आम आदमी पार्टी के विधायक और पंजाब विधानसभा में नेता विपक्ष सुखपाल सिंह खेहरा ने अलगाववादी सिख संगठनों द्वारा प्रचारित 'जनमत संग्रह 2020' का समर्थन किया है. 'जनमत संग्रह 2020' की वेबसाइट के अनुसार इस अभियान का उद्देश्य विश्व भर में फैले पंजाबी समुदाय के लोगों को अपना राजनीतिक भविष्य तय करने के लिए मतदान का एक अवसर प्रदान करना है. इस जनमत संग्रह के पीछे खड़े अलगाववादी सिख संगठन, मतदान के उपरांत, इन नतीजों को संयुक्त राष्ट्र के पास ले कर जाने की रणनीति बना रहे हैं. तदुपरांत उनका प्रयास आधिकारिक जनमत संग्रह कराकर भारत के राज्य पंजाब को एक अलग देश बनाने का है.
ऐसी ख़तरनाक सोच का समर्थन कोई भारतीय विधायक कैसे कर सकता है? पिछले वर्ष, पंजाब विधान सभा चुनावों के अवसर पर भी आम आदमी पार्टी की राज्य इकाई को कई मौकों पर खालिस्तानी कट्टरपंथियों के नज़दीक देखा गया था. राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार इस रणनीति का उदेश्य कट्टरपंथी सिख समाज का पंजाब चुनावों में समर्थन पाना था. इसके साथ-साथ विदेशों में चल रहे अलगाववादी सिख संगठनों द्वारा राजनीतिक दान की उम्मीद भी 'आप' को कट्टरपंथियों के समीप ले गई थी.
आम आदमी पार्टी की रणनीति तो बहुत शातिर थी पर यह विधान सभा चुनावों में उल्टी पड़ गई. विश्लेषकों का मानना है कि सिख कट्टरपंथियों से समीपता के कारण पंजाब का हिंदू समुदाय 'आप' से दूर हो गया. अकाली दल पहले से दस साल से शासन में थी, जनता में बदलाव की चाह थी. 'आप' का यह रणनीति पूरे के पूरे हिंदू समुदाय को कांग्रेस की तरफ़ ले गई. 'आप' का चुनावों में विफल होने का यह एक प्रमुख कारण था.
भारत के संविधान की शपथ लेने वाला कोई राजनीतिक दल कैसे देश विरोधी विचारधारा का साथ दे सकता है? 'आप' ने पंजाब चुनावों में अलगाववादी सिख संगठनों से नज़दीकियां बनाई. अब एक बार भी वही रणनीति दोहराई जा रही है....
आम आदमी पार्टी के विधायक और पंजाब विधानसभा में नेता विपक्ष सुखपाल सिंह खेहरा ने अलगाववादी सिख संगठनों द्वारा प्रचारित 'जनमत संग्रह 2020' का समर्थन किया है. 'जनमत संग्रह 2020' की वेबसाइट के अनुसार इस अभियान का उद्देश्य विश्व भर में फैले पंजाबी समुदाय के लोगों को अपना राजनीतिक भविष्य तय करने के लिए मतदान का एक अवसर प्रदान करना है. इस जनमत संग्रह के पीछे खड़े अलगाववादी सिख संगठन, मतदान के उपरांत, इन नतीजों को संयुक्त राष्ट्र के पास ले कर जाने की रणनीति बना रहे हैं. तदुपरांत उनका प्रयास आधिकारिक जनमत संग्रह कराकर भारत के राज्य पंजाब को एक अलग देश बनाने का है.
ऐसी ख़तरनाक सोच का समर्थन कोई भारतीय विधायक कैसे कर सकता है? पिछले वर्ष, पंजाब विधान सभा चुनावों के अवसर पर भी आम आदमी पार्टी की राज्य इकाई को कई मौकों पर खालिस्तानी कट्टरपंथियों के नज़दीक देखा गया था. राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार इस रणनीति का उदेश्य कट्टरपंथी सिख समाज का पंजाब चुनावों में समर्थन पाना था. इसके साथ-साथ विदेशों में चल रहे अलगाववादी सिख संगठनों द्वारा राजनीतिक दान की उम्मीद भी 'आप' को कट्टरपंथियों के समीप ले गई थी.
आम आदमी पार्टी की रणनीति तो बहुत शातिर थी पर यह विधान सभा चुनावों में उल्टी पड़ गई. विश्लेषकों का मानना है कि सिख कट्टरपंथियों से समीपता के कारण पंजाब का हिंदू समुदाय 'आप' से दूर हो गया. अकाली दल पहले से दस साल से शासन में थी, जनता में बदलाव की चाह थी. 'आप' का यह रणनीति पूरे के पूरे हिंदू समुदाय को कांग्रेस की तरफ़ ले गई. 'आप' का चुनावों में विफल होने का यह एक प्रमुख कारण था.
भारत के संविधान की शपथ लेने वाला कोई राजनीतिक दल कैसे देश विरोधी विचारधारा का साथ दे सकता है? 'आप' ने पंजाब चुनावों में अलगाववादी सिख संगठनों से नज़दीकियां बनाई. अब एक बार भी वही रणनीति दोहराई जा रही है. कोई एक बार ग़लती करे तो भूल माना जाएगा, पर यदि वह ग़लती दोहराई जाए तो उसे योजना का हिस्सा माना जाएगा. 'आप' को यह समझना चाहिए की उसे देश तोड़ने वालों के बजाए, देश जोड़ने वालों का साथ देना चाहिए. यही सच्ची राजनीति है.
ये भी पढ़ें-
राहुल गांधी की 'चिट्ठियां' बीजेपी के 'संपर्क फॉर समर्थन' से बिलकुल अलग हैं
2019 के मोदी के खिलाफ महागठबंधन तो बन गया पर गांठ रह गई
कर्नाटक और कैराना के हिसाब से तो राहुल गांधी की इफ्तार पार्टी फ्लॉप ही रही
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.