उत्तर प्रदेश की राजनीति में अहम जगह रखने वाला यादव कुनबा फिर से बिखर चुका है. समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव पहले ही चाचा शिवपाल सिंह यादव को खुला खत भेजकर कह चुके हैं कि जहां सम्मान मिले, वहां चले जाइए. और, चाचा शिवपाल यादव भी इसके बाद से ही भतीजे अखिलेश यादव पर काफी मुखर रहे हैं. बीते दिनों कृष्ण जन्मोत्सव के मौके पर प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (प्रसपा) के अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव ने यदुवंशियों से पिता को छल-बल से अपमानित कर पद से हटाने वाले 'कंस' का जिक्र किया था. और, अब शिवपाल ने यादव तथा अन्य पिछड़ी जातियों को एकजुट करने के लिए 'यदुकुल पुनर्जागरण मिशन' का ऐलान कर दिया है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो शिवपाल यादव ने अखिलेश यादव के खिलाफ महाभारत छेड़ने का मूड बना लिया है. लेकिन, इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि 'यदुकुल' के सहारे चाचा शिवपाल क्या भतीजे अखिलेश के लिए चक्रव्यूह रच पाएंगे?
'यदुकुल' के साथ ओबीसी वोटबैंक को साधने की जुगत
इस बात में कोई दो राय नहीं है कि 'यदुकुल पुनर्जागरण मिशन' के जरिये शिवपाल यादव समाजवादी पार्टी के कोर वोट बैंक यानी यादव समाज को साधने की कोशिश करेंगे. ये अलग बात है कि शिवपाल यादव का ये मिशन केवल यादव वोट बैंक ही नहीं अन्य ओबीसी जातियों को भी साधने की जुगत है. शिवपाल सिंह यादव ने 'यदुकुल पुनर्जागरण मिशन' की नींव जातीय जनगणना, अहीर रेजिमेंट, युवाओं को सरकारी नौकरी या न्यूनतम आठ हजार रुपये प्रतिमाह का भत्ता और किसानों को एमएसपी देने समेत 10 मांगों पर रखी है.
वैसे, शिवपाल की यादव समाज पर पकड़ अच्छी-खासी है. और, वो पहले भी अखिलेश यादव को लोकसभा चुनाव में झटका दे चुके हैं. तो, इस बार इस बार ओबीसी...
उत्तर प्रदेश की राजनीति में अहम जगह रखने वाला यादव कुनबा फिर से बिखर चुका है. समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव पहले ही चाचा शिवपाल सिंह यादव को खुला खत भेजकर कह चुके हैं कि जहां सम्मान मिले, वहां चले जाइए. और, चाचा शिवपाल यादव भी इसके बाद से ही भतीजे अखिलेश यादव पर काफी मुखर रहे हैं. बीते दिनों कृष्ण जन्मोत्सव के मौके पर प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (प्रसपा) के अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव ने यदुवंशियों से पिता को छल-बल से अपमानित कर पद से हटाने वाले 'कंस' का जिक्र किया था. और, अब शिवपाल ने यादव तथा अन्य पिछड़ी जातियों को एकजुट करने के लिए 'यदुकुल पुनर्जागरण मिशन' का ऐलान कर दिया है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो शिवपाल यादव ने अखिलेश यादव के खिलाफ महाभारत छेड़ने का मूड बना लिया है. लेकिन, इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि 'यदुकुल' के सहारे चाचा शिवपाल क्या भतीजे अखिलेश के लिए चक्रव्यूह रच पाएंगे?
'यदुकुल' के साथ ओबीसी वोटबैंक को साधने की जुगत
इस बात में कोई दो राय नहीं है कि 'यदुकुल पुनर्जागरण मिशन' के जरिये शिवपाल यादव समाजवादी पार्टी के कोर वोट बैंक यानी यादव समाज को साधने की कोशिश करेंगे. ये अलग बात है कि शिवपाल यादव का ये मिशन केवल यादव वोट बैंक ही नहीं अन्य ओबीसी जातियों को भी साधने की जुगत है. शिवपाल सिंह यादव ने 'यदुकुल पुनर्जागरण मिशन' की नींव जातीय जनगणना, अहीर रेजिमेंट, युवाओं को सरकारी नौकरी या न्यूनतम आठ हजार रुपये प्रतिमाह का भत्ता और किसानों को एमएसपी देने समेत 10 मांगों पर रखी है.
वैसे, शिवपाल की यादव समाज पर पकड़ अच्छी-खासी है. और, वो पहले भी अखिलेश यादव को लोकसभा चुनाव में झटका दे चुके हैं. तो, इस बार इस बार ओबीसी वर्ग की सभी जातियों का गठजोड़ बनाकर वो अखिलेश यादव को दांव तो दे ही सकते हैं. खैर, यहां ध्यान देने वाली बात ये भी है कि शिवपाल सिंह यादव के इस मिशन में ओमप्रकाश राजभर समेत भागीदारी संकल्प मोर्चा की अन्य पार्टियां भी शामिल हो सकती हैं. क्योंकि, समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन करने से पहले ये तमाम पार्टियां इसी मोर्चे के साथ शिवपाल यादव से जुड़ी थीं.
