कहते हैं राजनीति में कोई स्थाई दोस्त नहीं होता और कोई अस्थाई दुश्मन नहीं होता. लेकिन समान्य-सहज जिंदगी में यह भी कहते हैं कि दोस्त से बड़ा कोई दुश्मन नहीं होता. दोस्ती की कब्र पर जन्मी दुश्मनी बेहद जहरीली होती है. वसुंधरा राजे के परिवार और मानवेंद्र सिंह के बीच के परिवार का इतिहास ऐसा रहा है इसमें कहा जा सकता है कि ऊपर कही गई दोनों ही बातें इस परिवार के संबंधों के सिंहावलोकन पर लागू होती हैं.
जसवंत सिंह को जब लोकसभा चुनाव में वसुंधरा राजे ने बाड़मेर लोकसभा सीट से बीजेपी का उम्मीदवार नहीं बनने दिया तो जसवंत सिंह बगावत पर उतर आए और निर्दलीय चुनाव लड़े. उस वक्त बीजेपी के दार्जलिंग से सांसद जसवंत सिंह को बीजेपी के शीर्ष नेताओं ने बहुत मनाने की कोशिश की लेकिन वह जिद पर इसलिए अड़े रहे क्योंकि उनका कहना था कि टिकट काटने का तरीका अपमानित करनेवाला था. आखिरकार वो लड़े और हारे. चुनाव हारने के बाद वह दिल्ली में अपने घर में अकेले पड़ गए और एक दिन खबर आई कि रात को बाथरूम में फिसलने से गिर गए हैं चोट इतनी गंभीर है कि कोमा में चले गए हैं. उसके बाद जसवंत सिंह को देखने के लिए राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे गईं क्योंकि ये रिश्ता महज राजनीतिक नहीं बल्कि पारिवारिक था. लेकिन जसवंत सिंह के कोमा में जाने के साथ ही वसुंधरा राजे और जसवंत सिंह के परिवार के बीच का रिश्ता भी कहीं गिर कर कोमा में चला गया.
रिश्ते बिगड़ते चले गए. एक दिन ऐसा आ गया जब मानवेंद्र सिंह ने ऐलान कर दिया कि वह बाड़मेर के पचपदरा में स्वाभिमान रैली करेंगे. नाम स्वाभिमान रैली रखा गया क्योंकि परिवार ने कह दिया कि वसुंधरा राजे ने उनकी इज्जत को ठेस पहुंचाई है, इसका बदला लेने के लिए रैली की जाएगी. इस रैली में मानवेंद्र सिंह बस...
कहते हैं राजनीति में कोई स्थाई दोस्त नहीं होता और कोई अस्थाई दुश्मन नहीं होता. लेकिन समान्य-सहज जिंदगी में यह भी कहते हैं कि दोस्त से बड़ा कोई दुश्मन नहीं होता. दोस्ती की कब्र पर जन्मी दुश्मनी बेहद जहरीली होती है. वसुंधरा राजे के परिवार और मानवेंद्र सिंह के बीच के परिवार का इतिहास ऐसा रहा है इसमें कहा जा सकता है कि ऊपर कही गई दोनों ही बातें इस परिवार के संबंधों के सिंहावलोकन पर लागू होती हैं.
जसवंत सिंह को जब लोकसभा चुनाव में वसुंधरा राजे ने बाड़मेर लोकसभा सीट से बीजेपी का उम्मीदवार नहीं बनने दिया तो जसवंत सिंह बगावत पर उतर आए और निर्दलीय चुनाव लड़े. उस वक्त बीजेपी के दार्जलिंग से सांसद जसवंत सिंह को बीजेपी के शीर्ष नेताओं ने बहुत मनाने की कोशिश की लेकिन वह जिद पर इसलिए अड़े रहे क्योंकि उनका कहना था कि टिकट काटने का तरीका अपमानित करनेवाला था. आखिरकार वो लड़े और हारे. चुनाव हारने के बाद वह दिल्ली में अपने घर में अकेले पड़ गए और एक दिन खबर आई कि रात को बाथरूम में फिसलने से गिर गए हैं चोट इतनी गंभीर है कि कोमा में चले गए हैं. उसके बाद जसवंत सिंह को देखने के लिए राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे गईं क्योंकि ये रिश्ता महज राजनीतिक नहीं बल्कि पारिवारिक था. लेकिन जसवंत सिंह के कोमा में जाने के साथ ही वसुंधरा राजे और जसवंत सिंह के परिवार के बीच का रिश्ता भी कहीं गिर कर कोमा में चला गया.
