रूस और यूक्रेन के ताजा टकराव ने वैश्विक ताकतों के बीच एक बार फिर तनाव पैदा कर दिया है, जो न्यू कोल्ड वॉर की आहट की द्योतक है. यूक्रेन के तीन नौसैनिक जहाजों पर हमले के बाद रूस और यूक्रेन के बीच तनाव पुनः चरम पर पहुंच गया है. रूस ने क्रीमियाई प्रायद्वीप के पास यूक्रेन के तीन जहाजों पर हमला कर उन्हें अपने कब्जे में ले लिया है. इस अप्रत्याशित घटनाक्रम को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने तत्काल बैठक भी बुलाई, जिसमें अमेरिकी राजदूत निक्की हेली ने रूस को चेतावनी दी. यूक्रेन के राष्ट्रपति पेट्रो पोरोशेंको की पहल पर यूक्रेन की संसद ने सीमावर्ती क्षेत्रों में मार्शल लॉ लगाने की मंजूरी दी है. मार्शल लॉ लगने के बाद वहां सुरक्षा कर्मियों की शक्तियों में अप्रत्याशित वृद्धि हो गई है. साथ ही मार्शल लॉ के बाद सेना को युद्ध के लिए तैयार रहने के निर्देश दिए गए हैं.
रूस और यूक्रेन के बीच क्रीमिया को लेकर तनाव चलता आ रहा है. 2003 की संधि के मुताबिक रूस और यूक्रेन के बीच कर्च जलमार्ग और ओजोव सागर के बीच जल सीमाएं बंटी हुई हैं.
आखिर क्रीमिया संकट क्या है?
रूस और यूक्रेन के ताजा विवाद ने क्रीमिया संकट और भी गहरा बना दिया है. 2014 में जब यूक्रेन में क्रांति हुई थी और रूस समर्थक राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच को पद छोड़ना पड़ा था, तब रूस ने यूक्रेन में हस्तक्षेप करके क्रीमिया में रूसी सेना भेजी और उसे अपने कब्जे में लिया. इसके पीछे रूस ने तर्क दिया कि वहां रूसी मूल के लोग बहुतायत में हैं, जिनके हितों की रक्षा करना रूस की जिम्मेदारी है. क्रीमिया में सबसे ज्यादा संख्या रूसियों की है. इसके अलावा वहां यूक्रेनी, तातर, आर्मेनियाई, पॉलिश और मोल्दावियाई...
रूस और यूक्रेन के ताजा टकराव ने वैश्विक ताकतों के बीच एक बार फिर तनाव पैदा कर दिया है, जो न्यू कोल्ड वॉर की आहट की द्योतक है. यूक्रेन के तीन नौसैनिक जहाजों पर हमले के बाद रूस और यूक्रेन के बीच तनाव पुनः चरम पर पहुंच गया है. रूस ने क्रीमियाई प्रायद्वीप के पास यूक्रेन के तीन जहाजों पर हमला कर उन्हें अपने कब्जे में ले लिया है. इस अप्रत्याशित घटनाक्रम को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने तत्काल बैठक भी बुलाई, जिसमें अमेरिकी राजदूत निक्की हेली ने रूस को चेतावनी दी. यूक्रेन के राष्ट्रपति पेट्रो पोरोशेंको की पहल पर यूक्रेन की संसद ने सीमावर्ती क्षेत्रों में मार्शल लॉ लगाने की मंजूरी दी है. मार्शल लॉ लगने के बाद वहां सुरक्षा कर्मियों की शक्तियों में अप्रत्याशित वृद्धि हो गई है. साथ ही मार्शल लॉ के बाद सेना को युद्ध के लिए तैयार रहने के निर्देश दिए गए हैं.
रूस और यूक्रेन के बीच क्रीमिया को लेकर तनाव चलता आ रहा है. 2003 की संधि के मुताबिक रूस और यूक्रेन के बीच कर्च जलमार्ग और ओजोव सागर के बीच जल सीमाएं बंटी हुई हैं.
आखिर क्रीमिया संकट क्या है?
रूस और यूक्रेन के ताजा विवाद ने क्रीमिया संकट और भी गहरा बना दिया है. 2014 में जब यूक्रेन में क्रांति हुई थी और रूस समर्थक राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच को पद छोड़ना पड़ा था, तब रूस ने यूक्रेन में हस्तक्षेप करके क्रीमिया में रूसी सेना भेजी और उसे अपने कब्जे में लिया. इसके पीछे रूस ने तर्क दिया कि वहां रूसी मूल के लोग बहुतायत में हैं, जिनके हितों की रक्षा करना रूस की जिम्मेदारी है. क्रीमिया में सबसे ज्यादा संख्या रूसियों की है. इसके अलावा वहां यूक्रेनी, तातर, आर्मेनियाई, पॉलिश और मोल्दावियाई हैं.
6 मार्च 2014 को क्रीमियाई संसद ने रूसी संघ का हिस्सा बनने के पक्ष में मतदान किया था. इसी जनमत संग्रह के परिणामों को आधार बनाकर 18 मार्च 2018 को क्रीमिया का रूस में विलय हो गया. यूक्रेन सहित संपूर्ण पश्चिमी देशों ने इस पर गंभीर आपत्ति प्रकट की थी. उल्लेखनीय है कि क्रीमिया 17 वीं सदी से रूस का हिस्सा रहा है, लेकिन 1954 में तत्कालीन सोवियत संघ के राष्ट्रपति ख्रुश्चेव ने यूक्रेन को भेंट के तौर पर क्रीमिया को दिया था.
