दुनियाभर में करीब 6.56 करोड़ लोग विस्थापित की जिंदगी जी रहे हैं. इनमें दूसरे देशों में शरण की चाह रखने वाले लोग, अनियमित प्रवासी, अपने देश वापस लौटने की चाह रखनेवाले लोग और अंदरूनी तौर पर विस्थापित लोग शामिल हैं. यूरोप के संकट से भी आप वाकिफ होंगे ही. जर्मन सरकार ने अपने देश में शरणार्थियों को जगह दी. इससे उनकी अर्थव्यवस्था पर तो असर पड़ा ही, साथ ही जर्मनी को एक के बाद एक कई हमलों का शिकार होना पड़ा. रोहिंग्या को पुन: विस्थापित करने के सरकार के फैसले के बाद कई तरह के सवाल किए जा रहे है. इन सवालों से पहले दूसरे देशों से हमे सीख लेनी चाहिए. अगर शरण देना ही है, तो विदेश में रह रहे 27,142 भारतीय शरणार्थियों और अनियमित प्रवासीयों को सबसे पहले देश में जगह मिलनी चाहिए.
भारत में रह रहे शरणार्थियों की बात करें, तो यूएन शरणार्थी संस्था (NHCR) के आकड़ों के अनुसार 2014 में करीब 2 लाख शरणार्थी भारत में रह रहे थे. इसके अलावा 5,074 लोग वैसे हैं, जो की शरण की मांग कर रहे है, लेकिन अभी तक उन्हें मिला नहीं है. हैरानी की बात तो यह है कि इनमें से महज एक शरणार्थी ही अपने देश वापस लौटा है. अफगानिस्तान, बांग्लादेश से लेकर म्यांमार, इरान, इराक और सोमालिया तक के लोगों को भारत ने शरण दी है. यह आकड़ा तो महज शरणार्थियों का है, इसके अलावा भी लाखों लोग अवैध रूप ही देश में रह रहे हैं. 1959 से ही दूसरे देशों के लोग यहां आकर शरण लेते रहे हैं.
- 1959 से ही तिब्बत के लोग यहां आते रहे हैं.
- 1971 से हमने बांग्लादेशी शरणर्थियों को जगह दिया है.
- 1963...
दुनियाभर में करीब 6.56 करोड़ लोग विस्थापित की जिंदगी जी रहे हैं. इनमें दूसरे देशों में शरण की चाह रखने वाले लोग, अनियमित प्रवासी, अपने देश वापस लौटने की चाह रखनेवाले लोग और अंदरूनी तौर पर विस्थापित लोग शामिल हैं. यूरोप के संकट से भी आप वाकिफ होंगे ही. जर्मन सरकार ने अपने देश में शरणार्थियों को जगह दी. इससे उनकी अर्थव्यवस्था पर तो असर पड़ा ही, साथ ही जर्मनी को एक के बाद एक कई हमलों का शिकार होना पड़ा. रोहिंग्या को पुन: विस्थापित करने के सरकार के फैसले के बाद कई तरह के सवाल किए जा रहे है. इन सवालों से पहले दूसरे देशों से हमे सीख लेनी चाहिए. अगर शरण देना ही है, तो विदेश में रह रहे 27,142 भारतीय शरणार्थियों और अनियमित प्रवासीयों को सबसे पहले देश में जगह मिलनी चाहिए.
भारत में रह रहे शरणार्थियों की बात करें, तो यूएन शरणार्थी संस्था (NHCR) के आकड़ों के अनुसार 2014 में करीब 2 लाख शरणार्थी भारत में रह रहे थे. इसके अलावा 5,074 लोग वैसे हैं, जो की शरण की मांग कर रहे है, लेकिन अभी तक उन्हें मिला नहीं है. हैरानी की बात तो यह है कि इनमें से महज एक शरणार्थी ही अपने देश वापस लौटा है. अफगानिस्तान, बांग्लादेश से लेकर म्यांमार, इरान, इराक और सोमालिया तक के लोगों को भारत ने शरण दी है. यह आकड़ा तो महज शरणार्थियों का है, इसके अलावा भी लाखों लोग अवैध रूप ही देश में रह रहे हैं. 1959 से ही दूसरे देशों के लोग यहां आकर शरण लेते रहे हैं.
