'अपराध से घृणा करो, अपराधी से नहीं' - राजीव गांधी के हत्यारे के साथ हो रहा व्यवहार इस बात का बेहतरीन नमूना है और ये कदम कदम पर उछल उछल कर सामने आ रहा है, लेकिन ये सब विरले ही देखने को मिलता है.
उम्र का एक लंबा हिस्सा जेल में गुजारने के बाद हुई रिहाई पर एजी पेरारिवलन (AG Perarivalan) की खुशी का तो वैसे भी ठिकाना नहीं होना चाहिये. खासकर पेरारिवलन की मां अरुपुथम्मल को तो ये खुशी बेहद लंबे संघर्ष के बाद मिली है. बेटा जैसा भी हो, ऐसा कम ही होता है जब कोई भी मां बेटे को बेकसूर न मानती हो. अरुपुथम्मल के मामले में तो यही यकीन पेरारिवलन की रिहाई का सबसे मजबूत आधार बना है.
जेल से रिहा होने के बाद तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन से मिलने के लिए पेरारिवलन को 200 किलोमीटर का सफर करना पड़ा. मुख्यमंत्री स्टालिन के लिए भी ये लम्हा कितना अहम रहा गले मिलने की तस्वीर से समझा जा सकता है. स्टालिन ने पेरारिवलन को 'भाई' तो बताया ही, गले भी उसी आत्मीयता से मिले जैसे पांच साल पहले अपनी बहन से मिले थे. दिसंबर, 2017 में कनिमोझी के 2जी घोटाले में बरी होकर घर लौटने पर भी करीब करीब ऐसा ही माहौल रहा.
कनिमोझी का मामला निहायत ही निजी और पारिवारिक था, लेकिन पेरारिवलन से स्टालिन का गले मिलना तो एक तरीके का राजनीतिक बयान ही है. तमिलनाडु के पहले वाले मुख्यमंत्री भी चाहते तो ऐसा ही थे. एम. करुणानिधि से जे. जयललिता तक. हो सकता है वे दोनों भी पेरारिवलन का बिलकुल ऐसे ही इस्तिकबाल करते. वक्त भी हर काम के लिए सबको मौका देता कहां है. ये मौका स्टालिन को मिलना था.
ठीक 31 साल पहले, 21 मई, 1991 की रात करीब 10.20 बजे पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में एक आत्मघाती हमले में हत्या (Rajiv Gandhi Death Anniversary) कर दी गई थी. जब सीबीआई ने जांच शुरू की तो तीन हफ्ते बाद करीब उसी वक्त चेन्नई से गिरफ्तार कर लिया. गिरफ्तारी के वक्त पेरारिवलन की उम्र 19 साल थी.
करीब सात साल तक चले ट्रायल के बाद जनवरी, 1998 में स्पेशल कोर्ट...
'अपराध से घृणा करो, अपराधी से नहीं' - राजीव गांधी के हत्यारे के साथ हो रहा व्यवहार इस बात का बेहतरीन नमूना है और ये कदम कदम पर उछल उछल कर सामने आ रहा है, लेकिन ये सब विरले ही देखने को मिलता है.
उम्र का एक लंबा हिस्सा जेल में गुजारने के बाद हुई रिहाई पर एजी पेरारिवलन (AG Perarivalan) की खुशी का तो वैसे भी ठिकाना नहीं होना चाहिये. खासकर पेरारिवलन की मां अरुपुथम्मल को तो ये खुशी बेहद लंबे संघर्ष के बाद मिली है. बेटा जैसा भी हो, ऐसा कम ही होता है जब कोई भी मां बेटे को बेकसूर न मानती हो. अरुपुथम्मल के मामले में तो यही यकीन पेरारिवलन की रिहाई का सबसे मजबूत आधार बना है.
जेल से रिहा होने के बाद तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन से मिलने के लिए पेरारिवलन को 200 किलोमीटर का सफर करना पड़ा. मुख्यमंत्री स्टालिन के लिए भी ये लम्हा कितना अहम रहा गले मिलने की तस्वीर से समझा जा सकता है. स्टालिन ने पेरारिवलन को 'भाई' तो बताया ही, गले भी उसी आत्मीयता से मिले जैसे पांच साल पहले अपनी बहन से मिले थे. दिसंबर, 2017 में कनिमोझी के 2जी घोटाले में बरी होकर घर लौटने पर भी करीब करीब ऐसा ही माहौल रहा.
