शरद पवार (Sharad Pawar) ने पहली बार महाराष्ट्र में केंद्रीय एजेंसियों के एक्शन का मामला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के सामने उठाया है, लेकिन हैरानी की बात ये है कि वो मामला एनसीपी नेताओं के खिलाफ हुई कार्रवाई से जुड़ा नहीं है.
ज्यादा हैरानी इसलिए भी हो रही है क्योंकि शरद पवार ने जो मसला प्रधानमंत्री मोदी के सामने उठाया है वो महज संपत्ति सीज किये जाने का है, जबकि एनसीपी के दो दो नेता गिरफ्तार कर जेल भेजे जा चुके हैं - पहले अनिल देशमुख और फिर नवाब मलिक.
क्या शरद पवार, देशमुख और मलिक का केस लेकर प्रधानमंत्री के पास इसलिए नहीं गये क्योंकि वो मामला उनकी अपनी पार्टी एनसीपी से जुड़ा था? ऐसा समझा जाता है कि अपने मामलों में इस तरह के कदम उठाने को लेकर लोगों संकोच का भाव होता है, जबकि दूसरों से जुड़े मामलों में आगे बढ़ कर सिफारिश करने में भी दिक्कत महसूस नहीं करते - क्योंकि उसमें मदद का भाव होता है.
तो क्या वास्तव में शरद पवार के मन में भी देशमुख और मलिक के केस को लेकर संकोच रहा होगा - और संजय राउत (Sanjay Raut) का मामला मदद की भावना के चलते प्रधानमंत्री मोदी के दरबार में आसानी से पहुंच गया?
वैसे महाराष्ट्र से जुड़ा ये दूसरा मामला है जो मदद के लिए प्रधानमंत्री मोदी के पास पहुंचा है. यहां मदद से आशय राजनीतिक वजहों से प्रताड़ित पीड़ित को इंसाफ दिलाने से है. मुलाकात के बाद अपनी प्रेस कांफ्रेंस में शरद पवार ने कहा भी है कि संजय राउत के खिलाफ कार्रवाई इसलिए की गयी क्योंकि वो सरकार के खिलाफ बोलते हैं. पहले उद्धव ठाकरे ने महाराष्ट्र विधान परिषद का चुनाव न कराये जाने को लेकर प्रधानमंत्री मोदी से फोन पर बात की थी.
याद करें तो नवाब मलिक की गिरफ्तारी को लेकर भी एनसीपी की तरह से ऐसा ही बताया गया था कि वो सरकार के खिलाफ...
शरद पवार (Sharad Pawar) ने पहली बार महाराष्ट्र में केंद्रीय एजेंसियों के एक्शन का मामला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के सामने उठाया है, लेकिन हैरानी की बात ये है कि वो मामला एनसीपी नेताओं के खिलाफ हुई कार्रवाई से जुड़ा नहीं है.
ज्यादा हैरानी इसलिए भी हो रही है क्योंकि शरद पवार ने जो मसला प्रधानमंत्री मोदी के सामने उठाया है वो महज संपत्ति सीज किये जाने का है, जबकि एनसीपी के दो दो नेता गिरफ्तार कर जेल भेजे जा चुके हैं - पहले अनिल देशमुख और फिर नवाब मलिक.
क्या शरद पवार, देशमुख और मलिक का केस लेकर प्रधानमंत्री के पास इसलिए नहीं गये क्योंकि वो मामला उनकी अपनी पार्टी एनसीपी से जुड़ा था? ऐसा समझा जाता है कि अपने मामलों में इस तरह के कदम उठाने को लेकर लोगों संकोच का भाव होता है, जबकि दूसरों से जुड़े मामलों में आगे बढ़ कर सिफारिश करने में भी दिक्कत महसूस नहीं करते - क्योंकि उसमें मदद का भाव होता है.
तो क्या वास्तव में शरद पवार के मन में भी देशमुख और मलिक के केस को लेकर संकोच रहा होगा - और संजय राउत (Sanjay Raut) का मामला मदद की भावना के चलते प्रधानमंत्री मोदी के दरबार में आसानी से पहुंच गया?
