महाराष्ट्र चुनाव बीते ठीक ठाक वक़्त हो गया है. महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री पद को लेकर जैसी रस्साकशी शिवसेना-भाजपा के बीच चल रही है कहा जा रहा है कि शिवसेना भाजपा का दामन छोड़,सत्ता सुख के लिए किसी भी क्षण कांग्रेस से एनसीपी के पाले में आ सकती है. शिवसेना का एनसीपी के साथ समर्थन फिर भी एक बार लोग समझ ले रहे हैं मगर कांग्रेस के साथ शिवसेना के साथ आने को एक बड़ा वर्ग पचा नहीं पा रहा है. लोग सवाल कर रहे हैं कि आखिर कैसे अलग अलग विचारधारा की धूरियों पर टिके दो दल एक होंगे और कैसे साथ मिलकर सत्ता चलाएंगे. तमाम सवाल हैं जो जस के तस हैं और लोगों के माथे पर चिंता के बल दे रहे हैं. बात अलग विचारधारा वाले दल से गठबंधन की आई है तो इतिहास में झांकना जरूरी हो जाता है. शिवसेना से जुड़े कई ऐसे वाकये हमारे सामने आते हैं, जिसमें न सिर्फ शिवसेना ने बिलकुल अलग दलों से गठबंधन करके लोगों को हैरत में डाला बल्कि सत्ता सुख तक भोगा.
आइये एक नजर डालें उस दौर में जब शिवसेना ने उन दलों के साथ गठबंधन किया जिनसे कभी भी शिवसेना के विचार मेल नहीं खाए और आज भी शिवसेना का इन दलों से छत्तीस का आंकड़ा है.
कांग्रेस के साथ शिवसेना का गठबंधन
पार्टी की स्थापना 1960 में बल ठाकरे ने की थी जिन्होंने 1971 में कांग्रेस O (कांग्रेस का इंदिरा गांधी विरोधी गुट जो 1969 में कांग्रेस से अलह हुआ था) के साथ गठबंधन किया.बल ठाकरे ने शिव सेना के टिकट पर लोक सभा चुनावों में 3 प्रत्याशियों को उतारा था जिनमें से कोई भी नहीं जीता. 1975 में जब इंदिरा गांधी ने राष्ट्रीय इमरजेंसी घोषित की, बाल ठाकरे ने इसे सही ठहराया और 1977 के चुनावों में कांग्रेस को समर्थन दिया. इसके बाद 1980...
महाराष्ट्र चुनाव बीते ठीक ठाक वक़्त हो गया है. महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री पद को लेकर जैसी रस्साकशी शिवसेना-भाजपा के बीच चल रही है कहा जा रहा है कि शिवसेना भाजपा का दामन छोड़,सत्ता सुख के लिए किसी भी क्षण कांग्रेस से एनसीपी के पाले में आ सकती है. शिवसेना का एनसीपी के साथ समर्थन फिर भी एक बार लोग समझ ले रहे हैं मगर कांग्रेस के साथ शिवसेना के साथ आने को एक बड़ा वर्ग पचा नहीं पा रहा है. लोग सवाल कर रहे हैं कि आखिर कैसे अलग अलग विचारधारा की धूरियों पर टिके दो दल एक होंगे और कैसे साथ मिलकर सत्ता चलाएंगे. तमाम सवाल हैं जो जस के तस हैं और लोगों के माथे पर चिंता के बल दे रहे हैं. बात अलग विचारधारा वाले दल से गठबंधन की आई है तो इतिहास में झांकना जरूरी हो जाता है. शिवसेना से जुड़े कई ऐसे वाकये हमारे सामने आते हैं, जिसमें न सिर्फ शिवसेना ने बिलकुल अलग दलों से गठबंधन करके लोगों को हैरत में डाला बल्कि सत्ता सुख तक भोगा.
आइये एक नजर डालें उस दौर में जब शिवसेना ने उन दलों के साथ गठबंधन किया जिनसे कभी भी शिवसेना के विचार मेल नहीं खाए और आज भी शिवसेना का इन दलों से छत्तीस का आंकड़ा है.
