शुरुआत बिहार से हुई है, लेकिन छात्रों के विरोध प्रदर्शन (Bihar Students Protest) को लेकर यूपी में भी अलर्ट जारी करना पड़ा. ये अलर्ट छात्रों के 28 जनवरी को बंद की कॉल को देखते हुए किया गया था.
बंद की अपील से तीन दिन पहले ही, 25 जनवरी को यूपी के प्रयागराज में छात्रों ने प्रदर्शन किया था. फिर पुलिस का एक्शन भी हुआ. बिलकुल वैसे ही जैसे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पीठ पर हाथ रख देने के बाद यूपी पुलिस करती आई है.
छात्रों ने प्रयाग स्टेशन पर ट्रेन रोक दी थी. पुलिस ने लाठीचार्ज किया तो वे पत्थर उठा लिये. पुलिस ने घेर लिया तो छात्र लॉज में घुस गये. पुलिस ने दरवाजे तोड़े और घुस कर फुल एक्शन में खोज खोज कर पीटा. पुलिस की लाठी से बहुत सारे छात्र घायल तो हुए ही, दर्जनों छात्र हिरासत में भी लिये गये.
फिर कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा आगे आईं. ऐसे पिछले मामलों की ही तरह छात्रों को न्याय दिलाने का भरोसा दिलाया. वीडियो कांफ्रेंस के जरिये बातचीत में छात्रों का मामला हर मंच पर उठाने का आश्वासन - और व्यक्तिगत तौर पर जल्द ही मिलने का वादा भी किया.
प्रियंका गांधी की ही तरह बीजेपी सांसद वरुण गांधी का भी बयान आया, लेकिन बिहार के डिप्टी सीएम रहे बीजेपी के राज्य सभा सांसद सुशील कुमार मोदी छात्रों के बंद को राजनीतिक साजिश करार दिया. बोले, बंद में छात्र नहीं, राजनीतिक दलों के लोग शामिल हैं. वो काफी हद तक सही भी कह रहे थे.
छात्रों के बंद को तेजस्वी यादव और उनकी पार्टी आरजेडी, पप्पू यादव की जन अधिकार पार्टी के अलावा, नीतीश कुमार सरकार में शामिल जीतनराम मांझी के हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा और मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी का भी समर्थन हासिल रहा.
बिहार में भी छात्रों और खान सर के नाम से जाने जाने वाले कोचिंग संचालक सहित कई लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गयी है. फर्क ये है कि जिस तरह योगी आदित्यनाथ की पुलिस ने शुरू में ही छात्रों के विरोध को दबाने की कोशिश की, नीतीश कुमार सरकार ने वैसा कुछ नहीं किया.
छात्रों के आंदोलन को यूपी और बिहार दोनों ही जगह विपक्षी राजनीतिक दलों का समर्थन मिला, लेकिन बिहार में महसूस किया गया कि नीतीश सरकार ने छात्रों के आंदोलन को समर्थन तो नहीं दिया, लेकिन रोकने की भी कारगर कोशिश नहीं दिखायी पड़ी.
तो क्या बिहार के छात्र आंदोलन का यूपी चुनाव (P Election 2022) में असर होने लगा है और क्या नीतीश कुमार (Nitish Kumar) भी इसे नफे-नुकसान के चश्मे से देखने लगे हैं - ये समझने की कोशिश काफी दिलचस्प है.
बेरोजगारी का मुद्दा उठने लगा है
14 जनवरी को जब NTPC यानी नॉन टेक्निकल पॉपुलर कैटेगरी के इम्तिहान के नतीजे रेलवे रिक्रूटमेंट बोर्ड ने घोषित किये तो छात्रों का गुस्सा भड़क गया. देशभर में करीब 1.26 करोड़ छात्रों ने परीक्षा के लिए आवेदन किया था, लेकिन नतीजों में गड़बड़ी का शक जाहिर करते हुए बिहार में छात्र सड़क पर उतर आये.
