बिहार चुनाव (Bihar Election 2020) में अब महागठबंधन नाम भर ही बचा है. आधा तो तभी खत्म हो गया था जब नीतीश कुमार ने महागठबंधन छोड़ कर बीजेपी के साथ NDA में वापसी कर लिये. बाकी जो बचा था वो लालू यादव के जेल चले जाने के साथ जाता रहा.
जीतनराम मांझी, उपेंद्र कुशवाहा के बाद अब सीपीआई-एमएल ने भी 30 सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा कर इरादा जता दिया है - ले देकर आरजेडी के साथ कांग्रेस बची है महागठबंधन के नाम पर. हां, झारखंड मुक्ति मोर्चा नेता और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने जरूर थोड़ी दिलचस्पी दिखायी है और जितनी सीटें आरजेडी को झारखंड चुनाव में दिये थे कम से कम उतने पर दावा करना तो उनका हक भी बनता है.
नाम लेने को महागठबंधन में मुकेश साहनी की VIP जैसी पार्टियां जरूर हैं लेकिन वे भी तड़फड़ा ही रही हैं. अगर कहीं मौका मिला तो कदम बढ़ाते देर भी नहीं लगने वाली है. फिर तो महागठबंधन को अगर राष्ट्रीय जनता दल ही समझ लेना चाहिये - कांग्रेस भी चुनाव तक साथ रहेगी या नहीं कहना मुश्किल ही है. आखिरी फैसला तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) और राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की मुलाकात में होनी है.
नाम भर का बचा है महागठबंधन
30 सितंबर को तेजस्वी यादव के रांची जेल में लालू यादव से मुलाकात का कार्यक्रम तय था. माना जा रहा था कि तेजस्वी को उम्मीदवारों की सूची फाइनल करने को लेकर पिता की मंजूरी लेनी थी. तभी राहुल गांधी से मुलाकात को लेकर भी बातचीत हुई. मुलाकात दिल्ली में तय हुई, लिहाजा तेजस्वी ने रांची का कार्यक्रम रद्द कर दिया.
2015 में कांग्रेस बिहार की 41 सीटों पर चुनाव लड़ी थी - और वाल्मीकि नगर की जिस संसदीय सीट पर उपचुनाव होना है वो भी कांग्रेस के हिस्से की रही. पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 41 में से 27 सीटों पर जीत हासिल हुई थी, जबकि आरजेडी और जेडीयू 101-101 सीटों पर लड़े थे.
दरअसल, वाल्मीकि नगर संसदीय सीट पर भी बिहार विधानसभा चुनावों के साथ ही उपचुनाव होना है. 2019 में वाल्मीकि नगर लोक सभा सीट पर जेडीयू उम्मीदवार...
बिहार चुनाव (Bihar Election 2020) में अब महागठबंधन नाम भर ही बचा है. आधा तो तभी खत्म हो गया था जब नीतीश कुमार ने महागठबंधन छोड़ कर बीजेपी के साथ NDA में वापसी कर लिये. बाकी जो बचा था वो लालू यादव के जेल चले जाने के साथ जाता रहा.
जीतनराम मांझी, उपेंद्र कुशवाहा के बाद अब सीपीआई-एमएल ने भी 30 सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा कर इरादा जता दिया है - ले देकर आरजेडी के साथ कांग्रेस बची है महागठबंधन के नाम पर. हां, झारखंड मुक्ति मोर्चा नेता और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने जरूर थोड़ी दिलचस्पी दिखायी है और जितनी सीटें आरजेडी को झारखंड चुनाव में दिये थे कम से कम उतने पर दावा करना तो उनका हक भी बनता है.
नाम लेने को महागठबंधन में मुकेश साहनी की VIP जैसी पार्टियां जरूर हैं लेकिन वे भी तड़फड़ा ही रही हैं. अगर कहीं मौका मिला तो कदम बढ़ाते देर भी नहीं लगने वाली है. फिर तो महागठबंधन को अगर राष्ट्रीय जनता दल ही समझ लेना चाहिये - कांग्रेस भी चुनाव तक साथ रहेगी या नहीं कहना मुश्किल ही है. आखिरी फैसला तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) और राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की मुलाकात में होनी है.