कनिमोझी का मामला निहायत ही निजी और पारिवारिक था, लेकिन पेरारिवलन से स्टालिन का गले मिलना तो एक तरीके का राजनीतिक बयान ही है. तमिलनाडु के पहले वाले मुख्यमंत्री भी चाहते तो ऐसा ही थे. एम. करुणानिधि से जे. जयललिता तक. हो सकता है वे दोनों भी पेरारिवलन का बिलकुल ऐसे ही इस्तिकबाल करते. वक्त भी हर काम के लिए सबको मौका देता कहां है. ये मौका स्टालिन को मिलना था.
ठीक 31 साल पहले, 21 मई, 1991 की रात करीब 10.20 बजे पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में एक आत्मघाती हमले में हत्या (Rajiv Gandhi Death Anniversary) कर दी गई थी. जब सीबीआई ने जांच शुरू की तो तीन हफ्ते बाद करीब उसी वक्त चेन्नई से गिरफ्तार कर लिया. गिरफ्तारी के वक्त पेरारिवलन की उम्र 19 साल थी.
करीब सात साल तक चले ट्रायल के बाद जनवरी, 1998 में स्पेशल कोर्ट से राजीव गांधी हत्याकांड के सभी 26 अभियुक्तों को मौत की सजा सुनाई गयी. स्पेशल कोर्ट के फैसले को चैलेंज किये जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने मई, 1999 में पेरारिवलन सहित कुछ अभियुक्तों की सजा तो बरकरार रखी, लेकिन कइयों को रिहा भी कर दिया था. एक बार फिर मामला मद्रास हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट पहुंचा - और अदालत ने ये कहते हुए पेरारिवलन की मौत की सजा रद्द कर दी क्योंकि उनकी अपीलें कई साल तक नहीं सुनी गयीं.
देर होने का पेरारिवलन को फायदा तो मिला, लेकिन अंधेरा पूरी तरह छंटने में तीन दशक तक इंतजार करने पड़े - और अब तो सिर्फ खुली हवा में सांस लेने का ही मौका भर नहीं मिला है, बल्कि पेरारिवलन को सुप्रीम कोर्ट में मौत की सजा सुनाने वाली बेंच के हेड रहे जस्टिस टीके थॉमस (Justice KT Thomas) ने शादी रचा कर खुशहाल जीवन जीने की असीम शुभकामनाएं भी दे रहे हैं.
ये तो वक्त वक्त की ही बात है!
इंसाफ करने वाली सबसे बड़ी कुर्सी पर बैठा जज एक लंबे अंतराल के बाद उसी कन्विक्ट से मिलने की ख्वाहिश जाहिर करे, जिसके लिए कभी सजा-ए-मौत मुकर्रर कर चुका हो - आखिर ये वक्त वक्त की बात नहीं है, तो क्या है?
अभी 20 मई को ही कांग्रेस नेता नवजोत सिंह सिद्धू के सरेंडर से पहले एक छोटे से अंतराल में कम से कम तीन कैदी खुली हवा में सांस लेते देखे गये - एजी पेरारिवलन, मोहम्मद आजम खान और इंद्राणी मुखर्जी. सिद्धू तो सिर्फ एक साल के लिए जेल गये हैं, लेकिन आजम खान 27 महीने बाद, इंद्राणी मुखर्जी साढ़े छह साल और पेरारिवलन को 31 साल बाद रिहा होने का मौका मिल सका. सिद्धू और पेरारिवलन का मामला तो एक जैसा है क्योंकि दोनों सजायाफ्ता हैं, लेकिन आजम खान और इंद्राणी अंडर ट्रायल के तौर पर जेल में बंद थे. चारों के ही अपने अपने अपराध और आरोप हैं - और अलग अलग कहानियां हैं.
आजम खान तो अभी कुछ नहीं बोले हैं, लेकिन इंद्राणी मुखर्जी का कहना है, 'न्यायपालिका में मेरा विश्वास बना हुआ है... सभी को देश के कानून का सम्मान करना चाहिये - देर हो सकती है, लेकिन इंसाफ होता है.'
हालांकि, पेरारिवलन का पहला रिएक्शन रहा, 'मैं अभी बाहर आया हूं... कानूनी लड़ाई को 31 साल हो गये हैं... मुझे थोड़ी सांस लेनी है... थोड़ा वक्त दें...'
