धुआं तभी निकलता है जब आग लगती है. बगैर आग के धुआं नहीं निकलता ये भी ध्रुव सत्य है. ये बात अलग है कि आग की तीव्रता कम हो तो जल्दी बुझाकर धुएं से ध्यान हटाना आसान होता है. बिहार की फर्स्ट फेमिली लालू प्रसाद के घर अभी जो कुछ भी हुआ है, काफी हद तक ऐसा ही लगता है. यूपी की फर्स्ट फेमिली का झगड़ा बिहार परिवार से कुछ कुछ तो मिलता जुलता रहा, लेकिन दोनों में काफी फर्क भी रहा. मिलता जुलता कह सकते हैं अगर समाजवादी पार्टी के झगड़े की जड़ में भाइयों को देखते हैं, वरना जेनरेशन गैप से भी जोड़ कर देख सकते हैं. वैसे यूपी के मुकाबले बिहार वाला ज्यादा खतरनाक लग रहा है.
हम सब साथ हैं
लालू प्रसाद के घर लड़ाई की खबर ऐसे वक्त आई जब वो खुद तो पटना में हैं ही, घर में नयी बहू के कदम भी अभी अभी पड़े हैं. अगर ये बिहार के शाही परिवार की बात न होती तो अब तक टोले-मोहल्ले वाले बहू को लेकर न जाने कितने किस्से गढ़ चुके होते. अच्छी बात ये है कि अभी तक ऐसी कोई बात सामने नहीं आयी है. फिलहाल तो इसे संयोग से ज्यादा नहीं समझा जा सकता कि झगड़ा तो परिवार में बड़ी बहू के आने के बाद ही शुरू हुआ है.
वैसे झगड़ा किस परिवार में नहीं होता है. मध्य प्रदेश से लेकर राजस्थान तक कई शाही परिवारों में तो संपत्ति का झगड़ा अदालत तक पहुंच चुका है. मध्य प्रदेश के कोलारस और मुंगावली उपचुनावों में जब यशोधरा राजे कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया के खिलाफ प्रचार करने उतरीं तो हर कोई चटखारे लेकर किस्से सुन और सुना रहा था.
समाजवादी पार्टी का झगड़ा कौन भूल सकता है. वहां तो चर्चा ये भी रही कि अमर ने मुलायम सिंह की पार्टी में एंट्री ही मारी थी तोड़ने के लिए. दिखा भी मंच से तब तक नहीं उतरे जब तक क्लाइमेक्स नहीं आया. उस झगड़े...
धुआं तभी निकलता है जब आग लगती है. बगैर आग के धुआं नहीं निकलता ये भी ध्रुव सत्य है. ये बात अलग है कि आग की तीव्रता कम हो तो जल्दी बुझाकर धुएं से ध्यान हटाना आसान होता है. बिहार की फर्स्ट फेमिली लालू प्रसाद के घर अभी जो कुछ भी हुआ है, काफी हद तक ऐसा ही लगता है. यूपी की फर्स्ट फेमिली का झगड़ा बिहार परिवार से कुछ कुछ तो मिलता जुलता रहा, लेकिन दोनों में काफी फर्क भी रहा. मिलता जुलता कह सकते हैं अगर समाजवादी पार्टी के झगड़े की जड़ में भाइयों को देखते हैं, वरना जेनरेशन गैप से भी जोड़ कर देख सकते हैं. वैसे यूपी के मुकाबले बिहार वाला ज्यादा खतरनाक लग रहा है.
हम सब साथ हैं
लालू प्रसाद के घर लड़ाई की खबर ऐसे वक्त आई जब वो खुद तो पटना में हैं ही, घर में नयी बहू के कदम भी अभी अभी पड़े हैं. अगर ये बिहार के शाही परिवार की बात न होती तो अब तक टोले-मोहल्ले वाले बहू को लेकर न जाने कितने किस्से गढ़ चुके होते. अच्छी बात ये है कि अभी तक ऐसी कोई बात सामने नहीं आयी है. फिलहाल तो इसे संयोग से ज्यादा नहीं समझा जा सकता कि झगड़ा तो परिवार में बड़ी बहू के आने के बाद ही शुरू हुआ है.
वैसे झगड़ा किस परिवार में नहीं होता है. मध्य प्रदेश से लेकर राजस्थान तक कई शाही परिवारों में तो संपत्ति का झगड़ा अदालत तक पहुंच चुका है. मध्य प्रदेश के कोलारस और मुंगावली उपचुनावों में जब यशोधरा राजे कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया के खिलाफ प्रचार करने उतरीं तो हर कोई चटखारे लेकर किस्से सुन और सुना रहा था.
