महाराष्ट्र (Maharashtra) के हिंदुत्ववादी नेता संभाजी भिड़े (Sambhaji Bhide) ने एक महिला पत्रकार से बात करने से इसलिए इनकार कर दिया क्योंकि उसने बिंदी (Bindi) नहीं लगाई थी. इतना ही नहीं उन्होंने महिला पत्रकार से कहा कि "हर स्त्री भारत माता की तरह होती है और भारत मां विधवा नहीं है." इसके बाद बहस शुरु हो गई और नतीजा यहां तक पहुंच गया कि महाराष्ट्र महिला आयोग की अध्यक्ष रूपाली चाकणकर ने भिड़े को नोटिस जारी कर उनसे स्पष्टीकरण मांगा है.
वहीं महिला पत्रकार ने इसका ऐतराज जताते हुए सोशल मीडिया पर यह लिखा है कि "बिंदी लगाना या न लगाना यह मेरा निजी अधिकार है और इसका हनन किया जाना या जबरदस्ती करना पूरी तरह से गलत है." यह तो हो गई खबर, अब इसके आगे की बात करने के लिए सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि संभाजी भिड़े कौन हैं?
संभाजी भिड़े महाराष्ट्र के एक हिन्दुत्ववादी कार्यकर्ता हैं जो कट्टर हिंदुत्व विचार रखते हैं
विकीपीडिया के अनुसार, संभाजी भिड़े महाराष्ट्र के एक हिन्दुत्ववादी कार्यकर्ता हैं जो कट्टर हिंदुत्व विचार रखते हैं...जिनकी जड़े पूरी तरह जमीन से जुड़ी हुई हैं. वे श्री शिवप्रतिष्ठान हिंदुस्थान के संस्थापक एवं प्रमुख हैं. वे समर्थकों के बीच "भिड़े गुरुजी" नाम से लोकप्रिय हैं. असल में भिड़े साल 1980 तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े रहे, लेकिन कुछ विवाद के बाद वे अलग हो गए और एक ऐसे संगठन की स्थापन की जिसकी मूल भावना राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के ही करीब थी. कुछ सालों के बाद उन्होंने 1984 में श्री शिवप्रतिष्ठान हिंदुस्थान की स्थापना की. इन्हें 1 जनवरी 2018 को भीमा कोरेगांव में हुए दंगे में आरोपी बनाया गया था मगर बाद उनकी गिरफ्तारी नहीं हुई.
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असल में अपने देश में बहुत से ऐसे लोग हैं जो इस बात की हिमायत करते हैं कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है. इसलिए कोई इंसान जैसा चाहे वैसा रह सकता है. इस तरह तो संभाजी भिड़े की भी अपनी स्वतंत्रता है उनको महिला पत्रकार को जवाब नहीं देना था उन्होंने नहीं दिया. उनको अपने हिसाब से जो सही लगा उन्होंने अपने विचार भी रख दिए. सभी को पता है कि वो एक हिंदूवादी नेता है. उनकी विचारधारा भी वैसी ही है. हम औऱ आप उनकी सोच को बदल नहीं सकते हैं.
लड़की भी भिड़े की बात सुनकर चौक गई होगी
लड़की ने सोचा नहीं होगा कि उसके साथ ऐसा कुछ होगा. वह संभाजी भिड़े की बातें सुनकर अचानक से चौक गई होगी कि, अरे ये क्या हो गया? उसने सोचा भी नहीं होगा कि भिड़े उसे बिंदी लगाने के लिए टोकेंगे? शायद उसे भिड़े के स्वभाव के बारे में ज्यादा पता नहीं होगा.
हम सभी कुएं के मेढ़क हैं
हमें लगता है कि हम जैसे जी रहे हैं बाकी की दुनिया भी वैसी ही है. मगर ऐसा नहीं है. सबकी अपनी अलग-अलग सोच हो सकती है. जो इस दायरे के इधर-उधर होकर खुद को ढाल लेता है जीत उसी की होती है. यहां महिला की सोच औऱ भिड़े की सोच में काफी अंतर है. दोनों में से किसी ने भी सामने वाले की विचार के बारे में नहीं सोचा ना अपनाया.
ईरान दौरे पर सुषमा स्वराज
जब सुषमा स्वराज ने ईरान दौरे पर खुद को पूरी तरह ढक लिया था
जैसा देश वैसा भेष को मानते हुए सुषमा स्वराज ने ईरान दौरे पर खुद को सिर से लेकर पैर तक ढक लिया था. उन्होंने अपनी साड़ी के रंग का शॉल ओढ़ा था. ऐसा उनसे करने के लिए नहीं कहा गया था, यह सब तो कल्चर का हिस्सा है जो अपने अंदर से आता है.
अफगानिस्तान रिपोर्टिंग पर महिला पत्रकार ज्योति मल्होत्रा
जब पत्रकार ज्योति मलहोत्रा ने अफगानिस्तान में हिजाब पहना
ज्योति मलहोत्रा जब अफगानिस्तान रिपोर्टिंग करने गई थीं तो उन्होंने भी अपने सिर पर दुपट्टा ओढ़ लिया था. जबकि भारत में उनका रूप एकदम अलग है. असल में कई बार हम जहां जाते हैं वहां के कल्चर को अपनाना पड़ता है औऱ इससे हमारे अंदर कुछ घट-बढ़ नहीं जाता है.
