सीने पर रखी किताब में छिपा लव लेटर पढ़ने वाली किशोरी का इश्क लाख छिपाने से नहीं छुप सकता. क्योंकि इश्क और मुश्क छिपाये नहीं छिपता. रिश्ता जितना छिपाया जाता है ये जालिम दुनिया रिश्तों के कनेक्शन की उतनी ही टोह लेती है. अपने भतीजे अखिलेश यादव से आहत शिवपाल यादव ने जब से सपा छोड़कर प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के गठन का ऐलान किया है तब से ये चर्चाएं छिप नहीं पा रही हैं कि सियासी हाशिये पर आने के बाद शिवपाल और उनकी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी की प्रगति में भारतीय जनता पार्टी का हाथ है. भाजपा और प्रसपा का रिश्ता छिपाये नहीं छिप रहा है.
लोगो की इस धारणा और चर्चाओं को विराम देने के लिए प्रसपा के पहले मंच (रैली) में शिवपाल यादव भाजपा और राम मंदिर निर्माण के खिलाफ आक्रामक दिखे. भाजपा की फंडिंग का शक मिटाने के लिए उन्होंने अपना दामन फैलाकर वोट के साथ नोट भी मांगे लेकिन इतनी सफाई देने के बाद भी तमाम सवालों से शिवपाल यादव बच नहीं पा रहे हैं. मसलन कोई पार्टी अपने जन्म के जुमा जुमा आठ दिन के दौरान अपनी पहली रैली में ही करोड़ों के बजट का प्रचार कैसे करेगी?
रैली में एक लाख से अधिक लोगों के आने का दावा किया गया. जिनमें से अधिकांश लोगों को ब्रांडेड प्रतिष्ठानों के खाने के डिब्बे बंटे. छप्पन भोग नाम के ब्रांडेड प्रतिष्ठान के खूब मंहगे भोजन/नाश्ते के डिब्बे रैली में आये लोगों को बांटे गये तो छप्पन इंच सीने के ब्रांड वाली पार्टी और शिवपाल यादव द्वारा बंटे 'छप्पन भोग' ब्रांड के खाने के डिब्बे के कनेक्शन की चर्चाएं और भी तेज हो गयीं. बताया जा रहा है कि रैली में खाने और धुंआधार प्रचार में करोड़ों रुपये खर्च हुए हैं. शिवपाल यादव को यूपी...
सीने पर रखी किताब में छिपा लव लेटर पढ़ने वाली किशोरी का इश्क लाख छिपाने से नहीं छुप सकता. क्योंकि इश्क और मुश्क छिपाये नहीं छिपता. रिश्ता जितना छिपाया जाता है ये जालिम दुनिया रिश्तों के कनेक्शन की उतनी ही टोह लेती है. अपने भतीजे अखिलेश यादव से आहत शिवपाल यादव ने जब से सपा छोड़कर प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के गठन का ऐलान किया है तब से ये चर्चाएं छिप नहीं पा रही हैं कि सियासी हाशिये पर आने के बाद शिवपाल और उनकी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी की प्रगति में भारतीय जनता पार्टी का हाथ है. भाजपा और प्रसपा का रिश्ता छिपाये नहीं छिप रहा है.
लोगो की इस धारणा और चर्चाओं को विराम देने के लिए प्रसपा के पहले मंच (रैली) में शिवपाल यादव भाजपा और राम मंदिर निर्माण के खिलाफ आक्रामक दिखे. भाजपा की फंडिंग का शक मिटाने के लिए उन्होंने अपना दामन फैलाकर वोट के साथ नोट भी मांगे लेकिन इतनी सफाई देने के बाद भी तमाम सवालों से शिवपाल यादव बच नहीं पा रहे हैं. मसलन कोई पार्टी अपने जन्म के जुमा जुमा आठ दिन के दौरान अपनी पहली रैली में ही करोड़ों के बजट का प्रचार कैसे करेगी?
रैली में एक लाख से अधिक लोगों के आने का दावा किया गया. जिनमें से अधिकांश लोगों को ब्रांडेड प्रतिष्ठानों के खाने के डिब्बे बंटे. छप्पन भोग नाम के ब्रांडेड प्रतिष्ठान के खूब मंहगे भोजन/नाश्ते के डिब्बे रैली में आये लोगों को बांटे गये तो छप्पन इंच सीने के ब्रांड वाली पार्टी और शिवपाल यादव द्वारा बंटे 'छप्पन भोग' ब्रांड के खाने के डिब्बे के कनेक्शन की चर्चाएं और भी तेज हो गयीं. बताया जा रहा है कि रैली में खाने और धुंआधार प्रचार में करोड़ों रुपये खर्च हुए हैं. शिवपाल यादव को यूपी सरकार द्वारा आलीशान सरकारी बंगला देने से लेकर प्रसपा की पहली रैली में शाही खर्च को भाजपा की विशेष मेहरबानी बताया जा रहा है.
