2007 में एक फिल्म सीरीज आई थी. नाम था Zeitgeist. पीटर जोसफ नाम के शख्स की इस फिल्म ने उन दिनों अमेरिका में हंगामा खड़ा कर दिया था. फिल्म में अमेरिका के इतिहास को खंगाला गया था और बताया गया था कि अमेरिका किस तरह दुनिया में षडयंत्रों के ज़रिए अस्थिरता पैदा करता है और किस तरह उसका लाभ उठाता है. तीन फिल्मों की ये सीरीज बताती है कि दुनिया में आतंकवाद खास तौर पर इस्लामिक आतंकवाद अमेरिकी रणनीति का हिस्सा है और अमेरिका आतंकवाद खड़ा करके अपने देश के बाजार को बढ़ाता है और उसे व्यावसायिक हित पूरे करता है. फिल्म कहती है कि किस तरह अमेरिका ने मंदी से देश को बचाने के लिए अपने ही वर्ल्ड ट्रेड सेंटर को गिरा दिया और इसे आतंकवादी हमला बताकर उससे व्यावसायिक फायदा उठाया. इस विचार को फिल्म तर्कों और वैज्ञानिक विश्लेषणों के ज़रिए साबित करने की कोशिश करती है. इस फिल्म को पूरी दुनिया में सम्मान मिला और पुरस्कारों की झड़ी लग गई.
इस फिल्म का जिक्र इसलिए कर रहा हूं कि पिछले कुछ दशकों से भारत में जो घट रहा है वो इस फिल्म में दिए गए तर्कों से काफी हद तक मेल खाता है. फिल्म बताती है कि किस तरह अमेरिका अलग-अलग जगहों पर मुसलमानों में असंतोष वाले हालात पैदा करता है फिर कुछ नेताओं को पैदा करके उस समाज में आतंकवादी गतिविधयों को बढ़ावा देने लगता है. ठीक साउदी अरब इस मामले में अमेरिका के इस काम को अंजाम देता है. यानी आतंक का रिसोर्स सेंटर साऊदी अरब है.
अगर आप फिल्म के नजरिए से देखें तो पता चलता है कि अफगानिस्तान में तालिबान और सीरिया में आइसिस का उदय इसका ही हिस्सा था. बाद में ये आतंकी अमेरिका को निशाना बनाने लगे बल्कि अमेरिका इस लड़ाई में कूद पड़ा और उसे आर्थिक खेल में भुनाने...
2007 में एक फिल्म सीरीज आई थी. नाम था Zeitgeist. पीटर जोसफ नाम के शख्स की इस फिल्म ने उन दिनों अमेरिका में हंगामा खड़ा कर दिया था. फिल्म में अमेरिका के इतिहास को खंगाला गया था और बताया गया था कि अमेरिका किस तरह दुनिया में षडयंत्रों के ज़रिए अस्थिरता पैदा करता है और किस तरह उसका लाभ उठाता है. तीन फिल्मों की ये सीरीज बताती है कि दुनिया में आतंकवाद खास तौर पर इस्लामिक आतंकवाद अमेरिकी रणनीति का हिस्सा है और अमेरिका आतंकवाद खड़ा करके अपने देश के बाजार को बढ़ाता है और उसे व्यावसायिक हित पूरे करता है. फिल्म कहती है कि किस तरह अमेरिका ने मंदी से देश को बचाने के लिए अपने ही वर्ल्ड ट्रेड सेंटर को गिरा दिया और इसे आतंकवादी हमला बताकर उससे व्यावसायिक फायदा उठाया. इस विचार को फिल्म तर्कों और वैज्ञानिक विश्लेषणों के ज़रिए साबित करने की कोशिश करती है. इस फिल्म को पूरी दुनिया में सम्मान मिला और पुरस्कारों की झड़ी लग गई.
इस फिल्म का जिक्र इसलिए कर रहा हूं कि पिछले कुछ दशकों से भारत में जो घट रहा है वो इस फिल्म में दिए गए तर्कों से काफी हद तक मेल खाता है. फिल्म बताती है कि किस तरह अमेरिका अलग-अलग जगहों पर मुसलमानों में असंतोष वाले हालात पैदा करता है फिर कुछ नेताओं को पैदा करके उस समाज में आतंकवादी गतिविधयों को बढ़ावा देने लगता है. ठीक साउदी अरब इस मामले में अमेरिका के इस काम को अंजाम देता है. यानी आतंक का रिसोर्स सेंटर साऊदी अरब है.
अगर आप फिल्म के नजरिए से देखें तो पता चलता है कि अफगानिस्तान में तालिबान और सीरिया में आइसिस का उदय इसका ही हिस्सा था. बाद में ये आतंकी अमेरिका को निशाना बनाने लगे बल्कि अमेरिका इस लड़ाई में कूद पड़ा और उसे आर्थिक खेल में भुनाने लगा.
भारत के हालात इसलिए चिंता पैदा करने वाले हैं क्योंकि यहां भी धीरे-धीरे सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की कोशिशें चल रही हैं. एक के बाद एक कई ऐसे घटनाक्रम हो रहे हैं जो अल्पसंख्यकों के खिलाफ हैं. जब ये घटनाक्रम होते हैं तो फिर इनको मुद्दा बनाया जाता है. इससे भी समाज को बांटने वाले तत्वों को ही फायदा होता है.
