कांग्रेस नेता सचिन पायलट (Sachin Pilot) का निराश होना स्वाभाविक है. और वो खुद से नहीं है, बल्कि राहुल गांधी से निराश हैं. सचिन पायलट समझ चुके हैं कि राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ही नहीं, पूरा गांधी परिवार राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के आगे बेबस है.
उदयपुर चिंतन शिविर से भी सचिन पायलट को काफी उम्मीदें थीं. वो लगातार कह रहे थे कि युवाओं को ज्यादा मौका दिया जाएगा. ऐसी बातें करते वो खुद भी एक दावेदार के तौर पर पेश कर रहे थे - और अब न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री जेसिंडा अर्नर्ड का नाम लेकर फिर से नसीहत दोहरा रहे हैं.
निशाने पर तो अशोक गहलोत ही हैं लेकिन उनकी सेहत पर कोई फर्क ही नहीं पड़ता. सचिन पायलट को राहुल गांधी की भी सीमाएं मालूम हो चुकी हैं. कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव से पहले राहुल गांधी ने उदयपुर कमिटमेंट की याद दिलायी तो अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) अपने पर आ गये. एक व्यक्ति, एक पद. अशोक गहलोत ने अपना पद चुन लिया. कांग्रेस अध्यक्ष नहीं, राजस्थान का मुख्यमंत्री ही रहेंगे.
जब सोनिया गांधी ने तत्कालीन राजस्थान कांग्रेस प्रभारी अजय माकन के साथ मल्लिकार्जुन खड़गे को ऑब्जर्वर बना कर भेजा तो अशोक गहलोत ने विधायकों का झुंड भेज कर खेल कर दिया - बाद में दिल्ली पहुंच कर सोनिया गांधी से माफी भी मांग ली. और आखिर में बाहर आकर मीडिया के सामने सॉरी भी बोल दिया.
अशोक गहलोत ने वो सॉरी भले ही ये दिखाने के लिए की थी कि वो विधायकों के जरिये एक लाइन का प्रस्ताव पारित कराना सुनिश्चित नहीं कर पाये. क्या ऐसा ही हुआ भी था? बल्कि, अशोक गहलोत ने सोनिया गांधी को वैसे ही सॉरी बोला था, जैसे सोनिया गांधी ने कैप्टन अमरिंदर सिंह को - अशोक गहलोत के सॉरी मतलब ये रहा कि वो तो मनमानी ही करेंगे. बाकी जिसका जो मन करे, कर के देख ले.
पहले तो ऐसा लगा था कि कांग्रेस की समस्या के समाधान के बाद ही राहुल गांधी राजस्थान छोड़ेंगे. जिस तरह से भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी कदम कदम पर सचिन पायलट और अशोक गहलोत दोनों को साथ रखते थे. रात्रि...
कांग्रेस नेता सचिन पायलट (Sachin Pilot) का निराश होना स्वाभाविक है. और वो खुद से नहीं है, बल्कि राहुल गांधी से निराश हैं. सचिन पायलट समझ चुके हैं कि राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ही नहीं, पूरा गांधी परिवार राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के आगे बेबस है.
उदयपुर चिंतन शिविर से भी सचिन पायलट को काफी उम्मीदें थीं. वो लगातार कह रहे थे कि युवाओं को ज्यादा मौका दिया जाएगा. ऐसी बातें करते वो खुद भी एक दावेदार के तौर पर पेश कर रहे थे - और अब न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री जेसिंडा अर्नर्ड का नाम लेकर फिर से नसीहत दोहरा रहे हैं.
निशाने पर तो अशोक गहलोत ही हैं लेकिन उनकी सेहत पर कोई फर्क ही नहीं पड़ता. सचिन पायलट को राहुल गांधी की भी सीमाएं मालूम हो चुकी हैं. कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव से पहले राहुल गांधी ने उदयपुर कमिटमेंट की याद दिलायी तो अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) अपने पर आ गये. एक व्यक्ति, एक पद. अशोक गहलोत ने अपना पद चुन लिया. कांग्रेस अध्यक्ष नहीं, राजस्थान का मुख्यमंत्री ही रहेंगे.
जब सोनिया गांधी ने तत्कालीन राजस्थान कांग्रेस प्रभारी अजय माकन के साथ मल्लिकार्जुन खड़गे को ऑब्जर्वर बना कर भेजा तो अशोक गहलोत ने विधायकों का झुंड भेज कर खेल कर दिया - बाद में दिल्ली पहुंच कर सोनिया गांधी से माफी भी मांग ली. और आखिर में बाहर आकर मीडिया के सामने सॉरी भी बोल दिया.
