'भविष्य का भारत' दिल्ली के विज्ञान भवन में इसी नाम से चल रहे कार्यक्रम में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने हिंदुत्व की व्याख्या की एक नई सीरीज लांच की है जिसमें मुस्लिम समाज के बिना हिन्दू राष्ट्र की अवधारणा को ख़ारिज कर दिया है. हिंदुत्व एक सर्वसम्मत विचार है जो परम्परा से चला आ रहा है. ये विचार विविधता के सम्मान की वजह से चल रहा है. वैदिक काल में हिन्दू नाम का कोई धर्म नहीं था बल्कि सनातन धर्म हुआ करता था. इन बयानों को आज के राजनीतिक परिवेश में देखा जाना चाहिए क्योंकि जिस तरह से देश की राजनीति में संघ को लेकर आये दिन टिका-टिप्पणी होती रहती है, मोदी सरकार पर देश को हिन्दू राष्ट्र की आग में धकेलने का आरोप लगता रहता है. संघ प्रमुख बार-बार अपने वैचारिक मंचों से यही समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि जिस हिन्दू राष्ट्र की कल्पना संघ विरोधी करते हैं दरअसल संघ उस विचारधारा का धोतक कभी रहा नहीं.
संघ प्रमुख का बयान धर्म के राजनीतिकरण की ओर ध्यान आकर्षित करता है. हिन्दू धर्म के ऐतिहासिक अस्तित्व को खारिज कर शायद यही संकेत देना चाह रहे हैं. हिन्दू धर्म के सामानांतर सनातन धर्म का जिक्र कर मोहन भागवत अपने विरोधियों को पॉलिटिकल हिंदुत्व और सांस्कृतिक हिंदुत्व के बीच का अंतर समझाना चाह रहे थे. उनका कहना था कि आज जो कुछ हो रहा है वो धर्म नहीं है. "जिस दिन हम कहेंगे कि हमें मुसलमान नहीं चाहिए उस दिन हिंदुत्व नहीं रहेगा." हाल के वर्षों में जिस तरह से संघ ने भारतीय समाज के बीच आकर संघ को लेकर जो भ्रांतियां फैलाई गईं हैं उसे तोड़ने का काम किया है, उसको देखकर लगता है कि संघ को अब वैचारिक जवाबदेही की चिंता सता रही है. मुसलमानों को संघ का डर दिखाकर इस देश की राजनीतिक पार्टियों ने वोटबैंक की विशाल ईमारत खड़ी की है अब संघ मुसलमानों को ये बताने की कोशिश कर रहा है कि आपको जिस डर के कारण वर्षों तक छला गया दरअसल उसका कोई अस्तित्व ही नहीं है.
'भविष्य का भारत' दिल्ली के विज्ञान भवन में इसी नाम से चल रहे कार्यक्रम में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने हिंदुत्व की व्याख्या की एक नई सीरीज लांच की है जिसमें मुस्लिम समाज के बिना हिन्दू राष्ट्र की अवधारणा को ख़ारिज कर दिया है. हिंदुत्व एक सर्वसम्मत विचार है जो परम्परा से चला आ रहा है. ये विचार विविधता के सम्मान की वजह से चल रहा है. वैदिक काल में हिन्दू नाम का कोई धर्म नहीं था बल्कि सनातन धर्म हुआ करता था. इन बयानों को आज के राजनीतिक परिवेश में देखा जाना चाहिए क्योंकि जिस तरह से देश की राजनीति में संघ को लेकर आये दिन टिका-टिप्पणी होती रहती है, मोदी सरकार पर देश को हिन्दू राष्ट्र की आग में धकेलने का आरोप लगता रहता है. संघ प्रमुख बार-बार अपने वैचारिक मंचों से यही समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि जिस हिन्दू राष्ट्र की कल्पना संघ विरोधी करते हैं दरअसल संघ उस विचारधारा का धोतक कभी रहा नहीं.