- 1959 से ही तिब्बत के लोग यहां आते रहे हैं.
- 1971 से हमने बांग्लादेशी शरणर्थियों को जगह दिया है.
- 1963 से देश में इस्ट पाकिस्तान (अभी बांग्लादेश) के चकमा शरणर्थियों को जगह दी. बता दें कि चकमा, बुद्धों की एक अल्पसंख्यक जाती है.
- 1983, 1989, 1995 के गृह युद्ध के बाद श्रीलंका से भी कई लोग जान बचाकर भारत में रह रहे हैं.
- 1980 से अफगानिस्तान के लोग भी शरणर्थी के रूप में रह रहे हैं.
- 1990 से म्यांमार में अस्थिरता के कारण लोग अपने देश छोड़ने को मजबूर हो गए. इसके बाद उन्होंने भारत का रूख किया.
इस तरह से भारत ने 1971 के बाद से ही अलग-अलग देशों के विभिन्न समुदायों के लोग को रहने की जगह दी हैं. शरणर्थियों के लिए कोई खास कानून ना होने की वजह से भी लोग यहां आते रहे हैं. पड़ोसी देशों में 2005 से बढ़ी अस्थिरता के कारण भी शरणर्थियों की संख्या में बड़ा उछाल देखा गया. भारत ने भी यहां वसुधैव कुटुंबकं के मूल मंत्र पर चलते हुए सबको जगह दे दी. लेकिन इन लाखों शरणार्थियों की वजह से अर्थव्यवस्था पर पड़ रहे बोझ को नजरअंदाज नहीं जा सकता है. साथ ही देश की सुरक्षा चिंताओं को भी नजरअंदाज करना भारत के लिए महंगा पड़ सकता है.
भारत सरकार ने शरणर्थी समस्या से निपटने के लिए आगे कदम बढ़ाया है. 1955 से चले आ रहे नागरिकता अधिनियम में बदलाव के लिए नया विधेयक 2016 में ही पेश किया गया चुका है. इस विधेयक के जरिए दूसरे देशों से आए हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख धर्म के लोगों को जल्द से जल्द प्राथमिक सुविधाएं मुहैया कराया जाएगा. यह लोग अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए हैं. उन देशों में अल्पसंख्यक होने के कारण हो रहे जुल्मों की वजह से उन्हें अपना देश छोड़ना पड़ा था.
भारत में अफगानिस्तान से आए 9,200 शरणार्थी हैं, इनमें से 8,500 हिंदू हैं. पाकिस्तान से भी 400 से ज्यादा हिंदू अपनी जान बचाकर भारत में आ बसे हैं. इनमें से ज्यादातर लोग गुजरात और राजस्थान में रह रहे हैं. एक समय में विलुप्त होने के कगार पर पहुंच चुकी बौद्ध की चकमा जनजाती और हिंदूओं की हजोंग जनजाती को भारत ने शरण दिया. और अब तो सरकार नागरिकता भी देने जा रही है. वहीं नए विधेयक के आ जाने के बाद पाकिस्तान और बांग्लादेश से आए अहमदिया मुस्लमानों को, अफगानिस्तान और पाकिस्तान से आए हजारा शरणर्थियों को, म्यांमार से आए रोहिंग्या मुस्लमानों को और श्रीलंका से आए तमिल मुस्लमानों को देश में शरणार्थी के रूप में जगह नहीं दी जाएगी. उन्हें अवैध ठहराकर देश से बाहर का रास्ता दिखाया जा सकता है.