मुलायम की विरासत पर भी करेंगे दावा
शिवपाल यादव ने हाल ही में इशारा कर दिया है कि वो 2024 के लोकसभा चुनाव में मैनपुरी से दावेदारी कर सकते हैं. दरअसल, संभव है कि समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव स्वास्थ्य कारणों के चलते सपा के गढ़ कहे जाने वाले मैनपुरी से 2024 का लोकसभा चुनाव ना लड़ें. इसी वजह से शिवपाल यादव ने कहा था कि अगर नेताजी (मुलायम सिंह यादव) मैनपुरी से अगला लोकसभा चुनाव नहीं लड़ते हैं. तो, वह इस सीट से चुनाव लड़ने का मन बना सकते हैं. बता दें कि शिवपाल यादव मैनपुरी लोकसभा के अंतर्गत आने वाली ही जसवंतनगर विधानसभा सीट से विधायक हैं.
राजनीतिक रूप से देखा जाए, तो शिवपाल यादव मैनपुरी से लोकसभा चुनाव लड़कर सीधे मुलायम सिंह की विरासत पर दावा ठोकेंगे. और, अखिलेश यादव के पास शिवपाल को रोकने के लिए कोई खास चेहरा भी नहीं है. वैसे भी आजमगढ़ की संसदीय सीट छोड़कर अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश की राजनीति पर ही ध्यान देने का संदेश दिया था. इस स्थिति में अगर शिवपाल के सामने कोई मजबूत प्रत्याशी नहीं होता है. तो, संभव है कि यादव वोट बैंक आसानी से शिवपाल के साथ चला जाएगा. और, अगर इसमें भाजपा के समर्थन का तड़का लग गया. तो, जीत निश्चित भी कही जा सकती है.
क्या शिवपाल भी चलेंगे बहू अपर्णा की राह?
यूपी विधानसभा चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव की छोटी बहू अपर्णा यादव ने भाजपा का दामन थाम लिया था. हालांकि, अपर्णा यादव को यूपी विधानसभा चुनाव में भाजपा ने अपना प्रत्याशी नहीं बनाया था. लेकिन, चुनाव प्रचार में अपर्णा यादव काफी आगे रही थीं. इसका लब्बोलुआब यही रहा कि भले अपर्णा यादव अपने साथ कोई वोटबैंक न लाई हों. लेकिन, अपर्णा के सहारे भाजपा ने समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव के खिलाफ अपने ही परिवार को न संभाल पाने का संदेश लोगों के बीच भेज दिया था.
वैसे, जब 2024 के लोकसभा चुनाव में दो साल से भी कम का समय बचा है. तो, भाजपा बिना किसी रणनीति के आगे बढ़ रही हो. ये मानना थोड़ा मुश्किल हो जाता है. क्योंकि, लोकसभा सीटों के लिहाज से उत्तर प्रदेश सबसे बड़ा राज्य है. और, पिछले दोनों लोकसभा चुनावों में भाजपा ने उत्तर प्रदेश में दमदार प्रदर्शन किया है. यही वजह है कि शिवपाल सिंह यादव के भाजपा के साथ आने की संभावना जताई जा रही है. वैसे भी राष्ट्रपति के चुनाव में शिवपाल यादव ने समाजवादी पार्टी को दांव देते हुए भाजपा समर्थित प्रत्याशी द्रौपदी मुर्मू को वोट दिया था.
और, अब शिवपाल यादव कह रहे हैं कि समाजवादी पार्टी के साथ जाना उनकी सबसे बड़ी भूल थी. अब सपा से कोई संबंध नहीं रहेगा. वैसे, 2019 के लोकसभा चुनाव में शिवपाल यादव ने फिरोजाबाद से चुनाव लड़कर इस सीट को भाजपा के खाते में पहुंचाने में काफी मदद की थी. 2019 के लोकसभा चुनाव में हारने के बावजूद शिवपाल यादव को करीब 84 हजार वोट मिले थे. लेकिन, इसकी वजह से सपा के राष्ट्रीय महासचिव रामगोपाल यादव के बेटे अक्षय यादव को हार का सामना करना पड़ा था.
तो, इस बात की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है कि 'यदुकुल' के सहारे चाचा शिवपाल यादव अपने भतीजे अखिलेश के लिए चक्रव्यूह रचने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ेंगे. क्योंकि, शिवपाल को अपने बेटे आदित्य यादव को भी राजनीति में स्थापित करवाना है. हो सकता है कि शिवपाल खुद मैनपुरी और आदित्य यादव को आजमगढ़ से प्रत्याशी बनाने की कोई राह खोज लें. जो भाजपा के समर्थन से खुलती हो.
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