राजस्थान में बीजेपी ने लगातार दूसरी बार लोकसभा चुनाव में 25 में से 25 सीटें जीतकर इतिहास रच दिया है. बीजेपी की जीत के कई कारण बताए जा रहे हैं और कांग्रेस की हार में कई कमियां खोजी जा रही हैं. जीत के बहुत सारे साझेदार होते हैं मगर हार का कोई माई बाप नहीं होता. यही कुछ राजस्थान में भी देखने को मिला है. लोग अपने-अपने तरीके से कई वजह बता रहे हैं. कोई कहता है कि कांग्रेस ठीक से चुनाव नहीं लड़ पाई, तो कोई कहता है कि सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बना दिए होते तो युवा वोट कांग्रेस को मिलते, कोई कहता है कि कांग्रेस ठीक से टिकट ही नहीं बांट पाई. इस बात की भी चर्चा थी कि कांग्रेस के पास चुनाव लड़ने के लिए पैसे ही नहीं थे. लेकिन सच्चाई तो यह है कि जिस तरह से राजस्थान की 25 की 25 सीटें बीजेपी की झोली में गईं उसके बाद वजह ढूंढने की कोई गुंजाइश नहीं बचती है.
हम कह सकते हैं कि राजस्थान मे कांग्रेस का सबसे लोकप्रिय चेहरा मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी अगर 25 की 25 सीटों पर चुनाव लड़ते तब भी हार का मुंह देख सकते थे. कांग्रेस ने डेढ़ सौ रैलियां राजस्थान में कीं लेकिन यह सारी की सारी बेमानी थीं, क्योंकि लोगों ने तय कर रखा था कि मोदी को फिर से सत्ता में वापस लाना है. पार्टी के उम्मीदवारों की कोई चर्चा नहीं थी. उनके कामों के बारे में कोई बोलता नहीं था. यहां तक कि बेरोजगारों को ना तो अपने रोजगार से वास्ता था, ना ही किसानों को फसलों के कम दाम मिलने का मलाल था. पेट्रोल डीजल और रसोई गैस के बढ़ते दामों की भी कोई चर्चा नहीं थी. चर्चा केवल एक भरोसे की थी और भरोसे का नाम था नरेंद्र मोदी. भारत के बारे में यह बात कही जाती है कि एक बार लोगों को किसी पर भरोसा हो गया तो उसके सौ खून भी माफ होते हैं. कांग्रेस इस बात को समझ नहीं पाई और बीजेपी के सौ खून गिनाने के लिए जनता में जाती रही. बीजेपी के प्रचार का तरीका ऐसा था कि जन मानस में यह बात बैठ गई थी कि नरेंद्र मोदी ही देश के लिए सही विकल्प हैं.
राजस्थान में जीत बीजेपी की नहीं नरेंद्र मोदी की हुई है
राजस्थान विधानसभा चुनाव में जिस तरह से कांग्रेस को जीत मिली थी उसकी वजह से कांग्रेस को उम्मीद थी कि कम से कम 12 सीट तो हम जीत सकते हैं. और इन्हीं सीटों को जीतने के लिए उन्होंने अपने भरोसेमंद चेहरे अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री के पद से नवाजा था. अशोक गहलोत जानते थे लोकसभा चुनाव की राह आसान नहीं है लिहाजा तैयारी काफी पहले शुरू कर दी थी मगर एक बार मोदी मैदान में आए तो आंधी तूफान की तरह कांग्रेस के सारे तिनके उड़ा ले गए.
जोधपुर लोकसभा सीट से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत की दो लाख से ज्यादा की हार यह संकेत दे रहा है कि यह चुनाव अशोक गहलोत की छवि और चेहरे पर नहीं था. लिहाजा लोगों ने उनके बेटे को नकार दिया. अगर जोधपुर में कभी आप जाएं तो देखेंगे AIIMS, IIT, NIFD, NIFT, आयुर्वेद यूनिवर्सिटी, लॉ यूनिवर्सिटी समेत जितने भी बड़े संस्थान राजस्थान के हिस्से में आए हैं अशोक गहलोत ने सबके सब जोधपुर में खोले हैं. मगर इस बार लोगों ने अशोक गहलोत को नकार दिया. जोधपुर में जब हम लोगों के बीच घूमते थे तो लोग कहते थे कि हमें अशोक गहलोत से कोई शिकायत नहीं है. उन्होंने हमारे लिए बहुत कुछ किया है मगर हम उनको बेटे को वोट नहीं देंगे. हमें देश के लिए नरेंद्र मोदी को वोट देना है. राष्ट्रवाद की ऐसी आंधी जोधपुर में चल रही थी कि वैभव गहलोत टिक ही नहीं पाए.