नाम भर का बचा है महागठबंधन
30 सितंबर को तेजस्वी यादव के रांची जेल में लालू यादव से मुलाकात का कार्यक्रम तय था. माना जा रहा था कि तेजस्वी को उम्मीदवारों की सूची फाइनल करने को लेकर पिता की मंजूरी लेनी थी. तभी राहुल गांधी से मुलाकात को लेकर भी बातचीत हुई. मुलाकात दिल्ली में तय हुई, लिहाजा तेजस्वी ने रांची का कार्यक्रम रद्द कर दिया.
2015 में कांग्रेस बिहार की 41 सीटों पर चुनाव लड़ी थी - और वाल्मीकि नगर की जिस संसदीय सीट पर उपचुनाव होना है वो भी कांग्रेस के हिस्से की रही. पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 41 में से 27 सीटों पर जीत हासिल हुई थी, जबकि आरजेडी और जेडीयू 101-101 सीटों पर लड़े थे.
दरअसल, वाल्मीकि नगर संसदीय सीट पर भी बिहार विधानसभा चुनावों के साथ ही उपचुनाव होना है. 2019 में वाल्मीकि नगर लोक सभा सीट पर जेडीयू उम्मीदवार बैद्यनाथ प्रसाद महतो ने कांग्रेस शाश्वत केदार को हरा कर जीत हासिल की थी, लेकिन फरवरी, 2020 में उनका निधन हो गया था. इस बार सीट शेयरिंक की डील में विधानसभा सीटों के साथ साथ वाल्मीकि नगर भी शुमार हो गया है.
कांग्रेस नेता राहुल गांधी अपनी पहली ही वर्चुअल रैली में बिहार के पार्टी कार्यकर्ताओं को साफ कर चुके थे कि चुनावी गठबंधन तभी किया जाएगा जब सम्मानजनक सीटें मिलेंगी. सम्मानजनक सीटों का ये आंकड़ा 90 निकल कर आया है, लेकिन तेजस्वी यादव की तरफ से खारिज हो गया है. डिमांड कम करते हुए कांग्रेस भी 75 पर आ चुकी बतायी जाती है, लेकिन आरजेडी को ये नंबर भी ज्यादा लग रहा है. ऐसे में आरजेडी की तरफ से कांग्रेस को दो विकल्प दिये गये हैं. एक विकल्प में वाल्मीकि नगर की लोक सभा सीट भी शामिल है.
पहली कंडीशन में तेजस्वी यादव ने कांग्रेस को साफ साफ कह दिया है कि आरजेडी पार्टी के लिए 63 सीटें छोड़ने के लिए तैयार है, लेकिन वाल्मीकि नगर सीट पर वो खुद उम्मीदवार उतारना चाहेगी. दूसरी कंडीशन है कि सीटें और भी कम कर लो तो वाल्मीकि नगर की सीट पर आरजेडी अपना दावा छोड़ देगी.
आरजेडी प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी बड़े प्रेम से कांग्रेस को समझाने की कोशिश करते हैं, 'राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस का गठबंधन का कुदरती है. कई चुनाव हमने साथ लड़ा है और सरकार भी चलायी है. चुनाव में पार्टी कांग्रेस को 58 सीट और एक लोकसभा सीट भी दे रही है. कांग्रेस को उदारता दिखानी चाहिये क्योंकि वो राष्ट्रीय पार्टी है और राष्ट्रीय जनता दल क्षेत्रीय पार्टी है. कांग्रेस पार्टी को जमीनी हकीकत समझनी पड़ेगी और हम साथ में चुनाव लड़ेंगे.'
अब एक चीज तो तय है सीट शेयरिंग पर आखिरी मुहर तेजस्वी यादव और राहुल गांधी की मुलाकात में ही लगनी है. देखना है कि दिल्ली से लौटने के बाद तेजस्वी के पास बाहर जाकर डिनर या लंच का कोई फोटो शेयर करने के लिए होता है कि नहीं!
अकेले हैं तो क्या गम है!
