यह लाख टके का सवाल है कि विपक्षी एकता का भविष्य क्या है? क्या पार्टियां 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए एकजुट हो पाएंगी? अभी कोई भी जवाब देना जल्दबाजी है लेकिन इस एकता का भविष्य दिखने लगा है. कांग्रेस का राय अधिवेशन खत्म होने और पूर्वोत्तर के तीन राज्यों के चुनाव नतीजों के बाद उत्तर प्रदेश से लेकर पश्चिम बंगाल और कर्नाटक से लेकर तेलंगाना तक से जैसी राजनीति की खबरें आ रही हैं उनसे लग रहा है कि विपक्षी पार्टियों की एकता बनाना बहुत मुश्किल काम है. कांग्रेस ने भले रायपुर में विपक्षी एकता की अपील की है लेकिन ऐसा लग रहा है कि प्रादेशिक पार्टियों का कांग्रेस विरोध तेज हो गया है. उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने विपक्षी पार्टियों की एकजुटता का संकेत दिया था.
वे तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के 70वें जन्मदिन के मौके पर एक मार्च को चेन्नई में थे, जहां सिर्फ उन्हीं पार्टियों का जमावड़ा हुआ था, जो कांग्रेस के साथ तालमेल कर सकती हैं. वहां से लौटने के बाद उन्होंने कहा भी कि सपा विपक्ष के साथ मिल कर चुनाव लड़ेगी. लेकिन उनके कहने के तुरंत बाद उनकी पार्टी के प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी की ओर से सफाई दी गई कि सपा सिर्फ अपनी सहयोगी रालोद के साथ मिल कर लड़ेगी.
अब सोचें, अगर सपा और रालोद लड़ते हैं, बसपा ने पहले ही अकेले लड़ने का ऐलान किया है और कांग्रेस अकेले लड़ती है तो भाजपा को कैसा फायदा होगा. उधर पश्चिम बंगाल में कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस का विवाद तेज हो गया है. राज्य की सागरदिघी विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव जीत कर कांग्रेस ने खाता खोला. बंगाल की 294 सदस्यों की विधानसभा में कांग्रेस को पहली सीट मिली.
लेकिन उसके तुरंत बाद कांग्रेस नेताओं पर कार्रवाई शुरू हो गई. राज्य की पुलिस ने कांग्रेस प्रवक्ता कौस्तुभ चौधरी को ममता बनर्जी पर बयान देने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया. इससे पहले नतीजों के तुरंत बाद बौखलाहट में ममता बनर्जी ने कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी पर हमला किया और उनकी बेटी की मृत्यु का मुद्दा बनाया.
इसे लेकर कौस्तुभ चौधरी ने ममता पर निशाना साधा तो रात तीन बजे ममता की पुलिस कांग्रेस प्रवक्ता को उठा ले गई. ध्यान रहे सागरदिधी सीट मुस्लिम बहुल है और उस पर हार से ममता की चिंता बढ़ी है. सपा और तृणमूल के कांग्रेस विरोध के बीच आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान को लेकर उन राज्यों के दौरे पर निकल गए, जहां अगले कुछ दिन में चुनाव होने वाले हैं.
शनिवार को उन्होंने कर्नाटक में एक रैली की और कर्नाटक सरकार पर 40 फीसदी कमीशन लेने का आरोप लगाया. उन्होंने पांच साल के लिए आप की ईमानदार सरकार बनाने की अपील की. उसके बाद रविवार को उनका अगला मुकाम मध्य प्रदेश था और 14 मार्च को छत्तीसगढ़ में उनकी रैली होगी. इन सभी राज्यों में इस साल चुनाव हैं. उनका एकमात्र मकसद इन राज्यों में कांग्रेस को नुकसान पहुंचाना है.
इस बीच तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव 14 अप्रैल को अपने यहां कांग्रेस के अलावा बाकी विपक्षी पार्टियों को जुटाने की तैयारी में लग गए हैं. इसके पूर्व जब डीएमके प्रमुख और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के 70वें जन्मदिन पर देश की कई विपक्षी पार्टियों के नेता चेन्नई में जुटे थे. उस जलसे में जुटे सभी नेताओं ने विपक्षी एकता की बात की थी.
विपक्ष की एकजुटता में सबसे बड़ी बाधा नेतृत्व के मसले पर थी, जिसे लेकर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने काफी हद तक स्थिति स्पष्ट कर दी. उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने कभी नहीं कहा है कि कौन प्रधानमंत्री बनेगा. हालांकि इससे पहले मध्य प्रदेश के अध्यक्ष कमलनाथ कह चुके हैं राहुल गांधी नेतृत्व करेंगे विपक्ष का.
पिछले दिनों पार्टी के संचार विभाग के प्रमुख जयराम रमेश ने भी कहा था कि कांग्रेस ही गठबंधन का नेतृत्व करेगी. कमलनाथ और रमेश के कहने से ज्यादा अहम मल्लिकार्जुन खड़गे का बयान है. ध्यान रहे उन्होंने नगालैंड में भी विपक्षी एकता की बात कही थी और चेन्नई में उन्होंने साफ किया कि कांग्रेस विपक्षी गठबंधन का नेतृत्व करने की जिद नहीं कर रही है.
