वीर सावरकर पर लिखी गई एक किताब के विमोचन कार्यक्रम में संघ प्रमुख मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) ने एक बार फिर से मुस्लिम समाज को देश के नाम पर एक होने का संदेश दिया. मोहन भागवत ने कहा कि इतिहास में दारा शिकोह, अकबर हुए हैं, लेकिन औरंगजेब भी हुए जिन्होंने चक्का उल्टा घुमा दिया. उन्होंने कहा कि दारा शिकोह का नाम होना चाहिए, लेकिन औरंगजेब का नहीं होना चाहिए. भागवत ने हाकिम खां सूरी, इब्राहिम खां गार्दी, हसन खान मेवाती जैसे मुस्लिम वीरों का नाम लिये जाने की सिफारिश की. उन्होंने कहा कि क्रांतिकारी अशफाक उल्लाह खान (Ashfaqulla Khan) से जुड़ा एक किस्सा बताते हुए कहा कि भारत में मुस्लिम पुर्नजन्म में विश्वास नहीं करते हैं. लेकिन, जब अशफाक उल्लाह खान इस विषय पर पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि मेरे साथी राम प्रसाद बिस्मिल हिंदू हैं और पुर्नजन्म में विश्वास रखते है. तो, मैं भी मरने के बाद भारत में ही जन्म लूंगा.
आरएसएस चीफ (RSS) मोहन भागवत ने मुस्लिम समाज से आने वाले हाकिम खां सूरी, इब्राहिम खां गार्दी, हसन खान मेवाती, अशफाक उल्लाह खान सरीखे नामों के गूंजने की बात कही. आसान शब्दों में कहा जाए, तो मोहन भागवत कहना चाहते थे कि भारत के मुसलमान, मुहम्मद अली जिन्ना की जगह इन नामों पर गर्व करें और देश की एकता को मजबूत करें. लेकिन, ये तमाम उदाहरण तो सदियों से मुस्लिम (Muslim) समाज के सामने हैं. और, उन्हें आज तक ये नाम दिखाई ही नहीं दिये. तो, संघ प्रमुख मोहन भागवत के ऐसा कहने से क्या बदलाव आ जाएगा? अशफाक उल्लाह खान और औरंगजेब का अंतर बताकर अक्ल पर लगा ताला खोला जा सकता है क्या?
संघ पर तो हिंदूवादी होने का ठप्पा लगा है?
इस बात में शायद ही...
वीर सावरकर पर लिखी गई एक किताब के विमोचन कार्यक्रम में संघ प्रमुख मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) ने एक बार फिर से मुस्लिम समाज को देश के नाम पर एक होने का संदेश दिया. मोहन भागवत ने कहा कि इतिहास में दारा शिकोह, अकबर हुए हैं, लेकिन औरंगजेब भी हुए जिन्होंने चक्का उल्टा घुमा दिया. उन्होंने कहा कि दारा शिकोह का नाम होना चाहिए, लेकिन औरंगजेब का नहीं होना चाहिए. भागवत ने हाकिम खां सूरी, इब्राहिम खां गार्दी, हसन खान मेवाती जैसे मुस्लिम वीरों का नाम लिये जाने की सिफारिश की. उन्होंने कहा कि क्रांतिकारी अशफाक उल्लाह खान (Ashfaqulla Khan) से जुड़ा एक किस्सा बताते हुए कहा कि भारत में मुस्लिम पुर्नजन्म में विश्वास नहीं करते हैं. लेकिन, जब अशफाक उल्लाह खान इस विषय पर पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि मेरे साथी राम प्रसाद बिस्मिल हिंदू हैं और पुर्नजन्म में विश्वास रखते है. तो, मैं भी मरने के बाद भारत में ही जन्म लूंगा.
आरएसएस चीफ (RSS) मोहन भागवत ने मुस्लिम समाज से आने वाले हाकिम खां सूरी, इब्राहिम खां गार्दी, हसन खान मेवाती, अशफाक उल्लाह खान सरीखे नामों के गूंजने की बात कही. आसान शब्दों में कहा जाए, तो मोहन भागवत कहना चाहते थे कि भारत के मुसलमान, मुहम्मद अली जिन्ना की जगह इन नामों पर गर्व करें और देश की एकता को मजबूत करें. लेकिन, ये तमाम उदाहरण तो सदियों से मुस्लिम (Muslim) समाज के सामने हैं. और, उन्हें आज तक ये नाम दिखाई ही नहीं दिये. तो, संघ प्रमुख मोहन भागवत के ऐसा कहने से क्या बदलाव आ जाएगा? अशफाक उल्लाह खान और औरंगजेब का अंतर बताकर अक्ल पर लगा ताला खोला जा सकता है क्या?
संघ पर तो हिंदूवादी होने का ठप्पा लगा है?
