संत कबीरनगर में बीजेपी सांसद और विधायक की मारपीट हुई तो जिलाधिकारी के सामने लेकिन मामला थाने नहीं पहुंचा - क्योंकि पुलिस में शिकायत नहीं दर्ज करायी गयी. हालांकि, सांसद शरद त्रिपाठी से पिटे विधायक राकेश सिंह बघेल ने समर्थकों को भरोसा दिलाया है कि हिसाब बराबर होकर रहेगा. मारपीट का असर ये जरूर हुआ कि बस्ती जिले में होने वाली जिला नियोजन समिति की बैठक निरस्त करनी पड़ी क्योंकि प्रभारी मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह ने बैठक में शामिल होने से इनकार कर दिया. दरअसल, मारपीट की घटना भी ऐसी ही एक मीटिंग में हुई जिसमें योगी आदित्यनाथ सरकार के मंत्री आशुतोष टंडन मौजूद थे.
भरी सभा में मारपीट और गाली-गलौच का जो नजारा वायरल वीडियो के जरिये अब हर कोई देख चुका है. वीडियो से ये तो साफ है कि बहस किस बात पर शुरू हुई और किसने जूते मारने की बात पहले की - और गाली देने के मामले में कौन आगे रहा.
सवाल ये है कि एक ही पार्टी के सांसद और विधायक के बीच जूतम-पैजार की नौबत क्यों और कैसे आई? क्या ये सब तात्कालिक था? या पहले से चले आ रहे किसी स्थानीय झगड़े का विस्फोटक स्वरूप रहा?
या फिर, यूपी की बरसों पुरानी ब्राह्मण बनाम ठाकुर के राजनीतिक वर्चस्व की लड़ाई का ये सबसे घटिया रूप है?
'विटामिन बी-कॉम्प्लेक्स' क्या है?
यूपी के गोरखपुर और आस पास के इलाके में ब्राह्मण और ठाकुरों की लड़ाई अक्सर बराबरी पर छूटती रही है. कभी कभी ऐसे दौर भी आये हैं जब दोनों में से किसी एक जाति ने बढ़ी हैसियत के चलते दबदबा बना लिया - और कुछ दिन बाद बाजी पलट कर दूसरे के हाथ चली गयी.
केंद्र और यूपी में सत्ताधारी बीजेपी की मुश्किल ये है कि ये दोनों ही पार्टी के पुराने वोट बैंक रहे हैं. यूपी में योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद जब पार्टी को लगा कि ठाकुरों के वर्चस्व से कहीं ब्राह्मण नाराज न हो जायें तो प्रदेश बीजेपी की कमान महेंद्र नाथ पांडेय को सौंपी गयी.
संत कबीर नगर में खलीलाबाद से बीजेपी सांसद शरद त्रिपाठी और मेंहदावल विधायक की मारपीट के बाद...
संत कबीरनगर में बीजेपी सांसद और विधायक की मारपीट हुई तो जिलाधिकारी के सामने लेकिन मामला थाने नहीं पहुंचा - क्योंकि पुलिस में शिकायत नहीं दर्ज करायी गयी. हालांकि, सांसद शरद त्रिपाठी से पिटे विधायक राकेश सिंह बघेल ने समर्थकों को भरोसा दिलाया है कि हिसाब बराबर होकर रहेगा. मारपीट का असर ये जरूर हुआ कि बस्ती जिले में होने वाली जिला नियोजन समिति की बैठक निरस्त करनी पड़ी क्योंकि प्रभारी मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह ने बैठक में शामिल होने से इनकार कर दिया. दरअसल, मारपीट की घटना भी ऐसी ही एक मीटिंग में हुई जिसमें योगी आदित्यनाथ सरकार के मंत्री आशुतोष टंडन मौजूद थे.
भरी सभा में मारपीट और गाली-गलौच का जो नजारा वायरल वीडियो के जरिये अब हर कोई देख चुका है. वीडियो से ये तो साफ है कि बहस किस बात पर शुरू हुई और किसने जूते मारने की बात पहले की - और गाली देने के मामले में कौन आगे रहा.
सवाल ये है कि एक ही पार्टी के सांसद और विधायक के बीच जूतम-पैजार की नौबत क्यों और कैसे आई? क्या ये सब तात्कालिक था? या पहले से चले आ रहे किसी स्थानीय झगड़े का विस्फोटक स्वरूप रहा?