रिश्ते बिगड़ते चले गए. एक दिन ऐसा आ गया जब मानवेंद्र सिंह ने ऐलान कर दिया कि वह बाड़मेर के पचपदरा में स्वाभिमान रैली करेंगे. नाम स्वाभिमान रैली रखा गया क्योंकि परिवार ने कह दिया कि वसुंधरा राजे ने उनकी इज्जत को ठेस पहुंचाई है, इसका बदला लेने के लिए रैली की जाएगी. इस रैली में मानवेंद्र सिंह बस इतना ही बोल पाए -कमल का फूल एक ही भूल. जैसे वो वैसे ही बीजेपी से गुस्सा हों जैसे सूरत के व्यपारी थे. यह एक लाइन बोलना भी मानवेंद्र सिंह के लिए इतना आसान नहीं था. मानवेंद्र सिंह अपने 45 मिनट के भाषण में इधर-उधर की बातें करते रहे लेकिन बीजेपी छोड़ने के लिए बीजेपी के खिलाफ उनके मुंह से कुछ निकल नहीं रहा था. नीचे खड़ी राजपूतों की भीड़ बेचैन हो रही थी कि मानवेंद्र सिंह आज आर या पार का फैसला करेंगे. भीड़ में लगातार हंगामे और दबाव के बीच मानवेंद्र ने कमल का फूल एक ही भूल कह कर अपने भाषण को खत्म कर दिया, लेकिन उनके चेहरे पर एक अजीब से उदासी कायम थी. ऐसा लग रहा था कि दिल में कोई टीस रह गई हो.
उस दिन यहां तक कि आजतक के इंटरव्यू देने से भी मना कर दिया था. अपने परिवार से बिछड़ने की मायूसी थी लेकिन राजे और जसोल परिवार के रिश्ते इस मोड़ पर आ गए थे कि इसकी परिणति यही होनी थी और हुआ भी यही. उसके बाद की रैलियों में वह तो ज्यादा नहीं बोले लेकिन उनकी पत्नी चित्रा सिंह आग में जलती रहीं और कहा कि जसवंत सिंह की जो हालत हुई है उसके लिए सीधे-सीधे वसुंधरा राजे जिम्मेदार हैं. चित्रा ने घूंघट की ओट से ललकारा कि अब वक्त आ गया है कि वसुंधरा राजे को राजस्थान से उखाड़ फेंकना है और अपने स्वाभिमान पर लगी चोट का बदला लेना है. महीने भर भी नहीं बीते, मानवेंद्र सिंह दिल्ली जाकर कांग्रेस के दिग्गज नेताओं की सोहबत में कांग्रेस में शामिल हो गए.
