महाराष्ट्र की राजनीति (Maharashtra government formation) में सियासी ड्रामा हर रोज एक नया मोड़ ले रहा है. राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी (Governor Bhagat Singh Koshyari) ने सरकार न बनता देख राष्ट्रपति शासन (President rule) की सिफारिश कर दी है. जब चुनाव नतीजे आए तो दिखा था कि भाजपा-शिवसेना के गठबंधन (BJP-Shiv Sena Alliance) को बहुमत मिला, लेकिन मुख्यमंत्री पद (Maharashtra CM Candidate) पर दोनों के बीच आपसी सहमति नहीं बनी. देखते ही देखते महाराष्ट्र की पुरानी सरकार का कार्यकाल भी 9 नवंबर को खत्म हो गया. तभी भाजपा ने राज्यपाल से साफ शब्दों में कह दिया कि वह महाराष्ट्र में सरकार नहीं बनाएगी, क्योकि उसके पास पर्याप्त नंबर नहीं है. यहां से शुरू होता है असली ड्रामा. एक ओर शिवसेना (Shiv Sena) है और दूसरी ओर कांग्रेस-एनसीपी का गठबंधन (Congress-NCP Alliance). आपस में इनकी बिल्कुल नहीं पटती, लेकिन फिर भी गठबंधन की सरकार बनाने की कोशिशें शुरू हुईं. राज्यपाल ने भी शिवसेना को सरकार बनाने का न्योता दिया, लेकिन वह तय समय में सरकार बनाने का दावा पेश नहीं कर सके. अब राज्यपाल ने यही मौका तीसरी बड़ी पार्टी एनसीपी को दिया है. अगर वो भी सरकार बनाने का दावा पेश नहीं कर पाती है तो बारी आएगी कांग्रेस की. उफ्फ... महाराष्ट्र की राजनीति में इतने मोड़ आ रहे हैं कि कोई भी अपना रास्ता भटक जाए. खैर, अब तक Shiv Sena-Congress-NCP में जो कुछ हुआ है, वो देखकर एक बात तो साफ हो जाती है कि ये रिश्ता ज्यादा दिन तक नहीं टिक पाएगा.
शिवसेना ने जता दिया कि वह विभीषण ही बनी रहेगी !
सबसे पहले तो ये जान लीजिए कि शिवसेना वो पार्टी है जो भाजपा के लिए किसी...
महाराष्ट्र की राजनीति (Maharashtra government formation) में सियासी ड्रामा हर रोज एक नया मोड़ ले रहा है. राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी (Governor Bhagat Singh Koshyari) ने सरकार न बनता देख राष्ट्रपति शासन (President rule) की सिफारिश कर दी है. जब चुनाव नतीजे आए तो दिखा था कि भाजपा-शिवसेना के गठबंधन (BJP-Shiv Sena Alliance) को बहुमत मिला, लेकिन मुख्यमंत्री पद (Maharashtra CM Candidate) पर दोनों के बीच आपसी सहमति नहीं बनी. देखते ही देखते महाराष्ट्र की पुरानी सरकार का कार्यकाल भी 9 नवंबर को खत्म हो गया. तभी भाजपा ने राज्यपाल से साफ शब्दों में कह दिया कि वह महाराष्ट्र में सरकार नहीं बनाएगी, क्योकि उसके पास पर्याप्त नंबर नहीं है. यहां से शुरू होता है असली ड्रामा. एक ओर शिवसेना (Shiv Sena) है और दूसरी ओर कांग्रेस-एनसीपी का गठबंधन (Congress-NCP Alliance). आपस में इनकी बिल्कुल नहीं पटती, लेकिन फिर भी गठबंधन की सरकार बनाने की कोशिशें शुरू हुईं. राज्यपाल ने भी शिवसेना को सरकार बनाने का न्योता दिया, लेकिन वह तय समय में सरकार बनाने का दावा पेश नहीं कर सके. अब राज्यपाल ने यही मौका तीसरी बड़ी पार्टी एनसीपी को दिया है. अगर वो भी सरकार बनाने का दावा पेश नहीं कर पाती है तो बारी आएगी कांग्रेस की. उफ्फ... महाराष्ट्र की राजनीति में इतने मोड़ आ रहे हैं कि कोई भी अपना रास्ता भटक जाए. खैर, अब तक Shiv Sena-Congress-NCP में जो कुछ हुआ है, वो देखकर एक बात तो साफ हो जाती है कि ये रिश्ता ज्यादा दिन तक नहीं टिक पाएगा.