क्रीमिया संकट के बाद संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, यूरोपियन यूनियन इत्यादि देशों के तरफ से रूस पर कठोर आर्थिक प्रतिबंध लगाए गए, परंतु रूस पर उसका कुछ ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ा. ऐसे में अब पुनः रूस ने क्रीमियाई प्रायद्वीप में आक्रामकता प्रदर्शित की है.
आखिर क्रीमियाई प्रायद्वीप में रूसी आक्रमकता का कारण क्या है?
रूस वर्तमान में स्वयं को वैश्विक शक्ति के तौर पर स्थापित कर रहा है. रूसी राष्ट्रपति पुतिन का कहना है कि वे रूस को पुनः सोवियत संघ की तरह शक्तिशाली भूमिका में देखना चाहते हैं. रूस ने क्रीमिया के बाद सीरिया संकट में अपना वैश्विक शक्ति प्रदर्शन किया. अमेरिका और तमाम पश्चिमी देशों के एकजुट होने के बावजूद सीरिया में रूसी विजय अभियान जारी है. इससे रूसी मनोबल में वृद्धि हुई है. यही कारण है कि वैश्विक तमाम चेतावनियों के बावजूद क्रीमियाई क्षेत्र में रूसी आक्रमकता में लगातार वृद्धि जारी है.
क्रीमिया का रणनीतिक महत्व
रूस, क्रीमिया से पहले केवल जलमार्ग द्वारा ही संबद्ध था. ऐसे में क्रीमिया में रूस ने अपनी पहुंच में वृद्धि के लिए कर्च स्ट्रेट पर एक पुल का निर्माण किया है. अजोव सागर जमीन से घिरा हुआ है और काला सागर से तंग कर्च स्ट्रेट (जलसंधि) के रास्ते से होकर ही इसमें प्रवेश किया जा सकता है. रूस अब इस पुल के माध्यम से ही कर्च स्ट्रेट पर यूक्रेन के बंदरगाहों से आ रहे जहाजों की निगरानी कर रहा है, जिसका यूक्रेन विरोध कर रहा है. रूस, यूक्रेनी जहाजों की जांच को सुरक्षा कारणों से आवश्यक मानता है, क्योंकि यूक्रेन के कट्टरपंथियों से पुल को खतरा हो सकता है. अजोव सागर क्रीमिया के पूर्व में और यूक्रेन के दक्षिण में है. इसके उत्तरी किनारों पर यूक्रेन के दो बंदरगाह हैं- बर्डयांस्क और मेरीपॉल. ये बंदरगाह यूक्रेन की अर्थव्यवस्था के लिए बेहद महत्वपूर्ण है. दरअसल, कर्च स्ट्रेट के पुल के नीचे समुद्री परिवहन को नियंत्रित कर रूस यूक्रेन की अर्थव्यवस्था को नियंत्रित करने का प्रयास कर रहा है. इस माह की शुरुआत में यूरोपियन यूनियन भी रूस को यूक्रेन जहाजों की निगरानी के खिलाफ कदम उठाने की चेतावनी दी थी. यूरोपियन यूनियन का कहना है कि रूसी व्यवहार स्वतंत्र नौपरिवहन का उल्लंघन है. इन्हीं विवादों के बाद रूस और यूक्रेन के बीच नया विवाद उभरा है.
यूक्रेन विवाद का अंतर्राष्ट्रीय राजनीति पर प्रभाव और न्यू कोल्ड वॉर की आगाज
क्रीमियाई क्षेत्र में रूस ने यूक्रेन से पुनः टकराकर पूर्वी यूरोप में न केवल अपना शक्ति प्रदर्शन किया है, अपितु नाटो सेनाओं को सीमा से दूर किया है. इसके अतिरिक्त ब्लैक सी और अजोव सागर में रूसी शक्ति में वृद्धि हुई है. क्रीमियाई क्षेत्र में रूसी आक्रामकता ने विश्व पटल पर यूएसए के मिलिट्री पावर की अवधारणा को मनोवैज्ञानिक तौर पर तोड़ा है. यहां ध्यान देना चाहिए कि इस क्षेत्र में अमेरिका सहित कई पश्चिमी देशों ने रूस को नियंत्रित करने के लिए न्यूक्लियर मिसाइलों तक की तैनाती की है, उसके बाद रूस द्वारा यूक्रेन के तीन नौसैनिक जहाजों और 24 नौसेनिकों की गिरफ्तारी से नव शीत युद्ध की आहट स्पष्ट है, जहां चीन का भी घोषित समर्थन रूस को प्राप्त है. इस संपूर्ण प्रकरण में चीन के भी मनोबल में वृद्धि की है और रूस-चीन गठबंधन का और भी मजबूत होना स्वाभाविक है.
वर्तमान में अमेरिका और चीन का ट्रेड व्यापार काफी खतरनाक स्तर पर जारी है. अभी इस ट्रेड वॉर में चीन को नुकसान ज्यादा हो रहा है, साथ ही वह अमेरिका से वार्ता के लिए भी तैयार है, लेकिन अमेरिका सख्त मुद्रा में है. परंतु यूक्रेन विवाद के बाद यूएसए वार्ता के लिए झुक सकता है. अगर ऐसा होता है, तो यह भारत सहित संपूर्ण विश्व के अर्थव्यवस्था के लिए लाभदायक होगा. लेकिन अगर यूएसए काफी कठोर रुख कायम कर नाटो देशों को पुनः एकजुट कर रूस पर दबाव बनाने का प्रयास करता है, तो दुनिया को ट्रेड वॉर के बाद अब न्यू कोल्ड वॉर का भी सामना करना पड़ सकता है.
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