कांग्रेस के चिंतन शिविर में आगे जो भी हो, सचिन पायलट (Sachin Pilot) तो अभी से चर्चा में छाये हुए हैं. कांग्रेस में युवाओं को ज्यादा अहमियत दिये जाने वाले अपने बयानों को लेकर सचिन पायलट अपनी तरफ से संकेतों में बहुत कुछ बताने की कोशिश कर रहे हैं.
राजस्थान के उदयपुर में तीन दिन तक चलने वाले कांग्रेस के चिंतन शिविर को लेकर अब तक तो राहुल गांधी दिल्ली से ट्रेन से जाने की ही चर्चा रही, लेकिन अब चिंतन शिविर स्थल के आस पास लगे सचिन पायलट के बैनर और पोस्टर हटाये जाने की ज्यादा चर्चा होने लगी है.
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) के भाषण के साथ शुरू होने वाले चिंतन शिविर के लिए 6 कमेटियां बनायी गयी हैं. संगठनात्मक मुद्दों के साथ साथ खेती-किसानी, सामाजिक सशक्तिकरण, यूथ एंड एम्पावरमेंट, राजनीतिक और आर्थिक मुद्दों के लिए ऐसे अलग अलग पैनल बनाये गये हैं. आर्थिक पैनल के संयोजक पी. चिदंबरम बनाये गये हैं और राजस्थान से सचिन पायलट को सदस्य बनाया गया है.
गुजरात और कर्नाटक जैसे राज्यों में भी हाल के कुछ दिनों में कांग्रेस के चिंतन शिविर आयोजित किये गये - और राहुल गांधी ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया. गुजरात और कर्नाटक दोनों ही चिंतन शिविरों में राहुल गांधी का नया रूप देखने में आया - मोटिवेशनल स्पीकर के रूप में.
मान कर चलना चाहिये कि उदयपुर चिंतन शिविर में 2022 के विधानसभा चुनावों सहित पहले के चुनावों में हुई हार की भी समीक्षा होगी ही - और भविष्य की बात करें तो 2024 का आम चुनाव सबसे बड़ा एजेंडा लगता है. जो पैनल बनाये गये हैं, सभी से ऐसे प्रस्तावों की उम्मीद तो होगी ही कि जैसे भी संभव हो सके कांग्रेस को संघ और बीजेपी से मुकाबले के लिए तैयार किया जा सके.
सचिन पायलट की ज्यादा उम्मीद करने की वजह लंबे अरसे बाद सोनिया गांधी से महीना भर पहले हुई मुलाकात भी लगती है. ये सही है कि राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) अपनी तरफ से सचिन पायलट को बख्शने वाले मूड में नहीं लगते - लेकिन आत्मविश्वास से भरे सचिन पायलट...
कांग्रेस के चिंतन शिविर में आगे जो भी हो, सचिन पायलट (Sachin Pilot) तो अभी से चर्चा में छाये हुए हैं. कांग्रेस में युवाओं को ज्यादा अहमियत दिये जाने वाले अपने बयानों को लेकर सचिन पायलट अपनी तरफ से संकेतों में बहुत कुछ बताने की कोशिश कर रहे हैं.
राजस्थान के उदयपुर में तीन दिन तक चलने वाले कांग्रेस के चिंतन शिविर को लेकर अब तक तो राहुल गांधी दिल्ली से ट्रेन से जाने की ही चर्चा रही, लेकिन अब चिंतन शिविर स्थल के आस पास लगे सचिन पायलट के बैनर और पोस्टर हटाये जाने की ज्यादा चर्चा होने लगी है.
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) के भाषण के साथ शुरू होने वाले चिंतन शिविर के लिए 6 कमेटियां बनायी गयी हैं. संगठनात्मक मुद्दों के साथ साथ खेती-किसानी, सामाजिक सशक्तिकरण, यूथ एंड एम्पावरमेंट, राजनीतिक और आर्थिक मुद्दों के लिए ऐसे अलग अलग पैनल बनाये गये हैं. आर्थिक पैनल के संयोजक पी. चिदंबरम बनाये गये हैं और राजस्थान से सचिन पायलट को सदस्य बनाया गया है.
