नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी के विरोध में (People protesting against CAA and NRC) देश भर में प्रदर्शन हो रहा है. प्रश्न चिन्ह मुसलमानों पर है. इसलिए इस पूरे आंदोलन में देश के मुसलमानों (Muslims protesting against CAA) की बड़ी भूमिका है. चाहे दिल्ली का जामिया (Jamia) या सीलमपुर हो या फिर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी, लखनऊ, कानपुर, मुज़फ्फरनगर, संभल, रामपुर, मेरठ. CAA विरोध में आंदोलन जहां कहीं भी हुआ, हमने मुसलमानों की बड़ी तादाद को सड़कों पर देखा. मामले ऐसे भी सामने आए जिनमें विरोध ने विध्वसं का रूप लिया और स्थिति को नियंत्रित करने के लिए पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा. आंसू गैस के गोले चले, फायरिंग हुई. CAA के विरोध में जो आंदोलन चल रहा है अगर उसपर गौर किया जाए तो कुछ दिलचस्प चीजें हमारे सामने हैं. इस आंदोलन में धार्मिक नारों जैसे 'ला इलाहा इल्लल्लाह' का इस्तेमाल पूरी तल्लीनता के साथ किया जा रहा है. देश के मुस्लिम अपने इन नारों का समर्थन कर रहे हैं तो वहीं एक वर्ग वो भी है जिसने इसपर कड़ी आपत्ति दर्ज की है. मामले में दिलचस्प बात ये भी है कि समसामयिक मुद्दों पर अपनी टिपण्णी के कारण चर्चा में रहने वाले कांग्रेस के नेता शशि थरूर ( Congress leader Shashi Tharoor opposing religious slogans in CAA protest) ने भी इन नारों पर कड़ा ऐतराज जताया है. थरूर का मानना है कि ऐसे नारे लगाकर देश के मुसलमान आंदोलन को कमज़ोर कर रहे हैं. वहीं एक वर्ग वो भी था जिसका मानना है कि हिंदू धर्म पर अक्सर प्रहार करने वाले शशि तब कितने माइल्ड हैं जब बात मुसलमानों की है. सोशल मीडिया पर लोग यही सवाल कर रहे हैं कि इतने अपनेपन से आखिर शशि ने हिन्दुओं के साथ बात कभी क्यों नहीं की?
नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी के विरोध में (People protesting against CAA and NRC) देश भर में प्रदर्शन हो रहा है. प्रश्न चिन्ह मुसलमानों पर है. इसलिए इस पूरे आंदोलन में देश के मुसलमानों (Muslims protesting against CAA) की बड़ी भूमिका है. चाहे दिल्ली का जामिया (Jamia) या सीलमपुर हो या फिर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी, लखनऊ, कानपुर, मुज़फ्फरनगर, संभल, रामपुर, मेरठ. CAA विरोध में आंदोलन जहां कहीं भी हुआ, हमने मुसलमानों की बड़ी तादाद को सड़कों पर देखा. मामले ऐसे भी सामने आए जिनमें विरोध ने विध्वसं का रूप लिया और स्थिति को नियंत्रित करने के लिए पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा. आंसू गैस के गोले चले, फायरिंग हुई. CAA के विरोध में जो आंदोलन चल रहा है अगर उसपर गौर किया जाए तो कुछ दिलचस्प चीजें हमारे सामने हैं. इस आंदोलन में धार्मिक नारों जैसे 'ला इलाहा इल्लल्लाह' का इस्तेमाल पूरी तल्लीनता के साथ किया जा रहा है. देश के मुस्लिम अपने इन नारों का समर्थन कर रहे हैं तो वहीं एक वर्ग वो भी है जिसने इसपर कड़ी आपत्ति दर्ज की है. मामले में दिलचस्प बात ये भी है कि समसामयिक मुद्दों पर अपनी टिपण्णी के कारण चर्चा में रहने वाले कांग्रेस के नेता शशि थरूर ( Congress leader Shashi Tharoor opposing religious slogans in CAA protest) ने भी इन नारों पर कड़ा ऐतराज जताया है. थरूर का मानना है कि ऐसे नारे लगाकर देश के मुसलमान आंदोलन को कमज़ोर कर रहे हैं. वहीं एक वर्ग वो भी था जिसका मानना है कि हिंदू धर्म पर अक्सर प्रहार करने वाले शशि तब कितने माइल्ड हैं जब बात मुसलमानों की है. सोशल मीडिया पर लोग यही सवाल कर रहे हैं कि इतने अपनेपन से आखिर शशि ने हिन्दुओं के साथ बात कभी क्यों नहीं की?
जैसे सवाल जवाब फिलहाल शशि थरूर की ट्विटर टाइम लाइन पर चल रहे हैं, बात सीधी और साफ़ है कि शशि थरूर का 'ला इलाहा इल्लल्लाह' पर ऐतराज उनके लिए दो तरफा मुसीबत ले आया है.
बात CAA NRC protest के दौरान लगे नारों से शुरू हुई
शुरुआत में CAA विरोध के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा की आलोचना हुई और जो नारे लगे वो इन्हीं के विरोध में थे. इसके बाद जब आन्दोलन ने आग पकड़ी और ये जामिया मिलिया इस्लामिया और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी होते हुए देश के बाकी हिस्सों में आया.
आन्दोलन की आग को आंच देने के लिए धार्मिक नारों जैसे 'ला इलाहा इल्लल्लाह' 'इस्लाम जिंदाबाद का इस्तेमाल किया गया. हाल में ऐसे तमाम वीडियो आए हैं जिनमें हमने पत्थरबाजी करते या फिर पुलिस पर हमला करते लोगों को धार्मिक नारे लगाते देखा है.
