पशुओं को लेकर एक बार फ़िर इंसानी समाज में आग सुलगने लगी. पश्चिम से लेकर पूर्व तक और उत्तर से लेकर दक्षिण तक हंगामा बरपा हुआ है. सवाल महज़, मोदी सरकार द्वारा मवेशी जानवरों पर कसी गई लगाम से है. सरकार का मवेशी जानवरों की खरीद फरोख्त पर रोक लगाने का स्पष्ट रूप जानवरों को बूचड़खाने में बिक्री को रोकने से जुड़ा है. अबतक जो सिर्फ़ गाय से जुड़ा मामला था वही अब भैस, भेड़, बकरी, ऊंट आदी से जोड़ने के लिए ये क़दम उठाए गए हैं. मोदी सरकार के मवेशी जानवरों के खरीदारों पर लीखित रूप में देने के नियमों को लागू करने पर लोगों में काफ़ी आक्रोश हैं. तो वहीं इससे क्रेंद्र सरकार और राज्य सरकार आमने-सामने आ सकती है.
अगर इन नियमों की वैधानिकता पर बात करें तो सविधान का अनुच्छेद 246(3) स्पष्ट तौर पर मवेशियों के संरक्षण से जुड़े कानून बनाने के अधिकार राज्यों को देता है. कुछ राज्य तो इसका बखूबी पालन कर रहे हैं, लेकिन कुछ राज्यों जैसे:-केरल, पश्चिम बंगाल, अरुणांचल प्रदेश, मिजोरम, मेघालय, नागालैंड, त्रिपुरा और सिक्किम, में अवैध बूचड़खानों और जानवरों की बिक्री पर कोई बंदिश नहीं है.
भारत में कृषि वैसे भी संकट के दौर से गुज़र रही है और ऐसे में मवेशियों की खरीद-फरोख्त पर लगी बंदिश से और संकट में पड़ जाएगी. एक तो कृषि अर्थव्यवस्था में मवेशियों का करोबार इसका अनिवार्य हिस्सा है. किसानों के लिए दुधारू पशु एक निश्चित समयावधि तक ही फायदेमंद रहते हैं. इसके बाद मवेशियों से आर्थिक लाभ तभी होता है जब उन्हें बेचा जाता है. तो ऐसे में किसानों के लिए ये आर्थिक संकट दिख रहा है.
जो कारोबार सदियों से वैध था वह अब नौकरशाही और लाल...
पशुओं को लेकर एक बार फ़िर इंसानी समाज में आग सुलगने लगी. पश्चिम से लेकर पूर्व तक और उत्तर से लेकर दक्षिण तक हंगामा बरपा हुआ है. सवाल महज़, मोदी सरकार द्वारा मवेशी जानवरों पर कसी गई लगाम से है. सरकार का मवेशी जानवरों की खरीद फरोख्त पर रोक लगाने का स्पष्ट रूप जानवरों को बूचड़खाने में बिक्री को रोकने से जुड़ा है. अबतक जो सिर्फ़ गाय से जुड़ा मामला था वही अब भैस, भेड़, बकरी, ऊंट आदी से जोड़ने के लिए ये क़दम उठाए गए हैं. मोदी सरकार के मवेशी जानवरों के खरीदारों पर लीखित रूप में देने के नियमों को लागू करने पर लोगों में काफ़ी आक्रोश हैं. तो वहीं इससे क्रेंद्र सरकार और राज्य सरकार आमने-सामने आ सकती है.
अगर इन नियमों की वैधानिकता पर बात करें तो सविधान का अनुच्छेद 246(3) स्पष्ट तौर पर मवेशियों के संरक्षण से जुड़े कानून बनाने के अधिकार राज्यों को देता है. कुछ राज्य तो इसका बखूबी पालन कर रहे हैं, लेकिन कुछ राज्यों जैसे:-केरल, पश्चिम बंगाल, अरुणांचल प्रदेश, मिजोरम, मेघालय, नागालैंड, त्रिपुरा और सिक्किम, में अवैध बूचड़खानों और जानवरों की बिक्री पर कोई बंदिश नहीं है.
भारत में कृषि वैसे भी संकट के दौर से गुज़र रही है और ऐसे में मवेशियों की खरीद-फरोख्त पर लगी बंदिश से और संकट में पड़ जाएगी. एक तो कृषि अर्थव्यवस्था में मवेशियों का करोबार इसका अनिवार्य हिस्सा है. किसानों के लिए दुधारू पशु एक निश्चित समयावधि तक ही फायदेमंद रहते हैं. इसके बाद मवेशियों से आर्थिक लाभ तभी होता है जब उन्हें बेचा जाता है. तो ऐसे में किसानों के लिए ये आर्थिक संकट दिख रहा है.
जो कारोबार सदियों से वैध था वह अब नौकरशाही और लाल फीताशाही में फंस जाएगा. तो दूसरा इससे, इस क्षेत्र से जुड़े भारतीय अर्थव्यवस्था को भी झटका लग सकता है. भारत भैंस मांस के निर्यात में ब्राजील के बाद दूसरे नंबर पर है इससे भारत को आर्थिक नुकसान भी होगा. 2015-16 में देश का कुल 26,684 करोड़ रुपये का निर्यात किया गया था. इसके साथ ही जानवरों का मांस, चमड़ा, साबुन, ऑटोमोबाइल ग्रीस आदि से जुड़े उद्योग मवेशिय उत्तपाद कच्चे माल के रूप में इस्तेमाल करते हैं. ऐसे में लाखों की तादात में रोज़गार जाने की आशंका जताई जा सकती है. इससे साफ जाहिर होता है कि यह कानून संघ-केंद्र संबंधों के संतुलन को भी प्रभावित करेगा और राज्य केंद्र द्वारा इसे जबरन थोपे जाना समझेंगें.
इसमें से कुछ बड़े राज्य जैसे:- यूपी और महाराष्ट्र आदि राज्य जो बीजेपी से जुड़ी है वो समर्थन तो कर रही है लेकिन, ऐसे नियमों से उनके राज्य पर भी व्यापार और रोज़गार से जुड़ा संकट पैदा हो सकती है. यह संकट निश्चित रूप से भवीष्य में मोदी सरकार के लिए सवाल खड़ा कर देगा कि कैसे राज्यों के व्यापार को बढ़ाया जाए? कैसे मवेशियों की खरीद-फरोख्त और बूचड़खानों का बिजनेस और इतने रोजगार का संकट सुलझेगा? क्या राज्य सरकारें केंद्र से विद्रोह कर सकती हैं? सवाल कई हैं और उसका जवाब अभी किसी के पास नहीं...
कंटेंट- सुंदरम झा (इंटर्न, आईचौक)
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