बिहार में छात्रोें के विरोध प्रदर्शन के बीच यूपी चुनाव को लेकर नीतीश कुमार की राजनीति भी दिलचस्प है
रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने प्रेस कांफ्रेंस कर छात्रों को समझाने और उनका गुस्सा शांत करने की कोशिश की. सरकार की तरफ से एक 5 सदस्यों वाली एक कमेटी भी बनाये जाने की घोषणा हुई और बताया गया कि कमेटी 4 मार्च तक अपनी रिपोर्ट सौंप देगी. कमेटी रेल मंत्रालय को अपना रिपोर्ट सौंपने से पहले परीक्षा में पास और फेल छात्रों की शिकायत सुनेगी और उसकी रिपोर्ट के आधार पर ही आगे का निर्णय लिया जाना है. तब तक परीक्षा पर रेलवे ने रोक भी लगा दी है.
मीडिया से बातचीत में विरोध प्रदर्शन कर रहे छात्र कमेटी के गठन को उनका गुस्सा शांत करने की साजिश के तौर पर देख रहे हैं. ऐसे छात्रों का कहना है - ये कमेटी नहीं है, बल्कि ये यूपी चुनाव होने तक बेरोजगारों का गुस्सा शांत करने की सरकारी साजिश है. वे कहते हैं कि अगर छात्र अभी चुप बैठ गये और चुनाव हो गया तो सरकार फिर से मनमानी करेगी.
परीक्षा से जुड़े कई तकनीकी पहलू भी हैं. मसलन, तैयारी कर रहे छात्रों के सामने तय की गयी तारीखों का कोई कैलेंडर नहीं है, जिससे मालूम हो सके कि परीक्षा कब तक हो जाएगी और कब तक नतीजे आ सकेंगे - लेकिन चुनावी माहौल के चलते भर्ती का ये मुद्दा बेरोजगारी से जुड़ गया है.
कोरोना का बहाना नहीं चलेगा: छात्रों की शिकायत भी वाजिब लगती है. कहते हैं चार चार साल तक किसी परीक्षा के लिए कैसे इंतजार किया जा सकता है. कहते हैं, 2019 में मार्च में वैकंसी आई... 2021 में परीक्षा हुई - और नतीजे आते आते 2022 हो गये. ऐसा चार साल प्रक्रिया चलेगी तो कैसे काम चलेगा?
देर को लेकर सरकारी सफाई पर भी छात्रों का सीधा सा सवाल है - 'रेल मंत्री कहते हैं कि कोरोना के चलते परीक्षा नहीं हुई... कोरोना में बंगाल चुनाव हो जाता है, लेकिन परीक्षा नहीं!
सही बात है. वैसे भी तीन-चार साल में तो कई डिग्री कोर्स भी पूरे हो जाते हैं. लंबी प्रक्रिया में छात्रों का नुकसान तो हो ही रहा है. ये छात्र चाहते हैं कि कम से कम सरकार के जिस विभाग में जितनी सीटें खाली हैं, वे तो भरी जायें.
बिहार चुनाव के वक्त आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने कैबिनेट की पहली बैठक में 10 लाख नौकरियों के लिए आदेश जारी करने का वादा किया था - और अभी यूपी चुनाव में भी कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा ने ऐसे ही 20 लाख सरकारी नौकरियों का वादा किया है.
आओ छात्रों बेरोजगारी को चुनावी मुद्दा बनायें
प्रयागराज में पुलिस एक्शन के बाद कांग्रेस कार्यकर्ता फौरन ही पुलिस एक्शन के शिकार छात्रों के पास पहुंच गये और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा के साथ वीडियो कांफ्रेंस करा दी. प्रियंका गांधी वाड्रा ने छात्रों को आश्वस्त किया कि वो हर मंच से उनकी आवाज उठाएंगी और बोलीं, 'डरिये मत... ये सुनिश्चित करिये कि चुनाव आपके मुद्दों पर हो - आपके रोजगार के मुद्दे पर हो!'
ये न हुई मुद्दे की बात. यूपी में बैठे बिठाये बिहार से चल कर एक मुद्दे की यूपी में घुसपैठ हुई और फिर उसे चुनावी मुद्दा बनाने की कवायद भी चालू हो गयी. प्रियंका गांधी की ही तरह पूर्व मुख्य्मंत्री अखिलेश यादव ने भी छात्रों को समाजवादी पार्टी के सपोर्ट मिलने का भरोसा दिलाया है - और लगे हाथ बीजेपी सांसद वरुण गांधी को भी यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार को घेरने का एक और मौका मिल गया है.
