JN की सबसे अच्छी चीज जो मुझे लगती है वो ये कि यह विश्वविद्यालय प्रायः प्रतिरोध का प्रतीक बना है. जो चीज बुरी लगती है वो यह कि प्रतिरोध मुद्दे से भटक कर राजनीतिक हो जाता है और अंत में प्रतीक भर रह जाता है. JN में हालिया प्रतिरोध की शुरुआत फीस के मुद्दे से हुई पर उसमें विवेकानंद कि मूर्ति कैसे घुसी पता नहीं. शायद राजनीति होगी क्योंकि जहां हवा नहीं घुस पाती वहां राजनीति घुस जाती है. लेकिन मैं यहां विवेकानंद की मूर्ति की बात नहीं करने आया इसलिए इतने ही रेफेरेंस के साथ इसे छोड़ देता हूं. असल मुद्दा जो था वो था हॉस्टल फीस में वृद्धि का और इस मामले में वहां के विद्यार्थियों ने जो किया ठीक ही किया. प्रशासन झुका भी और फीस वृद्धि को कम भी किया लेकिन अब जो प्रतिरोध चल रहा है वो समझ में कम आया लेकिन फिर भी उनकी लड़ाई है और वो अपने हिसाब से लड़ रहे हैं.
मुझे यहां पर JN से विद्यार्थियों की नहीं बल्कि आपकी और मेरी बात करनी है क्योंकि हम सब दरअसल मुद्दे को राजनीतिक नजर से ही देखते हैं और अपने विचार राजनीतिक नजरिये से ही रखते हैं. शिक्षा हमारे लिए मूलभूत अधिकार का मुद्दा होने की जगह राजनीति का विषय बन चुका है. यकीन नहीं आता तो JN की हॉस्टल फीस के मुद्दे पर लोगों को पढ़ लीजिये, उनके कमेंट देखिये. मेरा मानना है कि शिक्षा मुफ्त मिलनी चाहिए सबको और उसमें किसी प्रकार का भेदभाव न हो और यदि कहीं कुछ शुल्क हो तो वो भी पूरे देश में समान हो.
जब मैंने देखा कि JN में हॉस्टल फीस 10 रुपये महीना है और सिंगल सीट की 20 रुपये तो मुझे लगा कि ये भी व्हाट्सएप्प यूनिवर्सिटी से आया है क्योंकि 1997 में राजस्थान यूनिवर्सिटी में 1600 रुपये सेशन की हॉस्टल फीस थी जो अब लगभग 35000 है. हम सबने गरीब छात्रों कि...
JN की सबसे अच्छी चीज जो मुझे लगती है वो ये कि यह विश्वविद्यालय प्रायः प्रतिरोध का प्रतीक बना है. जो चीज बुरी लगती है वो यह कि प्रतिरोध मुद्दे से भटक कर राजनीतिक हो जाता है और अंत में प्रतीक भर रह जाता है. JN में हालिया प्रतिरोध की शुरुआत फीस के मुद्दे से हुई पर उसमें विवेकानंद कि मूर्ति कैसे घुसी पता नहीं. शायद राजनीति होगी क्योंकि जहां हवा नहीं घुस पाती वहां राजनीति घुस जाती है. लेकिन मैं यहां विवेकानंद की मूर्ति की बात नहीं करने आया इसलिए इतने ही रेफेरेंस के साथ इसे छोड़ देता हूं. असल मुद्दा जो था वो था हॉस्टल फीस में वृद्धि का और इस मामले में वहां के विद्यार्थियों ने जो किया ठीक ही किया. प्रशासन झुका भी और फीस वृद्धि को कम भी किया लेकिन अब जो प्रतिरोध चल रहा है वो समझ में कम आया लेकिन फिर भी उनकी लड़ाई है और वो अपने हिसाब से लड़ रहे हैं.
मुझे यहां पर JN से विद्यार्थियों की नहीं बल्कि आपकी और मेरी बात करनी है क्योंकि हम सब दरअसल मुद्दे को राजनीतिक नजर से ही देखते हैं और अपने विचार राजनीतिक नजरिये से ही रखते हैं. शिक्षा हमारे लिए मूलभूत अधिकार का मुद्दा होने की जगह राजनीति का विषय बन चुका है. यकीन नहीं आता तो JN की हॉस्टल फीस के मुद्दे पर लोगों को पढ़ लीजिये, उनके कमेंट देखिये. मेरा मानना है कि शिक्षा मुफ्त मिलनी चाहिए सबको और उसमें किसी प्रकार का भेदभाव न हो और यदि कहीं कुछ शुल्क हो तो वो भी पूरे देश में समान हो.