यह बहुत बड़ी बात थी. स्टालिन के जन्मदिन के मौके पर हुए आयोजन की दूसरी बड़ी बात थी समाजवादी पार्टी का कांग्रेस और अन्य विपक्षी पार्टियों के साथ मंच साझा करना. सपा और कांग्रेस के बीच पिछले कुछ समय से तनाव है. 2017 का विधानसभा चुनाव साथ लड़ने के बाद से दोनों पार्टियां अलग अलग हैं. 2019 में सपा ने बसपा के साथ मिल कर लोकसभा का चुनाव लड़ा था और कांग्रेस को अलग रखा था.
सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव चेन्नई में विपक्ष के आयोजन में शामिल हुए इसका विपक्षी एकता के लिए बड़ा महत्व है. जानकार सूत्रों का कहना है कि वे तीसरे मोर्चे की बजाय दूसरे मोर्चे में शामिल होने पर राजी हो गए हैं. दूसरा मोर्चा यानी वह विपक्षी गठबंधन, जिसमें कांग्रेस हो. अब तक माना जा रहा था कि तृणमूल कांग्रेस, भारत राष्ट्र समिति और आम आदमी पार्टी की तरह समाजवादी पार्टी भी तीसरा मोर्चा बनाने के पक्ष में है.
लेकिन अब ऐसा नहीं लग रहा है. क्योंकि तीसरा मोर्चा बनाने की कोशिश करने वाली पार्टियों को स्टालिन के जन्मदिन के आयोजन में नहीं बुलाय गया था. तमाम सद्भाव के बावजूद के चंद्रशेखर राव, ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल को न्योता नहीं दिया गया था, जबकि अखिलेश को न्योता दिया गया और वे शामिल भी हुए.
इसके साथ ही चेन्नई में तीसरे मोर्चे की बात करने वालों की आलोचना की गई. कांग्रेस की बात दोहराते हुए स्टालिन ने कहा कि तीसरा मोर्चा बना तो उससे भाजपा को फायदा होगा. यह केसीआर, ममता और केजरीवाल तीनों को साझा विपक्ष की ओर से मैसेज था. स्टालिन के जन्मदिन के कार्यक्रम से कांग्रेस को साथ लेकर बनने वाले विपक्षी गठबंधन की रूप रेखा स्पष्ट हो गई है.
कांग्रेस के अलावा उसकी सहयोगी डीएमके और राजद इसमें शामिल हैं. फारूक अब्दुल्ला की नेशनल कांफ्रेंस भी इसमें है और एक तरह से अखिलेश यादव ने भी इसमें शामिल होने का संकेत दे दिया है. अगर इन सभी क्षेत्रीय पार्टियों के नेता प्रयास करें और खड़गे की बात को सामने रख कर केसीआर, ममता और केजरीवाल से बात करें तो विपक्ष का बड़ा गठबंधन भी बन सकता है.
पत्र पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, पबंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान, आरजेडी नेता तेजस्वी यादव, शरद पवार, फारूक अब्दुल्ला, उद्धव ठाकरे और अखिलेश यादव ने हस्ताक्षर किए . पत्र में कहा गया, ‘विपक्ष के सदस्यों के खिलाफ कई केंद्रीय एजेंसी का खुल्लम-खुल्ला दुरुपयोग यह दर्शाता है कि हम लोकतंत्र से तानाशाही में आ गए हैं.
चुनावी मैदान के बाहर बदला लेने के लिए केंद्रीय एजेंसी और राज्यपाल जैसे संवैधानिक पदों का दुरुपयोग निंदनीय है.’ दिल्ली के डिप्टी मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी का जिक्र करते हुए नेताओं ने कहा कि उन पर लगे आरोप पूरी तरह निराधार और राजनीतिक साजिश का हिस्सा हैं.
विपक्षी नेताओं ने असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व शर्मा और टी एम सी के पूर्व नेताओं शुभेंदु अधिकारी और मुकुल रॉय का जिक्र देते हुए दावा किया कि जांच एजेंसी भाजपा में शामिल हुए नेताओं के खिलाफ मामलों में धीमी गति से काम करती हैं. तमिलनाडु, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, तेलंगाना के राज्यपालों और दिल्ली के एल जी की ओर इशारा करते हुए, नेताओं ने संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन करने और राज्य के शासन में बाधा डालने का आरोप लगाया.
प्रधानमंत्री को लिखे पत्र के साथ ही विपक्ष की एकता पर भी फिर सवाल खड़े हो गए. पत्र से कांग्रेस, डीएमके और लेफ्ट ने दूरी बनाकर रखी. सिसोदिया की गिरफ्तारी के बाद दिल्ली कांग्रेस अध्यक्ष अनिल चौधरी और संदीप दीक्षित ने इसका स्वागत किया था. इस बीच, बंगाल में सागरदिघी में हालिया उपचुनाव के बाद कांग्रेस और टीएमसी के संबंध भी तनावपूर्ण हो गए हैं.
ममता ने आरोप लगाया था कि कांग्रेस, भाजपा और लेफ्ट के बीच अनैतिक गठबंधन था और 2024 में टीएमसी अकेले चुनाव लड़ेगी. केसीआर की पार्टी बीआरएस और कांग्रेस भी साथ नहीं हैं. इसके पहले डीएमके चीफ एमके स्टालिन ने तीसरे मोर्चे के विचार को खारिज कर दिया था. पल – पल विपक्षी एकता के समीकरण बदलते रहते है. विपक्षी एकता की पटरी अभी तक टेढ़ी मेढ़ी ही हैं.
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