राजीव गांधी की हत्या का केस और रोड रेज के जिस मामले में सिद्धू को सजा हुई है, दोनों में तीन साल का ही फर्क है. रोड रेज की घटना 1988 की है, जबकि राजीव गांधी की हत्या 1991 में हुई थी. कितना अजीब है ना कि मामले से छूट जाने के बाद अपनी तरफ से निश्चिंत हो चुके सिद्धू को जेल जाकर सजा काटने के लिए सरेंडर करना पड़ा है - और राजीव गांधी के हत्यारे को मौत की सजा से मुक्ति मिलने के बाद जेल से भी बाहर निकलने का मौका मिल गया है.
न्यायपालिका के लिए 'देर और अंधेर' का जुमला कई रूपों में देखने को मिलता है. कहते हैं इंसाफ के मंदिर में देर है, लेकिन अंधेर नहीं है. ये भी कहा जाता है कि 'जस्टिस डिलेड इज जस्टिस डिनाइड' यानी इंसाफ में हुई देरी नाइंसाफी का सबब बन जाती है.
सिद्धू और पेरारिवलन के मामलों में ये अलग अलग तरीके से नजर भी आता है. देर होने के बाद भी जब पीड़ित परिवार की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की जाती है तो सिद्धू को अपराधी मान लिया जाता है, लेकिन करीब उतनी ही देर हो जाने के बाद पेरारिवल को सुप्रीम कोर्ट से अनुच्छेद 142 के विशेष प्रावधानों के तहत जेल से बाहर जाने की छूट मिल जाती है.
पेरारिवलन को तो इरादतन हत्या के मामले में सजा मिली थी, लेकिन सिद्धू को तो हादसे जैसे हालात में हत्या हो जाने का दोषी पाया गया - और वैसे ही इंद्राणी मुखर्जी पर अपनी ही बेटी शीना बोरा की हत्या का केस चल रहा है. केस में एक अजीब मोड़ तब देखा गया जब इंद्राणी मुखर्जी ने दावा किया कि उनकी बेटी जिंदा है. यानी जिस शीना बोरा की हत्या के आरोप में इंद्राणी मुखर्जी को साढ़े छह साल जेल में रहना पड़ा - वो 'शायद' जिंदा है!
पेरारिवल ने से एमके स्टालिन का गले मिलना अगर कोई राजनीतिक बयान समझा जाता है तो बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव के बयान को कैसे देखा जाना चाहिये? आरजेडी नेता तेजस्वी यादव अपने पिता लालू यादव को राजनीतिक वजहों से फंसाये जाने का दावा कर रहे हैं - तो क्या डीएमके नेता एमके स्टालिन भी संकेतों में ही सही वैसा ही कुछ कहना चाहते हैं?
हत्यारे से कितनी हमदर्दी होनी चाहिये?
किसी भी अपराध के लिए सजा की व्यवस्था क्यों की गयी है? मोटे तौर पर तो यही समझ में आता है कि बाकियों को सबक देने के लिए. ताकि कोई और जब भी ऐसी हिमाकत करे तो सजा की बात दिमाग में आते ही पूरे बदन में सिहरन करंट की तरह दौड़ने लगे - और आखिरी वक्त में भी वो कदम पीछे खींच ले.
छोटे मोटे अपराधों के लिए ऐसी सजा भी दी जाती है कि उसे सुधरने का मौका मिल सके - और बड़े अपराधों के लिए लंबी सजा की व्यवस्था भी इसीलिए की गयी है ताकि सजा काट कर निकलने के बाद वो वैसा ही अपराध दोबारा न करे.
जुवेनाइल जस्टिस के मामलों में तो सजा पूरी होने के बाद रिहैबिलिटेशन का भी इंतजाम किया जाता है - और इसके पीछे नये सिरे से सामान्य जीवन जीने का मौका देना मकसद होता है. जैसे निर्भया गैंग रेप केस में नाबालिग अपराधी के साथ हुआ. निश्चित तौर पर निर्भया केस और राजीव गांधी हत्याकांड अलग अलग मामले हैं - दोनों में तुलना की तब तक कोई वजह नहीं लगती जब तक कि कुछ कॉमन या कॉन्ट्रास्ट न देखने को मिले.
निर्भया केस के अपराधी को बेहद गोपनीय तरीके से उसके रहने और रोजगार के सरकारी तौर पर इंतजाम किये गये, लेकिन हाई प्रोफाइल राजीव गांधी हत्याकांड के अपराधी के साथ अलग व्यवहार होता हो तो कैसे समझा जाये? निर्भया केस के अपराधी के साथ सुरक्षा की फिक्र भी वाजिब है. ये डर तो रहता ही है कि कहीं वो लोगों के गुस्से का शिकार न हो जाये.
