2019 के चुनाव नजदीक हैं. जैसे-जैसे चुनाव समीप आ रहे हैं कांग्रेस और भाजपा दोनों ही प्रमुख दलों के लिए बेचैनी बढ़ती जा रही है. बात अगर भाजपा की फ़िक्र की हो तो भाजपा को ये चिंता सता रही है कि क्या वो पीएम मोदी के नाम पर और इतने शानदार प्रदर्शन के बाद भविष्य में पूर्ण बहुमत वाली सरकार बना पाएगी तो वहीं कांग्रेस की फ़िक्र अलग है. कांग्रेस और राहुल गांधी के सामने इस वक़्त सबसे बड़ी चुनौती जीत के अलावा वो जनाधार दोबारा वापस हासिल करना है जो वो वर्तमान परिदृश्य में लगभग खो चुकी है.
कह सकते है कि, हालिया चुनाव में, कई जगह मिली जीत से जहां भाजपा और उसका कैडर उत्साहित है. तो वहीं असफलताओं की आंधी के थपेड़े खा चुके राहुल गांधी को एहसास हो गया है कि, अगर भविष्य में उसे मोदी नाम के तूफान का सामना करना है तो सबसे पहले उसे अपने कार्यकर्ताओं में हवा भरनी है, उन्हें बल देना है. खबर है कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी पार्टी के भीतर कैडर को मजबूती से खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं.
अपनी इस पहल के लिए उनके द्वारा कार्यकर्ताओं का डाटा बेस तैयार किया जा रहा है. जब ये डाटा बेस तैयार हो जाएगा उसके बाद हर कार्यकर्ता को पार्टी के व्हाट्सऐप ग्रुप और एसएमएस के जरिए जोड़ा जाएगा. माना जा रहा है कि इसके बाद पार्टी के बड़े नेता कार्यकर्ताओं के संपर्क में रहेंगे और उन्हें समय-समय पर मोटिवेट करते रहेंगे.
अब इस पहल के बाद पार्टी के बड़े नेता कितना अपने कार्यकर्ताओं को मोटीवेट करेंगे और वो कार्यकर्ता कितना मोटीवेट होंगे इसपर अभी कुछ कहना जल्दबाजी है और कांग्रेस के इस प्रयास का नतीजा क्या होगा इसका फैसला वक़्त करेगा मगर अब इस जटिल समय में कांग्रेस द्वारा की जा...
2019 के चुनाव नजदीक हैं. जैसे-जैसे चुनाव समीप आ रहे हैं कांग्रेस और भाजपा दोनों ही प्रमुख दलों के लिए बेचैनी बढ़ती जा रही है. बात अगर भाजपा की फ़िक्र की हो तो भाजपा को ये चिंता सता रही है कि क्या वो पीएम मोदी के नाम पर और इतने शानदार प्रदर्शन के बाद भविष्य में पूर्ण बहुमत वाली सरकार बना पाएगी तो वहीं कांग्रेस की फ़िक्र अलग है. कांग्रेस और राहुल गांधी के सामने इस वक़्त सबसे बड़ी चुनौती जीत के अलावा वो जनाधार दोबारा वापस हासिल करना है जो वो वर्तमान परिदृश्य में लगभग खो चुकी है.
कह सकते है कि, हालिया चुनाव में, कई जगह मिली जीत से जहां भाजपा और उसका कैडर उत्साहित है. तो वहीं असफलताओं की आंधी के थपेड़े खा चुके राहुल गांधी को एहसास हो गया है कि, अगर भविष्य में उसे मोदी नाम के तूफान का सामना करना है तो सबसे पहले उसे अपने कार्यकर्ताओं में हवा भरनी है, उन्हें बल देना है. खबर है कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी पार्टी के भीतर कैडर को मजबूती से खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं.
अपनी इस पहल के लिए उनके द्वारा कार्यकर्ताओं का डाटा बेस तैयार किया जा रहा है. जब ये डाटा बेस तैयार हो जाएगा उसके बाद हर कार्यकर्ता को पार्टी के व्हाट्सऐप ग्रुप और एसएमएस के जरिए जोड़ा जाएगा. माना जा रहा है कि इसके बाद पार्टी के बड़े नेता कार्यकर्ताओं के संपर्क में रहेंगे और उन्हें समय-समय पर मोटिवेट करते रहेंगे.