अशोक गहलोत ने वो सॉरी भले ही ये दिखाने के लिए की थी कि वो विधायकों के जरिये एक लाइन का प्रस्ताव पारित कराना सुनिश्चित नहीं कर पाये. क्या ऐसा ही हुआ भी था? बल्कि, अशोक गहलोत ने सोनिया गांधी को वैसे ही सॉरी बोला था, जैसे सोनिया गांधी ने कैप्टन अमरिंदर सिंह को - अशोक गहलोत के सॉरी मतलब ये रहा कि वो तो मनमानी ही करेंगे. बाकी जिसका जो मन करे, कर के देख ले.
पहले तो ऐसा लगा था कि कांग्रेस की समस्या के समाधान के बाद ही राहुल गांधी राजस्थान छोड़ेंगे. जिस तरह से भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी कदम कदम पर सचिन पायलट और अशोक गहलोत दोनों को साथ रखते थे. रात्रि विश्राम के दौरान भी कोशिश होती रही कि ज्यादा से ज्यादा वक्त साथ बितायें. यहां तक कि हिमाचल प्रदेश में मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के शपथग्रहण के लिए साथ ही ले गये और दोनों को साथ ही वापस भी लाये. अब तो ऐसा लगता है, जैसे राहुल गांधी पंजाब से सबक लेकर भूल सुधार करना चाहते हों - और नतीजा ये हो रहा है कि खामियाजा सचिन पायलट को भुगतना पड़ रहा है.
ये भी माना जा सकता है कि राजस्थान कांग्रेस का मामला अब राहुल गांधी के हाथ से बाहर निकल चुका है. भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी के प्रयासों में कोई कमी नहीं रही, लेकिन कोई उनकी सुने तब तो. अशोक गहलोत तो सार्वजनिक रूप से बस लिहाज करते हैं. बाकी तो मनमानी ही करते हैं.
सचिन पायलट समझ गये हैं कि अपनी लड़ाई खुद ही लड़नी पड़ेगी. चार्ल्स डार्विन भी तो यही कह गये हैं, सरवाइवल ऑफ द फिटेस्ट. सचिन पायलट ने राजस्थान में नये सिरे से जंग छेड़ दी है.
राजस्थान में अशोक गहलोत की शह पर विधायकों की बगावत के दौरान सचिन पायलट काफी संयम बरतते देखे गये थे - लेकिन अब बदला हुआ तेवर नजर आ रहा है. और राजस्थान में उनकी रैलियों में जुट रही भीड़ भी ये बात कंफर्म कर रही है.
राहुल गांधी की बेबसी हर कोई समझ रहा है
रगड़ाई की दुहाई देते देते सचिन पायलट निकल पड़े हैं खुद अपनी लड़ाई लड़ने. 26 जनवरी से शुरू हो रहे 'हाथ से हाथ जोड़ो' अभियान में प्रियंका गांधी भी शामिल होने जा रही हैं, लेकिन सचिन पायलट और गहलोत की लाइन काफी अलग नजर आ रही है.
ये भी साफ साफ नजर आ रहा है कि अशोक गहलोत आलाकमान के आदेश का पालन कर रहे हैं. और सचिन पायलट संघर्ष के अपने अलग रास्ते पर चल रहे हैं. अशोक गहलोत हाथ से हाथ जोड़ो अभियान की तैयारी कर रहे हैं - और सचिन पायलट साल के आखिर में होने वाले विधानसभा चुनाव की.
2018 से ही प्रियंका गांधी वाड्रा राजस्थान की समस्या सुलझाने में लगी हैं, लेकिन नहीं सुलझ सका है - और अब तो लगता है पंजाब में भाई-बहन के एक्सपेरिमेंट के फेल हो जाने के बाद और भी कोई रास्ता किसी को भी समझ में नहीं आ रहा है.
अशोक गहलोत तो खुद ही ऐसी रफ्तार भर रहे हैं पकड़ पाना मुश्किल हो रहा है - और लगता है कोई उनको छूने की हिम्मत भी नहीं जुटा पा रहा है. कैप्टन अमरिंदर सिंह सबसे बड़े उदाहरण हैं. कांग्रेस न पंजाब में न सत्ता बचा पायी, न कैप्टन परिवार को साथ रख सकी.