इस बात में शायद ही कोई दो राय होगी कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी आरएसएस को हमेशा से ही एक कट्टर हिंदुत्ववादी (Hindutva) संगठन के रूप में पेश किया जाता रहा है. वो अलग बात है कि आरएसएस की ओर से सभी भारतीयों को अपने साथ जोड़ने के लिए हर संभव प्रयास किये जाते रहे हैं. आसान शब्दों में कहा जाए, तो आरएसएस लोगों को जाति, पंथ, धर्म, मजहब से ऊपर उठकर राष्ट्रीयता के नाम पर लोगों को एक करने का प्रयास करता है. संघ प्रमुख मोहन भागवत लंबे समय से देश के मुसलमानों को भारतीयता के नाम पर एकजुट होने का संदेश दे रहे हैं. हालांकि, मोहन भागवत के इन बयानों को देश के तमाम सियासी दल अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों से जोड़कर देख रहे हैं. लेकिन, अगर आंखों पर लगा राजनीतिक चश्मा हटाकर देखा जाए, तो साफ दिखता है कि मोहन भागवत अपने बयानों से भारत के मुसलमानों को राष्ट्रनिर्माण में सहयोगी बनाने की अपेक्षा रखते हैं.
लेकिन, भारत में मुस्लिम समाज को नागरिकता संशोधन कानून यानी सीएए, तीन तलाक, धारा 370 और राम मंदिर से मजहब पर आने वाले खतरे के नाम पर मौलानाओं और राजनीतिक दलों द्वारा भड़काने का काम बड़ी आसानी से कर लिया जाता है. जबकि, सीएए कानून आने के बाद से अभी तक किसी भी मुसलमान की नागरिकता नहीं छिनी है. लेकिन, सीएए के खिलाफ जो माहौल देशभर में बनाया गया था, उसने 70 से ज्यादा जिंदगियों को अपना निशाना बना लिया था.
विचारधारा को लेकर फैलाया गया भ्रम
दरअसल, मुस्लिम समाज के लोगों के बीच एक भ्रम की स्थिति पैदा कर दी गई है कि अगर आरएसएस जैसा हिंदुत्वादी संगठन आगे बढ़ता है, तो यह मुसलमानों के लिए घातक होगा. लेकिन, शायद ही ऐसा कुछ नजर आया है. बीते 7 सालों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा केंद्र में सरकार चला रही है. इस दौरान तीन तलाक जैसे प्रगतिवादी फैसले लेकर मुस्लिम समाज को मुख्यधारा से जोड़ने की कोशिश की गई है. ये ऐसे फैसले हैं, जो मुस्लिम धर्म के बड़े पथ-प्रदर्शक कहे जाने वाले देशों में पहले से ही लिए जा चुके हैं. जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने के बाद घाटी के किसी मुसलमान को परेशान नहीं किया गया. आसान शब्दों में कहें, तो कश्मीरी पंडितों के पलायन की भयावह त्रासदी का उदाहरण भुला दिया गया.
मोहन भागवत ने भाजपा के दिवंगत नेता प्रमोद महाजन का एक किस्सा सुनाते हुए कहा कि नागपुर में एक कार्यक्रम में मुस्लिम समाज के विद्धान और बुद्धिजीवी लोगों को बुलाया गया था. वहां प्रमोद महाजन (Sangh) ने स्पष्ट रूप से कहा था कि हम राम मंदिर वाले हैं और हमको आपके वोटों की बिल्कुल आशा नहीं है. ये सभा आपके वोट पाने के लिए नहीं है. भाजपा मुस्लिम समाज को वोटबैंक के तौर पर नहीं देखती है, बल्कि एक भारतीय नागरिक और भाई के तौर पर देखते हैं. इसलिए हम अपेक्षा करते हैं कि हम सूखी रोटी खाएंगे, तो आधी आपको देंगे. लेकिन, ऐसा नहीं होगा कि हम सूखी रोटी खाएंगे और आपको जलेबी देंगे. आप जिस तरह खाने में हिस्सेदार हैं, उसी तरह एक नागरिक के कर्तव्यों के भी हिस्सेदार हो. मोहन भागवत ने बताया कि प्रमोद महाजन ने साफ किया कि भाजपा तुष्टीकरण की जगह सबकी भलाई की राजनीति करती है.
राष्ट्रीयता के नाम पर एक हो पाएगा भड़कने वाला मुस्लिम तबका?
इस किस्से के सहारे मोहन भागवत ने मुस्लिम समाज को राष्ट्रीयता के नाम पर एक करने के लिए किये जा रहे अपने प्रयासों को एक और बड़ा आयाम देने की कोशिश की है. कहना गलत नहीं होगा कि आरएसएस और भाजपा के दरवाजे प्रगतिवादी मुसलमानों के लिए हमेशा से ही खुले रहे हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) भी कह चुके हैं कि मैं मुस्लिम छात्रों के एक हाथ में कुरान और एक में कंप्यूटर देखना चाहता हूं. लेकिन, कई दशकों से भरी जा रही कट्टरता और राजनीतिक पार्टियों द्वारा किए जाने वाले तुष्टीकरण ने मुस्लिम समाज को जड़ता की ओर धकेल दिया है.
आरएसएस चीफ मोहन भागवत लगातार ऐसे मुस्लिम तबके की ओर अपने बयानों के जरिये हाथ बढ़ा रहे हैं. लेकिन, सीएए (CAA) और तीन तलाक (Triple Talaq) जैसे मुद्दों पर भड़कने वाला मुस्लिम तबका क्या इतना परिपक्व माना जा सकता है कि राष्ट्रीयता के नाम पर एक हो सके. आसान शब्दों में कहें, तो ऐसे मुस्लिमों की अक्ल पर ताला डाल दिया गया है. वरना, अशफाक उल्लाह खान और औरंगजेब के बीच का अंतर दशकों से उनके सामने है, इसे बताने की जरूरत ही क्या पड़नी थी?
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