पश्चिम बंगाल में सौरव गांगुली (Saurav Ganguly) बीजेपी के लिए अरसे से रजनीकांत बने हुए हैं. तमिलनाडु में साउथ के सुपरस्टार रजनीकांत तो अब भी छिटक जा रहे हैं, लेकिन लगता है प्रिंस ऑफ बंगाल सौरव गांगुली बीसीसीआई में काम करते करते बीजेपी को लेकर होने वाली छिटपुट चर्चाओं से ये तो समझ ही चुके हैं कि राजनीति न होती तो क्या होता - और राजनीति होती है तो क्या होता है.
पश्चिम बंगाल में चुनाव से पहले बीजेपी ज्वाइन करने का फैशन तो शुभेंदु अधिकारी शुरू कर ही दिये हैं - सौरव गांगुली फैशन तो फॉलो कर नहीं सकते, लिहाजा थोड़ा प्रोडक्ट एनडोर्समेंट भी हो ही जाना चाहिये, ऐसे सोच रहे लगते हैं. पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु में साथ ही चुनाव होने की संभावना है.
सौरव गांगुली के पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ (Jagdeep Dhankhar) से हुई मुलाकात को लेकर न तो कहीं कोई सवाल पूछा जाता और न ही किसी तरह के कयास लगाये जाते - अगर अप्रैल-मई, 2021 में पश्चिम बंगाल में चुनाव नहीं होने होते और पश्चिम बंगाल में राजनीतिक गतिविधियां जोर नहीं पकड़ चुकी होतीं.
लेकिन बात को तो सौरव गांगुली ही आगे बढ़ा रहे हैं - कोलकाता में गवर्नर से मिलते हैं और फिर दिल्ली पहुंच कर अरुण जेटली की मूर्ति अनावरण कार्यक्रम में अमित शाह (Amit Shah) के साथ नजर आते हैं. अगर पश्चिम बंगाल में चुनावी माहौल नहीं होता तो ऐसी मुलाकातों की तरफ बहुत ध्यान भी नहीं दिया जाता. वैसे भी दिल्ली की सीमाओं पर किसान डटे हुए हैं और केंद्र सरकार तीनों कृषि कानूनों को वापस न लेने पर अड़ी हुई है. शिवसेना मुंबई से शरद पवार को यूपीए का चेयरमैन बनाये जाने के लिए मुहिम चला रही है - और राहुल गांधी फिर एक बार ऐसे मौके पर छुट्टी मनाने चले गये हैं जब कांग्रेस स्थापना दिवस के मौके पर तिरंगा यात्रा निकाल रही है.
जरा सोचिये ऐसी हैपेनिंग के बीच भला कोई क्यों सौरव गांगुली की मुलाकातों को फॉलो करता. खबर जो थी वो सौरव गांगुली ने बीसीसीआई की मीटिंग के बाद दे ही दी थी कि आगे से IPL 2022 में 8 की जगह 10 टीमें खेलेंगी.
भला डीडीसीए के कार्यक्रम में बीसीसीआई का अध्यक्ष नहीं पहुंचेगा तो पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री या राज्यपाल का शामिल होना जरूरी होगा. और डीडीसीए में अरुण जेटली की मूर्ति का अनावरण होगा तो अमित शाह क्यों नहीं जाएंगे भला. अब इसमें ये चर्चा कहां से घुस आयी कि अमित शाह के बेटे जय शाह बीसीसीआई में सौरव गांगुली के साथ काम करते हैं! ऐसी बातों का क्या तुक है भला.
वे 'विभिन्न मुद्दे' क्या रहे होंगे?
सौरव गांगुली ने कोलकाता में पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ से मुलाकात की और अगले ही दिन दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ देखे गये - कार्यक्रम था बीजेपी नेता रहे अरुण जेटली की मूर्ति के अनावरण का.
जब चुनावी माहौल के चलते बीजेपी नेता अमित शाह के पश्चिम बंगाल में जमीन पर बैठ कर मिट्टी के पात्र में केले के पत्ते पर किये गये लंच को भी गैर राजनीतिक नहीं माना जा रहा है, सौरव गांगुली की मुलाकातों को आखिर कैसे सद्भावना और शिष्टाचार के दायरे में रहने दिया जा सकता है. वैसे तो राज्यपाल की तरफ से बताया गया है कि देश के सबसे पुराने क्रिकेट ग्राउंड ईडेन गार्डन के दौरा का आमंत्रण मिला है और स्वीकार कर लिया गया है, फिर भी करीब घंटे भर की मुलाकात के बाद सौरव गांगुली राजभवन से निकले तो हर चौकस निगाह सवालों के जवाब ढूंढने की कोशिश कर रही थी.
