शरद पवार (Sharad Pawar) गंभीर संकट की स्थिति में भी सियासी मसलों को सहज तौर पर लेते हैं. मुश्किल परिस्थितियों में भी शरद पवार जो भी राजनीतिक कदम बढ़ाते हैं - वो हर तरीके से पॉलिटिकली करेक्ट होता है.
गुजरे जमाने की बातें छोड़ भी दें तो महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के पहले ED के नोटिस पर जिस तरीके से रिएक्ट किया, पूछताछ कौन कहे पूरा सरकारी अमला उनको मनाने में जुट गया कि वो दफ्तर पहुंचने का अपना प्रोग्राम टाल दें.
ठीक वैसा ही किया सतारा में. चुनावी रैली में बारिश की परवाह न कर वो फटाफट मंच पर चढ़ गये और भीगते हुए भाषण पूरा किया. नतीजा वो हुआ जिसकी बहुतों ने कल्पना भी नहीं की होगी.
अनिल देशमुख (Anil Deshmukh) के केस में देखें तो करीब 24 घंटे तक सत्ता पक्ष में घोर सन्नाटा छाया रहा. यहां तक कि शिवसेना के मुख्य प्रवक्ता संजय राउत भी जावेद अख्तर की लाइनें ट्वीट कर रस्म अदायगी निभा ली. बोला भी तो वही जो नहीं भी बोलने से भी काम चल ही जाता.
महाराष्ट्र के गृह मंत्री अनिल देशमुख पर लगे 100 करोड़ की वसूली के आरोपों को लेकर प्रेस कांफ्रेंस में भी शरद पवार पूरे मामले को हल्के में लेने की कोशिश करते दिखे, लेकिन सिर्फ मीडिया के सामने ही. उससे पहले वो अनिल देशमुख और कुछ लोगों को तलब कर डांट डपट कर चुके हैं.
वैसे एनसीपी प्रमुख अनिल देशमुख के फंसे होने को कितने हल्के में ले रहे हैं, शरद पवार की बुलायी गयी बैठकों से आ रही खबरों से समझा जा सकता है - अब से पहले ऐसी बैठकें तभी हुई थीं जब अजीत पवार रातोंरात प्लान बना कर देवेंद्र फडणवीस के साथ महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम पद की शपथ ले बैठे थे. बताते हैं कि शरद पवार के घर चल रही मीटिंग में अजीत पवार तो पहुंचे ही हैं, सीनियर एनसीपी नेता प्रफुल्ल पटेल, जयंत पाटिल और शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले भी मौजूद हैं.
पहले तो विपक्ष के नेता देवेंद्र फडणवीस के निशाने पर प्रत्यक्ष रूप से गृह मंत्री अनिल देशमुख और परोक्ष रूप से मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ही हुआ करते थे, लेकिन शरद पवार की...
शरद पवार (Sharad Pawar) गंभीर संकट की स्थिति में भी सियासी मसलों को सहज तौर पर लेते हैं. मुश्किल परिस्थितियों में भी शरद पवार जो भी राजनीतिक कदम बढ़ाते हैं - वो हर तरीके से पॉलिटिकली करेक्ट होता है.
गुजरे जमाने की बातें छोड़ भी दें तो महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के पहले ED के नोटिस पर जिस तरीके से रिएक्ट किया, पूछताछ कौन कहे पूरा सरकारी अमला उनको मनाने में जुट गया कि वो दफ्तर पहुंचने का अपना प्रोग्राम टाल दें.
ठीक वैसा ही किया सतारा में. चुनावी रैली में बारिश की परवाह न कर वो फटाफट मंच पर चढ़ गये और भीगते हुए भाषण पूरा किया. नतीजा वो हुआ जिसकी बहुतों ने कल्पना भी नहीं की होगी.
