महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में जनता द्वारा सत्तारूढ़ गठबंधन को स्पष्ट जनादेश दिए जाने के बावजूद इस बात को लेकर सस्पेंस बना हुआ है कि सरकार किसकी बनेगी. ध्यान रहे कि महाराष्ट्र में सत्ता के लिए दो गठजोड़, जिसमें एनडीए की तरफ से भाजपा-शिवसेना और एनसीपी -कांग्रेस यूपीए का प्रतिनिधित्व कर रही थी. अब जबकि चुनाव हो चुका है ऐसा प्रतीत होता है कि सभी चार प्रमुख दल अपनी अपनी चालों की अलग-अलग गणना कर रहे हैं. सरकार बनाने के लिए विभिन्न संभावित संयोजनों को निकाल रहे हैं. कह सकते हैं कि महाराष्ट्र में जितने भी दल हैं उनके सामने विकल्पों का एक सेट है.
शिवसेना
बात अगर शिवसेना की हो तो जहां एक तरफ महाराष्ट्र की राजनीति में ये सबसे अधिक वोकल है. तो वहीं दूसरा सबसे बड़ा दल होने के कारण महाराष्ट्र की राजनीति में शिवसेना की अपनी ऐहमियत है. बीते हुए इस चुनाव में शिवसेना ने 56 सीटों पर जीत दर्ज की है जो कि 2014 के मुकाबले 7 कम है. मगर उसने मुख्यमंत्री कार्यालय के लिए अपना दावा पेश किया है.
महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए शिवसेना के सामने दो विकल्प हैं. एक, शिवसेना भाजपा के साथ जा सकती है- मतदाताओं से किए गए वादे पर खरा उतरना- सत्ता के बंटवारे की शर्तों के साथ या उसके बिना स्वीकार किया जाना.
दूसरे, यह एनसीपी-कांग्रेस के साथ गठबंधन कर सकती है.ज्ञात हो कि महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में एनसीपी को 54 सीटें मिलीं, जबकि कांग्रेस ने 44 सीटों पर जीत दर्ज की है. दिलचस्प बात ये भी है कि दोनों ही दलों ने 2014 के मुकाबले 2019 के इस चुनाव में अपनी टैली में सुधार किया है. दोनों ही दलों के इस प्रदर्शन से भाजपा को तब नुकसान हो सकता है जब वो शिवसेना के साथ गठबंधन कर लें....
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में जनता द्वारा सत्तारूढ़ गठबंधन को स्पष्ट जनादेश दिए जाने के बावजूद इस बात को लेकर सस्पेंस बना हुआ है कि सरकार किसकी बनेगी. ध्यान रहे कि महाराष्ट्र में सत्ता के लिए दो गठजोड़, जिसमें एनडीए की तरफ से भाजपा-शिवसेना और एनसीपी -कांग्रेस यूपीए का प्रतिनिधित्व कर रही थी. अब जबकि चुनाव हो चुका है ऐसा प्रतीत होता है कि सभी चार प्रमुख दल अपनी अपनी चालों की अलग-अलग गणना कर रहे हैं. सरकार बनाने के लिए विभिन्न संभावित संयोजनों को निकाल रहे हैं. कह सकते हैं कि महाराष्ट्र में जितने भी दल हैं उनके सामने विकल्पों का एक सेट है.
शिवसेना
बात अगर शिवसेना की हो तो जहां एक तरफ महाराष्ट्र की राजनीति में ये सबसे अधिक वोकल है. तो वहीं दूसरा सबसे बड़ा दल होने के कारण महाराष्ट्र की राजनीति में शिवसेना की अपनी ऐहमियत है. बीते हुए इस चुनाव में शिवसेना ने 56 सीटों पर जीत दर्ज की है जो कि 2014 के मुकाबले 7 कम है. मगर उसने मुख्यमंत्री कार्यालय के लिए अपना दावा पेश किया है.
महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए शिवसेना के सामने दो विकल्प हैं. एक, शिवसेना भाजपा के साथ जा सकती है- मतदाताओं से किए गए वादे पर खरा उतरना- सत्ता के बंटवारे की शर्तों के साथ या उसके बिना स्वीकार किया जाना.
दूसरे, यह एनसीपी-कांग्रेस के साथ गठबंधन कर सकती है.ज्ञात हो कि महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में एनसीपी को 54 सीटें मिलीं, जबकि कांग्रेस ने 44 सीटों पर जीत दर्ज की है. दिलचस्प बात ये भी है कि दोनों ही दलों ने 2014 के मुकाबले 2019 के इस चुनाव में अपनी टैली में सुधार किया है. दोनों ही दलों के इस प्रदर्शन से भाजपा को तब नुकसान हो सकता है जब वो शिवसेना के साथ गठबंधन कर लें. इस स्थिति में भाजपा सत्ता से बाहर का रास्ता देख सकती है.
बात अगर कुल योग की हो तो यदि शिवसेना कांग्रेस एन सीपी के साथ गठबंधन करती है तो तीनों दलों के पास 288 सदस्यीय महाराष्ट्र विधानसभा में 154 सीटें हो जाएंगी.
