जिस तरह उत्तर प्रदेश में राम मंदिर एक चुनावी मुद्दा है, उसी तरह केरल में सबरीमला विवाद भी बड़ा मुद्दा बन गया है. हर राजनीतिक पार्टी वोटरों को लुभाने के लिए उन्हें हक दिलाने की बात कहती दिख रही है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ तो केरल में आरएसएस के बैनर तले बहुत से हिंदू संगठनों ने विरोध प्रदर्शन भी किया था. एन चुनाव के समय इसका असर भी दिख रहा है. सबरीमला भक्तों के लिए बीजेपी फेवरेट पार्टी बनकर उभरी है, लेकिन उसे कितने वोट हासिल होंगे इस पर संशय है.
इस दक्षिण राज्य में अब तक वामपंथी गठबंधन LDF और कांग्रेस नीत गठबंधन DF के बीच ही मुकाबला होता आया है. बीजेपी ने हाल ही में अपनी सक्रियता बढ़ाई है. अब तक कन्नूर में आरएसएस/बीजेपी कार्यकर्ताओं की लेफ्ट नेताओं के साथ हिंसक झड़प की खबरें आती रहीं, लेकिन सबरीमला विवाद के बाद लेफ्ट और बीजेपी के बीच संघर्ष का प्लेटफॉर्म बदल गया. सबरीमला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को अमल में लाने के लिए केरल की लेफ्ट सरकार ने जिस तरह से काम किया, उससे इस मंदिर के श्रद्धालुओं में खासी नाराजगी थी. बीजेपी ने इस मामले की संवेदनशीलता को बखूबी समझा. और लोगों के दिलों में जगह बनाई. लेकिन पार्टी को पूरे राज्य में अपना राजनीतिक संगठन खड़ा करने के लिए वक्त न मिला.
बीजेपी के राज्य में कमजोर संगठन का फायदा कांग्रेस ने उठाया. पहले केरल से कांग्रेस के बड़े नेता शशि थरूर ने पार्टी से अलग जाते हुए सबरीमला मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले से ऐतराज जताया. उन्होंने सबरीमला के श्रद्धालुओं की भावना काे समझे जाने की वकालत की. शशि थरूर समझ गए थे कि यूपी में बीजेपी ने जैसे राम मंदिर निर्माण को मुद्दा बनाकर जड़ें जमा लीं, वैसे ही कहीं केरल में भी न हाे जाए. सबरीमला मुद्दे पर कांग्रेस का केरल में यह सॉफ्ट उसे लेफ्ट के विरोध में ले गया, जहां बीजेपी पहले से खड़ी थी.
लोकसभा चुनाव में केरल की जनता के सामने लेफ्ट विरोधी के रूप में दो विकल्प हैं. पहला...
जिस तरह उत्तर प्रदेश में राम मंदिर एक चुनावी मुद्दा है, उसी तरह केरल में सबरीमला विवाद भी बड़ा मुद्दा बन गया है. हर राजनीतिक पार्टी वोटरों को लुभाने के लिए उन्हें हक दिलाने की बात कहती दिख रही है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ तो केरल में आरएसएस के बैनर तले बहुत से हिंदू संगठनों ने विरोध प्रदर्शन भी किया था. एन चुनाव के समय इसका असर भी दिख रहा है. सबरीमला भक्तों के लिए बीजेपी फेवरेट पार्टी बनकर उभरी है, लेकिन उसे कितने वोट हासिल होंगे इस पर संशय है.
इस दक्षिण राज्य में अब तक वामपंथी गठबंधन LDF और कांग्रेस नीत गठबंधन DF के बीच ही मुकाबला होता आया है. बीजेपी ने हाल ही में अपनी सक्रियता बढ़ाई है. अब तक कन्नूर में आरएसएस/बीजेपी कार्यकर्ताओं की लेफ्ट नेताओं के साथ हिंसक झड़प की खबरें आती रहीं, लेकिन सबरीमला विवाद के बाद लेफ्ट और बीजेपी के बीच संघर्ष का प्लेटफॉर्म बदल गया. सबरीमला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को अमल में लाने के लिए केरल की लेफ्ट सरकार ने जिस तरह से काम किया, उससे इस मंदिर के श्रद्धालुओं में खासी नाराजगी थी. बीजेपी ने इस मामले की संवेदनशीलता को बखूबी समझा. और लोगों के दिलों में जगह बनाई. लेकिन पार्टी को पूरे राज्य में अपना राजनीतिक संगठन खड़ा करने के लिए वक्त न मिला.
बीजेपी के राज्य में कमजोर संगठन का फायदा कांग्रेस ने उठाया. पहले केरल से कांग्रेस के बड़े नेता शशि थरूर ने पार्टी से अलग जाते हुए सबरीमला मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले से ऐतराज जताया. उन्होंने सबरीमला के श्रद्धालुओं की भावना काे समझे जाने की वकालत की. शशि थरूर समझ गए थे कि यूपी में बीजेपी ने जैसे राम मंदिर निर्माण को मुद्दा बनाकर जड़ें जमा लीं, वैसे ही कहीं केरल में भी न हाे जाए. सबरीमला मुद्दे पर कांग्रेस का केरल में यह सॉफ्ट उसे लेफ्ट के विरोध में ले गया, जहां बीजेपी पहले से खड़ी थी.