दूसरी सीट जिसे लेकर राजस्थान में चर्चा थी कि कम से कम उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट के इलाके में दौसा सीट तो जीत सकते हैं. दौसा सीट सचिन पायलट और उनके पिता राजेश पायलट की परंपरागत सीट रही है. बाद में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित होने की वजह से पायलट परिवार के पास से निकल गई. इस सीट पर बीजेपी के अंदर अंदरूनी झगड़ा इतना ज्यादा था कि नामांकन के आखिरी दिन आखरी समय बीजेपी ने जसकौर मीणा को मैदान में उतारा था जबकि कांग्रेस की तरफ से अशोक गहलोत सरकार में मंत्री मुरारी मीणा की पत्नी सविता मीणा एक महीना पहले उम्मीदवार घोषित कर दी गई थीं. कहा जा रहा था कि गुर्जर, मीणा और मुस्लिम मिलकर कम से कम एक दौसा सीट जीत सकते हैं.
इसी तरह से टोंक सवाई माधोपुर में नमो नारायण मीणा के लिए कहा जा रहा था कि मीणा, गुर्जर और मुसलमान मिलकर कांग्रेस की नैया पार लगा देंगे मगर यहां भी कांग्रेस को हार मिली. धौलपुर करौली सीट को लेकर तो बीजेपी खुद परेशान थी क्योंकि वहां के मौजूदा सांसद बीजेपी के उम्मीदवार मनोज राजोरिया से लोगों में भारी नाराजगी थी उसकी वजह से कांग्रेस को जीतने की उम्मीद थी. मगर वहां भी निराशा हाथ लगी. बाड़मेर सीट पर जसवंत सिंह के बेटे मानवेंद्र सिंह पर भी कांग्रेस को भरोसा था मगर वोटरों ने इस बार पांच महीने बाड़मेर के विधानसभा सीट से चुनाव हारे बीजेपी उम्मीदवार कैलाश चौधरी को लोकसभा चुनाव में जीता दिया. बाड़मेर के लोगों ने कांग्रेस के मानवेंद्र सिंह को वोट नहीं दिया.
इस चुनाव में हमने शुरू से देखा है कि कोई भी मुद्दा नहीं था. लोगों की निजी जिंदगी से जुड़े हुए मुद्दे चुनाव के थे. जिन चीजों से लेकर रोज रोजाना जो दो-चार होते हैं उनके बारे में लोग सोच ही नहीं रहे थे. चर्चा हो रही थी कि नरेंद्र मोदी ही पायलट अभिनंदन को लेकर आया है. नरेंद्र मोदी ही पाकिस्तान का इलाज कर सकता है. नरेंद्र मोदी ही मुसलमानों को ठीक कर सकता है. इस तरह की बातें लोगों के दिलों दिमाग में भरी हुई थीं. लेकिन सवाल उठता है कि अभी क्या तब भी कांग्रेस को एक भी सीट की उम्मीद नहीं थी. क्या विधानसभा चुनाव जीतने वाली कांग्रेस एक भी सीट जीतने की हकदार नहीं थी.
राजस्थान में जीत का कारण कोई कोई मुद्दा नहीं था सिर्फ मोदी पर भरोसा था
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत लगातार इस पूरी परिस्थिति के लिए मीडिया को दोषी मानते हैं. अशोक गहलोत का मानना है कि मीडिया ने जिस तरह से लोगों के मन में यह भर दिया कि नरेंद्र मोदी ही देश का कल्याण कर सकते हैं उसके बाद लोगों ने विकल्प के बारे में सोचना छोड़ दिया. अशोक गहलोत मीडिया के प्रति काफी नाराज हैं. उनका कहना है कि नरेंद्र मोदी की जीत से बड़ी यह मीडिया की जीत है. मीडिया नरेंद्र मोदी के दलाल के रूप में काम करती है. मगर यह अर्धसत्य है. कांग्रेस की इस हार में कांग्रेस के निकम्मेपन की भी बड़ी भूमिका रही है. कांग्रेस का कार्यकर्ता कहीं भी कांग्रेस के उम्मीदवार को जिताने के लिए बाहर नहीं निकला. जयपुर ग्रामीण सीट पर जब हम वोट देने के लिए वैशाली नगर के स्टेप बाय स्टेप वोटिंग सेंटर पर गए तो वहां पर पर कांग्रेस का पोलिंग एजेंट ही नहीं था. यही हाल जयपुर शहर का था जहां पर जयपुर से कांग्रेस के उम्मीदवार ज्योति खंडेलवाल चुनाव लड़ रही थीं मगर कहीं भी कांग्रेस का कोई नजर नहीं आ रहा था.