अखिलेश यादव ने भी समाजवादी पार्टी के सत्ता में आने पर युवाओं को रोजगार देने का वादा किया है - और उनमें 22 लाख नौकरियां तो आईटी सेक्टर से ही होंगी.
छात्रों के खिलाफ पुलिस एक्शन का एक वीडियो ट्विटर पर शेयर करते हुए अखिलेश यादव लिखते हैं, 'बीजेपी सरकार में छात्रों के साथ जो दुर्व्यवहार हुआ है, वो बीजेपी के ऐतिहासिक पतन का कारण बनेगा - सपा संघर्षशील छात्रों के साथ है.'
बीजेपी नेतृत्व के लंबे समय से कोपभाजन बने पीलीभीत सांसद वरुण गांधी के लिए भी छात्रों का विरोध किसान आंदोलन और ऐसे दूसरे मामलों जैसा ही लगता है. वरुण गांधी का कहना है, 'देश में आज बेरोजगारी सबसे बड़ी समस्या बनकर उभर रही है... स्थिति विकराल होती जा रही है... इससे मुंह मोड़ना कपास से आग ढकने जैसा है.'
बीजेपी का काउंटर भी दिलचस्प है: योगी आदित्यनाथ के लिए छात्रों का ताजा विरोध प्रदर्शन कोई खास बात नहीं लगती. योगी सरकार की पुलिस जैसे एंटी रोमियो स्क्वॉड के रूप में कहर बन कर टूट पड़ी थी, जैसे सीएए-एनआरसी प्रदर्शनकारियों का या किसानों के साथ पेश आयी, बिलकुल वैसे ही सरकार डंडे के बल पर छात्रों से पेश आयी है.
लेकिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उनके बचाव में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को बचाव करने का तरीका खूब आता है. योगी आदित्यनाथ जगह जगह लोगों के बीच पहुंच कर जिन्ना और सरदार पटेल में फर्क करने का पाठ लोगों को पढ़ा रहे हैं.
योगी आदित्यनाथ विपक्षी हमलों को काउंटर करने के लिए अपनी उपलब्धियां भी गिना रहे हैं. कहते हैं, समाजवादी पार्टी ने यूपी में हज हाउस बनाया और बीजेपी ने मानसरोवर भवन. देखना होगा इस बार लोग श्मशान और कब्रिस्तान के फर्क को कैसे समझते हैं?
पश्चिम यूपी में 10 फरवरी को 58 सीटों के लिए वोटिंग होनी है, लिहाजा अमित शाह अपने पूरे रौ में देखे जा सकते हैं. कहने को तो वोट मांग रहे हैं लेकिन जैसे तांत्रिक लोगों को डरा कर अपनी बात मनवाते हैं, करीब करीब वैसे ही - अगर समाजवादी पार्टी को वोट दिया तो फिर से 2013 के मुजफ्फरनगर दंगे के लिए तैयार रहना. ज्यादातर भाषणों में ऐसा ही सुनने को मिल रहा है.
असल में बीजेपी नेतृत्व जानता है कि छात्रों के आंदोलन का असर बिहार से सटे पूर्वांचल में ही ज्यादा हो सकता है - और वहां आखिरी दौर में वोटिंग होनी है. हो सकता है बीजेपी विपक्ष की तरफ से उठाये जा रहे बेरोजगारी के मुद्दे की काट में कोई और रणनीति अख्तियार करे.
यूपी चुनाव में नीतीश कुमार की दिलचस्पी
नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू कई राज्यों में विधानसभा चुनाव लड़ती रही है. उन राज्यों में भी जहां बीजेपी सत्ता में वापसी के लिए संघर्ष कर रही होती है - ऐसा पहले झारखंड में देखा गया था और अब यूपी चुनाव में देखने को मिल रहा है.
2020 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने जेडीयू के साथ दो सीटें शेयर की थी - और अमित शाह और नीतीश कुमार ने मंच साझा करते हुए बीजेपी-जेडीयू गठबंधन के लिए वोट भी मांगे थे. यूपी चुनाव में भी बीजेपी से जेडीयू को ऐसी ही उम्मीद थी, लेकिन सारी कोशिशें बेकार गयीं.