लोकसभा चुनाव में केरल की जनता के सामने लेफ्ट विरोधी के रूप में दो विकल्प हैं. पहला बीजेपी, और दूसरा कांग्रेस. केरल का राजनीतिक समीकरण जानने के लिए scroll ने कोझीकोड, इर्नाकुलम, कोट्टायम, पतनमथिट्टा और तिरुवनंतपुरम के कुछ अय्यप्पा भक्तों से बात की, जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विरोध में प्रदर्शन किया था. बहुत से भक्तों ने माना कि भाजपा ही वह पार्टी है जो हिंदुओं के बारे में सोचती है, लेकिन जब पूछा गया कि वो वोट किसे देंगे, तो उन्होंने कांग्रेस का नाम लिया. यानी भाजपा ही उनकी फेवरेट पार्टी है, लेकिन वह वोट देंगे कांग्रेस को. ऐसे क्यों?
फिलहाल भाजपा नहीं, कांग्रेस को वोट
कोई भी शख्स अपनी ही फेवरेट पार्टी को वोट देता है, लेकिन भगवान अय्यप्पा के भक्तों की बात थोड़ा हैरान करती है. दरअसल, उनका तर्क है कि उनका मकसद अभी भाजपा को जिताना नहीं, बल्कि लेफ्ट को हराना है. वह कहते हैं कि राज्य में भाजपा से कहीं अच्छी स्थिति में कांग्रेस है और अगर उन्होंने कांग्रेस को वोट नहीं दिया तो हो सकता है कि एक बार फिर से पिनराई विजयन को ही मुख्यमंत्री देखना पड़े. कांग्रेस भले ही वोट पाकर खुश हो जाए, लेकिन मतदाताओं की फेवरेट पार्टी तो भाजपा ही है. अय्यप्पा भक्त इस बात से नाराज हैं कि पिनराई विजयन ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ रिव्यू पिटिशन भी नहीं डाली, जिसे वो हिंदुओं के साथ अन्याय मानते हैं. खासकर पतमनथिट्टा और तिरुवनंतपुरम के लोग तो कांग्रेस को ही वोट देना चाहते हैं.
अब समझिए चुनावी समीकरण को
केरल की कुल आबादी में 52 फीसदी हिंदू, 26 फीसदी मुस्लिम और 18 फीसदी ईसाई हैं. हिंदुओं में से 16 फीसदी उच्च जाति के नायर हैं. ये कम्युनिटी पारंपरिक रूप से कांग्रेस को ही वोट देती आई है. सबरीमला को लेकर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विरोध में प्रदर्शन कर रहे लोगों में सबसे आगे नायर ही थे. अब चुनाव के दौरान इस सोसाएटी ने कांग्रेस, भाजपा और लेफ्ट तीनों ही पार्टियों से एक दूरी बना ली है और सभी को कहा गया है वह सही पार्टी को चुनें.
क्या कह रहे हैं लोग?
55 साल की सौम्या नायर ने सबरीमला के लिए हर विरोध प्रदर्शन में हिस्सा लिया. वह कहती हैं कि राज्य में कांग्रेस की स्थिति भाजपा के मुकाबले काफी मजबूत है. ऐसे में भाजपा को वोट देने से लेफ्ट को हराना आसान नहीं होगा. यानी लोग कांग्रेस को जिताना नहीं चाह रहे हैं, बल्कि लेफ्ट को हराना चाह रहे हैं और इसी वजह से भाजपा अलग-थलग सी हो गई है.
नायर सर्विस सोसाएटी के जनरल सेक्रेटरी जी सुकुमारन नायर 8 अप्रैल को ही इस बात की शिकायत कर चुके हैं कि भाजपा ने सबरीमला के भक्तों के लिए कुछ नहीं किया. संसद में उनके पास बहुमत है, लेकिन भगवान अय्यप्पा के भक्तों के लिए उन्होंने कोई कदम नहीं उठाया. वह सवाल पूछते हैं कि अब वह श्रद्धालुओं के हितों की रक्षा करने का वादा क्यों कर रहे हैं?
लोकसभा चुनाव से पहले अपने भाषणों में पीएम मोदी से राहुल गांधी तक अप्रत्यक्ष रूप से सबरीमला मामले का जिक्र जरूर कर रहे हैं. अप्रत्यक्ष रूप से इसलिए क्योंकि अगर सीधा बोल दिया तो आचार संहिता का उल्लंघन हो जाएगा. पीएम मोदी हर संभव कोशिश कर रहे हैं वहां के वोटर्स को लुभाने की, लेकिन मतदाताओं का मकसद तो लेफ्ट को हराना है, ना कि किसी को जिताना. ठीक वैसा ही, जैसे सारे दल मिलकर महागठबंधन बनाकर मोदी सरकार को सत्ता से बाहर करना चाहते थे. खैर, केरल में सबरीमला भक्तों के वोट कितने निर्णायक साबित होंगे, ये तो 23 मई को आने वाले नतीजे ही बताएंगे.
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