अनिल देशमुख (Anil Deshmukh) के केस में देखें तो करीब 24 घंटे तक सत्ता पक्ष में घोर सन्नाटा छाया रहा. यहां तक कि शिवसेना के मुख्य प्रवक्ता संजय राउत भी जावेद अख्तर की लाइनें ट्वीट कर रस्म अदायगी निभा ली. बोला भी तो वही जो नहीं भी बोलने से भी काम चल ही जाता.
महाराष्ट्र के गृह मंत्री अनिल देशमुख पर लगे 100 करोड़ की वसूली के आरोपों को लेकर प्रेस कांफ्रेंस में भी शरद पवार पूरे मामले को हल्के में लेने की कोशिश करते दिखे, लेकिन सिर्फ मीडिया के सामने ही. उससे पहले वो अनिल देशमुख और कुछ लोगों को तलब कर डांट डपट कर चुके हैं.
वैसे एनसीपी प्रमुख अनिल देशमुख के फंसे होने को कितने हल्के में ले रहे हैं, शरद पवार की बुलायी गयी बैठकों से आ रही खबरों से समझा जा सकता है - अब से पहले ऐसी बैठकें तभी हुई थीं जब अजीत पवार रातोंरात प्लान बना कर देवेंद्र फडणवीस के साथ महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम पद की शपथ ले बैठे थे. बताते हैं कि शरद पवार के घर चल रही मीटिंग में अजीत पवार तो पहुंचे ही हैं, सीनियर एनसीपी नेता प्रफुल्ल पटेल, जयंत पाटिल और शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले भी मौजूद हैं.
पहले तो विपक्ष के नेता देवेंद्र फडणवीस के निशाने पर प्रत्यक्ष रूप से गृह मंत्री अनिल देशमुख और परोक्ष रूप से मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ही हुआ करते थे, लेकिन शरद पवार की प्रेस कांफ्रेंस के बाद एनसीपी प्रमुख भी पूर्व मुख्यमंत्री के हमले के दायरे में आ चुके हैं.
देवेंद्र फडणवीस कह रहे हैं, शरद पवार साहब महाराष्ट्र सरकार को बचाने की जिम्मेदारी अपने कंधे पर लिए हुए हैं क्योंकि वो ही इस सरकार को बनाये हैं - इसलिए वो मानते हैं कि वो अपने प्रोडक्ट को सुरक्षित रखें.
परमबीर सिंह (Param Bir Singh) की चिट्ठी पर शरद पवार के सवाल उठाने के बाद देवेंद्र फडणवीस का कहना है कि गृह मंत्रालय के कारोबार पर सवाल उठाने वाले परम बीर सिंह पहले शख्स नहीं है. पहले भी महाराष्ट्र के डीजी सुबोध जायसवाल ने रिश्वतखोरी, तबादले के बारे में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को एक रिपोर्ट सौंपी थी, लेकिन उस पर कोई कार्रवाई नहीं की गयी.
एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने गृह मंत्री अनिल देशमुख पर लगे आरोपों को बेहद गंभीर किस्म का माना है, बिलकुल वैसे ही जैसे धनंजय मुंडे पर लगे रेप के आरोपों के बारे में बोले थे. धनंजय मुंडे की भी कुर्सी हिल गयी थी, लेकिन फिर सेटलमेंट हो ही गया.
लगता है वैसे ही बेनिफिट ऑफ डाउट अनिल देशमुख को भी देने की कोशिश हो रही है, ताकि ये मामला भी जैसे तैसे रफा दफा हो जाये - शरद पवार ने परमबीर सिंह की चिट्ठी को लेकर कई सवाल उठाये हैं, एक का जवाब दो आईपीएस अफसर ने फिर से दे दिया है, लेकिन ज्यादातर जवाब चिट्ठी को ध्यान से पढ़ने पर आसानी से समझ में आ जाते हैं - ये बात अलग है कि वो राजनीतिक या तकनीकी पैमानों पर फिट बैठ पाते हैं या नहीं.