जब मैंने देखा कि JN में हॉस्टल फीस 10 रुपये महीना है और सिंगल सीट की 20 रुपये तो मुझे लगा कि ये भी व्हाट्सएप्प यूनिवर्सिटी से आया है क्योंकि 1997 में राजस्थान यूनिवर्सिटी में 1600 रुपये सेशन की हॉस्टल फीस थी जो अब लगभग 35000 है. हम सबने गरीब छात्रों कि बात की, हम सबने शिक्षा को सबकी पहुंच में रखने की बात की लेकिन जैसे ही किसी ने बाकी यूनिवर्सिटी और कॉलेज में फीस की बात की एक पक्ष ने कहा वो अपनी लड़ाई खुद लड़ें. यकीन मानिए वो भी लड़ रहे हैं पर जिस तरह हम लोग JN का नाम आते ही आपनी अपनी राजनीति के हिसाब से पक्ष विपक्ष तय करके बात करते हैं वैसे उनके लिए नहीं करते.
आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि BIMAR स्टेट्स में R,राजस्थान के लिए है. वहां भी गरीब हैं. अब जब फीस के नाम पर ये शिक्षा का मुद्दा उठ ही चुका है तो क्या आप और हम इस बारे में फीस से आगे कुछ और सोच सकते हैं, कुछ और लिख सकते हैं जो कि कहीं न कहीं शिक्षा को उच्च-स्तरीय और मुफ्त करने के लिए एक बहस शुरू करे. JN को छोड़ दें तो क्या अन्य सेंट्रल यूनिवर्सिटी में शिक्षा की स्थिति उतनी ही बेहतर है? स्टेट यूनिवर्सिटीज की क्या स्थिति है अभी? JN में शायद 8000 विद्यार्थी हैं और इसकी क्षमता और तो नहीं बढ़ सकती.
क्या हमें सिर्फ यहीं से बेहतर विद्यार्थी चाहिए? क्या हम हर विद्यार्थी को विस्थापित करके दिल्ली में बिठाना चाहते हैं? क्या हम देश की हर यूनिवर्सिटी में अच्छे शिक्षक और अच्छी रिसर्च की सुविधाओं की मांग नहीं कर सकते. मैं राजस्थान विश्वविद्यालय से पढ़ा हूं और इसलिए उसका उदाहरण बार-बार दे रहा हूं लेकिन आप इसे देश की किसी भी यूनिवर्सिटी से जोड़ लीजिये. स्थिति एक ही है. मेरे समय में विश्वविद्यालय का अर्थशास्त्र विभाग बहुत ही अच्छा था, नामी प्रोफेसर थे, रिसर्च होती थी. बहुत से विद्यार्थी सिविल सर्विस लेकर लेकर इकोनोमिक सर्विस में गए.
RBI में कई अर्थशास्त्री उसी डिपार्टमेंट के हैं लेकिन जब मैं किसी बड़े अर्थशास्त्री को बताता हूं कि मैं राजस्थान यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र का विद्यार्थी हूं तो वो निराश होता है क्योंकि उन्हें लगता है कि सिर्फ DSE या JN वाला ही तो अर्थशास्त्री हो सकता है. हम सब भी यही कर रहे हैं. अगर संख्या देखें हम जैसे स्टेट यूनिवर्सिटी वाले कहीं ज्यादा हैं इन सेवाओं में लेकिन क्या हमें और बेहतर सुविधाएं देने की कोशिश हुई? हमें हीन दृष्टि से देखने की जगह क्या हमें भी DSE के आसपास लाने की कोशिश सिस्टम ने की?
हम प्राइवेट होती शिक्षा पर दुख जता रहे हैं लेकिन ऐसा हो क्यों रहा है? मैं जब पढता था तो प्राइवेट कॉलेज में वह विद्यार्थी जाता था जिसका विश्वविद्यालय में एडमिशन नहीं होता था. अब स्थिति बदल रही है. लोग प्राइवेट यूनिवर्सिटी में जाना चाहते हैं क्योंकि सुविधाएं वहां बेहतर है भले ही पैसे ज्यादा लग रहे हों. हमें अच्छी शिक्षा चाहिए और कम कीमत पर. क्या आप और हम अगली बार इस बारे में भी कुछ बहस छेड़ सकते हैं?
नेहरु पर हमले के बाद एक पक्ष नेहरु जी के बचाव में उतरा हुआ है कि IIT दिए, JN दिया इत्यादि... क्या आपमें से कोई बताएगा कि IIT या JN वाला जब एक बड़े स्तर की रिसर्च करना चाहता है तो कहां से करता है? IIT / JN से या stanford, ऑक्सफ़ोर्ड, कैंब्रिज या MIT से? जी हां, जो सफल हो पाता है वो इन्हीं जगहों पर जाकर रिसर्च करता है. हमने अच्छे विश्वविद्यालय अपने ही घर में तय कर लिए पर इतने सालों में उन्हें इतना नहीं सुधार सके कि रिसर्च अपने विश्वविद्यालय में हो. दुनिया के टॉप सौ यूनिवर्सिटी में एक भी हमारी नहीं. यहां पर सवाल पूछना कहां गलत है कि इतने साल फिर किया क्या? मैं जिस प्रोफेशन में हूं मेरा रोज का मिलना है रिसर्चर और प्रोफ़ेसर लोगों से.