अमेरिका के आलोचकों का कहना है कि दुनिया के कई देशों में अपनी पिट्ठू सरकार कायम करने के बाद भी अमेरिका चुप नहीं बैठता. वो लगातार हमले जारी रखता है. उन सरकारों के जरिए अमेरिका हितैषी आर्थिक नीतियां लागू करवाता है. सीरिया में तो अमेरिका के इस चक्र को तोड़ने के लिए रूस को कूदना पड़ा. उसने अमेरिका के ही पैदा किए गए आतंक नेटवर्क को तहस नहस कर दिया. अमेरिका इस नेटवर्क का विरोध करके अपनी ज़मीन पर लाभ तो उठाना चाहता था लेकिन सोने का अंडा देने वाली इस मुर्गी को खत्म नहीं करना चाहता था लेकिन रूस ने उसे बर्बाद कर दिया.
हालात ये हैं कि पाकिस्तान अमेरिका के हाथ से निकल चुका है. अफगानिस्तान में उसके लिए कोई संभावना नहीं रही. आईसिस खत्म हो गया. जाहिर बात है उसे एक बड़ी मुस्लिम आबादी की ज़रूरत है जिसे उग्र बनाया जा सके.
खैर भारत पर आते हैं. भारत के मुसलमानों का इतिहास बेहद शानदार रहा है. उनके देश के प्रति प्रेम को साबित करने वाले कई पैमाने यहां मौजूद हैं. सबसे बड़ी बात ये है कि दुनिया की सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी के बावजूद भारत के मुसलमान कभी आतंकवाद की तरफ नहीं बढ़े. भारत के 70 साल के इतिहास में कुल 70 आतंकवादी भी ऐसे नहीं मिले हैं जो भारत की धरती पर पैदा हुए हैं. यहां आतंकवाद फैलाने के लिए हमेशा पाकिस्तान को अपने आतंकवादी घुसाने पड़े हैं.
लेकिन हमेशा हालात ऐसे ही रहेंगे इसकी गारंटी नहीं ली जा सकती. भारत में लगातार अल्पसंख्यकों पर घृणास्पद हमले हो रहे हैं. उन्हें लगातार ये एहसास कराया जा रहा है कि वो कमतर हैं और उन्हें दूसरों के इशारों पर चलना होगा. उनके धर्म की मान्यताओं पर सवाल उठाए जाते हैं. सोशल मीडिया पर उनके प्रति शाब्दिक हिंसा होती है और तो और उनके खानपान की आदतों पर भी लगातार सवाल उठाए जाते रहे हैं. राजनीति नेतृत्व भी अल्पसंख्यकों को सुरक्षित होने का भरोसा देने में नाकाम रहा है. कुछ पार्टियां तो लगातार उन पर हमले करने वालों के कदम को भी तार्किक ठहराने की कोशिश करते रहते हैं.
अमेरिकी सरकार द्वारा गठित आयोग यूएस कमीशन फॉर इंटरनेशनल रिलीजियस फ्रीडम (SCIRF) ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि भारत में पिछले साल धार्मिक स्वतंत्रता की स्थितियों में लगातार गिरावट आ रही है. रिपोर्ट में बताया गया कि हिंदू राष्ट्रवादी समूहों ने अल्पसंख्यकों और हिंदू दलितों के विरुद्ध हिंसा, धमकी और उत्पीड़न के माध्यम से देश का भगवाकरण की कोशिश की. SCIRF ने अपनी रिपोर्ट में भारत को अफगानिस्तान, अजरबैजान, बहरीन, क्यूबा, मिस्र, इंडोनेशिया, इराक, कजाकिस्तान, लाओस, मलेशिया और तुर्की के साथ खास चिंता वाले टीयर टू देशों में रखा है.
SCIRF के अनुसार, आरएसएस, विहिप जैसे हिंदू संगठनों द्वारा अल्पसंख्यकों और दलितों को अलग-थलग करने के लिए चलाये गये बहुआयामी अभियान के चलते धार्मिक अल्पसंख्यकों की दशाएं पिछले दशक के दौरान बिगड़ी हैं. उसने अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर अपनी नवीनतम रिपोर्ट में कहा है कि इस अभियान के शिकार मुसलमान, ईसाई, सिख, बौद्ध, जैन और दलित हिंदू हैं.
भारत को इस अमेरिकी साजिश को समझना होगा. मामला सिर्फ सत्ता के लिए वोटों के ध्रुवीकरण वाला होता तो चल सकता था. लेकिन देश के हालात बड़े खतरे की तरफ इशारा कर रहे हैं. बड़ी साजिश देश के खिलाफ चलती दिख रही है. जाहिर बात है कि इस साजिश का जवाब मिल जुलकर रहने में और एक दूसरे का सम्मान करने में है. खुश किस्मती से मिलजुलकर रहना हमारे खून में है लेकिन हमारी मर्जी पर काबू करने के लिए ही साजिशें हो रही हैं. इनसे सावधान रहना ही होगा क्योंकि वक्त कम है.
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