टूलकिट विवाद में संबित पात्रा (Sambit Patra) मैसेंजर ही तो हैं, लेकिन उसकी लपटें बीजेपी नेतृत्व (BJP Leadership) तक को झुलसाने वाली हैं. संबित पात्रा की तरफ से शेयर टूलकिट को ट्विटर ने मैनिपुलेटेड बता कर राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ बीजेपी और उसके मातृ संगठन RSS के एजेंडे को लोगों के सामने ला दिया है.
2014 से केंद्र की सत्ता हासिल करने के बाद से ही बीजेपी नेतृत्व कांग्रेस को हर गलती के लिए जिम्मेदार ठहराता रहा है - ये तो सोनिया गांधी ने भी खुद ही स्वीकार किया है कि कांग्रेस (Congress) को मुस्लिम पार्टी के तौर पर बदनाम किया जा चुका है. चुनाव दर चुनाव कांग्रेस को पाकिस्तान परस्त और टुकड़े टुकड़े गैंग वाले देशद्रोहियों के साथ खड़ी होने वाली पार्टी बताया जाता रहा है.
राम मंदिर एजेंडे और हिंदुत्व के साये में लोग भी आंख मूंद कर यकीन करते आ रहे हैं कि जो बताया जा रहा है वही सच है. लोगों के व्हाट्सऐप पर जो मैसेज आ रहे हैं वे सत्यमेव जयते के सिद्धांत को ही फॉलो करते हैं.
ये प्रोपेगैंडा पॉलिटिक्स का ही नतीजा है कि लोग मुख्यधारा के मीडिया से कहीं ज्यादा व्हाट्सऐप ज्ञान पर भरोसा करने लगे हैं - और बीजेपी नेता केंद्रीय मंत्री वीके सिंह सिंह के खुद के बचाव में किये गये ट्वीट के बाद पूरे मीडिया को प्रेस्टिट्यूट ही समझने लगे हैं.
संबित पात्रा का टूलकिट तो एक नमूना भर है, सोशल मीडिया से लेकर मैसेंजर ऐप व्हाट्सऐप पर 24 घंटे ऐसे हजारों टूलकिट धड़ाधड़ शेयर किये जाते रहे हैं - और लोग हैं कि उन पर विश्वास करके मरने मारने वाले अंदाज में लड़ाई शुरू कर देते हैं.
संबित पात्रा का टूलकिट वाला ट्वीट भी वैसे ही है जैसे कई वारदात को अंजाम देने वाला अपराधी किसी एक केस में पकड़ में आ जाता है - और उसकी असलियत सामने आ जाती है.
जिस टूलकिट को कांग्रेस का बता कर संबित पात्रा और दूसरे बीजेपी नेता राहुल गांधी और सोनिया गांधी को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश कर रहे थे, वो बैकफायर कर गया है - और उसकी लपटें बीजेपी नेतृत्व को झुलसाने...
टूलकिट विवाद में संबित पात्रा (Sambit Patra) मैसेंजर ही तो हैं, लेकिन उसकी लपटें बीजेपी नेतृत्व (BJP Leadership) तक को झुलसाने वाली हैं. संबित पात्रा की तरफ से शेयर टूलकिट को ट्विटर ने मैनिपुलेटेड बता कर राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ बीजेपी और उसके मातृ संगठन RSS के एजेंडे को लोगों के सामने ला दिया है.
2014 से केंद्र की सत्ता हासिल करने के बाद से ही बीजेपी नेतृत्व कांग्रेस को हर गलती के लिए जिम्मेदार ठहराता रहा है - ये तो सोनिया गांधी ने भी खुद ही स्वीकार किया है कि कांग्रेस (Congress) को मुस्लिम पार्टी के तौर पर बदनाम किया जा चुका है. चुनाव दर चुनाव कांग्रेस को पाकिस्तान परस्त और टुकड़े टुकड़े गैंग वाले देशद्रोहियों के साथ खड़ी होने वाली पार्टी बताया जाता रहा है.