फिर क्या था, पूछ भी लिया गया - आप या आपके परिवार का कोई सदस्य बीजेपी में शामिल होने वाला है?
सौरव गांगुली से फिलहाल हर कोई यही जानना चाहता है कि राज्यपाल ने मुलाकात में जिन 'विभिन्न मुद्दों' का नाम लेकर सस्पेंस बढ़ा दिया है उस पर कोई तस्वीर साफ होने वाली है क्या या राजनीति को लेकर उनका रुख 2021 में भी 2011 जैसा ही रहने वाला है?
अच्छा तो ये होता जब ये सवाल सौरव गांगुली के किसी दिन बीजेपी दफ्तर के आस पास देखे जाने पर ही पूछ लिया गया होता. या फिर अरुण जेटली की मूर्ति अनावरण के मौके पर अमित शाह के साथ देखे जाने पर ही पूछा जाता. भला राजभवन से निकल रही किसी शख्सियत से बीजेपी ज्वाइन करने से जुड़े सवाल का क्या मतलब है. लेकिन मतलब इसलिए है क्योंकि जिस तरीके से राज्यपाल जगदीप धनखड़ अनवरत ममता बनर्जी से भिड़े रहते हैं, कभी लगा नहीं कि उनकी बीजेपी के मामलों में कोई खास दिलचस्पी नहीं है.
सौरव गांगुली कोई राजनीतिज्ञ तो हैं नहीं कि सवालों के ऐसे जवाब दें कि पूछने वाला लाजवाब हो जाये. जो बताते उचित लगा बता दिया, बस थोड़ी सी हिदायत के साथ, 'ये सद्भावना मुलाकात थी. साल भर से कार्यभार संभालने के बावजूद राज्यपाल ने अब तक ईडेन का दौरा नहीं किया था, इसलिए मैं उनको न्योता देने आया था.'
अगले दिन फिर वही सवाल. गजब हाल है. बार बार एक ही सवाल पूछा जाएगा तो कुछ न कुछ गड़बड़ तो हो ही जाएगी. अब सौरव गांगुली कोई क्रिकेट थोड़े ही खेल रहे हैं कि एक ही तरह की गेंद पर हर बार वही शॉट मारेंगे. पहले जो मन में था वो बोल दिया, बाद में जो मन में आया वो बोल दिया.
राज्यपाल से मुलाकात के अगले दिन 28 दिसंबर को उसी सवाल पर सौरव गांगुली का जवाब था - ‘अगर गवर्नर आपसे मिलना चाहता है तो आपको बीसीसीआई अध्यक्ष सौरव गांगुली की तरह उनसे मिलना होगा - तो आइए हम इसे ऐसे ही देखें.’
क्या गवर्नर ने ईडेन गार्डन का दौरा करना चाहते थे इसलिए सौरव गांगुली को न्योता लेकर आने का न्योता भेजा था?
सौरव गांगुली जो भी कहें, औपचारिक तौर पर माना तो वही जाएगा जो वो बोलेंगे. अगर अलग अलग बातें बोलेंगे तो भी उनकी आखिरी बात को फाइनल बयान और पहली बात को खंडन का हिस्सा मान लिया जाएगा. सौरव गांगुली के लिए दिक्कत वाली बात तब हो गयी जब राज्यपाल ने मुलाकात को लेकर कुछ एक्स्ट्रा शॉट्स जड़ दिये.
मुलाकात को लेकर जारी बयान में बताया गया, 'दादा के साथ मीटिंग के दौरान ईडेन गार्डेन के दौरे के अलावा विभिन्न मुद्दों पर चर्चा हुई.' ये 'विभिन्न मुद्दे' ही हर किसी को अपने अपने तरीके से वस्तुस्थिति को डिकोड करने के लिए प्रेरित भी कर रहे हैं और मुलाकात को लेकर सस्पेंस बढ़ता ही जा रहा है. भले ही राज्यपाल की तरफ से ये बताया भी नहीं गया हो कि ईडन गार्डन के अलावा जो मुद्दा रहा वो राइटर्स बिल्डिंग था या नहीं? राइटर्स बिल्डिंग पश्चिम बंगाल की विधानसभा को कहते हैं.
