श्रीलंका में राजनीतिक संकट भारत के लिए बहुत ही चिंता की बात है. साउथ एशिया में सामरिक महत्व के कारण श्रीलंका हमारे लिए बहुत ही अहम है. वहां जो राजनीतिक संकट उत्पन्न हुआ है, वह भारत और श्रीलंका के बीच के सम्बन्ध को प्रभावित कर सकता है. श्रीलंका में अगर स्थिति भारत के अनुकूल नहीं रहती है तो वहां पर हमारे हितों को नुकसान पहुंच सकता है.
26 अक्टूबर को एक नाटकीय घटनाक्रम में कई मुद्दों पर मतभेद के चलते श्रीलंका के राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरीसेना ने तत्कालीन प्रधानमंत्री विक्रमसिंघे को बर्खास्त कर दिया था और उनके स्थान पर पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे को देश का नया प्रधानमंत्री नियुक्त कर दिया. तेजी से बदलते राजनीतिक घटनाक्रम के बीच सिरीसेना ने 27 अक्टूबर को संसद को 16 नवंबर तक निलंबित कर दिया और विक्रमसिंघे की सुरक्षा और विशेषाधिकार वापस ले लिए.
विक्रमसिंघे ने खुद को हटाए जाने को गैरकानूनी बताया है. साथ में उन्होंने यह भी कहा कि वह प्रधानमंत्री के रूप में काम करते रहेंगे. विशेषज्ञों ने भी सिरिसेना के फैसले पर सवाल उठाते हुए कहा है कि संविधान के 19वें संशोधन के मुताबिक बहुमत मिले बिना वह विक्रमसिंघे को पद से नहीं हटा सकते. एक अन्य घटनाक्रम में श्रीलंका संसद के स्पीकर ने 28 अक्टूबर को विक्रमसिंघे को ही देश का प्रधानमंत्री माना है. श्रीलंकाई मीडिया ने भी प्रधानमंत्री को बर्खास्त करने को संवैधानिक तख्तापलट बताया है. फिलहाल श्रीलंका में स्थिति ऐसी हो गयी है कि वहां विक्रमसिंघे और राजपक्षे दोनों प्रधानमंत्री पद के लिए दावेदारी कर रहे हैं और श्रीलंका में राजनीतिक व संवैधानिक संकट गहराते जा रहे हैं.
श्रीलंका के...
श्रीलंका में राजनीतिक संकट भारत के लिए बहुत ही चिंता की बात है. साउथ एशिया में सामरिक महत्व के कारण श्रीलंका हमारे लिए बहुत ही अहम है. वहां जो राजनीतिक संकट उत्पन्न हुआ है, वह भारत और श्रीलंका के बीच के सम्बन्ध को प्रभावित कर सकता है. श्रीलंका में अगर स्थिति भारत के अनुकूल नहीं रहती है तो वहां पर हमारे हितों को नुकसान पहुंच सकता है.
26 अक्टूबर को एक नाटकीय घटनाक्रम में कई मुद्दों पर मतभेद के चलते श्रीलंका के राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरीसेना ने तत्कालीन प्रधानमंत्री विक्रमसिंघे को बर्खास्त कर दिया था और उनके स्थान पर पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे को देश का नया प्रधानमंत्री नियुक्त कर दिया. तेजी से बदलते राजनीतिक घटनाक्रम के बीच सिरीसेना ने 27 अक्टूबर को संसद को 16 नवंबर तक निलंबित कर दिया और विक्रमसिंघे की सुरक्षा और विशेषाधिकार वापस ले लिए.
विक्रमसिंघे ने खुद को हटाए जाने को गैरकानूनी बताया है. साथ में उन्होंने यह भी कहा कि वह प्रधानमंत्री के रूप में काम करते रहेंगे. विशेषज्ञों ने भी सिरिसेना के फैसले पर सवाल उठाते हुए कहा है कि संविधान के 19वें संशोधन के मुताबिक बहुमत मिले बिना वह विक्रमसिंघे को पद से नहीं हटा सकते. एक अन्य घटनाक्रम में श्रीलंका संसद के स्पीकर ने 28 अक्टूबर को विक्रमसिंघे को ही देश का प्रधानमंत्री माना है. श्रीलंकाई मीडिया ने भी प्रधानमंत्री को बर्खास्त करने को संवैधानिक तख्तापलट बताया है. फिलहाल श्रीलंका में स्थिति ऐसी हो गयी है कि वहां विक्रमसिंघे और राजपक्षे दोनों प्रधानमंत्री पद के लिए दावेदारी कर रहे हैं और श्रीलंका में राजनीतिक व संवैधानिक संकट गहराते जा रहे हैं.