राम मंदिर एजेंडे और हिंदुत्व के साये में लोग भी आंख मूंद कर यकीन करते आ रहे हैं कि जो बताया जा रहा है वही सच है. लोगों के व्हाट्सऐप पर जो मैसेज आ रहे हैं वे सत्यमेव जयते के सिद्धांत को ही फॉलो करते हैं.
ये प्रोपेगैंडा पॉलिटिक्स का ही नतीजा है कि लोग मुख्यधारा के मीडिया से कहीं ज्यादा व्हाट्सऐप ज्ञान पर भरोसा करने लगे हैं - और बीजेपी नेता केंद्रीय मंत्री वीके सिंह सिंह के खुद के बचाव में किये गये ट्वीट के बाद पूरे मीडिया को प्रेस्टिट्यूट ही समझने लगे हैं.
संबित पात्रा का टूलकिट तो एक नमूना भर है, सोशल मीडिया से लेकर मैसेंजर ऐप व्हाट्सऐप पर 24 घंटे ऐसे हजारों टूलकिट धड़ाधड़ शेयर किये जाते रहे हैं - और लोग हैं कि उन पर विश्वास करके मरने मारने वाले अंदाज में लड़ाई शुरू कर देते हैं.
संबित पात्रा का टूलकिट वाला ट्वीट भी वैसे ही है जैसे कई वारदात को अंजाम देने वाला अपराधी किसी एक केस में पकड़ में आ जाता है - और उसकी असलियत सामने आ जाती है.
जिस टूलकिट को कांग्रेस का बता कर संबित पात्रा और दूसरे बीजेपी नेता राहुल गांधी और सोनिया गांधी को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश कर रहे थे, वो बैकफायर कर गया है - और उसकी लपटें बीजेपी नेतृत्व को झुलसाने लगी हैं.
ये भी चांस की ही बात है. जरूरी नहीं था कि टूलकिट का ये मामला इस कदर तूल पकड़ पाता - अगर कोरोना संकट के बीच सरकार के बेपरवाह रवैये को लोगों ने महसूस नहीं किया होता.
अभी ये तो नहीं कहा जा सकता कि बीजेपी नेतृत्व को टूलकिट के ताजा विवाद से कोई बड़ी मुश्किल होने वाली है, लेकिन ये तो है ही कि अगर वाकई 'सत्यमेव जयते' में यकीन है - और ये भी जय श्रीराम की तरह महज राजनीतिक स्लोगन नहीं है तो संभलने के लिए बड़ा सबक हो सकता है.
टूलकिट का मामला क्या है?
संबित पात्रा के टूलकिट पर ट्विटर के एक्शन के लिए जिम्मेदार कौन है? या ये भी पश्चिम बंगाल और पहले के चुनावों में बीजेपी की हार की सामूहिक जिम्मेदारी जैसी ही समझी जाये?
संबित पात्रा तो बस मौके पर धर लिये गये हैं, भागने का मौका भी तो नहीं बचा था. डिजिटल इंडिया में हमेशा भागने का मौका भी तो नहीं मिलता. संबित पात्रा की तो वैसी गलती भी नहीं लगती - अब फुंके हुए कारतूसों के साथ ही मोर्चे पर तैनात कर दिया जाएगा तो मिसफायर तो होगा ही. हर बार मिसफायर भी क्यों हो - कभी कभी बैकफायर भी तो हो सकता है. हुआ भी वही है.
हो सकता है संबित पात्रा को अपने टूलकिट को ट्विटर पर मैनिपुलेटेड मीडिया बताया जाना वैसा ही लगा हो जैसा गौरव वल्लभ का लाइव क्विक क्विज - मालूम भी है कितने जीरो होते हैं, एक ट्रिलियन में? या फिर पुरी में अनजानों के पैर छूने पर आशीर्वाद में मिली हार जैसा महसूस हो रहा हो?
टूलकिट के साथ संबित पात्रा तो बस कांग्रेस नेतृत्व के बीजेपी नेतृत्व पर हमलावर रुख का काउंटर भर कर रहे थे. हमले भी पहले के मुकाबले तगड़े हो चले हैं, लिहाजा सिर्फ लच्छेदार शब्दों या मुहावरों से न्यूट्रलाइज करना मुमकिन नहीं हो रहा है.
