रूस-यूक्रेन युद्ध 13वें दिन भी जारी है. इस दौरान रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध रोकने को लेकर तीन बार बातचीत हो चुकी है. लेकिन, मामला सिफर ही रहा है. हालांकि, इस बातचीत में यूक्रेन में फंसे लोगों के लिए मानवीय गलियारा बनाने पर सहमति बनती नजर आ रही है. इसके बावजूद युद्ध के जल्द खत्म होने के आसार अभी भी नहीं हैं. क्योंकि, रूस की ओर से मिसाइलों और बमों से यूक्रेन के शहरों को तबाह किया जा रहा है. और, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन अपनी शर्तों को मनवाए बिना शायद ही युद्ध रोकने के पक्षधर होंगे. वहीं, यूक्रेन के राष्ट्रपति वलाडिमीर जेलेंस्की भी बिना डरे अपने नागरिकों से रूसी सेना के खिलाफ युद्ध छेड़े रखने की अपील कर रहे हैं. आसान शब्दों में कहा जाए, तो इस युद्ध में रूस एक विलेन के तौर पर नजर आ रहा है. जिसने एक संप्रभु राष्ट्र पर हमला कर उसे नेस्तनाबूद करने की मंशा पाल ली है. और, दुनिया भर के लोगों की हमदर्दी यूक्रेन के साथ है. लेकिन, सही मायनों में यूक्रेन को युद्ध में झोंकने के लिए वलाडिमीर जेलेंस्की ही जिम्मेदार हैं.
नाटो में शामिल होने की जिद न करते, तो क्या होता?
यूक्रेन के राष्ट्रपति वलाडिमीर जेलेंस्की अपने देश की सुरक्षा के लिए पश्चिमी देशों से करीबी बढ़ाने के लिए सैन्य संगठन नाटो में शामिल होने की कोशिशें कर रहे थे. क्योंकि, जो रूस पहले ही क्रीमिया और जॉर्जिया में जबरन घुस चुका हो. उससे बचने के लिए जेलेंस्की द्वारा किसी दूसरे विकल्प को खोजना जरूरी था. लेकिन, ये विकल्प पश्चिमी देशों का सैन्य संगठन नाटो ही हो सकता है. तो, ऐसा मानना केवल वलाडिमीर जेलेंस्की की नासमझी ही कहा जा सकता है. क्योंकि, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर...
रूस-यूक्रेन युद्ध 13वें दिन भी जारी है. इस दौरान रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध रोकने को लेकर तीन बार बातचीत हो चुकी है. लेकिन, मामला सिफर ही रहा है. हालांकि, इस बातचीत में यूक्रेन में फंसे लोगों के लिए मानवीय गलियारा बनाने पर सहमति बनती नजर आ रही है. इसके बावजूद युद्ध के जल्द खत्म होने के आसार अभी भी नहीं हैं. क्योंकि, रूस की ओर से मिसाइलों और बमों से यूक्रेन के शहरों को तबाह किया जा रहा है. और, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन अपनी शर्तों को मनवाए बिना शायद ही युद्ध रोकने के पक्षधर होंगे. वहीं, यूक्रेन के राष्ट्रपति वलाडिमीर जेलेंस्की भी बिना डरे अपने नागरिकों से रूसी सेना के खिलाफ युद्ध छेड़े रखने की अपील कर रहे हैं. आसान शब्दों में कहा जाए, तो इस युद्ध में रूस एक विलेन के तौर पर नजर आ रहा है. जिसने एक संप्रभु राष्ट्र पर हमला कर उसे नेस्तनाबूद करने की मंशा पाल ली है. और, दुनिया भर के लोगों की हमदर्दी यूक्रेन के साथ है. लेकिन, सही मायनों में यूक्रेन को युद्ध में झोंकने के लिए वलाडिमीर जेलेंस्की ही जिम्मेदार हैं.
नाटो में शामिल होने की जिद न करते, तो क्या होता?
यूक्रेन के राष्ट्रपति वलाडिमीर जेलेंस्की अपने देश की सुरक्षा के लिए पश्चिमी देशों से करीबी बढ़ाने के लिए सैन्य संगठन नाटो में शामिल होने की कोशिशें कर रहे थे. क्योंकि, जो रूस पहले ही क्रीमिया और जॉर्जिया में जबरन घुस चुका हो. उससे बचने के लिए जेलेंस्की द्वारा किसी दूसरे विकल्प को खोजना जरूरी था. लेकिन, ये विकल्प पश्चिमी देशों का सैन्य संगठन नाटो ही हो सकता है. तो, ऐसा मानना केवल वलाडिमीर जेलेंस्की की नासमझी ही कहा जा सकता है. क्योंकि, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने यूक्रेन के नाटो में शामिल होने को लेकर लगातार चेताया कि वलाडिमीर जेलेंस्की की कोशिशों को रूस किसी भी हाल में कामयाब नहीं होने देगा. इतना ही नहीं, पश्चिमी देशों के साथ जेलेंस्की की सैन्य संगठन नाटो में एंट्री पाने के लिए बातचीत तेज होने के साथ ही यूक्रेन की सीमाओं पर रूस के सैनिकों की भारी तैनाती शुरू हो गई थी. रूस ने मिसाइलों से लेकर कई घातक हथियार यूक्रेन की सीमा पर लगा दिए थे.
