बीते 60 दिनों से नागरिकता संशोधन कानून (Citizenship Amendment Act) और एनआरसी (NRC) के विरोध में धरने पर बैठी दिल्ली के शाहीन बाग़ (Shaheenbagh) की महिलाएं चर्चा में हैं. वजह? उनका अमित शाह से मिलने उनके घर जाना और फिर पुलिस (Delhi Police) से सामना होने के बाद मुलाकात से पीछे हट जाना. मामला बीते दिन ही चर्चा में आया था जिसपर गृह मंत्रालय (Home Ministry) ने ऐसी किसी भी मुलाकात से इंकार किया था. शाहीनबाग में प्रदर्शनकारियों द्वारा शाह से नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) से संबंधित मुद्दों पर चर्चा करने का दावा करने के बाद गृह मंत्रालय (एमएचए) का यही तर्क है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) की तरफ से इस तरह की कोई बैठक निर्धारित नहीं की गई है. ज्ञात हो कि सीएए और एनआरसी को लेकर विरोध (Anti CAA Protest) कर रहे हैं शाहीनबाग के प्रदर्शनकारी गृहमंत्री अमित शाह से मिलना चाहते थे. प्रदर्शनकारियों का कहना था कि वो नए नागरिकता कानून के कारण मची गफलत को लेकर गृह मंत्री अमित शाह से मिलने को तैयार हैं. वो इस विषय पर उनसे बात करके अपनी चिंताओं को विराम देना चाहते हैं.
नागरिकता संशोधन कानून पर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मिलने जाती शाहीनबाग की महिलाएं
मार्च में पुरुषों के अलावा बड़ी संख्या में औरतें और बच्चे मौजूद थे इसलिए सुरक्षा के भी विशेष प्रबंध किये गए थे. कोई अनहोनी या फिर अराजकता न हो इसके लिए दिल्ली पुलिस ने जहां एक तरफ केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के घर की चौतरफा किलाबंदी की. तो वहीं शाहीनबाग से निकलकर गृह मंत्री अमित शाह से मिलने, पैदल मार्च कर उनके घर जा रहे प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए भी जगह जगह बैरीकेडिंग की.
दिल्ली पुलिस का कहना था कि पहले प्रदर्शनकारी गृह मंत्री से मिलने की परमिशन लाएं. बताया जा रहा है कि पुलिस से बातचीत के बाद प्रदर्शनकारी लौट गए हैं बावजूद इसके इलाके में भारी संख्या में सुरक्षाबल तैनात है. एडिशनल DCP कुमार ज्ञानेश का कहना है कि स्थिति सामान्य और नियंत्रण में है. कुछ प्रदर्शकारी बैरिकेड्स तक आए थे. उनसे जब अमित शाह से मिलने अपॉइंटमेंट के बारे में पूछा गया तो उन्होंने अपॉइंटमेंट की बात से इंकार किया और पुलिस से हुई बातचीत के बाद वे वापस लौट गए.
आने वाले वक़्त में शाहीनबाग के प्रदर्शनकारी देश के गृह मंत्री अमित शाह के सामने अपनी चिंताएं व्यक्त करने में कितने कामयाब होते हैं इसका फैसला वक़्त करेगा. मगर प्रदर्शकारियों का इस तरह अमित शाह से मिलने जाना कई सवाल खड़े करता है. इस बात में कोई शक नहीं है कि नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में आए लोगों को खुद देश के गृह मंत्री अमित शाह ने आमंत्रित किया था. मगर इसका ये मतलब बिलकुल नहीं है कि लोग इस तरह झुंड में उनसे मिलने जाएं.
बनाया जाए एक डेलिगेशन
गृह मंत्री अमित शाह से मिलने उनके घर जा रहे लोगों को समझना होगा कि अमित शाह से मिलना बिलकुल भी हवा हवाई नहीं हैं. देश के गृहमंत्री के अपने प्रोटोकॉल हैं. ऐसा भी नहीं है कि वो कहीं बैठे हैं कि लोग आएं उनसे मिलें उनके दर्शन करें और चलें जाएं.
शाहीनबाग को लेकर जो हालात बन रहे हैं कह सकते हैं कि अब वो वक़्त आ गया है कि यहां के लोगों को अपना एक संरचित डेलिगेशन हर सूरत में बनाना ही पड़ेगा. इन्हें सरकार को इस बता का भी विश्वास दिलाना पड़ेगा कि यही शाहीनबाग है.
ध्यान रहे कि जब डेलिगेशन की बात हुई तो यही कहा गया कि यहां बैठा व्यक्ति या यहां विरोध दर्ज करता व्यक्ति अपने आप में एक डेलिगेशन है. जो सिर्फ और सिर्फ कंफ्यूजन बढ़ाता है और बताता है कि यहां बैठे लोगों के विचारों में गहरा विरोधाभास है जो चीजों को सिर्फ उलझाने का काम कर रहा है.