इसके बाद जब राहुल गांधी ने राजस्थान के पहले दौरे के लिए झालावाड़ को चुना. झालावाड़ की सभा में और रोड शो में मानवेंद्र सिंह कांग्रेस के नेताओं के साथ राहुल गांधी के साथ अग्रिम पंक्ति में बैठे थे. हर जगह राहुल गांधी के साथ पहली पंक्ति में मानवेंद्र सिंह को बैठाया जा रहा था. लेकिन तब किसी को पता नहीं था कि कांग्रेस के दिल में क्या है और मानवेंद्र सिंह का गेम प्लान क्या है. रोड शो के बाद मानवेंद्र सिंह अगले दिन झालावाड़ के राजपूतों के साथ घूम-घूम कर चर्चा कर रहे थे, मगर तब यही समझा जा रहा था कि वसुंधरा राजे की व्यक्तिगत दुश्मनी की वजह से झालावाड़ में घूम रहे हैं. कांग्रेस ने जब अपने अबतक के घोषित 184 में नामों की दूसरी सूची में आखरी नाम झालरापाटन से मानवेंद्र सिंह का रखा तो सूची की आखरी में इस नाम को पढ़कर किसी को विश्वास नहीं हुआ कि यह वही हैं. सब एक दूसरे को फोन करके पूछने लगे की क्या वही मानवेंद्र सिंह है. जसोल ही हैं या फिर कोई स्थानीय मानवेंद्र जी के नाम का नेता है. काफी देर गफलत रही उसके बाद यह साफ हो गया कि मानवेंद्र सिंह जसोल मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के सामने कांग्रेस पार्टी के टिकट पर झालरापाटन से चुनाव लड़ेंगे.
ताजा-ताजा हुई दुश्मनी के इस रिश्ते के पेड़ की जड़ें दोस्ती की थीं जो कहीं नीचे दब गईं. मानवेंद्र सिंह जब बीजेपी छोड़कर निकले या फिर वसुंधरा राजे ने जब जसवंत सिंह को बीजेपी के लोकसभा का उम्मीदवार नहीं बनाया तो यह कहा गया कि वसुंधरा राजे ने जसवंत सिंह की पीठ में छुरा घोंपा है, क्योंकि जसवंत सिंह ही वह व्यक्ति थे उन्होंने जिद करके वसुंधरा राजे को राजस्थान का मुख्यमंत्री बनाया था. तब भैरों सिंह शेखावत, हरिशंकर भाभड़ा, ललित किशोर चतुर्वेदी और सुंदर सिंह भंडारी जैसे बीजेपी के दिग्गज नेताओं से लड़कर और उन्हें दरकिनार कर जसवंत सिंह ने वसुंधरा राजे को मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनवाया था. लेकिन कहा गया कि बदले में वसुंधरा राजे ने मुख्यमंत्री बनकर जसवंत सिंह से ठीक व्यवहार नहीं किया. कांग्रेस के महासचिव अशोक गहलोत हमेशा से आरोप लगाते रहते हैं कि मुख्यमंत्री बनने के बाद वसुंधरा राजे जसवंत सिंह का फोन तक नहीं उठाती थीं.
धीरे-धीरे रिश्तो में कड़वाहट बढ़ती चली गई और ऐसी बिगड़ी कि जब एक व्यक्ति ने जोधपुर में वसुंधरा राजे का मंदिर बनवा दिया तो जसवंत सिंह की पत्नी ने मंदिर के पुजारी प्रदीप बोहरा और मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के खिलाफ जरिए इस्तगासा कोर्ट में मुकदमा दर्ज कर दिया. मानवेंद्र की मां शीतल कंवर ने कहा कि उन्होंने हिंदू देवी-देवताओं की भावनाओं को ठेस पहुंचाई है. वसुंधरा राजे का शासन था लिहाजा पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की. शीतल कंवर ने आंदोलन करने की भी कोशिश की. उसके बाद रिश्ते और तल्ख हो गए. जब वसुंधरा सरकार के खिलाफ उस वक्त सरकार में शामिल शिक्षा मंत्री घनश्याम तिवारी, विधानसभा में सचेतक महावीर जैन, मंत्री मदन दिलावर जैसे लोगों ने वसुंधरा राजे की खिलाफत की जसवंत सिंह के घर जसोल में मीटिंग रखी गई. उस मीटिंग में जसवंत सिंह जसोल ने अपने गांव की परंपरा के अनुसार सभी को अफीम का पानी चखाकर स्वागत किया. वसुंधरा सरकार ने जरिए एडीएम स्वागत समारोह का फुटेज मंगवाया और अफीम जैसे प्रतिबंधित नशे की वस्तु का सेवन करवाने के आरोप में आयोजकों पर मुकदमा दर्ज कर लिया गया. हुआ कुछ नहीं क्योंकि कार्रवाई नहीं करनी थी. यह तो दो दोस्तों के बीच शुरू हुई नई-नई दुश्मनी का खेल था जिसमें किसी को जेल नहीं भेजना था बल्कि अपने-अपने अहम की संतुष्टि करनी थी. अपने-अपने अहम की संतुष्टि धीरे-धीरे अदावत में बदलती चली गई.
