देश के पूर्व वित्त मंत्री और भारतीय जनता पार्टी के कद्दावर नेता Arun Jaitley का निधन नई दिल्ली के AIIMS अस्पताल में हुआ. उनका जन्म 28 दिसम्बर 1952 में हुआ था. वे 66 वर्ष के थे. उन्हें 9 अगस्त को एम्स में तब भर्ती कराया गया था जब उन्हें सांस लेने में दिक्कत हो रही थी.
अरुण जेटली पिछले करीब 2 साल से बीमार चल रहे थे. मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के नए मंत्रिपरिषद के शपथ ग्रहण समारोह से ठीक पहले उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर कहा था कि वो स्वास्थ्य कारणों से नई सरकार में मंत्री नहीं बनना चाहते. इलाज एवं स्वास्थ्य पर ध्यान केंद्रित करना चाहते हैं. उनकी बीमारी के कारण ही फरवरी में अंतरिम बजट भी पीयूष गोयल ने पेश किया था. उस वक्त जेटली इलाज के लिए अमेरिका गए हुए थे. हालांकि बीमारी के बावजूद वो देश के राजनीतिक घटनाक्रमों पर करीबी नजर रखते थे और अक्सर प्रमुख मुद्दों पर ब्लॉग लिखकर या फिर ट्वीट कर अपनी राय जाहिर करते रहते थे.
अरुण जेटली पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी के भरोसेमंद लोगों में से एक थे. यही कारण था कि जेटली वाजपेयी सरकार में अहम पदों पर आसीन रहे. सबसे पहले वो साल 2000 में राज्य सभा सांसद चुने गए थे. पहले एनडीए (1999-2004) सरकार में उन्होंने करीब पांच मंत्रालयों का कार्यभार संभाला था. अमित शाह और मोदी से पहले इन्हें ही भाजपा का चाणक्य माना जाता था.
गुजरात के 2002 और 2007 के विधानसभा चुनावों में अरुण जेटली ने अहम भूमिका निभाई थी जिसमें भाजपा का परचम लहराया था. 2003 के मध्य्प्रदेश विधानसभा चुनाव में भी जेटली का अहम योगदान भाजपा को जीत दिलाने में था. यही नहीं कर्नाटक में पहली बार कमल खिलाने का श्रेय भी इन्हें ही...
देश के पूर्व वित्त मंत्री और भारतीय जनता पार्टी के कद्दावर नेता Arun Jaitley का निधन नई दिल्ली के AIIMS अस्पताल में हुआ. उनका जन्म 28 दिसम्बर 1952 में हुआ था. वे 66 वर्ष के थे. उन्हें 9 अगस्त को एम्स में तब भर्ती कराया गया था जब उन्हें सांस लेने में दिक्कत हो रही थी.
अरुण जेटली पिछले करीब 2 साल से बीमार चल रहे थे. मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के नए मंत्रिपरिषद के शपथ ग्रहण समारोह से ठीक पहले उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर कहा था कि वो स्वास्थ्य कारणों से नई सरकार में मंत्री नहीं बनना चाहते. इलाज एवं स्वास्थ्य पर ध्यान केंद्रित करना चाहते हैं. उनकी बीमारी के कारण ही फरवरी में अंतरिम बजट भी पीयूष गोयल ने पेश किया था. उस वक्त जेटली इलाज के लिए अमेरिका गए हुए थे. हालांकि बीमारी के बावजूद वो देश के राजनीतिक घटनाक्रमों पर करीबी नजर रखते थे और अक्सर प्रमुख मुद्दों पर ब्लॉग लिखकर या फिर ट्वीट कर अपनी राय जाहिर करते रहते थे.
अरुण जेटली पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी के भरोसेमंद लोगों में से एक थे. यही कारण था कि जेटली वाजपेयी सरकार में अहम पदों पर आसीन रहे. सबसे पहले वो साल 2000 में राज्य सभा सांसद चुने गए थे. पहले एनडीए (1999-2004) सरकार में उन्होंने करीब पांच मंत्रालयों का कार्यभार संभाला था. अमित शाह और मोदी से पहले इन्हें ही भाजपा का चाणक्य माना जाता था.
गुजरात के 2002 और 2007 के विधानसभा चुनावों में अरुण जेटली ने अहम भूमिका निभाई थी जिसमें भाजपा का परचम लहराया था. 2003 के मध्य्प्रदेश विधानसभा चुनाव में भी जेटली का अहम योगदान भाजपा को जीत दिलाने में था. यही नहीं कर्नाटक में पहली बार कमल खिलाने का श्रेय भी इन्हें ही दिया जाता है.