कांग्रेस के साथ शिवसेना का गठबंधन
पार्टी की स्थापना 1960 में बल ठाकरे ने की थी जिन्होंने 1971 में कांग्रेस O (कांग्रेस का इंदिरा गांधी विरोधी गुट जो 1969 में कांग्रेस से अलह हुआ था) के साथ गठबंधन किया.बल ठाकरे ने शिव सेना के टिकट पर लोक सभा चुनावों में 3 प्रत्याशियों को उतारा था जिनमें से कोई भी नहीं जीता. 1975 में जब इंदिरा गांधी ने राष्ट्रीय इमरजेंसी घोषित की, बाल ठाकरे ने इसे सही ठहराया और 1977 के चुनावों में कांग्रेस को समर्थन दिया. इसके बाद 1980 में भी शिव सेना ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में शिव सेना ने कांग्रेस को समर्थन दिया.तब ये इसलिए संभव हुआ क्योंकि बाल ठाकरे और तब के महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एआर अंतुले में घनिष्ठ संबंध थे.
जब शिवसेना ने किया था मुस्लिम लीग के साथ गठबंधन
ये सुनने में भले ही थोडा अजीब लगेगा मगर वो शिवसेना जो अपनी कट्टर विचारधारा और मुसलमानों के खिलाफ ज्वलनशील बयान देने के लिए जानी जाती है मुस्लिम लीग के साथ गठबंधन कर एक ज़माने में राजनीति के सूरमाओं को हैरत में डाल चुकी है. बात 1989 की है शिवसेना ने अपने दुशमन इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IML) के साथ गठनबंधन किया था.
दिलचस्प बात ये है कि तब हिंदू हृदय सम्राट बल ठाकरे ने मुस्लिम नेता गुलाम मोहम्मद बनातवाला के साथ स्टेज भी साझा किया था. आपको बताते चलें कि IML नेता गुलाम मोहम्मद बनातवाला को शिवसेना विशेषकर बाल ठाकरे का प्रबल आलोचक माना जाता था और तब ऐसे तमाम मौके आए थे जब बनातवाला ने बल ठाकरे के लिए तीखी टिप्पणियां की थीं. सेना ने 1970 में अपना मेयर बनाए जाने के लिए मुस्लिम लीग से गठबंधन कर मदद ली थी.
तब शिवसेना और मुसलमानों के साथ आने को एक बड़े मास्टर स्ट्रोक की तरह देखा गया था. ऐसा इसलिए भी कहा जाता है कि तब शिवसेना और मुस्लिम लीग दोनों ही एक दूसरे को फूटी आंख नहीं सुहाते थे.1978 में बाल ठाकरे ने मुंबई स्थित नागपाड़ा के मस्तान तलाव मैदान में रैली की और इलाके के मुसलमानों के सामने अपना पक्ष रखा. बात अगर उस रैली की हो तो रैली के दौरान भी कई ऐसे मौके आए थे जब शिवसेना और मुस्लिम लीग के बीच का मतभेद साफ़ दिखाई पड़ रहा है.
माना जाता है कि तब शिवसेना और मुस्लिम लीग दोनों ही दलों का राजनीतिक भविष्य अधर में लटका था औरदोनों को ही एक दूसरे की जरूरत थी इसलिए दोनों ने साथ आना जरूरी समझा और राजनीतिक लाभ लिया.
बहरहाल एक ऐसे समय में जब राम मंदिर का फैसला आने में अभी कुछ दिन शेष हैं. सवाल बरक़रार है कि क्या शिव सेना कांग्रेस या फिर एनसीपी के साथ गठबंधन कर सकती है? जब हम शिवसेना के उपरोक्त दो फैसलों पर गौर करें तो मिलता है कि जब बात सत्ता की चाशनी ने डूबी मलाई खाने की आएगी तो शिवसेना किसी से भी समझौता कर सकती है. भले ही उस दल की राजनीतिक विचारधारा कैसी भी क्यों न हो.
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