ऐसा भी आया जब मुलायम सिंह यादव के दूत बन कर शिवपाल यादव कई नेताओं से दिल्ली में मिले. याद कीजिए चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की पहल पर ही संभव हुई इस मुलाकात के बाद पूछे जाने पर शिवपाल ने उन्हें पहचानने से भी इंकार कर दिया था.
समाजवादी पार्टी और कांग्रेस का गठबंधन भी लगातार सस्पेंस बने रहने के बाद अचानक एक दिन हो ही गया. बताया ये भी गया कि ये सब आधी रात को प्रियंका गांधी के एक फोन के बाद ही मैटीरियलाइज हो पाया. हालांकि, सीटों को लेकर, खासकर अमेठी में, थोड़ी किचकिच भी हुई लेकिन बाद में चुनाव प्रचार में ऐसा कभी नहीं लगा कि अंदर कहीं कोई खटास है. अखिलेश यादव और राहुल गांधी ने हाथों में हाथ डाले खूब चुनाव प्रचार किया - यूपी को ये साथ पसंद है.
विधानसभा चुनाव के बाद जब नगर निगमों के चुनाव हुए तो दोनों दल अलग अलग लड़े. तब बताया गया कि गठबंधन कायम है लेकिन नगर निगम चुनाव दोनों अलग अलग लड़ेंगे. बाद में भी दोनों के अच्छे रिश्तों की खबरें आती रहीं, सिवा उस दिन के बाद - जब राहुल गांधी ने अमेरिका में वंशवाद पर टिप्पणी की.
अखिलेश का एकला चलेंगे!
पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने करीब 25 फीसदी सीटें कांग्रेस को दी थी. नतीजे आये तो समाजवादी पार्टी 47 और कांग्रेस सिर्फ सात पर सिमटी नजर आयी.
अब अखिलेश को लग रहा है कि कांग्रेस के साथ विधानसभा चुनाव में गठबंधन करने से पार्टी को कोई फायदा नहीं हुआ. ये राय समाजवादी पार्टी के जिलाध्यक्षों और दूसरे पदाधिकारियों से मिले फीडबैक के बाद बना है. इसके मुताबिक स्थानीय नेताओं ने समझाने की कोशिश की है कि गठबंधन से पार्टी को अपेक्षित फायदा नहीं हुआ.
एक इंटरव्यू में अखिलेश ने कहा - 'हमें गठबंधन नहीं करना है, लिहाजा सीटों पर बातचीत करना वक्त की बर्बादी है.' अखिलेश यादव का कहना है कि मौजूदा वक्त लोक सभा चुनावों के लिए पार्टी को मजबूत करने का है. वैसे अखिलेश ने ये भी कहा है कि राहुल गांधी के साथ उनके अच्छे संबंध हैं.
लेकिन अखिलेश यादव का ये कहना कि वो किसी भ्रम में नहीं रहना चाहता हैं, कई सवालों को जन्म दे रहा है.
अखिलेश कहीं राहुल की से तो नहीं खफा?
ऐसा तो नहीं कि अखिलेश यादव को राहुल गांधी कि वो टिप्पणी नागवार गुजरी हो. वही टिप्पणी जिसके बाद अखिलेश यादव ने ऐलान कर दिया था कि आगे से उनकी पत्नी डिंपल यादव चुनाव नहीं लड़ेंगी.
अखिलेश यादव की ये टिप्पणी तब आयी जब राजनीति में वंशवाद को लेकर उनसे सवाल पूछा गया. तब वो रायपुर गये हुए थे - पत्रकारों ने राहुल गांधी की टिप्पणी का हवाला देते हुए अखिलेश यादव से उनकी राय पूछी थी.
ये उसी वक्त की बात है जब राहुल गांधी अमेरिका दौरे पर थे और भारतीय राजनीति में वंशवाद को उन्होंने एक समस्या बताया था. विशेष बात ये रही कि राहुल गांधी ने अपनी टिप्पणी में जिन लोगों का नाम लिया उसमें अखिलेश का भी शामिल था. पत्रकारों के पूछने पर अखिलेश यादव ने समाजवादी पार्टी में परिवारवाद की बातों से साफ इंकार कर दिया था - और डिंपल के चुनाव न लड़ने की घोषणा कर दी. अब सवाल ये उठ रहा है कि डिंपल यादव चुनाव नहीं लड़ेंगी तो कन्नौज का क्या होगा. कन्नौज से कौन चुनाव लड़ेगा?
तो क्या अखिलेश यादव वंशवाद को लेकर राहुल गांधी की टिप्पणी से ही वाकई नाराज हैं? अगर ऐसा होता तो अखिलेश यादव का रिएक्शन उसी वक्त आ गया होता. ठीक उसी वक्त नहीं तो कुछ दिन बाद भी आ सकता था. कहीं ऐसा तो नहीं गुजरात में राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस की परफॉर्मेंस और उसके नये अध्यक्ष के प्रति बदलते परसेप्शन से अखिलेश यादव डर गये हैं?
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