लेकिन क्या राहुल गांधी ये समझ पा रहे हैं कि कैप्टन जैसा व्यवहार किसके साथ करना चाहिये? अशोक गहलोत के साथ या सचिन पायलट के साथ. कैप्टन आखिरकार बीजेपी में जा चुके हैं. सचिन पायलट को लेकर भी ऐसी बातें बोली जाती रही हैं. फिर तो पहले से ही तय कर लेना कि सचिन पायलट को बीजेपी में जाने से रोकना है या अशोक गहलोत को नवजोत सिंह सिद्धू की तरह पाले रखना है - और आखिर में हाथ मलते रह जाना है.
सचिन पायलट ने भी अशोक गहलोत के हमले की काट खोज डाली है. अशोक गहलोत कहते हैं कि किसी गद्दार को मुख्यमंत्री नहीं बनाया जा सकता. ऐसा बोल कर सचिन पायलट को अशोक गहलोत बीजेपी से सिग्नल के इंतजार में बैठा कांग्रेस नेता के तौर पर पेश करते हैं. अशोक गहलोत काफी हद तक अपने मिशन में सफल भी नजर आते हैं. सिर्फ इसलिए नहीं कि वो गांधी परिवार को समझा बुझा कर काम निकाल लेते हैं.
लेकिन सचिन पायलट ने भी वसुंधरा राजे से अशोक गहलोत की दोस्ती की मिसाल देते हुए सवाल पूछने लगते हैं. जैसे पहले राहुल गांधी के चुनावी वादे पूरे न किये जाने का सवाल उठाते रहे, अब सचिन पायलट, अशोक गहलोत को बहाना बना कर राहुल गांधी से भी पूछ डालते हैं. वसुंधरा सरकार की गड़बड़ियों को जांच कराने का अशोक गहलोत का वादा कहां गया? सचिन पायलट याद दिलाते हैं कि जिन घोटालों की जांच का लोगों से वादा किया गया था, उनका क्या हुआ? सरकार का कार्यकाल पूरे होने को आया और कहीं कोई एक्शन नहीं हुआ - क्यों?
पायलट का जोरदार पलटवार
बेशक सचिन पायलट के पास नंबर कम पड़ रहा है, लेकिन ऐसा भी नहीं कि बिलकुल अकेले घूम रहे हैं. जहां भी निकल रही है सचिन पायलट की रैलियों में युवाओं की जबरदस्त भीड़ उमड़ रही है. हर रैली में मौका देख कर सचिन पायलट अलग अलग तरीके से अशोक गहलोत को जवाब भी दे रहे हैं - और सवाल भी पूछ रहे हैं.
सचिन पालयट पहले चुप ही रहा करते थे, लेकिन अब धैर्य जवाब दे रहा है. सही भी है. अगर अभी जवाब नहीं दिया तो आगे शायद मौका भी न मिले. या फिर जवाब देने का कोई फायदा भी न रहे.
हाल ही में एक वीडियो के जरिये अशोक गहलोत का एक बयान सामने आया. अशोक गहलोत कोरोना के नाम पर बहुत सारे काम टालते रहे हैं. कभी कभी तो ऐसा लगता है जैसे कांग्रेस में आपदा में अवसर का सबसे ज्यादा किसी ने फायदा उठाया है तो वो अशोक गहलोत ही हैं.
अशोक गहलोत कह रहे थे कि अब वो मीटिंग करने लगे हैं. पहले कोरोना की वजह से बैठकें नहीं हो पाती थीं. और फिर सचिन पायलट को निशाने पर ले लेते हैं, 'एक बड़ा कोरोना पार्टी में भी घुस आया.'
वैसे तो सचिन पायलट के तरफ से जवाब देने के लिए निर्मल चौधरी भी खड़े रहते हैं, और विधायक वेद प्रकाश सोलंकी भी मौर्चे पर तैनात नजर आते हैं. दोनों ही सचिन पायलट का हमलावर अंदाज में ही बचाव भी करते हैं, लेकिन अशोक गहलोत का नाम लिये बगैर ही सचिन पायलट लोगों के बीच जाकर तीखे हमले बोलने लगे हैं.
सचिन पायलट कहते हैं, मैंने अपने राजनीतिक विरोधियों के लिए ऐसे शब्दों का कभी इस्तेमाल नहीं किया जो मैं खुद न सुन सकूं. जबान पर कंट्रोल रखना चाहिये. गाली गलौज करना बहुत आसान है, लेकिन अपने शब्द वापस लेना कठिन होता है. मैंने कभी किसी पर निजी हमले नहीं किये.