वैसे महाराष्ट्र से जुड़ा ये दूसरा मामला है जो मदद के लिए प्रधानमंत्री मोदी के पास पहुंचा है. यहां मदद से आशय राजनीतिक वजहों से प्रताड़ित पीड़ित को इंसाफ दिलाने से है. मुलाकात के बाद अपनी प्रेस कांफ्रेंस में शरद पवार ने कहा भी है कि संजय राउत के खिलाफ कार्रवाई इसलिए की गयी क्योंकि वो सरकार के खिलाफ बोलते हैं. पहले उद्धव ठाकरे ने महाराष्ट्र विधान परिषद का चुनाव न कराये जाने को लेकर प्रधानमंत्री मोदी से फोन पर बात की थी.
याद करें तो नवाब मलिक की गिरफ्तारी को लेकर भी एनसीपी की तरह से ऐसा ही बताया गया था कि वो सरकार के खिलाफ हमलावर होते थे, इसलिए जांच एजेंसी के शिकार बने - इसीलिए सवाल उठता है कि संजय राउत और नवाब मलिक का एक जैसा मामला होने के बावजूद शरद पवार की तरफ से मदद में भेदभाव क्यों किया गया?
ताज्जुब होने की तमाम वजहें हैं. प्रवर्तन निदेशालय की तरफ से बताया गया है कि 11.15 करोड़ की संपत्ति अटैच की गयी है, जिसमें 9 करोड़ की प्रॉपर्टी प्रवीण राउत की है और संजय राउत की पत्नी वर्षा राउत की महज 2 करोड़ की.
कितनी अजीब बात है ना - शरद पवार, संजय राउत की दो करोड़ की संपत्ति सीज किये जाने को लेकर प्रधानमंत्री मोदी के पास शिकायत दर्ज कराने पहुंच गये - और, उनके बयान पर आंख मूंद कर यकीन करें तो, मुलाकात में सिर्फ एक और मसले का जिक्र हुआ था. वो शिकायत थी, कैबिनेट की संस्तुति के बाद भी विधान परिषद के लिए भेजे गये 12 नामों पर राज्यपाल का मंजूरी न देना.
कहीं ऐसा तो नहीं कि शरद पवार को संजय राउत जितने बेकसूर नवाब मलिक या अनिल देशमुख नहीं लगते?
सिर्फ संजय राउत पर ही बात हुई क्या?
एनसीपी नेता शरद पवार की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से ताजा मुलाकात भी जिन परिस्थितियों में हुई बतायी जा रही है, उससे काफी अलग लगती है. महाराष्ट्र में बीजेपी और शिवसेना गठबंधन टूटने के बाद से दोनों के बीच ऐसी कई मुलाकातें हो चुकी हैं.
नवंबर, 2019 में महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे के गठबंधन सरकार के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने से हफ्ता भर पहले ही शरद पवार ने प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात की थी. तब एनसीपी की तरफ से यही बताया गया था कि पवार ने महाराष्ट्र के किसानों की समस्याओं को लेकर प्रधानमंत्री मोदी के साथ मीटिंग की है, लेकिन बाद में खबर कुछ और ही आयी थी. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, तब पवार और मोदी के बीच महाराष्ट्र में बीजेपी और एनसीपी की गठबंधन सरकार को लेकर भी बात हुई थी, लेकिन दो मसलों के चलते मामला ठंडा पड़ गया था - एक महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस की जगह किसी और नेता को मुख्यमंत्री बनाये जाने की सलाह और दूसरी, सुप्रिया सुले के लिए केंद्र सरकार में कृषि मंत्रालय की डिमांड.
बकौल शरद पवार, प्रधानमंत्री के साथ उनकी लेटेस्ट मीटिंग में वो शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत के खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय के एक्शन का मुद्दा उठाये हैं.
शरद पवार की नजर में संजय राउत के खिलाफ ED की कार्रवाई भी कंगना रनौत के खिलाफ BMC के एक्शन जैसा ही है. संजय राउत केस को लेकर भी शरद पवार का बयान वैसा ही है जैसा कंगना रनौत के मामले में देखा और सुना गया था.
ये तो नहीं पता कि शरद पवार ने ऐसी कोई बाद कभी उद्धव ठाकरे से कही या नहीं, लेकिन संजय राउत का मामला लेकर वो सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास पहुंच गये - और प्रधानमंत्री को जिम्मेदारी का एहसास कराने लगे. प्रेस कांफ्रेंस में कही गयी उनकी बातों से तो बिलकुल ऐसा ही लगता है - "अगर कोई केंद्रीय एजेंसी इस तरह का कदम उठाती है, तो उन्हें इसकी जिम्मेदारी लेनी होगी."