कांग्रेस के साथ समस्या यह है कि यहां पर कार्यकर्ता बचा ही नहीं है. जो बचे हैं वह नेता बचे हैं और जो नेता हैं वो मानते हैं कि वो टिकट के हकदार हैं. कांग्रेस दूसरे को टिकट देती है उसको हराने के लिए बाकी के कांग्रेस नेता निकल लेते हैं. उनको लगता है कि मैं ज्यादा काबिल था लेकिन पार्टी ने गलत आदमी पर भरोसा किया है. कांग्रेस जिसको टिकट देती है वही जाने कि उसे कैसे चुनाव जीतना है. मगर इस बार बीजेपी के आम कार्यकर्ताओं में जीत की भूख दिखी. बीजेपी कार्यकर्ताओं ने युद्ध की तरह चुनाव लड़ा है. जहां उन्हें उम्मीदवार पसंद नहीं थे वहां उसकी भी जीत के लिए उन्होंने जी जान लगा दी. घर-घर दस्तक देते रहे और घर-घर जाकर वोट डालने के लिए पर्ची बांटते रहे. कांग्रेस में यह कहीं भी नहीं दिखा. बीजेपी के कोटा से चुनाव जीते उम्मीदवार ओम बिरला ने चुनाव के दौरान तीन सर्वे कराए थे. बिरला ने अपने सर्वे को गिनाते हुए कहा था कि बीजेपी राजस्थान में 25 की 25 सीटें जीत रही है. उनका दावा सही निकला क्योंकि उन्होंने सर्वे में बताया था कि ग्रामीण इलाकों में भी एक व्यक्ति नहीं मिल रहा था जो ये कहे कि हम कांग्रेस को वोट दे रहे हैं. वो न तो बीजेपी का नाम ले रहे थे और न ही किसी उम्मीदवार का नाम ले रहे थे, वो तो सिर्फ मोदी मोदी कर रहे थे.
कांग्रेस का सबसे मजबूत गढ़ उदयपुर का आदिवासी इलाका था. विधानसभा चुनाव में वह आदिवासी इलाका कांग्रेस के हाथ से निकल गया क्योंकि वहां पर भारतीय ट्राइबल पार्टी के रूप में आदिवासियों ने अपने नई पार्टी बना ली जिसका नुकसान कांग्रेस को उठाना पड़ा. विधानसभा चुनाव में हार के बाद भी कांग्रेस ने कोई सीख नहीं ली और लोकसभा चुनाव में उदयपुर के दो इलाकों में कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया. कांग्रेस की बात करें तो वहां पर कांग्रेस के लिए छवि का भी संकट रहा.
इसी तरह से अजमेर में रिजु झुनझुनवाला को टिकट दिया गया. उसको लेकर चर्चा रही कि आखिर यह कौन है. लोगों में पहले दिन से ही चर्चा चल पड़ी थी करोड़ झुनझुनवाला ने टिकट खरीदा है और इसी तरह से भीलवाड़ा और झालावाड़ के कांग्रेस उम्मीदवार के लिए भी चर्चा रही. जिसकी वजह से कांग्रेस की इमेज खराब हुई और लोगों में यह बात गई कि कांग्रेस में टिकट बिकता है.
अशोक गहलोत और उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट में सही तारतम्यता नहीं दिखी
कांग्रेस की हार की वजह खोजना चाहें तो आप यह भी कह सकते हैं कि इस बार मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट में सही तारतम्यता नहीं दिखी. सचिन पायलट विधानसभा चुनाव में जीत का सेहरा अपने सिर नहीं बांधने का गम भुला नहीं पाए और अशोक गहलोत सचिन पायलट को हमेशा संदेह की नजरों से देखते रहे जिसकी वजह से जो 100 फीसदी गुर्जर वोट विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की तरफ आए थे वह इस लोकसभा चुनाव में नहीं मिले. कांग्रेस ने हर जगह जातिगत समीकरण को देखकर टिकट बांटे थे लेकिन आश्चर्य हुआ कि कोटा, दौसा, झुंझुनू और सीकर जैसे इलाकों में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के सजातीय वोटर मालियों ने भी बीजेपी को वोट डाले. यानी अब वक्त आ गया है कि कांग्रेस जाति या धर्म के आगे की जीत के समीकरणों पर सोचना शुरू करे. जो नई पीढ़ी है उसे कांग्रेस पसंद नहीं और चूंकि कांग्रेस पसंद नहीं है इसलिए वह वोट बीजेपी को डाल रहे हैं. ऐसी बात नहीं कि कांग्रेस के नेताओं को ये पता नहीं है मगर कोई मेहनत नहीं करना चाहता. सोशल मीडिया की लड़ाई में बीजेपी बहुत आगे दिखी और कांग्रेस कहीं दिखी ही नहीं. जबकि देश का युवा आजकल सबसे ज्यादा वक्त सोशल मीडिया पर गुजरता है.
इस तरह की कई वजह बीजेपी की जीत और कांग्रेस की हार के लिए खोजी जा सकती हैं. लेकिन जैसा मैंने पहले कहा है कि इस चुनाव में न तो बीजेपी की जीत के लिए कोई वजह दिखी और न ही कांग्रेस की हार के लिए. यहां तो लोगों ने तय करके मोदी को वोट दिया है. इसका कारण समझाना आसान नहीं है बस इसकी एक ही वजह आप समझा सकते हैं और वह है भरोसा. और भरोसे के आगे कोई वजह नहीं होती.
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