पंजाब के संगरूर लोकसभा सीट पर शिरोमणी अकाली दल (अमृतसर) के सिमरनजीत मान ने ऐतिहासिक जीत हासिल की है. सिमरनजीत मान ने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी आम आदमी पार्टी के गुरमैल सिंह को तक़रीबन 6000 मतों से मात दे दी. भगवंत मान के राज्य के मुख्यमंत्री बनने के बाद खाली हुई सीट पर हुए चुनाव को आम आदमी पार्टी के लिए पहले टेस्ट के रूप में देखा जा रहा था, हालाँकि आप अपने पहले टेस्ट में सफल नहीं हो सकी. इससे पहले 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में पंजाब के वर्तमान मुख्यमंत्री भगवंत मान ने इस सीट पर जीत दर्ज की थी. यानि इस सीट के नतीजे का सीधा असर भगवंत मान के प्रतिष्ठा से भी जुड़ा था. आमतौर पर उपचुनावों के नतीजों में राज्य में सत्ताधारी पार्टी लाभ की स्थिति में होती हैं, ऐसे में आम आदमी पार्टी के लिए यह लाभ की स्थिति थी, और साथ ही जब मार्च के महीने में पार्टी प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में आयी हो तो पार्टी के लिए चीजें और भी आसान हो जाती है.
इन सब के अलावा यह सीट भगवंत मान के गढ़ के रूप में भी देखी जा रही थी, ऐसे में इस सीट पर पार्टी की हार किसी बड़े झटके से कम नहीं. हालाँकि कुछ महीने पहले ही संपन्न हुए चुनावों में आम आदमी पार्टी ने पूरे प्रदेश में जोरदार प्रदर्शन किया था, पार्टी का प्रदर्शन तो मालवा में और भी जोरदार रहा था जहाँ पार्टी ने 69 में से 66 सीटें जीतीं थी.
संगरूर लोकसभा में पड़ने वाली 9 के 9 सीटों पर आम आदमी पार्टी ने जीत दर्ज की थी. तो आखिर इन तीन महीनों में ऐसा क्या बदला कि पार्टी को उपचुनावों में हार का मुंह देखना पड़ गया? आम आदमी पार्टी के खिलाफ लोगों के गुस्से के कई कारण हैं, आप सरकार के छोटे से कार्यकाल में ही पंजाब में ऐसी कई घटनाये घटी जो पंजाब...
पंजाब के संगरूर लोकसभा सीट पर शिरोमणी अकाली दल (अमृतसर) के सिमरनजीत मान ने ऐतिहासिक जीत हासिल की है. सिमरनजीत मान ने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी आम आदमी पार्टी के गुरमैल सिंह को तक़रीबन 6000 मतों से मात दे दी. भगवंत मान के राज्य के मुख्यमंत्री बनने के बाद खाली हुई सीट पर हुए चुनाव को आम आदमी पार्टी के लिए पहले टेस्ट के रूप में देखा जा रहा था, हालाँकि आप अपने पहले टेस्ट में सफल नहीं हो सकी. इससे पहले 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में पंजाब के वर्तमान मुख्यमंत्री भगवंत मान ने इस सीट पर जीत दर्ज की थी. यानि इस सीट के नतीजे का सीधा असर भगवंत मान के प्रतिष्ठा से भी जुड़ा था. आमतौर पर उपचुनावों के नतीजों में राज्य में सत्ताधारी पार्टी लाभ की स्थिति में होती हैं, ऐसे में आम आदमी पार्टी के लिए यह लाभ की स्थिति थी, और साथ ही जब मार्च के महीने में पार्टी प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में आयी हो तो पार्टी के लिए चीजें और भी आसान हो जाती है.
इन सब के अलावा यह सीट भगवंत मान के गढ़ के रूप में भी देखी जा रही थी, ऐसे में इस सीट पर पार्टी की हार किसी बड़े झटके से कम नहीं. हालाँकि कुछ महीने पहले ही संपन्न हुए चुनावों में आम आदमी पार्टी ने पूरे प्रदेश में जोरदार प्रदर्शन किया था, पार्टी का प्रदर्शन तो मालवा में और भी जोरदार रहा था जहाँ पार्टी ने 69 में से 66 सीटें जीतीं थी.
संगरूर लोकसभा में पड़ने वाली 9 के 9 सीटों पर आम आदमी पार्टी ने जीत दर्ज की थी. तो आखिर इन तीन महीनों में ऐसा क्या बदला कि पार्टी को उपचुनावों में हार का मुंह देखना पड़ गया? आम आदमी पार्टी के खिलाफ लोगों के गुस्से के कई कारण हैं, आप सरकार के छोटे से कार्यकाल में ही पंजाब में ऐसी कई घटनाये घटी जो पंजाब में कानून व्यवस्था की कलई खोलती नजर आयी, मसलन प्रसिद्ध गायक सिद्धू मूसेवाला की हत्या, कबड्डी खिलाड़ियों की हत्या, पंजाब पुलिस के इंटेलिजेंस मुख्यालय पर हमले जैसी घटनाओं सरकार की काबिलियत पर सवालिया निशान लगा दिया.
राज्य सभा चुनावों में मालवा को तरजीह ना देना भी इस इलाकों के वोटरों को नागावार गुजरा. हालाँकि पार्टी की इमेज को सबसे बड़ा धक्का गायक सिद्धू मूसेवाला की हत्या से लगा। मान सरकार ने वीआईपी सुरक्षा में कटौती करने का फैसला किया था जिसमें गायक मूसेवाला का भी नाम था, हालाँकि इस फैसले के अगले ही दिन ताबड़तोड़ फायरिंग कर मूसेवाला को मौत के घाट उतार दिया गया.
मूसेवाला की देश विदेश में बड़ी फैन फालोइंग थी, साथ ही संगरूर इलाके में भी मूसेवाला को लेकर जबरदस्त दीवानगी थी. मूसेवाला के फैन उनकी हत्या के लिए सीधे तौर पर राज्य सरकार की गलत नीति और अदूरदर्शिता को जिम्मेदार मान रहें है, इसका खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ा.
मार्च, अप्रैल के महीने में पंजाब के कई इलाकों में बिजली संकट भी देखने को मिला, जिसका असर भी इन नतीजों में देखने को मिला है. हालाँकि इन नतीजों का कोई खास असर आम आदमी पार्टी की पंजाब सरकार में देखने को नहीं मिलेगा, हा यह जरूर है कि लोकसभा में आम आदमी पार्टी का कोई प्रतिनिधि अब मौजूद नहीं रहेगा, 2019 में जीती एकमात्र सीट भी अब आम आदमी पार्टी के हाथ से फिसल गयी है.
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