इसे ज्वाइंट, न्यूक्लियर फैमिली और हॉस्टल लाइफ में अंतर से समझिए
जब हम अकेले रहते हैं तो हमारे कपड़े पहनने का तरीका अलग रहता है. जैसे हम शॉर्ट्स पहन लेते हैं. मगर जब हम पूरे परिवार के साथ रहते हैं तो हम फुल पजामा पहनते हैं. इसी तरह जब हम पूरे परिवार के साथ रहते हैं तो हमारी लाइफस्टाइल कुछ औऱ होती है, न्यूक्लियर फैमिली में रहते हैं तो हम अलग तरह से रहते हैं और हॉस्टल में रहते हैं तब तो पूरी लाइफ ही अलग होती है. कुल मिलाकर हम माहौल देखकर अपने खाने-पीने और कपड़े पहनने का तरीका तक बदल देते हैं. औऱ यह सब हम अपने मन से ही करते हैं, क्योंकि हम समझ जाते हैं कि हमारे लिए क्या सही है...
तनु वेड्स मनु में कंगना रनौत को सबके बीच तौलिए में देखना लोगों के लिए अजीब था
ऐसा ना होता तो तनु वेड्स मनु में कंगना रनौत का टावेल सीन असहज नहीं होता
तनु वेड्स मनु 2 फिल्म में एक सीन है जब कंगना रनौत की कजिन को लड़के वाले देखने आए रहते हैं औऱ वह तौलिया लपेटकर आ जाती है. वहां सभी लोग साड़ी और फुल पैंट में हैं. वे लोग कंगना को ऐसे देखकर असहज हो जाते हैं औऱ हम हंसने लगते हैं. अब हम यह तो नहीं कह सकते हैं कि तौलिया लेपटना हमारा मौलिक अधिकार है. कहने का मतलब यह है कि कुछ बातों में खुद को ढलना पड़ता है हर जगह हमारा मौलिक अधिकार का राग नहीं अलाप सकते हैं.
महिला पत्रकार बहस जीत सकती थी
जब भिड़े ने लड़की से कहा कि तुमने बिंदी नहीं लगाया मैं जवाब नहीं दूंगा. तब लड़की अगर यह कहती कि मेरे लिए आपका जवाब जानना ज्यादा जरूरी है. हो सकता है कि मैं अगली बार आपसे मिलने आऊं तो बिंदी लगाकर आऊं.
अक्सर जब हम दूसरे देशों में जाते हैं तो हमें वहां के हिसाब से खुध को ढालना पड़ता है, उसी तरह अपने देश में कई जगहों पर अलग-अलग संस्कृति चलती है. भिड़े असल में हमारे घर के बुजुर्ग की तरह हैं जो हमारी कोई बात पसंद नहीं आने पर टोक देते हैं. ऐसा नहीं है कि भिड़े ने जानबूझकर ऐसा किया या फिर वे सवाल का जवाब नहीं देना चाहते थे, उन्होंने तो बस महिला पत्रकार देखा औऱ वही बात कही जो उन्हें सही लगी...लड़की ने भी उनको पलटकर वही जवाब दिया जो उसे लगी. यहीं जो लोगों की सोच का अंतर है औऱ कोई बात नहीं है.
संभाजी भिड़े पहले भी भिड़ चुके हैं
जब आप भिड़े को पूरी तरह जानेंगे तब समझ जाएंगे कि उन्होंने बिंदी वाला कमेंट क्यों किया? असल में कुछ सालों पह भिड़े ने कहा था कि "अमेरिका चंद्रमा पर अपना अंतरिक्षयान भेजने की 39 वीं कोशिश में इसलिए सफल रहा क्योंकि उसने इसे ‘एकादशी के दिन' भेजा था. बार-बार की नाकामियों के बाद एक अमेरिकी वैज्ञानिक ने भारतीय काल गणना अपनाने का सुझाव दिया था. जिसका पालन करने से अमेरिका सफल रहा. इतना ही नहीं भिड़े इससे परले नासिक में कहा था, ‘उनके बाग का आम खाने पर कई दंपतियों को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई है.' इसलिए भिड़े की बिंदी वाली बयान पर हमें आश्चर्य नहीं करना चाहिए. वो तो शुरु से ही ऐसी विचारधारा वाले हैं. वे आज भी पैरों में चप्पल नहीं पहनते हैं. वे कार की जगह साइकलि और बस से चलना पसंद करते हैं. इनका पहनावा भी धोती-कुर्ता ही है.
हम तो यही कहेंगे कि महिला पत्रकार औऱ भिड़े दोनों ही अपनी-अपनी विचारधारा को मानने वाले हैं औऱ दोनों के पास अपना मौलिक अधिकार है. बस दोनों ने एक दूसरे की बात को समझने की कोशिश नहीं की, वरना आज इस तरह की बहस ही नहीं होती...
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