शिवसेना ने जता दिया कि वह विभीषण ही बनी रहेगी !
सबसे पहले तो ये जान लीजिए कि शिवसेना वो पार्टी है जो भाजपा के लिए किसी विभीषण से कम नहीं है. ये घर का भेदी है, जो लंका ढहाने में मददगार होती है. 2014 का लोकसभा चुनाव शिवसेना ने भाजपा से अलग रहकर लड़ा. पर्याप्त सीटें नहीं मिलीं तो भाजपा-शिवसेना ने गठबंधन की सरकार बना ली, लेकिन भाजपा को कुछ ही समय में अपनी गलती का एहसास हो गया. पूरे 5 साल के कार्यकाल में शिवसेना की ओर से भाजपा के खिलाफ कुछ ना कुछ बातें होती रहीं. इस बार भी गठबंधन में चुनाव तो लड़ा, लेकिन सरकार बनाने से पहले ही भाजपा-शिवसेना में मुख्यमंत्री पद को लेकर आपसी सहमति नहीं बनी. अब जानिए कांग्रेस-एनसीपी के साथ सरकार बनाने के मामले में क्या हो रहा है. शिवसेना ने ये साफ किया है कि वह कांग्रेस के साथ राज्य स्तर पर गठबंधन करना चाहती है, ताकि एक स्थिर सरकार बनाई जा सके.
शिवसेना ये समझती है कि महाराष्ट्र की राजनीति में किसी एक पार्टी को बहुमत मिलना बहुत ही मुश्किल है. ऐसे में वह कांग्रेस के साथ लंबे समय तक गठबंधन में रहना चाहती है. शायद वैसे ही, जैसे भाजपा के साथ 30 साल गठबंधन में रही. वो बात अलग है कि पूरे समय भाजपा के गले की फांस बनी रही. शिवसेना ने कांग्रेस से ये भी साफ किया है कि वह सिर्फ राज्य स्तर पर गठबंधन करना चाहती है, ना कि राष्ट्रीय मुद्दों पर. बल्कि ये भी कहा है कि राष्ट्रीय मुद्दों पर किसी तरह का कोई गठबंधन नहीं होगा. यानी जब बारी आएगी मोदी vs राहुल गांधी की, तो शिवसेना किसी को नहीं छोड़ने वाली. मोदी से अपनी नफरत तो निकालेगी ही, राहुल गांधी की भी बखिया उधेड़ने से बाज नहीं आएगी. शिवसेना ऐसी मंशा के साथ कांग्रेस से गठबंधन कर के सरकार बना भी ले तो ये सरकार कितना
एनसीपी के तेवर भी बदले-बदले से लग रहे हैं !
यूं तो एनसीपी और कांग्रेस ने गठबंधन में चुनाव लड़ा था, लेकिन अब एनसीपी भी कांग्रेस के खिलाफ बोलती नजर आ रही है. शिवसेना की ओर से एनसीपी और कांग्रेस दोनों से ही बातचीत की गई थी. एनसीपी से तो शिवसेना काफी समय से बात कर रही थी, ऐसे में उसने समर्थन का फैसला तुरंत ही ले लिया, लेकिन कांग्रेस फैसला लेने में हिचकती सी दिख रही है. वैसे भी, शिवेसना और कांग्रेस में छत्तीस का आंकड़ा है. ऐसे में एक साथ मिलकर सरकार बनाने से पहले सोनिया गांधी कोई भी रिस्क नहीं लेना चाहती हैं, जो उनकी पार्टी की छवि को खराब कर दे. इस मामले पर एनसीपी नेता अजीत पवार ने कांग्रेस पर हमला बोलते हुए अपनी नाराजगी साफ की है. उन्होंने कहा है कि कांग्रेस की तरफ से देरी होने के चलते शिवसेना महाराष्ट्र में सरकार बनाने का दावा पेश नहीं कर सकी.