दिल्ली में जब जेडीयू अध्यक्ष राजीव रंजन यानी ललन सिंह से मीडिया ने सवाल किया कि क्या वो यूपी में बीजेपी के साथ गठबंधन न होने से अपसेट हैं?
सवाल सुनते ही वो भड़क गये और कहने लगे - 'हम अपसेट क्यों रहेंगे? गठबंधन को लेकर मेरी बात बीजेपी से नहीं हो रही थी.' फिर सारा ठीकरा वो आरसीपी सिंह के सिर पर फोड़ दिये. ललन सिंह से पहले आरसीपी सिंह ही जेडीयू अध्यक्ष हुआ करते थे और अभी मोदी सरकार में मंत्री हैं.
ललन सिंह ने बताया कि आरसीपी सिंह जेडीयू के मंत्री हैं और दो-तीन महीने पहले से ही कह रहे थे कि बीजेपी के साथ बात हो रही है और सीटों का तालमेल होगा. पार्टी उनके भरोसे बैठी रही. ललन सिंह ने बताया कि अगर ये सब पहले ही मालूम होता तो पूरी तैयारी के साथ 100 सीटों पर चुनाव लड़ते, लेकिन अब 50-60 सीटों पर ही फैसला हुआ है.
पहले खबर आयी थी कि आरसीपी सिंह की मध्यस्थता में चल रही बातचीत में बीजेपी की तरफ से 14 सीटों के ऑफर के साथ नीतीश कुमार को भी चुनाव प्रचार के लिए गुजारिश की गयी है. ये भी बताया गया कि जेडीयू बीजेपी से यूपी में 51 सीटें अपने लिये मांग रही है.
अब पता चला है कि जेडीयू के यूपी चुनाव में अकेले उतरने के बावजूद नीतीश कुमार चुनाव प्रचार के लिए नहीं जाएंगे. पटना से नीतीश कुमार का कार्यक्रम वर्चुअल माध्यम तक ही सीमित रहेगा.
ललन सिंह ने तो मीडिया के सामने गुस्से का इजहार भी कर दिया, लेकिन नीतीश कुमार तो मन मसोस कर ही रह गये होंगे. नीतीश कुमार भी समझ ही रहे होंगे कि अब आरसीपी सिंह भी उनकी जगह बीजेपी के इशारों पर ही ज्यादा चलते हैं.
चर्चा तो ये भी है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह के अलावा नीतीश कुमार को बीजेपी का कोई नेता भाव नहीं दे रहा है. केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह जैसे नेताओं का नीतीश विरोधी स्टैंड तो पहले से ही जग जाहिर है, हाल फिलहाल बिहार बीजेपी अध्यक्ष संजय जायसवाल भी नीतीश कुमार के खिलाफ काफी आक्रामक नजर आये हैं.
नीतीश कुमार को मालूम है कि बीजेपी को जो करना था कर चुकी है अब कम से कम 2024 के आम चुनाव तक वो कोई भी जोखिम नहीं उठाने वाली है. वरना, जो नीतीश कुमार मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर बीजेपी की हरी झंडी न मिलने की मजबूरी मीडिया से शेयर करते रहे, वही जातीय जनगणना के मुद्दे पर बिहार के प्रतिनिधिमंडल में तेजस्वी यादव के साथ साथ बीजेपी विधायक को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने पहुंच गये.
बिहार विधान परिषद चुनाव में सीटों के बंटवारे में भी बीजेपी का नरम रुख लगता है - और ये सब देखते हुए ही नीतीश कुमार की नजर यूपी चुनाव पर भी टिकी हुई लगती है. बीजेपी की तरफ से सीटें न शेयर किये जाने का बदला तो तभी पूरा होगा जब यूपी चुनाव में पार्टी कमजोर पड़ेगी.
ऐसे में जब विपक्षी दल यूपी में नौकरियों पर आगे बढ़ कर चुनावी वादे कर रहे हैं - और छात्रों के विरोध को खुला सपोर्ट दे रहे हैं, बिहार में बैठे बैठे नीतीश कुमार खामोश रह कर भी अपनी राजनीति को आगे बढ़ा रहे हैं - और ये कम भी तो नहीं.
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