अब तक हम देश में घटित कई घटनाओं को देखते चले आए हैं, और उनपर संज्ञान लिया है. साथ ही हमने इस देश में, ऐसे तमाम विरोध प्रदर्शन भी देखे हैं. जिनमें अपना हक न मिलने या फिर अपनी मांग मनवाने के चलते लोग सड़कों पर आए और उन्होंने कानून व्यवस्था को अस्त व्यस्त किया. इसके विपरीत अब जो हमारी आंखें देख रही हैं वो शर्मसार करने वाला और कई मायनों में एक बेहद गंभीर विषय है. न्यायपालिका से जुड़े अहम लोग विद्रोह का बिगुल बजा चुके हैं. इनके विद्रोह करने से न सिर्फ देश का आम आदमी हैरान है बल्कि शासन तक में कोहराम मच गया है और वो दहल गया है.
सर्वोच्च न्यायालय के 4 जजों का विद्रोह भारतीय लोकतंत्र और शायद भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में अपनी तरह की एक पहली घटना है. जिसको देखकर, देश का आम आदमी मिश्रित प्रतिक्रिया दे रहा है. जो लोग इसके पक्ष में हैं उनका मानना है कि जब हम एक तरफ पारदर्शी सरकार चाहते हैं तो फिर हम पारदर्शी न्यायपालिका की कल्पना क्यों नहीं कर सकते.
इस मुद्दे पर अपना समर्थन दर्ज कर रहे लोगों का तर्क गहरी सोच का विषय है. इनका मानना है कि वर्तमान में न्यायपालिका में भी भ्रष्टाचार उतना ही व्यापक हो चला है जितना ये राजनीति में या नौकरशाही में है. अतः इन जजों ने जो किया वो सही किया. इसके विपरीत वो लोग जो इस घटनाक्रम से आहत हैं और दुखी हैं, उनका मानना है कि इससे लोगों का न्यायपालिका से विश्वास उठ जाएगा जो देश हित के लिए बिल्कुल भी सही नहीं है. बात आगे बढ़ाने से पहले आपको बता दें कि न्यायपालिका में व्यापक भ्रष्टाचार को लेकर, पूर्व में, प्रशांत भूषण ने एक याचिका भी दायर की थी जिसमें उन्होंने कई गंभीर मसलों पर प्रकाश डाला था.
गौरतलब है कि अब तक देश में...
अब तक हम देश में घटित कई घटनाओं को देखते चले आए हैं, और उनपर संज्ञान लिया है. साथ ही हमने इस देश में, ऐसे तमाम विरोध प्रदर्शन भी देखे हैं. जिनमें अपना हक न मिलने या फिर अपनी मांग मनवाने के चलते लोग सड़कों पर आए और उन्होंने कानून व्यवस्था को अस्त व्यस्त किया. इसके विपरीत अब जो हमारी आंखें देख रही हैं वो शर्मसार करने वाला और कई मायनों में एक बेहद गंभीर विषय है. न्यायपालिका से जुड़े अहम लोग विद्रोह का बिगुल बजा चुके हैं. इनके विद्रोह करने से न सिर्फ देश का आम आदमी हैरान है बल्कि शासन तक में कोहराम मच गया है और वो दहल गया है.
सर्वोच्च न्यायालय के 4 जजों का विद्रोह भारतीय लोकतंत्र और शायद भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में अपनी तरह की एक पहली घटना है. जिसको देखकर, देश का आम आदमी मिश्रित प्रतिक्रिया दे रहा है. जो लोग इसके पक्ष में हैं उनका मानना है कि जब हम एक तरफ पारदर्शी सरकार चाहते हैं तो फिर हम पारदर्शी न्यायपालिका की कल्पना क्यों नहीं कर सकते.
इस मुद्दे पर अपना समर्थन दर्ज कर रहे लोगों का तर्क गहरी सोच का विषय है. इनका मानना है कि वर्तमान में न्यायपालिका में भी भ्रष्टाचार उतना ही व्यापक हो चला है जितना ये राजनीति में या नौकरशाही में है. अतः इन जजों ने जो किया वो सही किया. इसके विपरीत वो लोग जो इस घटनाक्रम से आहत हैं और दुखी हैं, उनका मानना है कि इससे लोगों का न्यायपालिका से विश्वास उठ जाएगा जो देश हित के लिए बिल्कुल भी सही नहीं है. बात आगे बढ़ाने से पहले आपको बता दें कि न्यायपालिका में व्यापक भ्रष्टाचार को लेकर, पूर्व में, प्रशांत भूषण ने एक याचिका भी दायर की थी जिसमें उन्होंने कई गंभीर मसलों पर प्रकाश डाला था.
गौरतलब है कि अब तक देश में यही होता चला आया था कि लोग कोर्ट या उससे जुड़े लोगों की आलोचना करने से डरते थे. लोगों को लगता था कि इससे अदालत की अवमानना होगी. मगर इसके विपरीत सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ न्यायाधीशों की प्रेस वार्ता ने इन्हें खुल कर बोलने का मौका दिया है और लोग इस विषय पर अपना तर्क रखकर दो खेमों में बंट गए हैं, एक वो जो इनके साथ हैं दूसरे वो जो इनके खिलाफ हैं. मुद्दा कुछ भी हो मगर इन चारों जजों का एकसाथ आना और अपनी बातें खुल कर बोलना कई सारे सवालों को जन्म दे रहा है.
इस पूरे मामले में ये बात भी काबिल ए गौर है कि, अब तक इस देश का आम आदमी सुप्रीम कोर्ट को ही न्याय का आखिरी पड़ाव मानता था. ऐसे में खुद जजों का उसे करप्शन का गढ़ बताना भारत जैसे लोकतंत्र के लिए किसी घिनौने मजाक से कम नहीं है. माना जा रहा है कि, ये साझी प्रेस कांफ्रेंस न्यायपालिका में चल रहे पक्षपात को खत्म करने का अंतिम हथियार है. यदि इससे लगा निशाना सही जगह पहुंचा तो परिणाम सुखद होंगे अन्यथा भविष्य में स्थिति बेहद गंभीर होने वाली है.
बहरहाल, वर्तमान परिपेक्ष में इन जजों की प्रेस कांफ्रेंस देखकर ये बात तो साफ है कि आने वाले वक़्त में हालात बद से बदतर होंगे. कहा जा सकता है कि अब वो समय आ गया है जब हमें ऐसी चीजों को स्वीकार कर लेना चाहिए, और ये मान लेना चाहिए कि इस देश को भ्रष्टाचार की दीमक लग चुकी है जो उसे चाट चाट कर आए रोज खोखला बना रही है. अंत में हम ये कहते हुए अपनी बात खत्म करेंगे कि अगर भ्रष्टाचार रूपी इस बीमारी का वक़्त रहते इलाज नहीं किया गया तो भविष्य में हमारा लोकतंत्र और अस्तित्व दोनों संदेह के घेरे में रहेगा.
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