जो बातें थरूर ने अपने ट्विटर पर लिखीं उनका आधार यही बात थी यही बातें थरूर ने अपने ट्विटर पर लिखीं और अब यही मुद्दे उनके जी का जंजाल हो गए हैं.
शशि को जवाब मिला लड़ाई धर्मनिरपेक्षता की नहीं मुसलमानों की पहचान की है
शशि ट्विटर पर अपने तर्क रख रहे थे. उनका यही कहना था कि अगर CAA के विरोध में प्रदर्शन करता मुसलमान अपने प्रदर्शन को धार्मिक रंग में रंगता है तो इससे आंदोलन बंट जाएगा. शशि लगातार अपने तर्क पेश कर रहे थे वो यही बता रहे थे कि इस लड़ाई को सरकार बनाम जनता की लड़ाई बनाना है.
जाहिर है शशि की ये बातें उन लोगों को बिलकुल अच्छी नहीं लगेंगी जो इसका समर्थन करते हैं. अपने द्वारा कही गयी बातों पर शशि को जवाब मिला कि ये लड़ाई धर्मनिरपेक्षता की नहीं बल्कि मुसलमानों की पहचान की लड़ाई है.
ध्यान रहे कि CAA के खिलाफ प्रदर्शन करने सड़कों पर उतरे मुसलमान बार बार यही दोहरा रहे हैं कि सरकार एक सोंची समझी रणनीति के तहत उनको देश से निकालने के लिए साजिश कर रही है और CAA और NRC को लाया ही इसलिए गया है ताकि देश में रह रहे मुसलमानों को देश से अलग किया जा सके.
शशि ने भाजपा के षड्यंत्र से आगाह किया, लेकिन...
अपने इस बिंदु को समझने के लिए हम जामिया की उस घटना का जिक्र कर सकते हैं जिसमें अपने पुरुष दोस्त को बचाने के लिए जामिया कि दो-तीन महिला छात्राओं ने पुलिस से लोहा लिया था और उनकी जमकर सराहना हुई थी. बाद में खबर ये आई कि केरल से सम्बन्ध रखने वाली जामिया की वो लड़कियां पूर्व में तमाम तरह की देश विरोधी गतिविधियों में शामिल थीं.
सोशल मीडिया पर यही बताया गया कि लड़कियां जिस संगठन से जुडी हैं वो एक कट्टरपंथी संगठन है और जिसका उद्देश्य देश का माहौल ख़राब करना है. उन लड़कियों की तस्वीरों से सोशल मीडिया पता पड़ा है और आज भी चाहे फेसबुक हो या फिर व्हाट्स ऐप और ट्विटर भाजपा देश को यही बता रही है कि इस आन्दोलन और विरोध प्रदर्शन की आड़ में भारत में कट्टरपंथ को बढ़ावा दिया जा रहा है.
अब अगर हम बात शशि थरूर के तर्कों को आधार मानते हुए करें तो वो भी यही कह रहे हैं कि यदि इस आन्दोलन का इस्लामीकरण कर दिया गया तो एक बड़ा वर्ग ऐसा है जो इस आन्दोलन से अपने को अलग कर लेगा जो कहीं से भी सही नहीं है.
थरूर भले ही मामले को लेकर तार्किक दलीलें दे रहे हों और अपना पक्ष रख थरूर रहे हो मगर प्रदर्शनकारी मुसलमानों का मानना है कि थरूर को ये सब अच्छा नहीं लग रहा है और वो उनके खिलाफ जा रहे हैं. कह सकते हैं कि थरूर लोगों को भाजपा के षड्यंत्र से आगाह तो कर रहे हैं मगर लोग उनकी बात समझने में असमर्थ हैं जिस कारण अर्थ का अनर्थ हो रहा है.
शशि न 'मुसलमानों' के रहे, और 'हिंदुओं' के तो थे ही नहीं
हिंदुओं के प्रति शशि का नजरिया कैसा है? ये किसी से छुपा नहीं है चाहे भगवा आतंकवाद की थ्योरी हो या फिर गोरक्षा का मुद्दा तमाम ऐसी बातें पूर्व में हो चुकी हैं जिनके बाद ये कहना अतिश्योक्ति नहीं है कि शशि हिंदुओं का भरोसा बहुत पहले ही खो चुके हैं.
अब अगर बात मुस्लिमों की हो तो जिस तरह उन्होंने CAA प्रोटेस्ट में कलमा यानीथरूर जो 'ला इलाहा इल्लल्लाह' का विरोध किया है मुसलमानों का एक बड़ा वर्ग है जिसे महसूस हो रहा है की शशि थरूर कभी मुसलमानों के लिए फिक्रमंद थे ही नहीं. उन्होंने अब तक जो किया उसका उद्देश्य केवल और केवल अपनी राजनीतिक रोटी सेंकना था.
कह सकते हैं कि जो मुसलमान अब तक शशि थरूर को एक हीरो की तरह देख रहा था उसी मुसलमान कि नजर में अपने ताजे बयानों के बाद शशि एक विलेन की भूमिका में आ गए हैं. मामला देखकर कहा ये भी जा सकता है की CAA के मुसलमान प्रदर्शकारियों पर शशि का ये रुख न तो उनकी राजनीति के लिहाज से सही है और न ही ये कांग्रेस के लिए फायदेमंद होने वाला है.
मामला आगे क्या रंग लेता है इसका फैसला वक़्त करेगा मगर जो वर्तमान है वो यही बता रहा है कि शशि ने अपनी बातों से अपने और देश के मुसलमानों के बीच एक ऐसी खाई बना ली है जिसे पाट पाना फिलहाल बहुत मुश्किल है.
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