भारत सरकार ने देश में रह रहे 50 सालों से चकमा और हाजोंग शरणार्थियों को नागरिकता देने को सहमत हो गई है. इन्हें नागरिकता अधिनियम की धारा 5(i)(a) तहत भारत के नागरिक घोषित किया जाएगा. 1964-69 के बीच करीब 5 हजार की संख्या में आए यह लोग अरूणाचल प्रदेश में रह रहे थे. बीते 50 सालों में इनकी संख्या बढ़कर 1 लाख हो गई है. चकमा और हाजोंग नाम की यह जातिय समूह बांग्लादेश के चटगांव हिल ट्रेक्टर्स के रहने वाले हैं. इलाके में बैद्ध और हिंदूओं की छोटी संख्या होने की वजह से उनपर हमले होने लगे. इसके बाद उन्हें देश छोड़कर भागना पड़ा और उन्होंने भारत में आकर शरण ले लिया. अब यहां भी उन्हें अरूणाचल प्रदेश छात्र संघ का विरोध 1980 से झेलना पड़ रहा है. छात्रों को डर है कि उनके आ जाने से उनके अवसर उनसे छीन जाएंगे. खैर चकमा और हाजोंग शरणार्थियों को बस घूमने और काम करने की आजादी है. जमीन खरीदने की नहीं. यहां तो लोग, अपने ही जाती से संबंध रखने वाले लोगों को देश में जगह देने को तैयार नहीं है. वहीं लोग रोहिंग्या को जगह न देने पर सवाल खड़े कर रहे हैं...
अब या तो वे अपनी जीभ काट के दें, या पेट काट के दें !
मुसलमानों के खिलाफ भारत से पहले अमेरिका ने भी सख्त रवैया अपनाया था. ट्रंप के फैसलों पर तो दुनियाभर में बवाला हुआ था. लेकिन फिर भी ट्रंप ने विजा नियम सख्त कर दिए. ट्रंप ने 7 मुस्लिम देशों से आने वाले लोगों पर ही रोक लगा दिया. सीरीया, इरान, इराक, लिबिया, सोमालिया, सुडान और यमन के लोगों को ट्रंप ने 90 दिनों से ज्यादा विजा देने से ही मना कर दिया. वही सीरीया से आने वाले शरणार्थियों पर भी अस्थाई रूप से रोक लगा दिया गया है. मैक्सिको से आने वाले शरणार्थियों के कारण अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले असर को देखते हुए, दोनों देशों के बीच ट्रंप ने तो दीवार बनाने की भी बात की. इजराइल ने भी दुनियाभर में रह रहे यहुदियों को देश में जगह दी. और मुसलमानों को देश से बाहर का रास्ता दिखा दिया. सभी देश अपने समान धर्मवाले लोगों को देश में जगह दे रहे हैं. इसमें कुछ बुरा नहीं है. समान सोच वाले लोग ही एक साथ रहे, तो समाज में अस्थिरता नहीं फैलेगी.
भारत के लोग भी विदेशों में शरणार्थी के रूप में रह रहे हैं. NHCR के आकड़ों के अनुसार विश्व में करीब 10,433 भारतीय शरणार्थी हैं. वहीं 16,709 भारतीय लोगों ने दूसरे देशों में शरण की मांग की है, जिन्हें अब तक मिला नहीं है, और वे अवैध तौर पर उस देश में रहने को मजबूर है. चौंकाने वाली बात तो यह है कि इतनी बड़ी संख्या में से महज 1 इंसान ही भारत वापस लौटा है. अब जिन्हें दूसरे देशों के लोगों कि चिंता है. उन्हें अपने देश के हालात भी देखने चाहिए. खुद खाने को रोटी नहीं और लंगर करने की बात करते हैं. अपने घर में 10 दिनों के लिए कोई मेहमान आ जाए तो घर में हॉय तौबा मच जाती है. बाते होने लगती है कि अतिथि कब जाओगे. वही लोग आज बड़ी-बड़ी बाते कर रहे हैं. अंत में एक गाने का मैं जिक्र करना चाहता हूं...
हमको मन की शक्ति देना, मन विजय करें.. दूसरों की जय से पहले खुद की जय करें...
(कंटेंट- श्रीधर भारद्वाज)
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