गुजरात और कर्नाटक जैसे राज्यों में भी हाल के कुछ दिनों में कांग्रेस के चिंतन शिविर आयोजित किये गये - और राहुल गांधी ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया. गुजरात और कर्नाटक दोनों ही चिंतन शिविरों में राहुल गांधी का नया रूप देखने में आया - मोटिवेशनल स्पीकर के रूप में.
मान कर चलना चाहिये कि उदयपुर चिंतन शिविर में 2022 के विधानसभा चुनावों सहित पहले के चुनावों में हुई हार की भी समीक्षा होगी ही - और भविष्य की बात करें तो 2024 का आम चुनाव सबसे बड़ा एजेंडा लगता है. जो पैनल बनाये गये हैं, सभी से ऐसे प्रस्तावों की उम्मीद तो होगी ही कि जैसे भी संभव हो सके कांग्रेस को संघ और बीजेपी से मुकाबले के लिए तैयार किया जा सके.
सचिन पायलट की ज्यादा उम्मीद करने की वजह लंबे अरसे बाद सोनिया गांधी से महीना भर पहले हुई मुलाकात भी लगती है. ये सही है कि राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) अपनी तरफ से सचिन पायलट को बख्शने वाले मूड में नहीं लगते - लेकिन आत्मविश्वास से भरे सचिन पायलट अपनी तरफ से बीजेपी पर हमला बोल कर और युवाओं को तरजीह मिलने की बात कर एक मजबूत इशारा तो कर ही रहे हैं.
सचिन पायलट को क्या मिलने वाला है
सचिन पायलट के लिए सबसे बड़ी मुश्किल ये रही कि वो भी राहुल गांधी की नजर में डरपोक नेताओं की कैटेगरी में पहुंच गये थे. असल में राहुल गांधी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ आक्रामक बयान देने वाले नेताओं को निडर नेता मानते हैं. ऐसे में वे सभी कांग्रेस नेता जो संघ, बीजेपी और मोदी के खिलाफ आक्रामक रुख अख्तियार नहीं कर पाते अपनेआप डरपोक नेताओं की कैटेगरी में शामिल हो जाते हैं.
बीजेपी को लेकर स्टैंड साफ किया है: ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीजेपी में चले जाने के बाद अशोक गहलोत ने कांग्रेस नेतृत्व को भड़काना शुरू कर दिया था - और फिर मौका मिलते ही बता दिया कि वो बीजेपी में जाने की तैयारी कर रहे हैं. अपने समर्थक विधायकों के साथ होटल पहुंच कर सचिन पायलट ने भी अशोक गहलोत को राजनीति करने का मौका दे दिया.
सचिन पायलट बार बार सफाई देते रहे कि वो बीजेपी में नहीं जा रहे, लेकिन अशोक गहलोत निकम्मा, नकारा और पीठ में छुरा भोंकने वाला बता कर गांधी परिवार और सचिन पायलट के बीच दीवार खड़ी करने में कामयाब हो गये.
आखिरकार अप्रैल, 2022 में सचिन पायलट को सोनिया गांधी से मुलाकात का समय मिल पाया. राहुल गांधी और प्रियंका गांधी से तो वो मिलते ही रहे थे, लेकिन अशोक गहलोत के हावी होने की वजह से सचिन पायलट की दाल नहीं गल पा रही थी. हालांकि, सचिन पायलट और सोनिया गांधी की मुलाकात के बाद भी अशोक गहलोत के तेवर में कोई कमी नहीं दर्ज की गयी है.
बहरहाल, मौका भांप कर दस्तूर निभाते हुए सचिन पायलट ने बीजेपी से आठ साल के शासन का लेखा जोखा मांगना शुरू कर दिया है. सचिन पायलट का कहना है कि 'आज अर्थव्यवस्था का बुरा हाल है... महंगाई चरम सीमा पर पहुंच चुकी है... रोजगार में छंटनी हो रही है... कारखाने बंद हो रहे हैं - और 'बीजेपी की केंद्र सरकार देश के असली मुद्दों से ध्यान भटकाने का काम कर रही है.'