श्रीलंका के राजनीतिक संकट पर भारत अपनी नजर बनाए हुए है. भारत के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि श्रीलंका में हाल ही में पैदा हुए राजनीतिक उथल-पुथल पर भारत करीब से निगाह रख रहा है. एक लोकतंत्र और पड़ोसी दोस्त के रूप में हम उम्मीद करते हैं कि श्रीलंका में लोकतांत्रिक मूल्यों और संवैधानिक प्रक्रिया का सम्मान किया जाएगा. हम श्रीलंका के लोगों के विकास में सहयोग देना लगातार जारी रखेंगे. भारत के लिए श्रीलंका क्या महत्व रखता है किसी से छिपा हुआ नहीं है.
भारतीय हितों के लिए खतरा क्यों?
श्रीलंका में उत्पन्न ताजा घटनाक्रम के कारण वहां पर भारतीय निवेश को झटका लग सकता है. भारत श्रीलंका में पोर्ट, पेट्रोलियम और गैस, हाउसिंग, एयरपोर्ट आदि कई क्षेत्रो में विकास का कार्य कर रहा है. विक्रमसिंघे जहां भारतीय निवेश के पक्षधर रहे हैं वही राष्ट्रपति सिरीसेना का रवैया विरोधी रहा है. उनका भारत विरोधी रवैया और मुखर रूप तब सामने आया जब उन्होंने भारत की खुफिया एजेंसी ‘रॉ’ पर अपनी हत्या की साजिश रचने का आरोप लगाया, हालांकि बाद में वे साफ तौर पर इससे मुकर गए.
चीन समर्थक माने जाने वाले राजपक्षे की सत्ता में वापसी भारत के लिए खतरे की घंटी हो सकती है. भारत के रणनीतिक हित दांव पर लग सकते हैं. राजपक्षे ने अपने कार्यकाल के दौरान सामरिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण हंबनटोटा बंदरगाह चीन को कई वर्षों की लीज पर दे दिया था. चीन ने भारत को घेरने के लिए श्रीलंका के दक्षिण में स्थित हंबनटोटा बंदरगाह को विकसित करने और वहां पर निवेश करने का करार किया था. इसके साथ ही चीन इस बंदरगाह को सैन्य गतिविधियों के लिए भी इस्तेमाल करना चाहता है.
दोनों देश के बीच आर्थिक सहयोग की अपार संभावनाएं है. भारत श्रीलंका में बड़े पैमाने पर निवेश कर रहा है. तमिल उग्रवाद समाप्त होने के बाद अब देश में कोई आंतरिक संकट नहीं है. लेकिन अगर फिर से श्रीलंका में राजनीतिक संकट और अस्थिरता उत्पन्न हो जाएगी तो भारत को इसका खामियाजा उठाना पड़ सकता है.
अगर राजपक्षे फिर से श्रीलंका सत्ता में काबिज हो जाते हैं तो श्रीलंका और चीन की निकटता और बढ़ जाएगी. चीन ने श्रीलंका की कई बड़ी परियोजनाओं में अरबों डॉलर का भारी निवेश किया है. अगर चीन का प्रभुत्व बढ़ेगा तो इसके फलस्वरूप हिन्द महासागरीय क्षेत्र में चीन का भू-राजनीतिक प्रभाव और सामरिक दखल भी बढ़ सकता है और एक रीजनल पावर के रूप में भारत किसी और देश की मौजूदगी इस क्षेत्र में नहीं चाहता है.
उधर श्रीलंका के तमिलों के बीच भी डर का माहौल है. 2005 से 2015 के बीच जब महिंदा राजपक्षे श्रीलंका के राष्ट्रपति थे तब उन्होंने अभियान चलाकर लिट्टे और तमिलों के खिलाफ बड़ी कार्रवाई की थी. इसमें कई तमिल मारे गए थे. वहां के तमिल नागरिकों में ये डर सता रहा है कि राजपक्षे के आने के बाद फिर वो निशाने पर आ जाएंगे. श्रीलंकाई तमिलों के प्रति सहानुभूति और उनके हक की आवाज उठाने वाली तमिलनाडु की प्रमुख पार्टियों ने राजपक्षे के प्रधानमंत्री पद पर आसीन होने पर चिंता जाहिर की है.
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