1. मुख्यमंत्री को मिली चिट्ठी असली या नकली?
शरद पवार ने परमबीर सिंह की चिट्ठी के असली होने पर भी सवाल उठाया और फिर पूर्व मुंबई पुलिस कमिश्नर का रिएक्शन भी आ गया. हालांकि, अनिल देशमुख के बचाव में झूठ बोलने के आरोपों पर परमबीर सिंह बोले - नो कमेंट्स.
शरद पवार ने ये कहते हुए चिट्ठी के असली होने पर सवाल उठाया कि चिट्ठी पर परमबीर सिंह का हस्ताक्षर नहीं है.
एकबारगी किसी को भी शक होना ही चाहिये और शरद पवार तो ठहरे अनुभवी राजनेता. मगर, चिट्ठी ईमेल से भेजी गयी हो तो उस पर दस्तखत जरूरी नहीं है, अगर कहीं स्पेसिफिकली ऐसा करने के लिए न कहा गया हो. या पहले से डिजिटल साइन की मांग न की गयी हो.
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक महाराष्ट्र मुख्यमंत्री कार्यालय ने परमबीर सिंह के पत्र की जांच कराने की बात कही थी. 20 मार्च को महाराष्ट्र CMO की तरफ से बताया गया, 'परमबीर सिंह का पत्र आज शाम 4:37 बजे एक अलग ईमेल आईडी के जरिये प्राप्त हुआ, न कि उनके आधिकारिक ईमेल से और वो भी उनके हस्ताक्षर के बगैर. नये ईमेल की जांच करने की जरूरत है. उनसे संपर्क करने का प्रयास किया जा रहा है.'
News18 के पूछने पर परमबीर सिंह ने बताया कि चिट्टी पूरी तरह से सही है और ई-मेल आईडी भी उनकी ही है.
2. ब्रीफिंग में जो बातें हुईं वे क्या थीं?
शरद पवार का कहना है कि परमबीर सिंह ने ये आरोप तबादले के बाद क्यों लगाये? तबादले से पहले ये आरोप क्यों नहीं लगाये?
गुड क्वेश्चन कहने की यहां जरूरत तो नहीं है, लेकिन सवाल स्वाभाविक है और हर किसी के मन में होगा ही.
परमबीर सिंह ने अपनी चिट्ठी में ऐसा तो नहीं लिखा है कि अनिल देशमुख को लेकर सचिन वाजे के मार्फत मिली जानकारी ही वो ब्रीफिंग में बताये थे, लेकिन ये जरूर लिखा है कि मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को ब्रीफिंग में ऐसी बातें बतायी थी. परमबीर सिंह ने ये भी लिखा है कि शरद पवार को भी ऐसी बातें बता चुके हैं - और कई मंत्री सारी बातें अच्छी तरह जानते हैं.
रही बात पुलिस कमिश्नर रहते आरोप लगाने की तो समझने वाली बात ये है कि क्या ऐसी बातों के बाद वो उस पोस्ट पर बने रह पाते? दिक्कत क्या है - अगर अब से ही बता दिया है तो किसी सक्षम एजेंसी से जांच करा ली जाये, सारा का सारा दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा.
3. चैट डिटेल्स सबूत क्यों नहीं लगते?
शरद पवार ने अनिल देशमुख पर परमबीर सिंह के आरोपों को लेकर पूछा है - सबूत कहां है? शरद पवार का ये भी सवाल है कि पैसा अगर वसूला गया तो वो गया कहां?
मुख्यमंत्री को भेजी अपनी चिट्ठी में परमबीर सिंह ने एक मातहत अफसर से चैट का पूरा ब्योरा भी दिया है - उस पर तारीख भी है और समय भी दर्ज है. चैट पर गौर करें तो मालूम होता है कि परमबीर सिंह ने अफसर से सभी बातें कंफर्म करने वाले लहजे में ही पूछी है - और सबसे खास बात, बार बार उस अफसर ने कंफर्म भी किया है.