तभी तो राहुल गांधी और सोनिया गांधी को अच्छी तरह से घेरने के लिए टूलकिट की मदद ली गयी - जैसे चीन के मुद्दे पर चंदों की रकम और दूसरे दस्तावेज पेश किये जा रहे थे. मजबूत दांव तो इस बार भी चले थे, लेकिन उलटा पड़ गया.
जैसे पुलवामा हमले के बाद राहुल गांधी को संघ और बीजेपी नेताओं के कैंपेन ने पाकिस्तान परस्त बता दिया और लोग मान भी लिये. ये टूलकिट भी तो जनता की अदालत में नये सिरे से कांग्रेस नेतृत्व के खिलाफ आपराधिक मानहानि के मुकदमे जैसा था, लेकिन सबूत तो सबूत होता है. सबूत तो मिटाये पर भी नहीं मिटता. आधे अधूरे सबूत भी तो नहीं चलते.
कांग्रेस का आईटी सेल इस बार पहले से ही चौकन्ना रहा. टूलकिट के शेयर करते ही प्राथमिक जांच पड़ताल के बाद ही कड़े प्रतिरोध के स्वर सुनाई देने लगे थे - साफ है, टूलकिट की हकीकत पहले ही समझ आ चुकी थी. तभी तो कांग्रेस शिकायत लेकर पुलिस तक पहुंच गयी.
यूथ कांग्रेस की राष्ट्रीय सचिव शिवी चौहान की तरफ से दिल्ली के संसद मार्ग थाने में बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा के खिलाफ शिकायत दर्ज करायी गयी है. पहले भी कांग्रेस की तरफ से दिल्ली पुलिस के कमिश्नर को संबित पात्रा के अलावा बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा और केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी सहित चार लोगों के खिलाफ FIR दर्ज कराने के लिए पत्र लिखा जा चुका है. छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भी कांग्रेस की तरफ से बीजेपी नेताओं के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज करायी गयी है. दोनों ही राज्यों में सरकार भी कांग्रेस की ही है.
यूथ कांग्रेस का इल्जाम है कि संबित पात्रा कोरोना महामारी के बीच केंद्र की मोदी सरकार की बदइंतजामियों से लोगों का ध्यान हटाने और सांप्रदायिक तनाव फैलाने के लिए एक मनगढ़ंत और फर्जी टूलकिट को प्रसारित कर रहे हैं.
साथ ही, कांग्रेस ने फेक न्यूज फैलाने का आरोप लगाते हुए ट्विटर का भी रुख किया और बीजेपी नेताओं के ट्विटर अकाउंट सस्पेंड करने की मांग की. जिन नेताओं के खिलाफ कांग्रेस की तरफ से एक्शन की डिमांड हुई वे हैं - जेपी नड्डा, स्मृति ईरानी, संबित पात्रा और बीएल संतोष.
बहरहाल, ये जान लेना भी जरूरी है कि मामले की शुरुआत कैसे हुई? 18 मई को संबित पात्रा ने अपनी ट्विटर टाइमलाइन पर #CongressToolKit हैशटैक के साथ एक लेटर शेयर किया.
संबित पात्रा ने लिखा एक और हैशटैग #CongressToolKitExposed के साथ लिखा कि ये सब कुछ मित्रवत-पत्रकारों और इनफ्लुएंसर्स के जरिये कराया जा रहा है - आप भी पढ़ें और कांग्रेस का एजेंडा समझने की कोशिश करें.
ट्वीट के नीचे आप देख सकते हैं कि कैसे ट्विटर ने इस पोस्ट पर 'मैनिपुलेटेड मीडिया' का ठप्पा लगा दिया है. मतलब, जो कुछ भी शेयर किया गया है उसके सही होने पर शक है - और कुछ बातों के साथ तथ्यों को हेरफेर करके परोसा गया है.
जो लेटर शेयर किया गया है उस पर कांग्रेस का लोगो लगा है और टाइटल है - कोविड मैनेजमेंट को लेकर नरेंद्र मोदी का घेराव.
