हिंदुस्तान की राजनीति भी देश की तरह विविधताओं से भरी है. पहले मुद्दों के सन्दर्भ में बात होती थी अब जानवरों को लेकर बात होती है. हालिया वक्त में गाय ही चर्चा का केंद्र है. गली से लेकर मुहल्ले तक, गांव से लेकर शहर तक हर तरफ गाय ही गाय हैं. अखबार के पन्ने पलटिये, वेबसाईट के पेजों को स्क्रॉल करिए, टीवी की स्क्रीन पर देखिये हर तरफ आजकल गाय या उनसे जुड़ी खबर ही दिख रही है. ताजा हालात के मद्देनजर ये कहना बिल्कुल भी दुरुस्त है कि गरीबी, शिक्षा, पलायन, रोजगार, आंतरिक सुरक्षा, महंगाई एक किनारे पर हैं और गाय दूसरे किनारे पर.
वर्तमान सामाजिक परिदृश्य में, गाय न सिर्फ आस्था और विश्वास का केंद्र है बल्कि भारतीय राजनीति का भी एक अहम बिंदु है. आज भारतीय राजनीति गाय के इर्द-गिर्द घूम रही है,. आज वही नेता सफल है जो गौ हित की बातें कर रहा है, इसे गौर से देखें तो मिलता है कि गाय के नाम पर जहां एक तरफ पुराने नेता जनता के बीच लोकप्रियता हासिल कर चुके हैं तो वहीं दूसरी तरफ नए उभरते नेताओं के लिए गौ रक्षा, गौ हितों की बातें कर, गाय पर बयान देकर अपनी राजनीति को चमकाया जा रहा है.
भले ही आज, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी फर्जी गौ रक्षकों पर कठोर कदम उठाते हुए, उनकी कड़े शब्दों में निंदा करें. मगर जो हालात हैं वो बद से बदतर होते जा रहे हैं. आज जिस तरह गौ रक्षा के नाम पर चंद लोगों द्वारा अराजकता फैलाई जा रही है, वो ये बताने के लिए पर्याप्त है कि अब ऐसे लोगों को न कानून की कोई परवाह है न ही इन्हें देश के प्रधानमंत्री की बात का लिहाज है.
उपरोक्त कही बातों को एक खबर से भी समझा जा सकता है. खबर उत्तराखंड के भीमताल क्षेत्र से है. गौशाला खोलकर बीते कई वर्षों से सच्ची गौ...
हिंदुस्तान की राजनीति भी देश की तरह विविधताओं से भरी है. पहले मुद्दों के सन्दर्भ में बात होती थी अब जानवरों को लेकर बात होती है. हालिया वक्त में गाय ही चर्चा का केंद्र है. गली से लेकर मुहल्ले तक, गांव से लेकर शहर तक हर तरफ गाय ही गाय हैं. अखबार के पन्ने पलटिये, वेबसाईट के पेजों को स्क्रॉल करिए, टीवी की स्क्रीन पर देखिये हर तरफ आजकल गाय या उनसे जुड़ी खबर ही दिख रही है. ताजा हालात के मद्देनजर ये कहना बिल्कुल भी दुरुस्त है कि गरीबी, शिक्षा, पलायन, रोजगार, आंतरिक सुरक्षा, महंगाई एक किनारे पर हैं और गाय दूसरे किनारे पर.
वर्तमान सामाजिक परिदृश्य में, गाय न सिर्फ आस्था और विश्वास का केंद्र है बल्कि भारतीय राजनीति का भी एक अहम बिंदु है. आज भारतीय राजनीति गाय के इर्द-गिर्द घूम रही है,. आज वही नेता सफल है जो गौ हित की बातें कर रहा है, इसे गौर से देखें तो मिलता है कि गाय के नाम पर जहां एक तरफ पुराने नेता जनता के बीच लोकप्रियता हासिल कर चुके हैं तो वहीं दूसरी तरफ नए उभरते नेताओं के लिए गौ रक्षा, गौ हितों की बातें कर, गाय पर बयान देकर अपनी राजनीति को चमकाया जा रहा है.
भले ही आज, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी फर्जी गौ रक्षकों पर कठोर कदम उठाते हुए, उनकी कड़े शब्दों में निंदा करें. मगर जो हालात हैं वो बद से बदतर होते जा रहे हैं. आज जिस तरह गौ रक्षा के नाम पर चंद लोगों द्वारा अराजकता फैलाई जा रही है, वो ये बताने के लिए पर्याप्त है कि अब ऐसे लोगों को न कानून की कोई परवाह है न ही इन्हें देश के प्रधानमंत्री की बात का लिहाज है.