पूरी बातचीत में परमबीर सिंह, अनिल देशमुख को HM Sir कह कर ही संबोधित कर रहे हैं - और चिट्ठी में भी नाम के पहले माननीय ही लगा हुआ है. अगर ये सब भी सबूत नहीं है तो जैसे एनआईए की जांच से मामला यहां तक पहुंचा है, जांच आगे बढ़ेगी तो बाकी सबूत भी सामने आ ही जाएंगे.
4. सचिन वाजे कोई आम सब-इंसपेक्टर नहीं हैं
एनसीपी नेता शरद पवार का कहना है कि API सचिन वाजे को पुलिस में वापस लेने का फैसला अकेला परमबीर सिंह का था. पूछे जाने पर शरद पवार पूछ डालते हैं - किसी सब इंसपेक्टर की नियुक्ति गृह मंत्री और मुख्यमंत्री करता है क्या?
जिस तरह की लग्जरी गाड़ियां सचिन वाजे के पास से बरामद हो रही हैं - देश में ऐसे कितने सब इंसपेक्टर होंगे जिनके पास ये सब होगा? और होगा भी तो ये आय का कौन सा स्रोत है जिनसे ये सब आता है?
ये सब जानने के बाद भी सचिन वाजे को कोई आम सब इंसपेक्टर जैसा ही समझा जा सकता है क्या?
जिस सचिन वाजे को देवेंद्र फडणवीस ने मुख्यमंत्री रहते वापस नहीं लिया - क्योंकि हाई कोर्ट ने उनके खिलाफ एक्शन लिया था, उसे पुलिस कमिश्नर रहते परमबीर सिंह की हिम्मत हुई होगी कि अपने मन से बहाल कर लें - और उसके बाद भी कुर्सी पर बने रह सकते थे?
ये बात इतनी आसानी से कैसे मान ली जाये कि सचिन वाजे की पुलिस सेवा में वापसी की जानकारी न तो गृह मंत्री अनिल देशमुख को रही होगी और न ही मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को.
5. अनिल देशमुख केस में एक्शन नहीं जांच
महाविकास आघाड़ी सरकार में हिस्सेदार एनसीपी के नेता शरद पवार का कहना है कि अनिल देशमुख को लेकर फैसले का अधिकार मुख्यमंत्री को है, लेकिन लगे हाथ एक पेंच भी फंसा देते हैं कि जांच के बाद ही वो फैसला लेंगे.
मतलब, अनिल देशमुख के गृह मंत्री रहते ही महाराष्ट्र का कोई पुलिस अफसर उन पर लगे हर महीने 100 करोड़ रुपये की वसूली के आरोपों की जांच भी कर पाएगा. बीजेपी नेता यही तो कह रहे हैं कि अनिल देशमुख के गृह मंत्री की कुर्सी पर रहते निष्पक्ष जांच कैसे हो पाएगी.
मतलब, अनिल देशमुख तत्काल कुर्सी नहीं छोड़ रहे हैं, ठीक वैसे ही जैसे धनंजय मुंडे को भी कुर्सी छोड़ने की जरूरत नहीं पड़ी - क्योंकि उनके खिलाफ भी शरद पवार की नजर में गंभीर किस्म के ही आरोप लगे थे.
महा आघाड़ी विकास सरकार की तरफ से सबसे पहले शरद पवार ने मोर्चा संभाला है - और किसी के बस की बात भी नहीं थी. खुद उद्धव ठाकरे को भी यही बताना पड़ता कि वो अनिल देशमुख के खिलाफ एक्शन ले रहे हैं या नहीं.
हां, संजय राउत चाहते तो कुछ बोल सकते थे - मसलन, जांच चल रही है. आखिरी फैसला पवार साहब लेंगे. मिल जुल कर फैसला होगा. तब तक इंतजार कीजिये. और कर भी क्या सकते हैं!
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