अब ये सवाल तो खड़ा हो ही गया है कि सौरव गांगुली औपचारिक आमंत्रण देने गये थे या गवर्नर ने 'विभिन्न मुद्दों' पर चर्चा के लिए बुलाया था - या गये थे तो लगे हाथ वो भी दे दिया, ताकि मीडिया को बताने के लिए कुछ रहे. बेशक गवर्नर के बुलाने पर मिलने जाना ही चाहिये. बीसीसीआई अध्यक्ष होने के नाते सौरव गांगुली को राज्य के राज्यपाल को ईडेन गार्डेन जैसे स्टेडियम के दौरे का न्योता देने में कोई गलत बात कैसे हो सकती है, लेकिन क्या टाइमिंग कोई मायने नहीं रखती - और वो भी किसी जाने माने क्रिकेटर के मामले में?
ये शिष्टाचार मुलाकात क्या होती है?
क्या शिष्टाचार भेंट से पहले सभी लोग गीता पर हाथ रख कर फिल्मी अदालतों की तरह ही कसम खाते होंगे - जो भी बात होगी सिर्फ शिष्टाचार के नाते और उसके दायरे के भीतर ही होगी और कोई राजनीतिक बातचीत नहीं होगी. ऐसे मामलों में कई नेता बड़े ही सहज तरीके से इमानदारी और साफगोई से बोल भी देते हैं. एक बार तो ममता बनर्जी ने ही सोनिया गांधी से मुलाकात के बाद पूछने वाले अंदाज में कहा भी था कि राजनीति के लोग जब बैठेंगे तो बात तो राजनीति की होगी ही ना.
वैसे कई शिष्टाचार मुलाकातें बीते दिनों में किसानों के नाम पर भी होती रही हैं और कई बार तो शिष्टाचार इस कदर हावी हो जाता है कि लोग छुपते छुपाते मिलने के लिए बड़े बड़े होटलों में चले जाते हैं - और पूछे जाने पर बताते हैं जैसे इंटरव्यू के लिए रेकी कर रहे थे. महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और शिवसेना के वर्तमान मुख्य प्रवक्ता संजय राउत की मुलाकात को लेकर ऐसी ही बातें की जा रही थीं - मालूम नहीं वो इंटरव्यू कब पढ़ने को मिलेगा. पढ़ने को मिलेगा भी या नहीं.
वैसे उस इंटरव्यू में एक सवाल शरद पवार के यूपीए चेयरमैन बनने को लेकर तो होना ही चाहिये - क्योंकि ये टॉपिक फिलहाल ट्रेंड में है. और राहुल गांधी पर कोई बात नहीं होनी चाहिये - क्योंकि वो फिलहाल देश में नहीं हैं. जैसे संसद में परंपरा निभायी जाती है. जो सदस्य जवाब देने के लिए मौजूद न हो उसकी कोई ऐसी वैसी चर्चा नहीं कर सकता.
क्रिकेट की राजनीति के चलते सौरव गांगुली को कप्तानी से हाथ धोना पड़ा था, लेकिन अभी तो माना यही जाता है कि देश के राजनीतिक समीकरणों में फिट होने के चलते ही उनको बीसीसीआई का बॉस बनाया जा सका है. रही बाद सौरव गांगुली के राजनीतिक पारी शुरू करने की तो ये कोई पहला मौका नहीं है, जब ऐसे कयास लगाये जा रहे हों - 2011 के विधानसभा चुनावों के दौरान सौरव गांगुली के सामने दो-दो ऑप्शन माने जा रहे थे. वे चाहते तो लेफ्ट पार्टी सीपीएम भी ज्वाइन कर सकते थे या फिर ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस भी. अच्छा हुआ सीपीएम नहीं ज्वाइन किये क्योंकि उसे सत्ता से बेदखल कर तृणमूल कांग्रेस ने कब्जा जमा लिया - और अगर टीएमसी ज्वाइन किये होते तो शायद सौरव गांगुली का भी हाल शुभेंदु अधिकारी जैसा हो चुका होता.
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