"भाइयों और बहनों राष्ट्रपति जी ने आपातकाल की घोषणा की है और इससे आतंकित होने का कोई कारण नहीं है." देश के नाम इस संदेश के बाद इंदिरा गाँधी ने अगले 21 महीनों के लिए भारत के लोकतंत्र को अपने प्रधानमंत्री आवास 1 सफदरगंज रोड में गिरवी रख लिया. देश का पहला राजनीतिक परमाणु परीक्षण जिसने अपने ही देशवासियों को आतंकित कर दिया. भारत और पाकिस्तान के युद्ध के बाद से ही देश आर्थिक और राजनीतिक परेशानियों का सामना कर रहा था और इंदिरा गाँधी ने इसी का हवाला देते हुए आपातकाल की घोषणा की. कल ही वो दिन था जब देश के लोगों ने आपातकाल को याद किया और अपने-अपने तरीके से इसकी आलोचना भी की. आपातकाल की पैदाइश हमारे नेताओं ने भी मीडिया कैमरों के सामने अपने बलिदान और देश-प्रेम की अमर गाथा को सुनाते हुए अपनी भावनाओं का इज़हार किया.
हमारा देश चुनावी साल की तरफ बहुत तेज़ी के साथ आगे बढ़ रहा है. हर एक मुद्दे पर अपनी वाहवाही बटोरना और अपने विपक्षियों के ऐतिहासिक कारनामों पर लानत भेजने का खेल अगले लोकसभा चुनाव तक बदस्तूर जारी रहेगा. देश के प्रधान सेवक मोदी जी ने भी कल एक ख़ास रैली की ताकि कांग्रेस और इंदिरा गाँधी के लोकतान्त्रिक हत्या के पाप का स्मरण दिवस मनाया जा सके. ऐसे भी राजनीति में मुर्दे गाड़े नहीं जाते उन्हें ज़िंदा रखा जाता है ताकि समय आने पर फिर से बोल सकें. मीडिया ने भी आर्काइव से पुराने फुटेज निकाले और प्रेस की स्वतंत्रता और निष्पक्षता को अक्षुण्ण बनाये रखने के लिए अपनी पीठ खुद थपथपाई.
कुल मिलाकर कल पूरे देश ने 'खलनायक दिवस' मनाया और इसके केंद्र में कोई और नहीं इंदिरा गाँधी और उनके छोटे बेटे संजय गाँधी ही थे. आपातकाल लगाने के कारण राजनीतिक हो सकते हैं और इस दौरान हुई ज़्यादतियों की नींदा की जा सकती है लेकिन एक युवा और जोशीला नेता संजय गाँधी के देश-प्रेम पर सवाल नहीं उठाया जा...
"भाइयों और बहनों राष्ट्रपति जी ने आपातकाल की घोषणा की है और इससे आतंकित होने का कोई कारण नहीं है." देश के नाम इस संदेश के बाद इंदिरा गाँधी ने अगले 21 महीनों के लिए भारत के लोकतंत्र को अपने प्रधानमंत्री आवास 1 सफदरगंज रोड में गिरवी रख लिया. देश का पहला राजनीतिक परमाणु परीक्षण जिसने अपने ही देशवासियों को आतंकित कर दिया. भारत और पाकिस्तान के युद्ध के बाद से ही देश आर्थिक और राजनीतिक परेशानियों का सामना कर रहा था और इंदिरा गाँधी ने इसी का हवाला देते हुए आपातकाल की घोषणा की. कल ही वो दिन था जब देश के लोगों ने आपातकाल को याद किया और अपने-अपने तरीके से इसकी आलोचना भी की. आपातकाल की पैदाइश हमारे नेताओं ने भी मीडिया कैमरों के सामने अपने बलिदान और देश-प्रेम की अमर गाथा को सुनाते हुए अपनी भावनाओं का इज़हार किया.
हमारा देश चुनावी साल की तरफ बहुत तेज़ी के साथ आगे बढ़ रहा है. हर एक मुद्दे पर अपनी वाहवाही बटोरना और अपने विपक्षियों के ऐतिहासिक कारनामों पर लानत भेजने का खेल अगले लोकसभा चुनाव तक बदस्तूर जारी रहेगा. देश के प्रधान सेवक मोदी जी ने भी कल एक ख़ास रैली की ताकि कांग्रेस और इंदिरा गाँधी के लोकतान्त्रिक हत्या के पाप का स्मरण दिवस मनाया जा सके. ऐसे भी राजनीति में मुर्दे गाड़े नहीं जाते उन्हें ज़िंदा रखा जाता है ताकि समय आने पर फिर से बोल सकें. मीडिया ने भी आर्काइव से पुराने फुटेज निकाले और प्रेस की स्वतंत्रता और निष्पक्षता को अक्षुण्ण बनाये रखने के लिए अपनी पीठ खुद थपथपाई.