महागठबंधन को लेकर बुरी खबर ये है कि बिहार विधानसभा चुनाव में CPI-ML और RJD के बीच बातचीत पूरी तरह फेल हो चुकी है. महागठबंधन में सीपीआई-एमएल ने अपनी डिमांड घटाकर 30 कर ली थी और फिर बाद में 20 पर भी मंजूरी देने का प्रस्ताव रखा था, लेकिन तेजस्वी यादव ने नया पेंच फसा दिया. सीटों की संख्या पर तो राजी हो गये, लेकिन विधानसभा क्षेत्रों को लेकर सहमति नहीं बनी.
सीपीआई-एमएल के राज्य सचिव कुणाल के मुताबिक आरजेडी की तरफ से जो सीटें ऑफर की गयीं उनमें उनकी पसंदीदा सीटें नदारद थी. कुणाल के मुताबिक उनकी पार्टी का प्रभाव और कार्यक्षेत्र पटना, औरंगाबाद, जहानाबाद, गया, बक्सर, नालंदा जैसे इलाकों में है लेकिन ये सीटें छोड़ने के लिए आरजेडी तैयार नहीं हुई और वही हुआ जिसकी आशंका रही. सीपीआई-एमएल ने 30 उम्मीदवारों की पहली सूची जारी कर दी है.
CPI-ML ने तो अलग राह चुन ली है, देखना है सीपीआई और सीपीएम क्या फैसला लेते हैं. सुना ये भी गया है कि आरजेडी की तरफ से विकासशील इंसान पार्टी वाले मुकेश साहनी को 7 सीटें ऑफर की गयी हैं - वरना, इशारा भी साफ कर दिया गया है कि दरवाजा खुला हुआ है. वही दरवाजा जिससे जीतनराम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा रुखसत हो चुके हैं.
तेजस्वी यादव को भी नीतीश कुमार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर के साथ साथ अपने 30 फीसदी खास वोट बैंक यादव और मुस्लिम समुदाय पर भरोसा बना हुआ है. तेजस्वी को ये भी लगता होगा कि कांग्रेस के कुछ उम्मीदवार अपने बूते कुछ सीटें भले ही निकाल लें, लेकिन बाकी छोटे छोटे दलों के खातों में कोई खास उपलब्धि तो दर्ज होने से रही. VIP भी उसी कैटेगरी में आती है, इसलिए उसके प्रति भी कोई विशेष रुचि नहीं रग गयी लगती है.
सी-वोटर के सर्वे में 15.4 फीसदी लोगों ने तेजस्वी यादव को बतौर मुख्यमंत्री पसंद किया है. निश्चित तौर पर ये नीतीश कुमार के 30.9 के मुकाबले आधा ही है, लेकिन 57 फीसदी लोगों की नीतीश कुमार के कामकाज से नाराजगी ने तेजस्वी यावद का हौसला बढ़ाया हुआ है. सर्वे में महागठबंधन के खाते में 64-84 सीटें आने का अनुमान है. 2015 में आरजेडी को 80 सीटें मिली थी. ध्यान देने वाली बात ये है कि 2015 में कांग्रेस को जो सीटें मिली थीं वो नीतीश कुमार के प्रभाव और महागठबंधन के बैनर की वजह से मिली थीं. वैसा मामला इस बार नहीं रहने वाला. जो फायदा कांग्रेस को नीतीश कुमार और लालू यादव के चलते मिला था वो तो तेजस्वी यादव के नाम से मिलने से रहा. तेजस्वी यादव आरजेडी उम्मीदवारों को ही जिता लें बहुत है.
अगर ऐसी हालत में तेजस्वी यादव कांग्रेस को कम से कम सीटों पर समेटने की कोशिश करते हैं तो अपने हिसाब से ठीक ही सोच रहे हैं. अगर राहुल गांधी को लगता है कि तेजस्वी यादव का ऑफर सम्मानजनक नहीं है, तब तो बात ही अलग है - और लगता नहीं कि ऐसा होने पर तेजस्वी यादव की सेहत पर कोई खास फर्क पड़ेगा. कम से कम बिहार विधान सभा चुनाव 2020 में तो बिलकुल नहीं!
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