उपरोक्त कही बातों को एक खबर से भी समझा जा सकता है. खबर उत्तराखंड के भीमताल क्षेत्र से है. गौशाला खोलकर बीते कई वर्षों से सच्ची गौ सेवा में लगे दो लोगों पर संकट के बादल तब मंडराने लगे, जब उनकी गौशाला में इलाज के दौरन एक बीमार गाय की मौत हो गयी. इस मामले में समस्या बीमार गाय की मौत नहीं बल्कि कथित गौ रक्षक थे. जिन्होंने दोनों भुक्तभोगियों को अपना तुगलकी फैसला सुनाते हुए कह दिया कि, चूंकि गाय उनकी कस्टडी में मरी है अतः उन्हें "कुछ ले देके" मामला खत्म करना होगा. यदि वो इस तरह के समझौते पर राजी नहीं होते हैं तो इसके लिए उन्हें गंभीर परिणाम भुगतने पड़ेंगे. जहां उनके द्वारा आम लोगों के बीच इस बात को फैला दिया जाएगा की इन्हीं दोनों लोगों के कारण ही गाय की मौत हुई है.
ध्यान रहे कि ये कथित गौ सेवक हिन्दू सेना से जुड़े थे. जब इस बारे में हिन्दू सेना से बात की गयी तो संगठन ने कथित गौ रक्षकों को सिरे से खारिज करते हुए कह दिया ऐसे लोगों से संगठन का कोई संबंध नहीं है. बताया जा रहा है कि गौशाला का संचालन करने वाले दोनों भुक्तभोगी, मोहन जोशी और किशन सिंह इस घटना से बहुत डरे हुए हैं और ये मान चुके हैं कि गौ रक्षा के नाम पर इस तरह लोगों को डराना ये साफ दर्शा रहा है कि ऐसे लोगों में शासन प्रशासन का कोई खौफ नहीं है.
गौरतलब है कि बीते 8 सालों में ऐसा पहली बार हुआ है जब सिर्फ 2017 में ही गौ रक्षा और गौ सेवा के नाम पर ऐसे 27 मामले देखे गए हैं जहां लोगों को डराया धमकाया और मारा गया है. कहा जा सकता है कि ये फर्जी गौ रक्षकों का खौफ ही है जिसके चलते अभी कुछ दिनों पहले अखिलेश सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे आजम खान तक को अपनी दो गायों को सिर्फ इसलिए वापस करना पड़ा ताकि कहीं लेने के देने न पड़ जाएं.
आपको बता दें कि इन गायों को आजम को गोवर्धन पीठ स्वामी अधोक्ष्जानंद महाराज के शंकराचार्य द्वारा उपहार स्वरूप दिया गया था.इन गायों को वापस करने के पीछे आजम का तर्क था कि जिस तरह से गाय के नाम पर लोग अराजक होकर हिंसा कर रहे हैं क्या भरोसा कब कौन किसे गाय के नाम पर मार दे. साथ ही तब आजम ने ये भी तर्क दिया था कि हो सकता है कि कोई कथित गौ रक्षक खुद उन गायों को मार दे और उन्हें और देश के आम मुसलमानों को बदनाम करने की साजिश रच डाले.
खैर यहां न मुद्दा आजम खान की गाय है न ही गौ रक्षा. गौ सेवा और गौ रक्षा बिल्कुल होनी चाहिए मगर जिस तरह आज कुछ लोगों ने इसकी ठेकेदारी उठा ली है और इस पवित्र काम के नाम पर अवैध धन उगाही की जा रही है वो गलत है और देश के हर नागरिक का ये कर्त्तव्य है कि वो ऐसे लोगों और ऐसी घटनाओं का जम कर विरोध करे, और ऐसे लोगों और ऐसी हरकतों पर जम के अपनी प्रतिक्रिया दे.
कहा जा सकता है कि अब वो दौर आ गया है कि जब इस देश के लोगों को समझ लेना चाहिए कि वो गौ रक्षा और गौ सेवा के समर्थन में तो हैं मगर वो उन्हें सजा दिलाने से भी पीछे नहीं हटेंगे जो गाय के नाम पर अराजकता और हिंसा कर देश का माहौल खराब करने का प्रयत्न कर रहे हैं और सम्पूर्ण विश्व के सामने देश को बदनाम करने की साजिश रच रहे हैं.
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