ट्वीट के सामने आते ही कांग्रेस की तरफ से न सिर्फ बीजेपी के दावों का खंडन किया गया, बल्कि AICC के रिसर्च डिपार्टमेंट के राष्ट्रीय प्रवक्ता राजीव गौड़ा ने आरोप लगाया कि बीजेपी कोविड-मिसमैनेजमेंट से जुड़ी एक फेक ‘टूलकिट’ को प्रचारित कर रही है.
कांग्रेस की तरफ से बीजेपी प्रवक्ता के दावे पर सवाल उठाये जाने के बाद संबित पात्रा ने एक और दावा किया और इसे तैयार करने वाले का नाम भी बताया. संबित पात्रा ने नये ट्वीट में दावा किया कि कांग्रेस के लिए सौम्या वर्मा नाम की एक महिला ने ये टूलकिट तैयार किया और इसके जरिये पार्टी देश में भ्रम फैला रही है.
संबित पात्रा ट्विटर पर लिखा कि कांग्रेस पूछ रही थी कि टूलकिट का निर्माता कौन है? संबित पात्रा ने सलाह दी कि अब पेपर की प्रॉपर्टी चेक कर लीजिये. अब ये सौम्या वर्मा कौन हैं? सबूत गवाही दे रहे हैं - क्या अब राहुल गांधी और सोनिया गांधी जवाब देंगे?
महामारी के बीच बीजेपी के लिए महासबक
केंद्र की मोदी सरकार की सेहत पर ऐसी चीजों से बहुत फर्क नहीं पड़ने वाला है - लेकिन देश के राजनीतिक मझधार में फंसी कांग्रेस के लिए ये तिनके के सहारे जैसा जरूर है. जो लोग कांग्रेस और उसके नेताओं के बारे में बीजेपी की बातों पर आसानी से विश्वास कर लेते रहे, उनके लिए ऐसी ऊल जुलूल बातें आगे से हजम करना आसान नहीं होगा.
2019 के आम चुनाव के बाद से बीजेपी जैसे तैसे हरियाणा में गठबंधन सरकार बनाने और बिहार में नीतीश कुमार को राजनीतिक चाल में फंसाकर सरकार में सीनियर पार्टनर बन जाने में ही कामयाब रही है. वरना, महाराष्ट्र और झारखंड में सत्ता के हाथ से फिसल जाने के बाद दिल्ली में कोई तिकड़म काम नहीं आया - और बंगाल में तो जो हुआ उसके जख्म हरे ही हैं. लंबे समय तक दर्द भी होता रहेगा. हां, असम में सत्ता बचाने में बीजेपी कामयाब रही है - और मध्य प्रदेश में भी जैसे तैसे सत्ता पर कब्जा कर ही लिया है.
अब तो बंगाल से भी बड़ा इम्तिहान उत्तर प्रदेश में होने वाला है. अब तो अयोध्या में राम मंदिर भी बन ही रहा है - भला, श्मशान और कब्रिस्तान के झमेले में लोगों को कब तक फंसाया जा सकता है?
लोग तो सोशल मीडिया पर यहां तक कहने लगे हैं कि ये बीजेपी ही रही जो 2017 में श्मशान और कब्रिस्तान का फर्क समझाते हुए दोनों बनवाने पर जोर दे रही थी - अब तो ये दिन आ गये कि नये निर्माण के नाम पर जगह जगह श्मशान और कब्रिस्तान ही बन रहे हैं.
हालत तो ये हो चली है कि कब्रिस्तान और श्मशान भी लगता है कम पड़ जा रहे हैं तभी तो कहीं नदी किनारे बालू में से शवों को खींच कर कुत्ते खा रहे हैं और नदियों में लाशें उतरायी हुई नजर आ रही हैं.
हालांकि, महामारी की वजह से मुश्किल में पड़े लोगों पर ध्यान देते हुए बीजेपी नेतृत्व मोदी-शाह अगर इसे भी एक महासबक के तौर पर लेता है तो भी बात बहुत खराब नहीं होगी.
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