और फिर अशोक गहलोत के लिए नसीहत चालू हो जाती है, परवरिश ऐसी होनी चाहिये कि आप दूसरों को सम्मान दें. जब आप दूसरों को सम्मान देते हैं, तभी आपको सम्मान मिलता है.
सचिन पायलट हाल ही में कॉलेज छात्रों के बीच थे. वहां सचिन पायलट ने राजस्थान में अपने शुरुआती संघर्ष की कहानी सुनायी. बताया कि कैसे 2013 से 2018 यानी पांच साल तक वो संघर्ष किये, तब कहीं जाकर राजस्थान में कांग्रेस की सरकार बन पायी.
लगे हाथ छात्रों से पूछने लगते हैं, 'क्या मेरी मेहनत में कोई कमी देखी? मेरे संघर्ष में कोई कमी दिखी?
और फिर वो सवाल जो जिसे सुन कर हर कोई हंस पड़ता है, 'मेरी रगड़ाई में कोई कमी दिखी.' सचिन पायलट की ये बात अशोक गहलोत को सुई की तरह चुभ रही होगी. राहुल गांधी भी तो मुस्कुरा ही रहे होंगे.
धैर्य भी जवाब तो दे ही देता है
राहुल गांधी सरेआम सचिन पायलट के धैर्य की मिसाल दे चुके हैं. राहुल गांधी की बातें ये दोहरा अर्थ लिये हुए हैं. सचिन पायलट के धैर्य को अशोक गहलोत के खिलाफ भी समझा जा सकता है, और बीजेपी में जाने के पक्ष में भी - चाहे धैर्य को जिस नजरिये से देखा जाये, लेकिन अब तो ऐसा लगता है जैसे सचिन पायलट का धैर्य जवाब दे चुका है.
सचिन पायलट दिल्ली की राजनीति में खुश थे. राजस्थान से बस चुनावी राजनीति भर कनेक्शन था. लेकिन राहुल गांधी के कहने पर घर परिवार छोड़ कर राजस्थान जाना पड़ा. ये तब की बात है जब वहां बीजेपी की वसुंधरा राजे सरकार हुआ करती थी. सचिन की मेहनत विधानसभा चुनावों से पहले से ही रंग दिखाने लगी थी. कांग्रेस उपचुनावों में बीजेपी को शिकस्त देने लगी थी.
अब तो दस साल हो गये. भला कोई कब तक धैर्य बनाये रख सकता है. देखते देखते दूसरा चुनाव सिर पर आ चुका है. कांग्रेस की जीतने और हारने, दोनों ही सूरत में सचिन पायलट के हाथ कुछ नहीं लगने वाला है. अगर कांग्रेस जीत गयी तो अशोक गहलोत फिर से मनमानी करेंगे. हार गयी तो भी सचिन पायलट को ही इंतजार करना पड़ेगा.
राजस्थान में जो परंपरा रही है, इस बार बीजेपी की बारी है. ऐसी ही परंपरा अभी अभी राजस्थान में देखी जा चुकी है. सचिन पायलट चाहते हैं कि परंपरा टूटे. फिर से कांग्रेस की ही सरकार बने. अशोक गहलोत को ऐसी बातों से बहुत मतलब नहीं लगता. वो तो बस अपने कार्यकाल तक टाइमपास करना चाहते हैं.
लेकिन सचिन पायलट दूर तक की सोच रहे हैं. सचिन पायलट ये भी समझ रहे हैं कि बीजेपी के भीतर भी भारी झगड़ा है. बजट सत्र के आस पास मोदी कैबिनेट में संभवाना में दबी जबान वसुंधरा राजे की भी चर्चा चल रही है. ये तो पहले से ही सबको पता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह पिछले पांस साल से वसुंधरा राजे को दिल्ली शिफ्ट करना चाहते हैं - जब अब तक नहीं मानीं तो आगे इरादा बदल लेंगी, लगता तो नहीं है.
सचिन पायलट को इसीलिए बड़ा मौका दिख रहा है. वैसे भी अगर कांग्रेस ने सचिन पायलट को आगे किया तो कांग्रेस मौके का फायदा उठा सकती है, लेकिन ये तो नौ मन तेल होने जैसा ही नामुमकिन है.
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