लेकिन पेरारिवलन के आवभगत को देखते हुए उसके मोटिवेशनल पक्ष को किस नजरिये से देखा जा सकता है? पेरारिवलन से गले मिल कर एमके स्टालिन का भाई बताना और मौत की सजा सुनाने वाले जज का आगे की खुशहाल जिंदकी की शुभकामनाएं देना - आखिर ये सब समाज में किस तरह का संदेश दे रहा है? सिद्धू के मामले में अदालत ने पाया है कि उनका हत्या का इरादा नहीं था, लेकिन पेरारिवलन का मामला तो अलग रहा. पेरारिवलन तो LTTE की साजिश का हिस्सा रहा जिसने श्रीलंका में भारत की सैनिक मदद को लेकर बदले के मंसूबे के साथ पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या को अंजाम दिया.
पेरारिवलन के रिहाई की खबर केरल के कोट्टयम पहुंचने पर जस्टिस केटी थॉमस ने राजीव गांधी के हत्यारे से मिलने की इच्छा जतायी है. बेशक कानून की रखवाली अपनी जगह है और इंसानियत अपनी जगह. जस्टिस केटी थॉमस दोनों भूमिकाओं में खरे उतरते हैं. जैसे पहले जिम्मेदारी के साथ इंसाफ के लिए सजा सुनायी थी, बिलकुल वैसे ही जिम्मेदारी के साथ इंसानियत की भावना जाहिर कर रहे हैं.
जस्टिस केटी थॉमस कहते हैं, 'वो जब भी कोट्टयम आये, मैं उससे मिलना चाहता हूं... वो मैं ही था जिसने उसे मौत की सजा दी थी... मेरी इच्छा है कि वो शादी करे और वो खुशहाल जिंदगी जीये... पहले ही काफी देर हो चुकी है... सिर्फ उसे अपने मां-बाप का प्यार मिला है... परिवार का सुख नहीं मिला.'
निश्चित तौर पर जस्टिस थॉमस की भावना का आदर किया जाना चाहिये. लेकिन सवाल ये भी है कि जो कुछ हो रहा है, संदेश क्या जा रहा है?
पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री बेअंत सिंह के हत्यारे बलवंत सिंह राजोआना का इकबाल-ए-जुर्म जरा देखिया, "हां, मैं इस हत्या में शामिल था... मुझे हत्या में शामिल होने का कोई पछतावा नहीं है... मैंने और भाई दिलावर सिंह ने बम तैयार किया था.' राजोआना का मामला भी राजनीतिक वजहों से ही टलता आ रहा है - और ऐसा लगता है जैसे पेरारिवलन केस को ही फॉलो कर रहा हो. इसी महीने सुप्रीम कोर्ट ने राजोआना के मामले में केंद्र सरकार को फैसला लेने के लिए दो महीने का वक्त दिया है.
और... जेल से छूटते ही पेरारिवलन के बयान पर भी गौर फरमाइये, "मैं मानता हूं कि मृत्युदंड की कोई जरूरत नहीं है... केवल दया के लिए नहीं... कई उदाहरण भी हैं... हर कोई इंसान है.'
राजीव गांधी के हत्यारों को गांधी परिवार माफ कर चुका है. प्रियंका गांधी वाड्रा तो जेल जाकर नलिनी से मिल भी चुकी हैं. हां, गांधी परिवार की तरफ से ये भी कहा गया कि कानून अपना काम करेगा और उसमें उनका कोई दखल नहीं होगा.
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और डीएमके नेता एमके स्टालिन कांग्रेस के गठबंधन साथी हैं. 2021 के विधानसभा चुनावों में राहुल गांधी को तमिलनाडु में भी केरल से कम सक्रिय नहीं देखा गया था. राजीव गांधी के हत्यारे पेरारिवलन से स्टालिन का गले मिलना कानूनी दायरे के बाहर की चीज है - और जस्टिस केटी थॉमस की भावना भी, बेशक इंसानियत के नाते!
मौत की सजा पर पेरारिवलन का इंसानियत की दुहाई देना अपनी जगह है, लेकिन इंसानियत के नाते ही सही - सबसे बड़ा सवाल ये है कि एक हत्यारे के साथ कितनी हमदर्दी होनी चाहिये? और हमदर्दी की नुमाइश कहां तक होनी चाहिये?
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