कुल मिलाकर कल पूरे देश ने 'खलनायक दिवस' मनाया और इसके केंद्र में कोई और नहीं इंदिरा गाँधी और उनके छोटे बेटे संजय गाँधी ही थे. आपातकाल लगाने के कारण राजनीतिक हो सकते हैं और इस दौरान हुई ज़्यादतियों की नींदा की जा सकती है लेकिन एक युवा और जोशीला नेता संजय गाँधी के देश-प्रेम पर सवाल नहीं उठाया जा सकता. देश के लिए और देशवासियों के लिए कुछ कर गुजरने की उनकी चाहत को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता. जिस दौर में भारत जी रहा था, भुखमरी और तंगहाली की चादर ओढ़े देश की जनता एक-एक दाने को मोहताज़ थी यकीन मानिये उस दौर को संजय गाँधी जैसे अति महत्वाकांक्षी नेता की ही ज़रूरत थी.
संजय गाँधी ने इस देश की परेशानियों को सबसे बेहतरीन तरीके से समझा था और उसका सही इलाज़ भी ढूंढ निकाला था. उस दौर में परिवार नियोजन की बात करना और जाति प्रथा के उन्मूलन की बात करना उनकी दूरदर्शी सोच को दर्शाने के लिए काफी है. 'हम दो हमारे दो ' के नारे के बीच देश ने अपनी प्रगति का रास्ता निकाल लिया था लेकिन प्रशासनिक अफसर और कांग्रेसी नेताओं की चापलूसी के कारण परिवार नियोजन ने गलत मोड़ ले लिया. आज पूरा देश प्रदूषण की समस्या से त्रस्त है. हमारे शहरों ने पूरी दुनिया में प्रदूषण के मामले में एक नया मुकाम हासिल किया है. संजय गाँधी ने अपने पांच सूत्री कार्यक्रम पेड़ लगाने की योजना को प्रमुख स्थान दिया था. शहरों के सौंदर्यीकरण की बात हो या व्यस्क शिक्षा की बात हो इनके फैसलों ने उसी दौर में 'न्यू इंडिया' बनाने की एक मज़बूत आधारशिला रख दी थी.
हवा में कलाबाज़ियां करने वाला ये नौजवान उसी तरह देश की तरक्की में भी अपने जोश का पंख लगाकर उसे विश्व में एक प्रमुख स्थान दिलाने की हसरत रखता था. उनके काम करने का एक तरीका था जो भले ही एक लोकतान्त्रिक देश में व्यावहारिक ना लगे लेकिन एक गरीब और कमज़ोर राष्ट्र के लिए बहुत ज़रूरी था. मारुति कार की फैक्ट्री लगाकर उन्होंने अपनी औद्योगिक क्षमता का भी लोहा मनवाया. आपातकाल के स्याह पहलुओं को हम हमेशा याद करते हैं लेकिन उस दौरान देश में अनुशासन का राज था और इससे कोई इंकार नहीं कर सकता. सरकारी अफसर समय पर दफ्तर आने लगे थे और नेताओं को अपने काम समय पर नहीं पूरा होने के कारण दण्डित किया जा रहा था. जो की उस दौर में देश के लिए प्रासंगिक भी था.
खैर आपातकाल ख़त्म हुआ और चुनाव के बाद देश में जनता पार्टी की सरकार आई. पहले कौन प्रधानमंत्री बनेगा इसी को लेकर कई दिनों तक दंगल चलता रहा. कल तक जो नेता देश-प्रेम से ओतप्रोत होकर देश के विभिन्न जेलों में लोकतंत्र के रक्षा की कसम खा रहे थे अचानक व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा के कारण निर्लजता की सारी सीमाओं को लांघ रहे थे. देश का प्रधानमंत्री अपने गृहमंत्री चरण सिंह को चूरन सिंह में बदलने की बात करने लगा था. ये था हमारे देश के दूसरे स्वतंत्रता आंदोलन के देश-प्रेमी आंदोलनकारियों का चाल और चरित्र. आज देश के प्रधान सेवक नोटबंदी के पक्ष में जब ये तर्क देते हैं कि देश की अर्थव्यवस्था को कड़वी दवा को ज़रूरत थी तो फिर संजय गाँधी के कड़वी दवा को इतना हेय दृष्टि से क्यों देखा जाता है और हम उन्हें बार-बार एक खलनायक के रूप में क्यों याद करते हैं.
स्टोरी : विकास कुमार (इंटर्न, इंडिया टुडे)
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