अजीत पवार बोले कि शिवसेना के अलावा एनसीपी के सभी बड़े नेता पूरे दिन इंतजार करते रहे. पहले कांग्रेस की ओर से कहा गया कि सुबह की बैठक के बाद लेटर दिया जाएगा, फिर कहा गया कि 4 बजे की बैठक के बाद लेटर देंगे, लेकिन शाम को 7.30 बजे की डेडलाइन तक भी लेटर नहीं मिला और महाराष्ट्र में सरकार बनाने का दावा पेश नहीं किया जा सका. अजीत पवार की बातें सुनकर ये नहीं लगता कि वह कांग्रेस के साथ गठबंधन में चुनाव लड़े हैं. बल्कि इससे उनकी मंशा साफ हो रही है कि वह शिवसेना के साथ मिलकर सरकार बनाने को बेताब हैं. चुनाव जीतने के बाद से शरद पवार लगातार यही कहते रहे कि वह विपक्ष में बैठेंगे, जनादेश इसी बात का है, लेकिन अब शिवसेना सरकार बनाने को इतनी बेकरार है कि वह अपनी सहयोगी कांग्रेस पर भी हमलावर होती दिख रही है. गठबंधन की सरकार कितने दिन चलेगी, ये देखना दिलचस्प रहेगा.
कांग्रेस का डर जायज तो है, लेकिन गठबंधन के लिए खतरनाक भी !
शिवसेना के साथ मिलकर सरकार बनाए जाने पर कांग्रेस नेता माणिकराव ठाकरे ने कहा है कि शिवसेना के साथ कांग्रेस का वैचारिक मतभेद तो है. यानी वह भी इस बात को नहीं नकार रहे हैं कि कांग्रेस के साथ उनकी पटती नहीं है. कांग्रेस की ओर से सरकार बनाने में देरी की एक बड़ी वजह ये भी है. शिवसेना एक हिंदू छवि वाली पार्टी है, जबकि कांग्रेस सेकुलर. कांग्रेस की ओर से भाजपा-शिवसेना पर सबसे बड़ा आरोप तो यही लगाया जाता रहा है कि ये दोनों ही पार्टियां जातिगत राजनीति करती हैं और सिर्फ हिंदू विचारधारा को सब पर थोपती है, लेकिन अब कांग्रेस को शिवसेना के साथ गठबंधन करने की नौबत आ गई है. पार्टी के नेता शिवराज पाटिल भी कह रहे हैं कि शिवसेना एक कट्टर हिंदूवाली छवि की पार्टी है, ऐसे में साथ आने से पहले विचारधारा के बारे में सोचना चाहिए.
कांग्रेस ये समझ रही है कि अगर गठबंधन की सरकार नहीं चल सकी, जो इतिहास में पहले भी 7 बार हो चुका है, तो बहुत थू-थू होगी और इसी महाराष्ट्र में उसे फिर से चुनावी मैदान में उतरना है. यही वजह है कि कयास लगाए जा रहे हैं कि कांग्रेस बाहर से शिवसेना-एनसीपी को समर्थन देकर सरकार बनवाए. खैर, महाराष्ट्र की राजनीति का सियासी ड्रामा अभी कितने दिन चलेगा, ये देखना दिलचस्प होगा. ये भी देखने वाली बात होगी कि अगर इन तीनों ने मिलकर सरकार बना भी ली तो उसे चला कितने दिन पाएंगे.
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