या फिर, यूपी की बरसों पुरानी ब्राह्मण बनाम ठाकुर के राजनीतिक वर्चस्व की लड़ाई का ये सबसे घटिया रूप है?
'विटामिन बी-कॉम्प्लेक्स' क्या है?
यूपी के गोरखपुर और आस पास के इलाके में ब्राह्मण और ठाकुरों की लड़ाई अक्सर बराबरी पर छूटती रही है. कभी कभी ऐसे दौर भी आये हैं जब दोनों में से किसी एक जाति ने बढ़ी हैसियत के चलते दबदबा बना लिया - और कुछ दिन बाद बाजी पलट कर दूसरे के हाथ चली गयी.
केंद्र और यूपी में सत्ताधारी बीजेपी की मुश्किल ये है कि ये दोनों ही पार्टी के पुराने वोट बैंक रहे हैं. यूपी में योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद जब पार्टी को लगा कि ठाकुरों के वर्चस्व से कहीं ब्राह्मण नाराज न हो जायें तो प्रदेश बीजेपी की कमान महेंद्र नाथ पांडेय को सौंपी गयी.
संत कबीर नगर में खलीलाबाद से बीजेपी सांसद शरद त्रिपाठी और मेंहदावल विधायक की मारपीट के बाद एक बार फिर विटामिन बी-कॉम्प्लेक्स चर्चा में लौट आया है. इलाके में विटामिन बी का अर्थ ब्राह्मण समुदाय समझा जाता है.
2018 के आखिर में बीजेपी विधायक राकेश सिंह बघेल का एक ऑडियो क्लिप इलाके में खासा चर्चित रहा. बताते हैं कि इसमें विधायक राकेश सिंह बघेल और एक रिटायर्ड पुलिस अफसर के बीच हुई बातचीत है जिसमें विटामिन बी का जिक्र आया है. मामला दो थानेदारों के ट्रांसफर का है जिसे एक पक्ष रोक रहा है. जो पक्ष ट्रांसफर रुकवाने की कोशिश कर रहा है उसमें, इस बातचीत के मुताबिक, सांसद शरद त्रिपाठी भी शामिल माने जा रहे हैं.
बातचीत के एक हिस्से में विटामिन बी का जिक्र है -
विधायक - आज सोशल मीडिया पर एक खबर आई कि संतोष तिवारी और मनोज तिवारी का ट्रांसफर हुआ है और 2-2 विधायक लगे थे, मगर रुका नहीं. जिसने लिखा है, उसके पास मैंने फोन कराया, हमने कहा ये कौन विधायक लोग हैं जो दोनों फेल हुए हैं. तो कह रहा है कि श्री राम जी और चौबे जी और सांसद जी भी थे वो भी फेल हुए हैं.
पुलिस अफसर - हां.
विधायक - यह खबर जरूर मिली है कि जो है सब मीडिया में आ गया कि दो विधायक हुए फेल, सांसद का नहीं लिखा है मीडिया में, लेकिन फेसबुक पर लिखा है. अरे भाई, दो विटामिन बी चले जाएंगे तो इन लोगों का क्या होगा.
पुलिस - अच्छा.
ये बातचीत तो लंबी है लेकिन मुद्दे की बात बस इतनी ही है. मारपीट की घटना के पीछे ब्राह्मण विधायक बनाम ठाकुर विधायक की यही लड़ाई समझी जा रही है.
कौन हैं शरद त्रिपाठी और राकेश सिंह बघेल?
यूपी के संत कबीर नगर में मारपीट करने वाले सांसद और विधायक अलग अलग दलों के होते तो कुछ और समझा जाता. मामला पेंचीदा इसलिए लगता है क्योंकि दोनों ही नेता एक ही राजनीतिक दल के हैं - बीजेपी के. जूते चलाने वाले सांसद शरद त्रिपाठी के पिता रमापति राम त्रिपाठी 2007-2010 तक यूपी बीजेपी के अध्यक्ष रह चुके हैं और फिलहाल विधान परिषद सदस्य हैं.
शरद त्रिपाठी लोक सभा चुनाव लड़े तो 2009 में भी थे लेकिन कामयाबी 2014 की मोदी लहर में ही मिल पायी. शरद त्रिपाठी संसद तो पहुंच गये लेकिन उनकी राजनीतिक पहचान रमापति राम त्रिपाठी के बेटे होने की ही बनी रही. लोक सभा का टिकट भी उन्हें इसी नाते मिला था.
