गुजरात में पाटीदार आंदोलन का असर गुजरात विधानसभा चुनाव के रिजल्ट में बखूबी देखने को मिला. हार्दिक पटेल का पाटीदार आंदोलन बीजेपी वोट काटने में सफल रहा. उसी कारण बीजेपी 99 सीटों में ही सिमट कर रह गयी. बीजेपी के पाटीदार वोट में इस बार 10% की कमी रही. पाटीदार आंदोलन के नेता हार्दिक ने भाजपा का विरोध और कांग्रेस का समर्थन किया था और इसका बीजेपी को नुकसान उठाना पड़ा.
इस बार के चुनाव में पाटीदारों ने गहरी छाप छोड़ी. हालांकि वो बीजेपी को लगातार छठी बार जीतने से नहीं रोक पाये. 52 सीट जहां पर पाटीदार वोटरों की संख्या 20 प्रतिशत से अधिक थी, वहां कांग्रेस को 23 सीट मिली और बीजेपी 28 सीट जीतने में कामयाब रही. 1 सीट पर निर्दलीय को जीत मिली. अगर 2012 से तुलना करें तो पाएंगे की बीजेपी को 8 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा है. 2012 में बीजेपी को 36 सीट मिली थी. वहीं कांग्रेस को 9 सीटों का फायदा हुआ है. 2012 में कांग्रेस को सिर्फ 14 सीटों से ही संतोष करना पड़ा था.
सौराष्ट्र में कांग्रेस का प्रदर्शन काफी अच्छा रहा. सौराष्ट्र की 54 सीटों में से 30 में कांग्रेस ने विजय दर्ज की. वहीं बीजेपी केवल 23 सीट ही हासिल कर पायी. अन्य को एक सीट मिली. पाटीदार 90 के दशक से ही भाजपा के पारंपरिक वोटर रहे हैं. 2014 लोकसभा चुनाव तक गुजरात के पाटीदार वोटर भाजपा के पक्ष में ही मतदान करते आये हैं. हार्दिक पटेल फैक्टर के कारण ही बीजेपी को यह नुकसान उठाना पड़ा. बीजेपी के पक्ष में केवल एक चीज रही की उसे ग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा.
लेकिन शहरी इलाकों में पाटीदारों का वोट बीजेपी को ही गया है.
हार्दिक पटेल ने गुजरात में पाटीदार (पटेलों) के लिए आरक्षण की मांग करते हुए 2015 में व्यापक स्तर पर आंदोलन किया था....
गुजरात में पाटीदार आंदोलन का असर गुजरात विधानसभा चुनाव के रिजल्ट में बखूबी देखने को मिला. हार्दिक पटेल का पाटीदार आंदोलन बीजेपी वोट काटने में सफल रहा. उसी कारण बीजेपी 99 सीटों में ही सिमट कर रह गयी. बीजेपी के पाटीदार वोट में इस बार 10% की कमी रही. पाटीदार आंदोलन के नेता हार्दिक ने भाजपा का विरोध और कांग्रेस का समर्थन किया था और इसका बीजेपी को नुकसान उठाना पड़ा.
इस बार के चुनाव में पाटीदारों ने गहरी छाप छोड़ी. हालांकि वो बीजेपी को लगातार छठी बार जीतने से नहीं रोक पाये. 52 सीट जहां पर पाटीदार वोटरों की संख्या 20 प्रतिशत से अधिक थी, वहां कांग्रेस को 23 सीट मिली और बीजेपी 28 सीट जीतने में कामयाब रही. 1 सीट पर निर्दलीय को जीत मिली. अगर 2012 से तुलना करें तो पाएंगे की बीजेपी को 8 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा है. 2012 में बीजेपी को 36 सीट मिली थी. वहीं कांग्रेस को 9 सीटों का फायदा हुआ है. 2012 में कांग्रेस को सिर्फ 14 सीटों से ही संतोष करना पड़ा था.
सौराष्ट्र में कांग्रेस का प्रदर्शन काफी अच्छा रहा. सौराष्ट्र की 54 सीटों में से 30 में कांग्रेस ने विजय दर्ज की. वहीं बीजेपी केवल 23 सीट ही हासिल कर पायी. अन्य को एक सीट मिली. पाटीदार 90 के दशक से ही भाजपा के पारंपरिक वोटर रहे हैं. 2014 लोकसभा चुनाव तक गुजरात के पाटीदार वोटर भाजपा के पक्ष में ही मतदान करते आये हैं. हार्दिक पटेल फैक्टर के कारण ही बीजेपी को यह नुकसान उठाना पड़ा. बीजेपी के पक्ष में केवल एक चीज रही की उसे ग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा.