कांग्रेस युवाओं को ज्यादा महत्व देने वाली है: जयपुर में मीडिया से बात करते वक्त सचिन पायलट समझाते हैं कि कांग्रेस युवाओं को अहमियत दे रही है. दलील ये देते हैं कि कांग्रेस के चिंतन शिविर में हिस्सा लेने वाले ज्यादातर प्रतिनिधि 40 साल से कम उम्र के हैं.
सचिन पायलट के मुताबिक, चिंतन शिविर में देश भर से पहुंचने वाले यूथ डेलिगेट्स जमीनी फीडबैक देंगे जो आगे की रणनीति तैयार करने में मददगार साबित होगा - और फिर कहते हैं, इन चीजों से समझा जा सकता है कि सोनिया गांधी युवाओं को कितनी अहमियत दे रहे हैं.
राजस्थान विधानसभा और लोक सभा चुनाव मिल कर लड़ने की बात करते हुए, सचिन पायलट ये भी समझाने की कोशिश करते हैं कि सोनिया गांधी ने काफी सोच समझ कर ये चिंतन शिविर बिलकुल सही समय पर बुलाया है. इस साल के विधानसभा और और फिर लोक सभा चुनाव की तरफ ध्यान दिलाते हुए सचिन पायलट बताते हैं कि कांग्रेस के साथ जो भी सहयोगी दल हैं, सबको साथ लेकर साझा रणनीति बनाने की कोशिश है - और फिर बातों बातों में बाकी कांग्रेस नेताओं की तरह दावा पेश करते हैं, देश में अगर एनडीए और बीजेपी को कोई चैलेंज कर सकता है तो वो सिर्फ कांग्रेस है.
कांग्रेस में बदलाव हुआ तो सचिन को क्या मिलेगा: बातों बातों में सचिन पायलट बोल पड़ते हैं, 'मुझे लगता है कि कांग्रेस चिंतन शिविर के बाद पार्टी संगठन में बदलाव करेगी' - और यही वो सबसे बड़ी बात है जिसके जरिये सचिन पायलट अपनी तरफ से सबसे बड़ा संकेत देने का प्रयास कर रहे हैं.
क्या सचिन पायलट युवाओं को लीडरशिप में तरजीह देने और संगठन में बदलाव की बात कर अपने बारे में कोई चीज समझाने की कोशिश कर रहे हैं?
सचिन पायलट के मुंह से ऐसी बातें सुनने के बाद उनको फिर से राजस्थान कांग्रेस का अध्यक्ष बनाये जाने के कयास भी लगाये जाने लगे हैं. अगर ऐसा होता है तो मान कर चलना होगा कि अशोक गहलोत गांधी परिवार के दरबार में कमजोर पड़ने लगे हैं.
पहले ऐसी खबरें भी आयी थीं कि सचिन पायलट को कांग्रेस संगठन में केंद्रीय रोल मिल सकता है, लेकिन बाद में ये भी बताया जाने लगा कि वो राजस्थान नहीं छोड़ना चाहते. वैसे भी सोनिया गांधी से मुलाकात के बाद सचिन पायलट राजस्थान में परंपरा टूट जाने की बात करने लगे हैं. मतलब, अब तक जो बीजेपी और कांग्रेस के बारी बारी सत्ता में आने की परंपरा है, आगे नहीं रहने वाली है.
देखा जाये तो सचिन पायलट के राजस्थान न छोड़ने की जिद में दम भी है. अगर वो कांग्रेस में केंद्रीय भूमिका में आ भी जाते हैं तो क्या मिलने वाला है? 2024 में कांग्रेस के सत्ता में वापसी के कोई लक्षण अभी तक तो देखने को मिले नहीं हैं. दूसरी तरफ, अगर राजस्थान में बीजेपी किसी वजह से चूक गयी तो बल्ले बल्ले हो जाएगी.
राजस्थान में आम चुनाव से करीब छह महीने पहले ही विधानसभा के चुनाव होते हैं, ऐसे में अगर कांग्रेस ने सचिन पायलट को आगे कर दांव खेला तो क्या पता 'खेला' हो भी सकता है. अभी तो राजस्थान में कांग्रेस के लिए काफी चांस भी लग रहा है.
