शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी गठबंधन की सरकार (Maharashtra Government formation) को लेकर 17-20 नवंबर तक ऐलान हो सकता है. दरअसल, 17 नवंबर को शिवसेना के संस्थापक बाला साहब ठाकरे (Bal THackeray) की पुण्यतिथि है. उद्धव ठाकरे (ddhav Thackeray) को अपने पिता बाल ठाकरे से एक शिवसैनिक को मुख्यमंत्री बनाने का किया हुआ वादा भी तो पूरा करना है.
17 नवंबर को ही शरद पवार और सोनिया गांधी की मुलाकात होने की संभावना जतायी जा रही है जिसमें सरकार को लेकर सारी डील पक्की होनी है - और उससे पहले गठबंधन सरकार को फाइनल करने के लिए उद्धव ठाकरे भी 10, जनपथ जा सकते हैं.
महाराष्ट्र में सरकार बनाने की गंभीर कोशिशों से अब तक यही मालूम हुआ है कि साझा कार्यक्रम का ड्राफ्ट (Common Minimum Programme Draft) तैयार हो गया है - और उसमें उन सभी बातों को तरजीह दी गयी है जो तीनों पार्टियों ने चुनाव घोषणा पत्रों में शामिल किये गये थे.
जो सरकार बनने की संभावना नजर आ रही है उसमें दो बातें विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं - शिवसेना की जिद और शरद पवार की रणनीति. आगे देखना होगा कि सरकार चलाने में शिवसेना की जिद प्रभावी रहती है या फिर शरद पवार की राजनीति. अभी तो यही लग रहा है कि सब कुछ शरद पवार के मनमाफिक ही आगे बढ़ा रहा है, कुछ ऐसे जैसे पवार के पास ही सरकार बनने का रिमोट कंट्रोल हो - और आगे सरकार को चलाने का भी.
CM मातोश्री में, रिमोट शरद पवार के पास
जो काम आम चुनाव में एनसीपी नेता शरद पवार के जिम्मे रहा, उसे वो महाराष्ट्र में अब जाकर अंजाम के करीब पहुंचा पाये हैं. आम चुनाव में शरद पवार आखिरी दौर में सारे विपक्षी दलों के साथ समन्वय स्थापित करने की कोशिश कर रहे थे - ताकि एकजुट होकर बीजेपी को सीधी टक्कर दी जा सके. महाराष्ट्र में भी शरद पवार के लिए ये तभी मुमकिन हो पाया जब बीजेपी ने सरकार बनाने को लेकर अपने हाथ पीछे खींच लिये.
महाराष्ट्र में जनादेश के सम्मान का सबसे ज्यादा बात अगर किसी ने की है तो वो शरद पवार ही हैं. जब विधानसभा का कार्यकाल खत्म...
शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी गठबंधन की सरकार (Maharashtra Government formation) को लेकर 17-20 नवंबर तक ऐलान हो सकता है. दरअसल, 17 नवंबर को शिवसेना के संस्थापक बाला साहब ठाकरे (Bal THackeray) की पुण्यतिथि है. उद्धव ठाकरे (ddhav Thackeray) को अपने पिता बाल ठाकरे से एक शिवसैनिक को मुख्यमंत्री बनाने का किया हुआ वादा भी तो पूरा करना है.
17 नवंबर को ही शरद पवार और सोनिया गांधी की मुलाकात होने की संभावना जतायी जा रही है जिसमें सरकार को लेकर सारी डील पक्की होनी है - और उससे पहले गठबंधन सरकार को फाइनल करने के लिए उद्धव ठाकरे भी 10, जनपथ जा सकते हैं.
महाराष्ट्र में सरकार बनाने की गंभीर कोशिशों से अब तक यही मालूम हुआ है कि साझा कार्यक्रम का ड्राफ्ट (Common Minimum Programme Draft) तैयार हो गया है - और उसमें उन सभी बातों को तरजीह दी गयी है जो तीनों पार्टियों ने चुनाव घोषणा पत्रों में शामिल किये गये थे.
