बहुत सी जटिल समस्याओं के समाधान का तरीका उन्हें सुलझाने की इच्छा में छुपा होता है. धारा 370 को खत्म करना एक दिन इतिहास बनकर रह जाएगा, लेकिन इसका ये मतलब बिल्कुल नहीं है कि कोई आसान फैसला करना इतना आसान होता है. ऐसा करने के लिए उस शख्स की जरूरत होती है जो कायदे-कानून से हटकर सोचने की क्षमता रखता हो.
एक कश्मीरी पंडित होने के नाते मैं पिछले 3 दशकों से गुस्से और राजनीतिक मोहभंग से उबल रही हूं. बहुत से लोगों के कश्मीर से चले जाने ने मेरे दिल को राजनीतिक सिस्टम के खिलाफ नफरत से भर दिया, जो जिंदा तो है, लेकिन उसकी आत्मा मर चुकी है. राज्य सरकार और केंद्र सरकार उस वक्त मेरी नजरों से गिर गई, जब लाखों कश्मीरी पंडित अपने ही देश में शरणार्थी हो गए और किसी ने भी आगे बढ़कर उनकी मदद नहीं की. न तो कोई कार्यकर्ता आगे आया, ना किसी लिबरल ने उनकी पूछ ली और ना ही विपक्ष के किसी नेता ने उनका हाल जानना चाहा, जो आज अपनी आवाज मुखर कर रहे हैं.
इस लिस्ट में उन छद्म...
बहुत सी जटिल समस्याओं के समाधान का तरीका उन्हें सुलझाने की इच्छा में छुपा होता है. धारा 370 को खत्म करना एक दिन इतिहास बनकर रह जाएगा, लेकिन इसका ये मतलब बिल्कुल नहीं है कि कोई आसान फैसला करना इतना आसान होता है. ऐसा करने के लिए उस शख्स की जरूरत होती है जो कायदे-कानून से हटकर सोचने की क्षमता रखता हो.
एक कश्मीरी पंडित होने के नाते मैं पिछले 3 दशकों से गुस्से और राजनीतिक मोहभंग से उबल रही हूं. बहुत से लोगों के कश्मीर से चले जाने ने मेरे दिल को राजनीतिक सिस्टम के खिलाफ नफरत से भर दिया, जो जिंदा तो है, लेकिन उसकी आत्मा मर चुकी है. राज्य सरकार और केंद्र सरकार उस वक्त मेरी नजरों से गिर गई, जब लाखों कश्मीरी पंडित अपने ही देश में शरणार्थी हो गए और किसी ने भी आगे बढ़कर उनकी मदद नहीं की. न तो कोई कार्यकर्ता आगे आया, ना किसी लिबरल ने उनकी पूछ ली और ना ही विपक्ष के किसी नेता ने उनका हाल जानना चाहा, जो आज अपनी आवाज मुखर कर रहे हैं.
इस लिस्ट में उन छद्म बौद्धिक और उदारवादी लोगों को भी जोड़ लीजिए जो चाहते हैं कि कश्मीर के लोग गरीबी में रहें, संसाधनों की कमी और विकास से वंचित रहें. सिर्फ इसलिए ताकि वह इसके आधार पर स्वायत्तता की बात कर सकें.
और इन सबसे अधिक उन परिवारों के लिए भी मेरे अंदर नफरत है जो कश्मीरी लोगों को गरीबी में रखना चाहते हैं, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि उन्हें कभी इन परिवारों की सत्ता के आस-पास की अमीरी दिखाई ही ना दे. आम लोगों को केरोसीन और एलपीजी के लिए लाइनों में व्यस्त रखा, जबकि नेता और उनके बच्चे विदेशों में महंगी-महंगी चीजें खरीदते रहे.
उन्होंने कश्मीर के युवाओं को हिंसा की आग में ढकेल दिया, ताकि उनके रिश्तेदारों और बच्चों का भविष्य संवर सके. वो भी उस पैसे से, जो कश्मीर को बर्बाद करने के लिए राज्य में पहुंचाया गया.
मैं इससे नफरत करते हुए बड़ी हुई हूं. लेकिन आज वो दिन है, जब मैं इस नफरत को भूल सकती हूं और एक नई शुरुआत कर सकती हूं. मैंने कभी कश्मीर नहीं छोड़ा. मैं हर साल वहां जाती हूं, लेकिन एक बाहरी की तरह, क्योंकि वहां के कानून ने मुझे मेरी ही धरती से बाहर कर दिया है. लेकिन अब मैं फिर घर जा सकती हूं.
और मेरे बहुत सारे दौरों के बाद मैं ये भी जानती हूं कि इससे सिर्फ कश्मीरी पंडितों को मदद नहीं मिलेगी, बल्कि कश्मीर के उन मुस्लिमों को भी मदद मिलेगी, जो अपने बच्चों को एक सामान्य और सुरक्षित जिंदगी देना चाहते हैं. वह विकास, नौकरी, पर्यटन, अच्छी शिक्षा और अच्छी स्वास्थ्य व्यवस्था चाहते हैं. उम्मीद करती हूं कि केंद्र सरकार इसे एक मिशन की तरह लेते हुए इस राज्य (सॉरी, यूनियन टेरिटरी) का आर्थिक और सांस्कृतिक स्थिति को सुधारेगी. मुझे लगता है कि आखिरकार वो समय आ गया है, जब नफरत को छोड़ दिया जाए. धन्यवाद, माननीय प्रधानमंत्री.
ये भी पढ़ें-
धारा 370 हटाने की जमीन तो खुद कश्मीरियों ने ही तैयार की है !
मोदी सरकार ने धारा 370 से ही धारा 370 को काट डाला!
महबूबा-अब्दुल्ला के लिए धारा 370 और 35A के खात्मे से ज्यादा बड़ा डर है जांच एजेंसी की कार्रवाई
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.