लेकिन शहरी इलाकों में पाटीदारों का वोट बीजेपी को ही गया है.
हार्दिक पटेल ने गुजरात में पाटीदार (पटेलों) के लिए आरक्षण की मांग करते हुए 2015 में व्यापक स्तर पर आंदोलन किया था. उन्होंने 2015 में पाटीदार अनामत आंदोलन समिति का गठन किया था. उनके आंदोलन का मुख्य मकसद है, शिक्षा और सरकारी नौकरियों में पाटीदारों को आरक्षण दिया जाय और इसके लिए पाटीदारों को अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) में शामिल किया जाए. आंदोलन के वक्त से ही हार्दिक और बीजेपी सरकार में छत्तीस का आकड़ा रहा है. 2014 लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने यहां से सभी 26 सीट पर जीती थी. 2017 विधानसभा चुनाव में बीजेपी को पिछली बार की तुलना में 16 सीट का नुकसान हुआ. 2019 का लोकसभा चुनाव बीजेपी के लिए काफी अहम है और पाटीदारों का आंदोलन उनके लिए नासूर से कम नहीं. हार्दिक पटेल पाटीदारों का आंदोलन जारी रखेंगे और ऐसे में बीजेपी क्या करेगी ये देखने वाली बात है.
हरियाणा का जाट आंदोलन:
जहां गुजरात में पाटीदार आंदोलन बीजेपी के नाक में दम किये हुए है, वहीं हरियाणा का जाट आंदोलन और महाराष्ट्र का मराठा आंदोलन भी उसके लिए मुसीबत से कम नहीं है. दोनों ही राज्यों में 2019 में विधानसभा चुनाव होने हैं. हरियाणा में जाट ये मांग कर रहे हैं कि सरकारी नौकरियों और शक्षिण संस्थानों में उन्हें ओबीसी कैटेगरी के तहत आरक्षण मिले. हरियाणा में करीब 21 प्रतिशत जाट हैं.
2014 लोकसभा चुनाव में यहां से बीजेपी को 10 में से 8 सीटें मिली थी. 2014 विधानसभा चुनाव में 90 सीटों में से 47 सीटों पर जीत हासिल हुई थी, जिसके जरिए वो सरकार बनाने में सफल रही थी. आरक्षण को लेकर जाट समुदाय ने 2016 में उग्र आंदोलन भी छेड़ा था. इस हिंसक आंदोलन में कई लोगों की जान चली गयी थी और करोड़ों की सम्पति का नुकसान हुआ था. हाल ही में जाट आरक्षण संघर्ष समिति ने ये ऐलान किया है कि अगर हरियाणा सरकार ने समय रहते जाटों को आरक्षण नहीं दिया तो वो फरवरी से फिर आंदोलन छेड़ेंगे. मतलब साफ है कि हरियाणा में आने वाले समय में बीजेपी के लिए मुसीबत मुंह बाए खड़ी है.
मराठा आंदोलन भी बीजेपी के लिए परेशानी का सबब:
महाराष्ट्र में करीब 35 प्रतिशत मराठा जनसंख्या हैं. मराठा समुदाय नौकरी और शिक्षा में आरक्षण की मांग कर रहा है. वे चाहते हैं कि उन्हें भी अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) में शामिल किया जाए. 2014 में कांग्रेस-एनसीपी की सरकार ने मराठा समुदाय के लिए 16 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया था. लेकिन बॉम्बे हाई कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी थी. महाराष्ट्र में मराठा समुदाय काफी प्रभावशाली है. सितंबर और अक्टूबर 2016 में महाराष्ट्र कई जिलों में मराठा समुदाय के लोगों ने बड़ी तादाद में शांतिपूर्ण प्रदर्शन किया था. इस साल अगस्त में भी उन्होंने मुंबई में प्रदर्शन किया था. इस आंदोलन से निपटना बीजेपी की फडणवीस सरकार के लिए बहुत बड़ी चुनौती है. यहां से लोकसभा की कुल 48 सीट है. 2014 लोकसभा चुनाव में बीजेपी और उसकी सहयोगी पार्टी शिवसेना ने यहां से 40 से अधिक सीट जीतने में कामयाबी हासिल की थी. फिलहाल वहां पर बीजेपी और शिवसेना की संयुक्त सरकार है. लेकिन आगे क्या होगा किसी को नहीं पता.
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