कहा तो ये भी जाता है कि तब जसवंत सिंह ने तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी को वसुंधरा राजे को हटाने के लिए मना भी लिया था पर लालकृष्ण आडवाणी वसुंधरा के साथ खड़े हो गए. उसके बाद जसवंत सिंह खुद ही बीजेपी में किसी न किसी वजह से कमजोर पड़ते चले गए. जसवंत सिंह के परिवार और उनके समर्थकों की तरफ से भले ही कहा जाता रहा है कि वसुंधरा राजे को राजस्थान की राजनीति में स्थापित करने के लिए जसवंत सिंह ने बड़ी कुर्बानी दी है, लेकिन अगर आप वसुंधरा राजे के परिवार के साथ बैठे हैं तो कहानी अलहदा निकलती है. वसुंधरा परिवार के भी जसवंत सिंह के परिवार से शिकवा है. इनका भी यही आरोप है कि जसोल परिवार ने हमारे साथ गद्दारी की है.
राजस्थान के लोगों को यह पता नहीं है कि जसवंत सिंह कैसे राजनीति में आए. जसवंत सिंह पहले जोधपुर राजपरिवार के यहां नौकरी करते थे और बाद में सेना में चले गए. जसवंत सिंह की पत्नी शीतल कंवर उर्फ कालू बाई और सिंधिया परिवार के अभिभावकों की तरह रहे ग्वालियर की राजमाता के निजी सचिव सरदार आंग्रे की पत्नी बहन थी. शीतल कंवर के ताऊ की बेटी से सरदार आंग्रे की शादी हुई थी. सिंधिया और जसोल पारिवार के बीच पारिवारिक रिश्ता रहा है. और इसी वजह से आर्मी बैकग्राउंड के जसवंत सिंह को सरदारा आंग्रे परिवार के अनुरोध पर विजयाराजे सिंधिया राजनीत में लेकर आईं. राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने न केवल उन्हें बीजेपी ज्वाइन करवाई थी और उन्हें नेता बनाया था बल्कि रहने के लिए दिल्ली के तीन मूर्ति लेन में जगह भी दी थी. सिंधिया परिवार की सरपरस्ती में जसवंत सिंह का कद बीजेपी में बड़ा होता गया. दोनों परिवारों के बीच रिश्ते भी गहरे होते चले गए. आर्थिक और सामाजिक हर तरह का सहयोग सिंधिया परिवार जसवंत सिंह के परिवार को करता रहा. तीसरी पीढ़ी आते-आते रिश्तो में खटास आ गई और अब दोनों ही परिवार एक दूसरे को देखना नहीं चाहते हैं.
वसुंधरा राजे दोबारा सत्ता में लौटीं तो मजबूरियों के तहत वसुंधरा ने जसवंत सिंह के बेटे मानवेंद्र सिंह को तब के बाड़मेर के बीजेपी से सांसद मानवेंद्र सिंह को शिव विधानसभा से बीजेपी का टिकट तो दे दिया लेकिन जीतने के बाद मंत्रिमंडल में शामिल करना तो दूर सरकार के पास तक फटकने नहीं दिया. तब राज्य में बीजेपी सरकार होते हुए भी जसवंत सिंह ने जयपुर से दूरी बना ली थी. अटल-अडवाणी का युग भी जाता रहा. रिश्तों का यह घाव धीरे-धीरे नासूर बनता गया जिसे दोनों ने काट फेंकना ही मुनासिब समझा.
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