एनसीपी
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी वास्तविक लाभार्थी के रूप में उभरी है. कई जो सोच रहे थे कि महाराष्ट्र में भाजपा स्वीप करने वाली है उन्होंने भी शरद पवार और एनसीपी के बारे में खूब लिखा. पर दोनों ही दलों को वोटों के रूप में जनता से खूब अच्छा समर्थन हासिल हुआ.
एनसीपी के पास महाराष्ट्र की सत्ता में काबिज होने के दो विकल्प हैं. वो तमाम पुरानी बातों और आरोप प्रत्यारोपों को भूलकर भाजपा के साथ गठबंधन कर ले. ये टेलिकॉम के माध्यम से शरद पवार और पीएम मोदी जिन्होंने पूर्व में पवार को अपना राजनितिक गुरु बताया है. दोनों के बीच बड़ी ही आसानी के साथ हो सकता है. आपको बताते चलें कि नई विधानसभा में भाजपा और एनसीपी के पास 159 विधायक हैं.
इसके अलावा एनसीपी के पास मराठा कार्ड के रूप में दूसरा विकल्प भी मौजूद है. इसमें वो बहुमत के लिए कांग्रेस को साथ लेते हुए शिव सेना के साथ हाथ मिला सकती है. इस मामले में दिलचस्प बात ये भी है कि भाजपा को सत्ता से बाहर रखने के लिए कांग्रेस भी खुशी ख़ुशी तैयार हो जाएगी और शरद पवार और उनके दल का काम आसान हो जाएगा.
कांग्रेस
कांग्रेस के पास भी सत्ता में वापसी का बाहरी मौका है. वैसे भी, इससे पहले कांग्रेस कभी महाराष्ट्र में लगातार दो बार सत्ता से बाहर नहीं रही. इसके लिए एनसीपी के साथ शिवसेना के गठजोड़ को एक बड़ी वजह माना जा सकता है. यदि महाराष्ट्र में कांग्रेस के लिए कोई सम्भावना बनती है तो पार्टी के पास दो विकल्प हैं. महाराष्ट्र में कांग्रेस के पास पहला विकल्प ये है कि वो शिव सेना और एनसीपी के साथ हो जाए और महाराष्ट्र जैसे राज्य को मोदी-शाह की जोड़ी की नाक के नीचे से निकाल ले.
महाराष्ट्र के अंतर्गत कांग्रेस के पास जो दूसरा विकल्प है, वो ये है कि पार्टी किंगमेकर की भूमिका में आ जाए और शिवसेना-एनसीपी को राज्य में सरकार बनाने के लिए बाहर से समर्थन दे. ऐसा करते हुए महाराष्ट्र की सत्ता में कांग्रेस का कंट्रोल रहेगा.
भाजपा
भाजपा, जो 2014 की तरह अकेली सबसे बड़ी पार्टी के रूप में तो उभरी. मगर जिसके पास कम ताकत और सीमित विकल्प हैं उसके पास भी महाराष्ट्र की सियासत में कुछ संभावनाएं हैं. सीधे विकल्प के तौर पर भाजपा, शिव सेना को कुछ ले देकर, कुछ मिल्भव कर तीसरी बार महाराष्ट्र में सरकार बना सकती है.
ध्यान रहे कि नई महाराष्ट्र विधानसभा में भाजपा के पास 105 सीटें हैं जो 2014 के मुकाबले 17 कम हैं. पर शिवसेना के साथ गठबंधन कर भाजपा के पास नई महाराष्ट्र विधानसभा में 161 विधायक हो जाएंगे.
इसके अलावा दूसरे विकल्प के रूप में भाजपा शिव सेना को ठंडे बस्ते में डालकर डंप कर सकती है. ऐसा करते हुए भाजपा शिवसेना पर गठबंधन की जीत के बाद ब्लैक मेलिंग का आरोप लगाते हुए एनसीपी के पाले में खिसक सकती है. बात अगर 2014 की हो तब शरद पवार भी मिलती जुलती स्थिति में थे और उन्होंने महाराष्ट्र में स्थिरता लाने के लिए बिना किसी विशेष शर्त के भाजपा को समर्थन दिया था. शरद पवार आज फिर यही बातें दोहरा कर सत्ता में एक जरूरी हैसियत हासिल कर सकते हैं.
इन सब के अलावा भाजपा के पास एक तीसरा विकल्प और है जिसकी कल्पना करना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है. वो दोनों ही पार्टियों द्वारा की जा रही ब्लैक मेलिंग के खिलाफ कांग्रेस को अपने साथ लेकर आ सकती है. यदि ऐसी स्थिति बनती है तब भाजपा और कांग्रेस दोनों के पास 149 विधायक हो जाएंगे. चूंकि विधानसभा में सरकार बनाने के लिए 146 विधायकों की जरूरत है इसलिए दोनों ही दल मिलकर सरकार बना लेंगे.
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