सांसद बनने के बाद शरद त्रिपाठी की क्षेत्र के विधायकों से कभी पटरी नहीं बैठी. यहां तक कि हाल के 'मेरा बूथ सबसे मजबूत' कार्यक्रम में भी महसूस किया गया है. इस बीच मौजूदा सांसदों के टिकट काटे जाने वालों की चर्चा में संत कबीरनगर का नाम भी शामिल हो गया और जिले के सारे विधायक दावेदारी में जुट गये हैं.
बताते हैं कि जून, 2018 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मगहर कार्यक्रम के दौरान भी सांसद शरद त्रिपाठी ने विधायकों को आस पास फटकने नहीं दिया - ये बात तीनों विधायकों को बेहद नागवार गुजरी.
जहां तक बड़े नेताओं से करीबी का सवाल है तो शरद त्रिपाठी को राजनाथ सिंह के करीब बताया जाता है. राजनाथ सिंह के करीबी तो विधायक राजेश सिंह बघेल के पिता भी बताये जाते हैं, लेकिन वो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के ज्यादा करीबी बताये जाते हैं.
शरद त्रिपाठी द्वारा चुनाव आयोग को दिये गये हलफनामे के मुताबिक उन पर कोई आपराधिक मामला दर्ज नहीं है, लेकिन मेंहदावल से विधायक राकेश सिंह बघेल पर दस धाराओं में आपराधिक मामले दर्ज बताये जाते हैं.
बीजेपी को भारी पड़ सकती है 'विटामिन-बी'
योगी आदित्यनाथ पर ठाकुरवाद के आरोप बहुत पहले से लगते रहे हैं. 2017 में योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद धीरे धीरे ये बीजेपी के लिए बड़ी मुसीबत बनता जा रहा है. वैसे तो राजनीतिक वर्चस्व की ये लड़ाई पूरे सूबे में है लेकिन इसका एपिसेंटर अब भी गोरखपुर और उसके आस पास के इलाके ही बने हुए हैं.
ब्राह्मण वोट बैंक की नाराजगी खत्म करने के लिए ही बीजेपी नेतृत्व ने योगी आदित्यनाथ के कट्टर विरोधी शिव प्रताप शुक्ला को पहले राज्य सभा भेजा और फिर मंत्री भी बनाया. ध्यान रहे यूपी का सीएम बनने से पहले पांच बार सांसद रहने के बावजूद योगी आदित्यनाथ को ये मौका नहीं मिला. इस सिलसिले में 17 साल पुराने एक वाकये का अक्सर जिक्र आता है. 2002 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी सांसद रहते योगी आदित्यनाथ ने शिव प्रताप शुक्ला का टिकट कटवाने की जीत तोड़ कोशिश की. जब बीजेपी नेतृत्व के आगे योगी आदित्यनाथ की दाल नहीं गली तो उन्होंने शिव प्रताप शुक्ला के खिलाफ चुनाव में राधे मोहनदास अग्रवाल को उतार दिया. योगी के प्रभाव के चलते पांच बार विधायक रहे शिव प्रताप शुक्ला चुनाव हार गये. उसके बाद तो योगी आदित्यनाथ का सियासी कद बढ़ता चला गया और शिव प्रताप शुक्ला राजनीतिक पटल से ही गायब हो गये.
2018 में जब गोरखपुर उपचुनाव हुआ तो भी बीजेपी नेतृत्व ने योगी आदित्यनाथ की एक न सुनी. योगी आदित्यनाथ मठ की ओर से किसी और को अपने उत्तराधिकारी के तौर पर टिकट दिलवाना चाहते थे, लेकिन बीजेपी ने उपेंद्र शुक्ला को उम्मीदवार बनाया - और नतीजे भी भुगतने पड़े. ऐसा नहीं था कि योगी आदित्यनाथ ने कोई दूरी बना ली थी. योगी ने तो खूब चुनाव प्रचार किया लेकिन उनके समर्थक खामोश रहे - दूसरी तरफ सपा बसपा गठबंधन ने बाजी मार ली.
2019 में दोबारा ऐसी कोई दुर्घटना न हो इसके लिए बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह अभी से जुटे हुए हैं, लेकिन जरा सी भी चूक बीजेपी के लिए बहुत भारी पड़ सकती है.
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