छतीसगढ़ के आदिवासी इलाकों पर रिसर्च करने वाला हिन्दुस्तानी विद्यार्थी अपनी रिसर्च देश के बाहर की यूनिवर्सिटी में एक गाइड बनाकर उसके अंडर करता है और समय पर जमा भी करा देता है. हमारे यहां रिसर्च टाइम पास का मुद्दा है. एक समय में पीएचडी को कई प्रकाशक किताब बनाकर छापते थे. आज की तारीख में एक भी बड़ा प्रकाशक हिंदुस्तान में की गयी पीएचडी को किताब बनाने योग्य नहीं समझता और ना ही उसे छापता है क्योंकि उसमें कोई कंटेंट ही नहीं होता. क्या हम अच्छे रिसर्च के लिए सुविधाओं की मांग कर सकते हैं?
देश में इस वक़्त अजीम प्रेमजी, अशोका यूनिवर्सिटी, ओपी जिंदल यूनिवर्सिटी जैसी प्राइवेट यूनिवर्सिटी ने बहुत ही जबरदस्त साख बनाई है. अशोका और अजीम प्रेम जी में रिसर्च की सुविधाएं और क्वालिटी काफी बेहतर है. इसके बाद आप सवाल करेंगे कि प्राइवेट क्यों हो रहा है सब? बहुत से अच्छे शिक्षक D और JN छोड़कर इनमें ज्वाइन कर चुके हैं क्योंकि पैसा और सुविधा दोनों इन्हें यहां मिल रहे हैं. क्या हम इस बारे में बात कर सकते हैं?
इस स्थिति के बाद वर्तमान की स्थिति में आते हैं. वर्तमान सरकार भी बाकी सरकारों की तरह शिक्षा पर ध्यान नहीं देना चाहती. हम किस तरह के लोग हैं इसे ये भी पिछले 70 साल से देख रहे हैं और अब इन्होने हमारी कमजोरी का फायदा उठाकर शिक्षा को और गर्त में डालने की तैयारी शुरू कर दी. क्या आपको मालूम है कि पिछले 5 सालों में यूनिवर्सिटी की लाइब्रेरी को किताबें खरीदने के नाम पर कितना फंड मिल रहा है? ये फंड कागजों में कुछ जगह है पर अकाउंट में नहीं आ रहा.
JN और D जैसी 4-5 और बड़ी सेन्ट्रल यूनिवर्सिटी ही ठीक से लाइब्रेरी फंड पा रही हैं. क्या राजस्थान विश्वविद्यालय, वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय, देवी अहिल्या बाई यूनिवर्सिटी क्या इन सबके बच्चों को लाइब्रेरी में किताबें न मिलें? आप कह देंगे कि इनकी लड़ाई ये लड़ें क्योंकि इनकी लड़ाई लड़ने से आपकी राजनीति को लाभ नहीं मिलता. सोशल मीडिया पर #Istandwith में ग्लैमर नहीं आता.
वर्तमान सरकार ने डिजिटल इंडिया के नाम पर लाइब्रेरी को डिजिटल बनाने की सलाह दी है. यूनिवर्सिटी को कहा जा रहा है कि किताबों की जगह ऑनलाइन रिसोर्स खरीदिये. सुनने में अच्छा लगता है क्योंकि एक तो जगह बचती है, एक किताब एक ही समय में हर छात्र पढ़ सकता है लेकिन ये सफल नहीं हो पा रहा क्योंकि जी यूनिवर्सिटी ने ऑनलाइन रिसोर्स खरीदा उनसे पूछा गया कि ये ऑनलाइन इस्तेमाल कितना हुआ. जवाब निराशाजनक था. इस नाम पर अब ऑनलाइन रिसोर्स भी यूनिवर्सिटी अब नहीं खरीद पा रही.
ऑनलाइन रिसोर्स के इस्तेमाल के लिए पूरे विश्वविद्यालय में, होस्टलों में इन्टरनेट की सुविधा चाहिए, छात्रों को लैपटॉप चाहिए लेकिन ये किस विश्वविद्यालय में है? ये ऐसा है कि सरकार ने सबको कहा कि गाड़ी खरीद लो लेकिन पेट्रोल दिया नहीं और अब कहती है चलाते नहीं, चलो वापस करो. मांग करिए इन सुविधाओं की विश्वविद्यालय में. जो लड़ाई JN से शुरू हुई है उसे आप हम अपनी राजनीति की भेंट न चढ़ाएं तो बेहतर क्योंकि JN में पहले ही कई छात्र नेता ये करने बैठे हैं.
बेहतर होगा कि हम JN की लड़ाई को पूरे देश के विश्वविद्यालय की लड़ाई बनायें. हर विश्वविद्यालय में समान फीस, इन्टरनेट, लाइब्रेरी, अच्छे और फुल टाइम शिक्षक, रिसर्च के लिए फंड की लड़ाई बनायें. वर्ना कुछ दिनों में फिर ये मामला भी पार्टीबाजी में ख़त्म हो जायेगा और हम लोग अपने बच्चों को प्राइवेट में या फिर विदेशों में भेज रहे होंगे.
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