हैरत ज़दा हैं रास्ते, हैरान संग-ए-मील
अंधे की रहनुमाई में, लंगड़ा सफ़र में है.
कहीं फिट बैठे न बैठे, लेकिन जैसे हालात हैं. किसी गुमनाम शायर का ये शेर कांग्रेस पार्टी की उत्तर प्रदेश में सर्वेसर्वा प्रियंका गांधी और उन कांग्रेसी प्रत्याशियों पर पूर्णतः फिट बैठ रहा है जो 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के टिकट के बल पर अपनी किस्मत आजमाने वाले हैं. यूपी में चुनावी समर की शुरुआत हो गई है. 'लड़की हूं, लड़ सकती हूं' के नारे के साथ कांग्रेस ने अपने पत्ते खोल दिए हैं. और अपनी पहली लिस्ट के जरिये उन 125 नामों की घोषणा की है जिन्हें पार्टी ने टिकट दिया है. जैसी पहली लिस्ट है यदि उसे देखें और उसका अवलोकन करें तो साफ हो जाता है कि प्रियंका गांधी की अगुवाई में यूपी में कांग्रेस चुनाव लड़ने के मूड में कम और भाजपा और यूपी के मुख्यमंत्री से खुन्नस निकालने के मूड में ज्यादा है.
पहली लिस्ट ने बता दिया कुछ महिलाओं के जरिये प्रियंका ने योगी से अपनी खुन्नस निकाली है
ये बातें यूं ही नहीं हैं. इनके पीछे मजबूत आधार है. कैसे? यदि प्रश्न कुछ यूं हो तो चाहे वो लखनऊ मध्य जैसी महत्वपूर्ण सीट से प्रियंका गांधी का CAA के बवाल में शामिल सदफ जाफर को टिकट देना हो या फिर उन्नाव रेप पीड़िता की मां आशा सिंह और पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद की बीवी लुइस खुर्शीद का टिकट. साफ हो जाता है कि प्रियंका योगी आदित्यनाथ को उन्हीं की भाषा में जवाब दे रही हैं लेकिन हड़बड़ी में शायद ये भूल गयीं कि इस खेल की कीमत सिर्फ उन्हें नहीं बल्कि एक पार्टी के रूप में कांग्रेस को चुकानी होगी.
CAA का बलवा जिससे हासिल हुआ लखनऊ मध्य का टिकट
CAA से भले ही भारतीय मुसलमानों को कोई नुकसान न हो लेकिन चंद मौकापरस्तों ने इसे कुछ इस रूप में पेश किया कि आम मुसलमान सड़कों पर आ गया. पूरे देश की तरह बवाल उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ पहुंचा और 19 दिसंबर 2019 वो तारीक बनी जो इतिहास में दर्ज हो गई. CAA के विरोध के नाम पर लखनऊ के परिवर्तन चौक पर आगजनी, पथराव, लूट ऐसा बहुत कुछ हुआ जिसने लोक तंत्र को शर्मसार किया. हालात बेकाबू थे लेकिन पुलिस ने फौरन ही एक्शन लिया और दंगाइयों को गिरफ्तार किया.
इन्हीं दंगाइयों में पुलिस ने खुद को समाज सेवी कहने वाली लखनऊ की सदफ जाफर को भी गिरफ्तार किया. बाद में शासन ने दंगाइयों की पहचान को जाहिर किया और जगह जगह इनके होर्डिंग लगवाए. इन होर्डिंग में एक नाम सदफ जाफर का भी था. इस कृत्य के लिए यूपी सरकार की खूब आलोचना भी हुई लेकिन योगी आदित्यनाथ ने इसकी कोई परवाह नहीं की.
गिरफ्तारी के कुछ दिन बाद सदफ को बेल मिली और उन्होंने यूपी पुलिस पर बर्बरता के गंभीर आरोप लगाए. इस पूरे मामले में दिलचस्प ये है कि इस समय तक सदफ एक संसज सेवी थीं लेकिन टर्निंग पॉइंट इसके बाद आया जब उन्होंने सक्रिय रूप से कांग्रेस जॉइन की.
आज जबकि प्रियंका ने सदफ को लखनऊ मध्य से टिकट दे दिया है तो कहा जा सकता है कि उन्हें उनकी कुर्बानियों का फल मिल गया है. बात लखनऊ मध्य सीट की हो तो वर्तमान में इस सीट पर भाजपा के ब्रजेश पाठक का कब्जा है. पाठक ने 2017 के विधानसभा चुनाव में इस सीट पर समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता रविदास मेहरोत्रा को 5,094 वोटों से हराया था.