सचिन के बैनर-पोस्टर हटाये जाने से क्या होगा
सचिन पायलट की सोनिया गांधी से हुई मुलाकात के ठीक बाद अशोक गहलोत सिविल सर्विसेज डे पर राजस्थान के अफसरों के कार्यक्रम में पहुंचे थे. अफसरों ने अपनी तरफ से जो भी उम्मीद कर रखी हो, लेकिन अशोक गहलोत को तो बस अपनी बात कहने का एक मौका चाहिये था - तरह तरह से अशोक गहलोत ने यही समझाने की कोशिश की कि सारी चीजों के बावजूद वो कहीं से भी चूके नहीं हैं और उनको अपनी किस्मत पर भी पक्का यकीन है.
अशोक गहलोत ने इधर उधर की थोड़ी बातें की और माहौल अपने माकूल देखते ही शुरू हो गये, 'मेरे दिल में क्या है, वो मैं जुबां पर ला रहा हूं... जो संकट हुआ था...
और फिर बताने लगे कि कैसे विधायकों के साथ महीने भर होटल में गुजारने पड़े थे. तब काम करना कितना मुश्किल हो गया था, फिर भी वो थके नहीं, रुके नहीं. आखिर में अफसरों को ही अपनी जीत का क्रेडिट दे डाले, 'आप सबकी दुआओं से बच गये... आज यहां खड़े हैं वरना यहां कोई और खड़ा होता... मेरा ही लिखा था, यहां खड़ा होना.'
अगर अशोक गहलोत को भी अपनी राजनीतिक काबिलियत से ज्यादा किस्मत पर भरोसा होने लगा है तो ठीक नहीं है. किस्मत का क्या कब पलट जाये? और कब किसी की किस्मत खुल जाये - जो किस्मत अब तक अशोक गहलोत का साथ देती आयी है, क्या पता कल सचिन पायलट का साथ देने का फैसला कर ले.
वैसे उदयपुर के चिंतन शिविर से पहले जिस तरीके से सचिन पायलट के बैनर और पोस्टर हटाये गये हैं, सहानुभूति किसे मिलेगी समझना ज्यादा आसान नहीं है. असल में सचिन पायलट के समर्थकों की तरफ से शिविर स्थल के आस पास सचिन पायलट के पोस्टर और बैनर लगाये गये थे, लेकिन उन्हें हटा दिया गया है - हैरानी की बात ये है कि ये सब किसने किया न कोई बताने को तैयार है, न ही मानने को.
बताया जाता है कि पायलट के बैनर पोस्टर उदयपुर नगर निगम की तरफ से हटाये गये हैं. ये जानने के बाद सचिन पायलट के समर्थक नगर निगम की कार्रवाई का विरोध कर रहे हैं, लेकिन एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, उदयपुर के कलेक्टर ताराचंद मीणा ने कहा है कि प्रशासन का पोस्टर लगाने या हटाने में कोई रोल नहीं है. जो कुछ भी हुआ है वो पार्टी के स्तर पर हो रहा है.
फिर तो सीधे सीधे मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खेमे पर उंगली उठती है - लेकिन ऐसा करके अशोक गहलोत के लोग हासिल क्या कर पाएंगे? राजस्थान कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा की बातों में तो अशोक गहलोत का बचाव ही समझ में आ रहा है, 'शिविर से संबंधित सभी काम AICC देख रही है... मेरी जानकारी में ऐसा कुछ नहीं है, न ही मैंने इस बारे में किसी भी तरह के निर्देश दिए हैं.'
सचिन पायलट के पोस्टर और बैनर भले हटा दिये गये हों, लेकिन उनकी सेहत पर तब तक कोई फर्क नहीं पड़ने वाला जब तक कांग्रेस चिंतन शिविर में उनकी एंट्री पर पाबंदी नहीं लगा दी जाती - और सोनिया गांधी से मिल लेने के बाद सचिन पायलट ने ऐसे चीजों के खिलाफ एहतियाती इंतजाम तो कर ही लिया है.
इन्हें भी पढ़ें :
सचिन पायलट-सोनिया गांधी की मुलाकात क्या पंजाब कांग्रेस का सबक है?
सचिन पायलट को गांधी परिवार ने न सिंधिया बनने दिया, न ही सिद्धू बनाया!
सचिन पायलट को लेकर प्रियंका गांधी की बात क्यों नहीं मान रहे गहलोत?
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.