जो सरकार बनने की संभावना नजर आ रही है उसमें दो बातें विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं - शिवसेना की जिद और शरद पवार की रणनीति. आगे देखना होगा कि सरकार चलाने में शिवसेना की जिद प्रभावी रहती है या फिर शरद पवार की राजनीति. अभी तो यही लग रहा है कि सब कुछ शरद पवार के मनमाफिक ही आगे बढ़ा रहा है, कुछ ऐसे जैसे पवार के पास ही सरकार बनने का रिमोट कंट्रोल हो - और आगे सरकार को चलाने का भी.
CM मातोश्री में, रिमोट शरद पवार के पास
जो काम आम चुनाव में एनसीपी नेता शरद पवार के जिम्मे रहा, उसे वो महाराष्ट्र में अब जाकर अंजाम के करीब पहुंचा पाये हैं. आम चुनाव में शरद पवार आखिरी दौर में सारे विपक्षी दलों के साथ समन्वय स्थापित करने की कोशिश कर रहे थे - ताकि एकजुट होकर बीजेपी को सीधी टक्कर दी जा सके. महाराष्ट्र में भी शरद पवार के लिए ये तभी मुमकिन हो पाया जब बीजेपी ने सरकार बनाने को लेकर अपने हाथ पीछे खींच लिये.
महाराष्ट्र में जनादेश के सम्मान का सबसे ज्यादा बात अगर किसी ने की है तो वो शरद पवार ही हैं. जब विधानसभा का कार्यकाल खत्म होने के करीब पहुंचा तब भी शरद पवार यही कह रहे थे कि जनादेश का सम्मान करते हुए NCP विपक्ष में ही बैठेगी.
शरद पवार खुल कर तब आये जब बीजेपी के इंकार करने पर राज्यपाल का बुलावा आया. शरद पवार बहुमत का नंबर बताने के लिए थोड़ा और टाइम मांग रहे थे, लेकिन वैसा कुछ नहीं हुआ और राष्ट्रपति शासन लग गया.
लगता तो ऐसा है कि शरद पवार शुरू से ही बीजेपी को सत्ता से दूर रखने की रणनीति पर काम कर रहे थे और जनादेश का जिक्र बीजेपी सहित तमाम दूसरे पक्षों को गुमराह करने की कोशिश भर रही. शरद पवार की रणनीति उसी दिन दो कदम आगे बढ़ गयी जब दिवाली की शुभकामनाओं के साथ शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत उनके घर जाकर मिले. शरद पवार ने तभी शिवसेना के सामने चारा फेंक दिया था, लेकिन शर्तों के साथ - साझा सरकार बनेगी लेकिन बीजेपी से रिश्ता तोड़ने के बाद. फिर शिवसेना वैसे वैसे करती गयी जैसे जैसे शरद पवार फरमाते रहे. शिवसेना सांसद अरविंद सावंत ने मोदी कैबिनेट छोड़ी और उद्धव ठाकरे ने संभाजी शिंदे को मातोश्री के बाहर से लौटा दिया. देवेंद्र फडणवीस का फोन न उठाना भी गाइडलाइन का ही हिस्सा रहा. जब बात आगे बढ़ी तो उद्धव ठाकरे ने फोन पर सोनिया गांधी से बात की. कोई ठोस आश्वासन तो नहीं मिला, लेकिन मामला विचाराधीन होने के संकेत तो मिले ही. तभी शरद पवार ने दिल्ली फोन मिला दिया, सोनिया के लिए सलाह रही कि जल्दबाजी का काम शैतान का होता है. लगे हाथ शरद पवार ने ये भी याद दिला दी कि एनसीपी के भी विधायक शिवसेना से दो ही तो कम हैं, फिर मुख्यमंत्री पद यूं ही छोड़ देना कहां की समझदारी है. शब्दों में संदेश यही रहा कि कोई हड़बड़ी नहीं है.
शिवसेना तो फंस चुकी थी. बीजेपी से साथ छोड़ने के बाद जोड़ने का मतलब हमेशा के लिए डिप्टी सीएम की कुर्सी स्वीकार कर लेना. फिर जैसे जैसे दिल्ली का मैसेज मुंबई में मिले इशारों पर नाचना पक्का है. शिवसेना को खुली छूट तो शरद पवार ने कभी नहीं महसूस होने दी. फर्क बस इतना रहा कि बीजेपी जो मांगें नामंजूर कर चुकी थी, शरद पवार हामी भर दे रहे थे - लेकिन लटकाये रहे.
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