प्रधानमंत्री मोदी के साथ मीटिंग के बाद शरद पवार ने मीडिया से बात की और बताया, अगर कोई केंद्रीय एजेंसी इस तरह का कदम उठाती है, तो उन्हें इसकी जिम्मेदारी लेनी होगी... उनके खिलाफ ये कार्रवाई इसलिए की गई - क्योंकि वो सरकार के खिलाफ बोलते हैं.
शरद पवार ने बताया, मैंने प्रधानमंत्री मोदी से कहा कि संजय राउत के खिलाफ कार्रवाई की क्या जरूरत थी? सिर्फ इसलिए क्योंकि कभी कभी वो लिखते या आलोचना करते हैं.
शरद पवार ने संजय राउत के खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय के एक्शन को नाइंसाफी करार दिया है - वो न सिर्फ राज्य सभा के सदस्य हैं, बल्कि पत्रकार भी हैं.
कार्रवाई पर संजय राउत की सफाई
ईडी के एक्शन पर संजय राउत पूछ रहे हैं - क्या मैं विजय माल्या हूं? मेहुल चौकसी, नीरव मोदी हूं या फिर अंबानी-अडानी हूं? राउत ने ट्विटर पर लिखा है - "असत्यमेव जयते!"
शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत पहले भी कहते रहे हैं और फिर से दोहराया है कि उन पर सरकार गिराने के लिए दबाव डाला जा रहा है और ऐसा न करने पर ही उनके खिलाफ ये सब कार्रवाई हो रही है. कहते हैं, ये सब राजनीतिक बदले की भावना से हो रहा है.
अपनी सफाई में संजय राउत कहते हैं, 'जिस घर में मैं रहता हूं, वो छोटा सा है... मेरा नेटिव प्लेस अलीबाग है... वहां मेरी एक एकड़ जमीन भी नहीं है... जो लिया गया है, वो मेहनत की कमाई से लिया है... ये संपत्ति 2009 में ली गई है, लेकिन केंद्रीय जांच एजेंसी को लगता है कि ये मनी लॉन्ड्रिंग की है.'
और फिर सीधे चैलेंज करते हुए कहते हैं, 'मैं डरने वाला नहीं हूं... चाहे मेरी संपत्ति जब्त करो, मुझे गोली मारो या जेल भेज दो... मैं बाला साहेब ठाकरे का अनुयायी और शिवसैनिक हूं... मैं लड़ूंगा और सब को बेनकाब करूंगा... मैं चुप रहने वालों में से नहीं हूं - सच्चाई की जीत होगी.'
सवाल ये भी है कि संजय राउत को लेकर शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे ने ये काम क्यों नहीं किया? ऐसा भी तो नहीं कि वो अपने लिए प्रधानमंत्री से बात न किये हों. जब उद्धव ठाकरे को लगा कि छह महीने के भीतर वो महाराष्ट्र के किसी सदन का सदस्य न बन पाने के कारण मुख्यमंत्री की कुर्सी गंवा देंगे तो सीधे प्रधानमंत्री मोदी को फोन मिला दिये थे - और मोदी ने भी निराश नहीं किया था.
जिस तरह की शिकायत तब उद्धव ठाकरे ने की थी, शरद पवार ने भी वैसा ही मुद्दा उठाया है. उद्धव ठाकरे को विधान परिषद का सदस्य मनोनीत करने का प्रस्ताव पास कर कैबिनेट ने राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी को कई बार भेजा था, लेकिन मंजूरी नहीं मिली थी.
शरद पवार ने भी प्रधानमंत्री मोदी से शिकायत की है कि राज्यपाल ने कैबिनेट से मनोनयन के लिए भेजे गये 12 नामों की मंजूरी टालते जा रहे हैं. शरद पवार ने बताया कि प्रधानमंत्री मोदी से उन्होंने कहा कि गवर्नर ढाई साल से नियमों के तहत काम नहीं कर रहे हैं.
बोले, मैंने प्रधानमंत्री का ध्यान इन मुद्दों की तरफ खींचा तो उन्होंने वादा किया कि वो उन मसलों को देखेंगे. उद्धव ठाकरे ने भी तब प्रधानमंत्री मोदी की तरफ से ऐसे ही आश्वासन का जिक्र किया था - 'देखते हैं... क्या किया जा सकता है!'
क्या संजय राउत के मामले (या बाकी केस, बशर्ते उन पर भी बातचीत हुई हो) में भी शरद पवार को वैसी ही उम्मीद करनी चाहिये, जैसा उद्धव ठाकरे के मामले में हुआ?
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