संघ प्रमुख का बयान धर्म के राजनीतिकरण की ओर ध्यान आकर्षित करता है. हिन्दू धर्म के ऐतिहासिक अस्तित्व को खारिज कर शायद यही संकेत देना चाह रहे हैं. हिन्दू धर्म के सामानांतर सनातन धर्म का जिक्र कर मोहन भागवत अपने विरोधियों को पॉलिटिकल हिंदुत्व और सांस्कृतिक हिंदुत्व के बीच का अंतर समझाना चाह रहे थे. उनका कहना था कि आज जो कुछ हो रहा है वो धर्म नहीं है. "जिस दिन हम कहेंगे कि हमें मुसलमान नहीं चाहिए उस दिन हिंदुत्व नहीं रहेगा." हाल के वर्षों में जिस तरह से संघ ने भारतीय समाज के बीच आकर संघ को लेकर जो भ्रांतियां फैलाई गईं हैं उसे तोड़ने का काम किया है, उसको देखकर लगता है कि संघ को अब वैचारिक जवाबदेही की चिंता सता रही है. मुसलमानों को संघ का डर दिखाकर इस देश की राजनीतिक पार्टियों ने वोटबैंक की विशाल ईमारत खड़ी की है अब संघ मुसलमानों को ये बताने की कोशिश कर रहा है कि आपको जिस डर के कारण वर्षों तक छला गया दरअसल उसका कोई अस्तित्व ही नहीं है.
राहुल गांधी को जवाब
हाल के दिनों में राजनीतिक कारणों से ही सही लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी संघ को लेकर अक्सर हमलावर रहे हैं. उन्होंने संघ की तुलना मुस्लिम ब्रदरहुड जैसे आतंकवादी संगठन से भी करने में कोई गुरेज नहीं की थी. संघ के ऊपर देश के मूल रूप को बदलने का आरोप राहुल गांधी अक्सर लगाते रहते हैं. मोहन भागवत अपने व्यक्तव्यों से राहुल गांधी को भारतीय जीवन दर्शन की परिभाषा समझाते हुए नजर आ रहे हैं. उनके अनुसार जब पूरी दुनिया सुख की खोज बाहर कर रही थी तब हमारे पूर्वजों ने इसकी खोज अपने अंदर की और वहीँ से अस्तित्व के एकता का मंत्र मिला. उनके बयानों से ये साफ अंदाजा लगाया जा सकता था कि सनातन धर्म ही मूल रूप है, विभिन्न नामकरणों द्वारा आप इसके मूलस्वभाव को बदल नहीं सकते जिसे राहुल गांधी को जवाब के रूप में देखा जा सकता है.
सर सैय्यद अहमद खां की मिसाल
उन्होंने शिक्षाविद्द सर सय्यद अहमद ख़ान का उदाहरण देते हुए कहा कि जब उन्होंने बैरिस्टर की पढ़ाई पूरी की तो लाहौर में आर्य समाज ने उनका अभिनंदन किया. आर्य समाज ने इसलिए अभिनन्दन किया था क्योंकि सर सय्यद अहमद ख़ान मुस्लिम समुदाय के पहले छात्र थे जिन्होंने बैरिस्टर बनने की पढ़ाई की थी. भागवत बताते हैं, "उस समारोह में सर सय्यद अहमद ख़ान ने कहा कि मुझे दुःख है कि आप लोगों ने मुझे अपनों में शुमार नहीं किया." सर सैय्यद अहमद खां ने ही कभी कहा था कि हिन्दू और मुसलमान भारत की दो आँखें हैं. भागवत ने सनातन धर्म की चर्चा मुसलमानों को अपने शरीर का हिस्सा बताने के लिए ही किया था क्योंकि उनके मुताबिक मुस्लिमों के बिना उनका हिंदुत्व अधूरा है.
शिकागो से लेकर दिल्ली के विज्ञान भवन तक संघ प्रमुख ने भारतीय जीवन दर्शन को ध्यान रखते हुए जिस हिंदुत्व की परिभाषा गढ़ी है जिसमें मुस्लिमों के लिए भी उतना ही जगह है जितना हिन्दुओं के लिए वो आने वाले समय में संघ और मुस्लिम समाज के बीच मतभेदों और मनभेदों को दूर करने का काम जरूर करेगा. चुनावी साल में और संघ के अखंड राष्ट्र के सिद्धांत में कभी कोई सम्बन्ध नहीं रहा है. लेकिन इतना तो तय है कि संघ और मुस्लिम समाज की बढ़ती नजदीकियां विपक्षी दलों को रास नहीं आ रही होगी क्योंकि गाहे-बगाहे इसका फायदा भारतीय जनता पार्टी को ही मिलने वाला है.
कंटेंट- विकास कुमार (इंटर्न-आईचौक)
ये भी पढ़ें -
भागवत की सफाई, मोदी का मस्जिद दौरा - देश तो नहीं संघ जरूर बदल रहा है
आख़िर संघ क्यों नहीं चाहता है 'कांग्रेस मुक्त भारत'
क्यों राहुल गांधी को संघ का निमंत्रण सहर्ष स्वीकार करना चाहिए
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.