चर्चाएं हैं कि भाजपा की गाइडलाइन पर भाजपा सरकार के खिलाफ जन आक्रोश रैली का आयोजन किया गया था. ताकि इस रैली से यादववाद और मुस्लिमपरस्ती तेज करके शिवपाल मजबूत वोट कटवा बन जायें. रैली में भाजपा सरकार का विरोध हो ताकि ये ऋण ना हो कि ये इस नवोदित पार्टी का गठन भाजपा को चुनाव में लाभ पंहुचाने के लिए किया गया है. आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा के लिए उत्तर प्रदेश सबसे बड़ी चुनौती है. सबसे ज्यादा लोकसभा सीटों वाले इस सूबे में समाजवादी पार्टी और बसपा का संभावित गठबंधन भाजपा के लिए सबसे बड़ा खतरा है.
पिछड़ा-दलित और मुसलमान मिलकर इस गठबंधन को यूपी फतेह करवा सकता है. समाजवादी पार्टी की टूटी कड़ी शिवपाल यादव यूपी में भाजपा के सियासी अंधेरों में चिराग बन सकते हैं. सपा से निकाले गये अमर सिंह अखिलेश यादव से बदला लेने का मौका और भाजपा के लिए कुछ कर गुजरने का मौका तलाश रहे थे. उन्हें मौके के थ्री इन वन के रुप में अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल यादव मिल गये.
अमर सिंह को अखिलेश यादव से बदला लेना है, सपा को पराजय दिलाने है, मित्र और शुभचिंतक शिवपाल यादव के बुरे वक्त में काम आना है, और सबसे अहम भाजपा के काम आना है. ये सारे काम निपटाने के लिए अमर सिंह भाजपा और शिवपाल यादव के बीच सेतु बन गये हैं.
सपा-बसपा गठबंधन के वोट कतरने के लिए शिवपाल यादव की प्रगतिशील समाजवादी पार्टी की ब्रांडिंग और प्रचार के लिए भाजपा ने अपनी बी टीम में अपनी ताकत झोंक दी. पर्दे के पीछे अमर सिंह हैं और अमर सिंह के पीछे भाजपा है. शिवपाल यादव की प्रगतिशील समाजवादी पार्टी को समाजवादी पार्टी के उपेक्षित यादवों और मुसलमानों को अपने पाले में खीचने का लक्ष्य है.
यादव समाज के वे लोग जो सपा में अखिलेश यादव के नये निजाम से नाखुश हैं. बसपा के साथ गठबंधन को गलत मानते हैं. सपा में उपेक्षित हैं. भाजपा और कांग्रेस पर भरोसा नहीं करते। ये सब प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के खेमे में आ जायें, शिवपाल यादव इस कोशिश में लगे हैं. इसी तरह हमेशा से सपा का समर्थन करने वाले वो मुसलमान जो मुस्लिम परस्ती से दूर हो चुकी सपा/अखिलेश यादव पर अपना भरोसा खो रहे हैं. ऐसे मुसलमान ही मुस्लिम समाज पर खुलकर हमदर्दी जताने वाले शिवपाल यादव की नयी पार्टी में सपा से कतर कर आ सकते हैं.
बस अब यादव और खासकर मुस्लिम समाज के दिमागों से ये बात रिमूव करनी है कि प्रगतिशील समाजवादी पार्टी भाजपा को फायदा पहुंचाने का काम कर रही है. इसलिए शिवपाल यादव भाजपा सरकार के खिलाफ आक्रामक तेवर दिखाने का काम कर रहे हैं.इसी कड़ी में सरकार के खिलाफ जनाक्रोश रैली का आयोजन कर ये साबित करना चाहते हैं कि उनकी पार्टी ही दमखम के साथ भाजपा का विरोध कर सकती है.
सपा अपनी मजबूरी के तहत जो काम नहीं कर पाती रही है शिवपाल उन कामों से सपा के पारम्परिक वोट बैंक को अपनी पार्टी की तरह शिफ्ट करने के मकसद पर काम कर रहे है. पिछले लोक सभा और विधानसभा चुनाव में भाजपा पिछड़ों के दिमाग में ये बात डाल कर सफल हो चुकी थी कि सपा में पिछड़ी जातियों के लोगो का हक काट कर केवल यादववाद चलता है. सपा के खिलाफ मन खट्टा करने की नीति के तहत भाजपा ने यादव समाज को अहसास दिलाया कि सपा सरकार सिर्फ मुसलमानों की है.
भाजपा की इस रणनीति की काट के लिए सपा ने मुस्लिम परस्ती और यादववाद से परहेज करना शुरू कर दिया. उत्तर प्रदेश में पिछली सरकार के तमाम मामलों की जांच के खतरों से बचने के लिए सपा ने भाजपा सरकार के खिलाफ बहुत ज्यादा आक्रमण तेवर भी नहीं दिखाये. शिवपाल यादव ने सपा की इन कमजोर नब्ज़ को पकड़कर अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए काम करना शुरू कर दिया.
प्रगतिशील समाजवादी पार्टी यादव और मुस्लिम समाज को सिर आंखों में बैठायेगा. शिवपाल यादव जैसी मुस्लिम परस्ती और यादववाद समाजवादी पार्टी नहीं कर सकती. सपा मुस्लिमवाद करेगी तो यादव नाराज और यादववाद किया तो अन्य पिछड़े नाराज हो जायेंगे. बस इसी का फायदा उठाकर सपा के यादव और मुसलमानों का बीस प्रतिशत वोट भी पा गये तो सपा-बसपा गठबंधन का भारी नुकसान और भाजपा का फायदा मिल जायेगा.
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