अब इस पहल के बाद पार्टी के बड़े नेता कितना अपने कार्यकर्ताओं को मोटीवेट करेंगे और वो कार्यकर्ता कितना मोटीवेट होंगे इसपर अभी कुछ कहना जल्दबाजी है और कांग्रेस के इस प्रयास का नतीजा क्या होगा इसका फैसला वक़्त करेगा मगर अब इस जटिल समय में कांग्रेस द्वारा की जा रही इस पहल को देखें तो मिलता है कांग्रेस का ये रवैया ठीक वैसा है जैसा परीक्षा की एक रात पहले किसी बिलो एवरेज स्टूडेंट का होता है. जी हां सही सुना आपने. कांग्रेस विशेषकर राहुल गांधी को देखिये. 2019 चुनाव के मद्देनजर उनका बर्ताव एक ऐसे स्टूडेंट का है, जो साल भर खूब जमकर घूमा-फिरा, खाया-पिया, मौज मस्ती की और जब परीक्षा वाली रात आई तो इस उद्देश्य से पढ़ाई करने के लिए किताब खोली कि इस बार वो क्लास नहीं स्कूल के टॉपर को मात देकर इतिहास रच देगा.
जैसा कि हम ऊपर बता चुके हैं कि इस बार कार्यकर्ताओं में हवा भरना कांग्रेस की रणनीति है. अब अगर इसी बात को बीजेपी के सन्दर्भ में रख कर देखें तो मिल रहा है कि, जिन कार्यकर्ताओं की बात कांग्रेस 2018 में कर रही है उनपर भाजपा 2014 बल्कि इससे भी पहले से अपनी पकड़ बनाए हुए है. चाहे ओडिशा का चुनाव हो या फिर पार्टी का स्थापना दिवस. प्रधानमंत्री कई मौकों पर देश की जनता को बता चुके हैं कि आज पार्टी ने जो भी मुकाम हासिल किया है वो केवल और केवल कार्यकर्ताओं की मेहनत के बल पर ही संभव हुआ है.
भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों को सामने रखकर देखें तो अंतर अपने आप ही सामने आ जाएगा. कह सकते हैं कि कांग्रेस की अपेक्षा भाजपा का कार्यकर्ता अपनी जिम्मेदारी को बखूबी जानता है और उसके लिए खासा गंभीर है. यदि आप इस बात का अवलोकन करें कि आज भाजपा क्यों आगे है तो मिलेगा कि ऐसा इसलिए है क्योंकि पार्टी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर निगम के एक पार्षद या फिर एक ग्राम प्रधान तक सबको ये बता है कि उनका उद्देश्य क्या है और उन्हें किन नीतियों के तहत काम करना है, उनकी विचारधारा क्या है.
अब इस बात को कांग्रेस के पलड़े में डालकर देखें तो अपने आप ही वो कारण निकल कर सामने आ जाते हैं जो पार्टी को लगातार गर्त के अंधेरों में ढकेल रहे हैं. यहां हर व्यक्ति के अपने मत हैं और जिसका जैसा मन आता है वो वैसा करता है. यानी कांग्रेस में राहुल की सोच अलग है. पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की सोच अलग है और कार्यकर्ताओं की सोच अलग है जिसके परिणामस्वरूप सामंजस्य सही से नहीं बैठ पाता है और नतीजे के तहत पार्टी कई मोर्चों पर विफल साबित होती है.
2014 के लोक सभा चुनाव को 4 साल हो चुके हैं. 4 साल के लम्बे वक़्त और तमाम मुख्य राज्यों में हार का मुंह देखने के बाद अगर अब कांग्रेस को अपने कार्यकर्ताओं के हित की याद आ रही है तो स्थिति क्या होगी इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है. इस पूरे परिदृश्य और राहुल की रणनीति और उस रणनीति के अंतर्गत की जा रही तैयारी को देखकर ये कहना बिल्कुल भी गलत नहीं है कि ये परीक्षा से एक रात पहले वाली तैयारी है जो व्यक्ति को ग्रेस मार्क्स, थर्ड डिविजन दिलाने की सामर्थ्य तो रखती है मगर उसे स्कूल का टॉपर नहीं बनवा सकती है.
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