ऐसे हालात में जब वलाडिमीर जेलेंस्की को पता था कि यूक्रेन की कोई भी हरकत रूस को भड़का सकती है. उन्होंने पश्चिमी देशों की शह पाकर व्लादिमीर पुतिन को लेकर उकसावे वाले कई बयान दिए. जबकि, पुतिन लगातार यूक्रेन के राष्ट्रपति से कहते रहे कि 'पश्चिमी देशों से दूरी बनाकर रखिए.' लिखी सी बात है कि जो सैन्य संगठन नाटो सोवियत संघ के टूटने की वजह बना हो. उसे व्लादिमीर पुतिन अपने दरवाजे पर दस्तक देने वाला पड़ोसी क्यों बनाएंगे? इतना ही नहीं, एक ऐसा पड़ोसी जो पहले से ही अगल-बगल के कई घरों में बिना रोक-टोक के अपनी आवाजाही को सुनिश्चित कर चुका है. और, कहीं न कहीं रूस की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बनता जा रहा हो. तो, राष्ट्रीय सुरक्षा का मसला जितना अहम यूक्रेन के लिए था, उतना ही जरूरी रूस के लिए भी था. अगर जेलेंस्की रूस के साथ ही अपने संबंधों को सुधारने की कोशिश करते, तो बहुत हद तक संभव था कि यूक्रेन के लिए कई मायनों में यह फायदेमंद रहता.
पश्चिमी देशों की आलोचना से क्या होगा?
ये खासकर तब और महत्वपूर्ण हो जाता है, जब यूक्रेन ने अपने परमाणु हथियार खुद ही रूस को सौंप दिए हों. आसान शब्दों में कहा जाए, तो यूक्रेन के राष्ट्रपति वलाडिमीर जेलेंस्की को अपने दुश्मन की ताकत का अंदाजा लगाकर उससे भिड़ने का कदम उठाना चाहिए था. नाकि, अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस जैसे पश्चिमी देशों के बलबूते पर युद्ध में कूदने का फैसला ले लेना चाहिए था. आखिरकार वही हुआ है, जिसकी पहले से ही उम्मीद जताई जा रही थी. तमाम पश्चिमी देशों ने अपने हाथ खड़े कर दिए हैं. और, रूस पर अलग-अलग तरीकों से कड़े प्रतिबंध लगाकर अपने दायित्वों से छुटकारा पा लिया है. यही वजह है कि अब वलाडिमीर जेलेंस्की पश्चिमी देशों को उलाहना देने में लगे हैं. कभी कह रहे हैं कि कोई मदद नहीं करने आ रहा है. तो, कभी कह रहे हैं कि पश्चिमी देशों ने मुंह मोड़ लिया है. हालांकि, पश्चिमी देशों की ओर से यूक्रेन को भारी मात्रा में हथियार उपलब्ध कराए गए हैं. लेकिन, यूक्रेन को युद्ध में पश्चिमी देशों के सहयोग न मिलने पर उनकी आलोचना करने से शायद ही कोई नतीजा निकलेगा.
क्या जेलेंस्की के खिलाफ बनने लगा माहौल?
यूक्रेन में पहले से ही रूस समर्थक नागरिकों की एक अच्छी-खासी तादात है. हालांकि, ये अल्पसंख्यक की श्रेणी में ही आते हैं. लेकिन, रूसी भाषा बोलने वाले ये लोग रूस के समर्थक कहे जा सकते हैं. आसान शब्दों में कहा जाए, तो डोनेत्स्क और लुहांस्क की तरह ही यूक्रेन के अलग-अलग हिस्सों में रूस समर्थक अलगाववादियों की आबादी अब खुलकर जेलेंस्की के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं. युद्ध की वजह से कहीं न कहीं यूक्रेन में जेलेंस्की के खिलाफ ही माहौल बनने लगा है. इन बीच क्रेमेलिन ने युद्ध रोकने के लिए पुतिन की शर्तों के बारे में जानकारी दी है कि यूक्रेन को अपनी सेना को खत्म करना होगी, संविधान में बदलाव कर हमेशा के लिए तटस्थ देश बनना होगा, क्रीमिया को रूस का हिस्सा मानना होगा, डोनेत्स्क और लुहांस्क को एक अलग देश के रूप में स्वीकार करना होगा. आसान शब्दों में कहा जाए, तो वलाडिमीर जेलेंस्की की जिद और रूस के हमले को लेकर मूर्खतापूर्ण आंकलन ने यूक्रेन को युद्ध में झोंक दिया है. जबकि, बीच का रास्ता निकाला जा सकता था.
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