ऐसा माना जा रहा है कि पांच राज्यों में जारी विधानसभा चुनावों के नतीजे आगामी लोकसभा चुनाव में गठबंधनों की दिशा व दशा तय करेंगे. एक ओर जहां बीजेपी की सफलता पर उससे कुछ और सहयोगी जुड़ सकते हैं तो वहीं इन चुनावों में खराब प्रदर्शन एनडीए को कमजोर करेगा. बिहार में एनडीए का हिस्सा रालोसपा और उत्तर प्रदेश में सुहेलदेव भारत समाज पार्टी मानो इसी का इंतजार कर रहे हों तभी तो दोनों दल के नेता हाल के दिनों में ऐसे बयान देते देखे गए हैं जिससे एनडीए असहज महसूस कर रहा है.
विधानसभा चुनावों के नतीजे लोकसभा चुनाव में गठबंधनों की दिशा व दशा तय करेंगे
उत्तर प्रदेश की योगी सरकार को विरोधियों से कहीं अधिक मानो अपने सहयोगी सुहेल देव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष और यूपी सरकार में कैबिनेट मंत्री ओमप्रकाश राजभर से सुनने को मिला है जिन्होंने एक के बाद एक बयानों से लगातार सरकार पर हमला बोला है. बता दें कि ओपी राजभर एक बार फिर से चर्चा में हैं. एक तरफ जहां प्रदेश के अयोध्या नगरी में 25 नवंबर के कार्यक्रम को लेकर विरोधी योगी सरकार पर सवाल खड़े कर रहे हैं तो राजभर भी उनकी हां में हां मिलाते दिख रहे हैं. उन्होंने अयोध्या में सेना बुलाने के समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव के बयान का समर्थन करते हुए कहा कि अगर अयोध्या में मौजूद भीड़ कोई भी घटना करती है तो उसकी जिम्मेदारी यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की होगी. उन्होंने ट्वीट के माध्यम से ये भी कहा कि अयोध्या में धारा 144 लागू है, फिर भी प्रशासन वहां लोगों को जमा होने दे रहा है, इसका मतलब है कि वहां का प्रशासन नाकाम हो चुका है. कोई गरीब कमजोर पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक किसी कार्यक्रम के लिए परमीशन लेना चाहेगा तो 144 का हवाला देकर परमिशन नहीं दी जाती..
उधर पिछले कुछ महीनों से बिहार में सीट बंटवारे के मुद्दे पर एनडीए में मंथन चला जिसके बाद इसके दो बड़े दलों बीजेपी और जेडीयू ने वहां बराबर सीटों पर लड़ने का एलान किया जिससे इतना तो साफ हो गया कि इन दोनों के बीच सीटों को लेकर अब कोई मतभेद नहीं है लेकिन इससे रालोसपा और एलजेपी की मुश्किलें बढ़ गयी हैं क्योंकि जेडीयू के वापस आने से जिस तरह से बीजेपी को खुद अपनी सीटें कम करनी पड़ी हैं उसी तरह अब इन दो सहयोगियों को भी कम सीटें मिल सकती हैं लेकिन अभी इसका एलान नहीं हुआ है. इसी को ध्यान में रखकर रालोसपा के अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा ने कहा है कि 30 नवंबर तक मैं चुप रहूंगा. मैं जवाब मिलने के बाद उस तारीख के बाद ही बोलूंगा. जिससे इतना तो साफ है कि अगर उन्हें मनमाफिक सीटें नहीं मिली तो वो एनडीए का साथ छोड़ सकते हैं लेकिन फिलहाल वो इस गठबंधन में बने हुए हैं.
कह सकते हैं कि ये दोनों दल परिस्थिति के हिसाब से ही कोई फैसला करेंगे क्योंकि अगर इन चुनावों में एनडीए अच्छा करता है तो वो इसके साथ ही बने रहेंगे क्योंकि इससे अलग जाने में उनका कोई हित नहीं होगा. वैसे बीते साढ़े चार साल के कार्यकाल की बात करें तो इस दौरान एनडीए का साथ करीब आधा दर्जन छोटे-बड़े दलों ने छोड़ा है, जबकि कुछ नए दल इसमें जुड़े हैं तो वहीं जेडीयू जैसा पुराना सहयोगी फिर से एनडीए का हिस्सा बना है. साथ छोड़कर जाने वालों में तेलुगुदेशम पार्टी और पीडीपी जैसे दो अहम् दल हैं. इनके अलावा हरियाणा जनहित कांग्रेस, स्वाभिमानी पक्ष, हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा और नागा पीपुल्स फ्रंट से भी उसके रिश्ते टूट चुके हैं. इतना तो तय है कि जिस तरह से सहयोगी दल इन चुनाव नतीजों का इंतजार कर रहे हैं, ठीक उसी तरह एनडीए का नेतृत्व कर रही बीजेपी भी कर रही है क्योंकि वो भी पूरे दम ख़म से 2019 के महासंग्राम में उतरना चाहेगी.
ये भी पढ़ें-
राजस्थान में कांग्रेस पर भारी पड़ता वसुंधरा का मुस्लिम कार्ड
विधानसभा चुनाव: सट्टा बाजार के रुझान पोलिटिकल पंडितों को चौंकाने वाले हैं
वसुंधरा राजे की जिद के आगे राजस्थान में बीजेपी की जीत पर सवाल
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.