मोदी सरकार में भी अरुण जेटली को अहम जिम्मेदारियां दी गयीं थी. अपनी बहुयामी प्रतिभा के कारण वो मोदी-शाह के चहेते भी थे. सरकारी योजनाओं की तारीफ करने या फिर विपक्षी पार्टियों के आलोचनाओं को काटने के लिए सरकार के पास इनसे अच्छा कोई वक्ता नहीं था. राफेल सौदा, जीएसटी की जटिलताएं, पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों में उछाल इत्यादि मुद्दों पर वे मोदी सरकार के संकटमोचक की तरह थे. इनके समय में जीएसटी, नोटबंदी, जनधन योजना, जैसे जबरदस्त कदम भी उठाए गए.
साल 2014 के लोकसभा चुनाव में अरुण जेटली जब अमृतसर से चुनाव हार गए तो मोदी ने उन्हें वित्त और रक्षा मंत्रालय फिर से सौंपे. ये जेटली का मेहनत और लगन तथा मोदी का विश्वास ही था जो इन्हें इतने अहम मंत्रालयों का जिम्मा सौंपा गया था.
जब 2016 में नोटबंदी का ऐलान हुआ और उसके बाद उपजे हालातों को बतौर वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बेहतरीन तरीके से संभाला था. इनके कार्यकाल में ही जीएसटी लागू किया गया. जनधन योजना का लागू करवाना जेटली साहेब की एक बड़ी उपलब्धि कही जा सकती है. महंगाई को काबू में रखने का श्रेय भी अरुण जेटली को ही जाता है.
भाजपा में अहम जिम्मेदारी
अरुण जेटली का योगदान पार्टी को आगे बढ़ाने में भी अहम रहा है. जेटली ने अपना राजनीतिक जीवन दिल्ली विश्वविद्यालय से शुरू किया जब वो अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) से जुड़े और 1974 में स्टूडेंट यूनियन के अध्यक्ष बने. देश में इमरजेंसी (1975-1977) के समय वो जेल भी गए. जेल से रिहा होने के बाद वो जनसंघ में शामिल हो गए थे. 1980 में वो भाजपा में शामिल हो गए और 1991 में भाजपा में राष्ट्रीय कार्यकारिणी में अपनी जगह भी बनाई. 1999 में उन्हें प्रवक्ता का पद भी मिला. वर्ष 2002 में वो पार्टी के महासचिव बने.
केंद्र सरकार में जेटली का योगदान
सबसे पहले अरुण जेटली को 1989 में अडिशनल सॉलिसिटर जनरल बनाया गया. उसके बाद प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए की सरकार में उन्हें 13 अक्टूबर 1999 को सूचना प्रसारण राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) नियुक्त किया गया था. इसके अलावा पहली बार एक नया मंत्रालय बनाते हुए उन्हें विनिवेश राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) नियुक्त किया गया था. राम जेठमलानी के इस्तीफे के बाद 23 जुलाई 2000 को जेटली को कानून, न्याय और कंपनी मामलों के मंत्री का अतिरिक्त कार्यभार भी सौंपा गया था.
अरुण जेटली को दो बार रक्षा मंत्रालय का प्रभार मिलने का सौभाग्य भी प्राप्त था. मई 2014 में मोदी सरकार बनने के बाद इन्हें वित्त और रक्षा मंत्रालय का प्रभार दिया गया था. वे 2014 में छह महीने रक्षा मंत्री रहे लेकिन बाद में मनोहर पर्रिकर रक्षा मंत्री बनाए गए थे. लेकिन पर्रिकर के गोवा का मुख्यमंत्री बनने के बाद जेटली को 2017 में छह महीने के लिए दोबारा यह प्रभार दिया गया था. इसके बाद निर्मला सीतारमण को यह जिम्मेदारी दी गई थी. यही नहीं, जेटली की बीमारी के चलते पीयूष गोयल ने दो बार वित्त मंत्रालय भी संभाला था.
इसे संयोग कहें या कुछ और कि एक साल के अंदर भाजपा के करीब आधा दर्जन से ज़्यादा बड़े नेताओं का निधन हो चुका है. इसमें भूतपूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, सुषमा स्वराज, मनोहर पर्रिकर, एवं अनंत कुमार जैसे दिग्गज नेता शामिल हैं. लेकिन ये भी सत्य है कि भाजपा और देश के लिए इन नेताओं की भरपाई करना आसान नहीं होगा.
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