समाजवादी पार्टी का झगड़ा कौन भूल सकता है. वहां तो चर्चा ये भी रही कि अमर ने मुलायम सिंह की पार्टी में एंट्री ही मारी थी तोड़ने के लिए. दिखा भी मंच से तब तक नहीं उतरे जब तक क्लाइमेक्स नहीं आया. उस झगड़े में भी अखिलेश यादव के खिलाफ उनके सौतेले भाई को हक दिलाने की लड़ाई लड़ी गयी. अब एक सवाल जरूर खड़ा होने लगा है कि कहीं लालू परिवार में बवाल के पीछे भी राजनीतिक विरोधियों का ही हाथ तो नहीं है?
लालू परिवार के झगड़े में गंभीरता तब देखी जाने लगी जब एक वीडियो वायरल हुआ और एक ट्वीट में 'द्वारा' और 'चुगलों' जैसे कीवर्ड देखने को मिले. जिस ट्वीट पर बवाल मचा है कि वो तेज प्रताप यादव का अकाउंट बताया जा रहा है, हालांकि, वो वेरिफाईड अकाउंट नहीं है. तेजस्वी यादव और लालू प्रसाद का अकाउंट वेरिफाईड है, लेकिन बिहार के स्वास्थ्य मंत्री रह चुके तेज प्रताप का वेरिफाइड नहीं है - ये बात भी थोड़ी अजीब लगती है.
ट्वीट के साथ ही एक इंटरव्यू में भी तेज प्रताप ने कहा कि पार्टी के लोग ही अब उनका फोन तक नहीं उठाते. फिर सारे विवाद को असामाजिक तत्वों के हवाले करते हुए तेज प्रताप ने तेजस्वी को कलेजे का टुकड़ा बताया और कहा, "हम दोनों के बीच दूरियां नहीं हैं, लेकिन कुछ लोग भाई-भाई को लड़वाना चाहते हैं."
क्या ये सत्ता संघर्ष नहीं था?
तेज प्रताप का एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें वो दलितों का मुद्दा उठाते देखे-सुने जा सकते हैं. तेज की बातें भी काफी दिलचस्प लगती हैं. तेज की बातों में लालू का लहजा भी साफ समझा जा सकता है. जैसे लालू महागठबंधन काल में नीतीश के साथ मतभेद की बातों के पीछे आरएसएस का हाथ बता कर मजाक उड़ा देते थे, तेज ने भी वही रास्ता अपनाया है.
सूत्रों के हवाले से आज तक को मिली खबर के अनुसार दोनों भाइयों के बीच तकरार की वजह आरजेडी के प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी पर किसे बिठाया जाये, ये भी रहा. बताते हैं कि तेज प्रताप चाहते थे कि राजेंद्र पासवान को आरजेडी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया जाये. तेजस्वी यादव की पसंद पूर्व मंत्री शिवचंद्र राम थे.
तेज प्रताप का कहना है कि राजेंद्र पासवान जैसे लोगों ने आरजेडी के लिए कड़ी मेहनत की है. तेज प्रताप कहते हैं, 'मैंने लालू जी, राबड़ी जी और तेजस्वी से उनको पद देने के लिए बात की थी, उसके बाद ही उन्हें पद दिया गया. इसमें इतना समय क्यों लगा?'
आरजेडी में कार्यकर्ताओं का एक धड़ा ऐसा भी है जो तेज प्रताप में लालू का राजनीतिक तेवर देखता है. लालू के कुछ करीबियों ने उन्हें इस बात के लिए आगाह भी किया था. दरअसल, लालू प्रसाद औपचारिक तौर पर तेजस्वी को अपना वारिस घोषित कर चुके हैं. बीच में देखा गया कि तेज प्रताप पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच वैसी ही बातें और भाषण दिया करते रहे जिसके लिए लालू किसी जमाने में विख्यात रहे हैं. लालू के करीबियों ने इसमें पार्टी टूटने तक का खतरा जताया था. ये तब की बात है जब लालू प्रसाद पटना रैली की तैयारी कर रहे थे और हर तारीख पर पेशी के लिए रांची कोर्ट में हाजिर हुआ करते थे.
लालू प्रसाद के चारा घोटाले में जेल चले जाने के बाद मामला शांत हो गया था. अब जबकि लालू भी अंतरिम जमानत पर छूट कर घर आ गये और अररिया के बाद जोकीहाट चुनाव जीतने के बाद हर तरफ तेजस्वी की वाहवाही होने लगी तो मामला लगता है एक बार फिर गर्म हो गया. गर्म इतना की आग लगा दे. आग भी इतनी की धुआं बाहर तक पहुंच जाये!
ऊपरी तौर पर ये जरूर है कि लालू परिवार ने मिल जुल कर घर की आग बुझा ली है - या कम से कम इस हद तक काबू पा लिया है कि धुआं घर की चारदीवारी से बाहर ने जाने पाये. वैसे ये तभी तक मुमकिन है जब तक किसी को घी डालने का मौका नहीं मिल रहा.
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