आशा देवी की आड़ लेकर कुलदीप सिंह सेंगर पर निशाना
कांग्रेस ने अपनी पहली लिस्ट में 125 नामों की घोषणा की है जिसमें 50 महिला उम्मीदवार हैं और इन्हीं 50 नामों में एक नाम है साल 2017 की उन्नाव रेप पीड़िता की मां आशा सिंह का. ध्यान रहे यूपी के उन्नाव में 17 वर्षीय लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार उस समय सुर्खियों में आया था जब बलात्कार पीड़िता ने कथित रूप से पुलिस निष्क्रियता के विरोध में यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ के आवास के बाहर आत्मदाह का प्रयास किया था.
साल 2019 में भाजपा से निकाले गए विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को 2017 में 17 वर्षीय लड़की के बलात्कार के लिए दोषी ठहराया गया और आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई. कुलदीप सेंगर के खिलाफ आरोप सामने आने के तुरंत बाद रेप पीड़िता के पिता को आर्म्स एक्ट के तहत गिरफ्तार कर लिया गया. कथित प्रताड़ना के कारण पुलिस हिरासत में उसकी मौत हो गई.
मार्च 2020 में रेप पीड़िता के पिता की मौत के मामले में कुलदीप सेंगर को 10 साल जेल की सजा सुनाई गई थी. उन्नाव रेप केस को लेकर दिलचस्प बात ये है कि विपक्ष विशेषकर कांग्रेस ने इस मुद्दे पर भाजपा को घेरा था और अब जबकि आशा सिंह को उन्नाव से कांग्रेस ने टिकट दे दिया है साफ हो जाता है कि टिकट तो बस बहाना है प्रियंका का असल उद्देश्य योगी आदित्यनाथ को सबक सिखाना है.
लुइस का टिकट भी है बदले की राजनीति
'लड़की हूं लड़ सकती हूं' भले ही यूपी कांग्रेस का मोटो हो लेकिन तब क्या जब किसी पर लाखों रुपए के गबन के आरोप लगे हों और व्यक्ति और कोई नहीं बल्कि कांग्रेस पार्टी के कद्दावर नेता सलमान खुर्शीद की पत्नी लुइस खुर्शीद हों. बताते चलें कि कांग्रेस पार्टी ने पूर्व विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद की पत्नी लुईस खुर्शीद को फर्रूखाबाद सदर सीट से कांग्रेस उम्मीदवार बनाया है. लुइस पर जाकिर हुसैन मेमोरियल ट्रस्ट में 71 लाख रुपये के गबन के गंभीर आरोप हैं और जुलाई 2021 में स्थानीय अदालत ने गैर जमानती वारंट भी जारी किया था.
क्या था मामला?
मार्च 2010 में डॉ. जाकिर हुसैन मेमोरियल ट्रस्ट को यूपी के 17 जिलों में विकलांगों को व्हीलचेयर, ट्राई साइकिल और सुनने के यंत्र बांटने के लिए केंद्र सरकार की ओर से 71 लाख 50 हजार रुपये दिए गए थे. 2012 में इस रकम को गबन करने का आरोप ट्रस्ट के पदाधिकारियों पर लगा था. दिलचस्प ये कि उस वक्त सलमान खुर्शीद यूपीए-2 सरकार में केंद्रीय मंत्री थे और उन्होंने इन आरोपों को सिरे से खारिज किया था.
मामले के मद्देनजर 30 दिसंबर 2019 को चार्जशीट दाखिल की गई. इसमें आरोप लगाया गया कि ट्रस्ट ने यूपी के वरिष्ठ अधिकारियों के फर्जी दस्तखत करके और सील लगाके केंद्र सरकार से 71.50 लाख रुपये का अनुदान हासिल किया था. इस मामले पर भी कांग्रेस ने भाजपा को घेरा था और बदले की राजनीति का आरोप लगाया था.
बहरहाल 50 महिलाओं में ये वो 3 महिलाएं हैं जिन्होंने यूपी के आगामी विधानसभा चुनाव को खासा दिलचस्प बना दिया है. कुल मिलाकर कहा यही जा सकता है कि चाहे वो CAA दंगाई हो या फिर उन्नाव पीड़िता की मां और सलमान खुर्शीद की पत्नी लुइस खुर्शीद भाजपा के विरोध में यूपी के लिए प्रियंका ने डिश तो अच्छी पकाई है. अब ये डिश फीकी है या चटपटी ख़ुद किसी और को नहीं बल्कि देश और खासकर उत्तर प्रदेश की जनता को करना है.
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