क्या लोग डेलिगेशन की बात मानेंगे
इस पूरे मामले में दिलचस्प ये भी है कि अगर शाहीनबाग का डेलिगेशन बन गया तो क्या बाकी के प्रदर्शनकारी उनकी बातों को मानेंगे ? मान लीजिये ये लोग अमित शाह से मिलने जाएं और शाह प्रदर्शनकारियों को समझा दें कि एनआरसी की तो अभी कोई बात ही नहीं है.
साथ ही नागरिकता संशोधन कानून से भी इन्हें कोई खतरा नहीं है. ये लोग शाह की बातों से संतुष्ट हो जाएं तो सवाल ये है कि क्या शाहीनबाग़ के बाकी लोग से मानेंगे ?अपना धरना ख़त्म करेंगे ? जिस सार्वजानिक जगह पर प्रदर्शन चल रहा है उसे छोड़ेंगे ?
बता दें कि देश के गृहमंत्री से मिलना कोई खिलवाड़ नहीं है. जैसी जिद प्रदर्शनकारियों से पकड़ी है उसके बाद भविष्य में यही देखने को मिलेगा कि इसी तर्ज पर रोजाना दो या तीन लोग गृह मंत्री से मिलने जाएंगे और दूसरी तरफ ये धरना यूं ही चलता रहेगा.
बरक़रार रहेगी भ्रम की स्थिति
इस बात में कोई संदेह नहीं है कि बातों और कृत्यों में एक गहरा विरोधाभास है. चाहे वो नेता का आभाव हो या फिर विचारों में मतभेद शाहीनबाग आंदोलन को लेकर शुरुआत से यही कहा जा रहा है कि यहां ऐसी तमाम चीजें हुई हैं जिस कारण इसका विरोध भटका हुआ लगता है.
अब जब ये लोग देश के गृहमंत्री से मिलने के लिए अचानक ही एकजुट हुए हैं तो ये अपने आप साफ़ हो जाता है कि भ्रम की ये स्थिति यूं ही बरक़रार रहेगी. यहां हमें ये समझना होगा कि बातचीत कैसे और किस स्तर पर होगी इसे लेकर भी प्रदर्शनकारियों का एजेंडा स्पष्ट नहीं है.
अमित शाह ने लोगों को आमंत्रित किया है मगर जिस तरह ये लोग उस आमंत्रण का फायदा उठाने में नाकाम हैं ये बता देता है कि ये आंदोलन कबका अपनी दिशा छोड़ चुका है.
तो क्या इस मुलाकात का उद्देश्य पॉलिटिकल स्कोरिंग था
चाहे मुलाकात के लिए निकलना हो या फिर वापस लौटना स्पष्ट हो गया है कि ये सब किसी एक मुद्दे के लिए था बल्कि मामला पूर्ण रूप से राजनितिक था. इस मुलाकात के जरिये अमित शाह के घर पहुंचने वाले लोग बस इसलिए वहां जा रहे थे क्योंकि अमित शाह ने बोला था.
यानी ये इवेंट पॉलिटिकल स्कोरिंग के लिए तो एक उम्दा इवेंट रहा लेकिन जब इसके परिदृश्य में हम मुद्दे को रखकर देखें तो हमें मुद्दा कहीं छूटता हुआ नजर आता है. पूरा विषय शीशे की तरह साफ है.
दिल्ली की सड़कों पर जो कुछ भी हुआ है उसे देखकर कोई भी समझदार आदमी यही कहेगा कि ये लोग जानते थे कि अमित शाह इनसे नहीं मिलने वाले. लेकिन ये लोग तब भी गए. यानी इनको मुद्दे से कोई मतलब नहीं है इन्हें केवल पॉलिटिकल पॉइंट स्कोरिंग करनी थी.
अगर मुलाक़ात होती तो क्या आंदोलन ख़त्म होता?
सवाल ये है कि जो लोग अमित शाह से मिलना चाह रहे हैं वो इस मुद्दे के निपटारे केलिए उनसे मिलना चाह रहे हैं? यदि इसका जवाब हां है तो वो इसका दावा करने में क्यों नाकाम है कि वो ही इस मामले के प्रतिनिधि हैं और अगर वो संतुष्ट हो गए तो आंदोलन ख़त्म हो जाएगा.
बता दें कि फिलहाल ये कमिटमेंट इन लोगों की तरफ से नहीं आया है ये लोग मिलने जाने की बात तो कह रहे हैं साथ ही ये भी बता रहे हैं कि इनका कोई डेलिगेशन नहीं है.
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