कम्युनल से सेक्युलर बनना है तो आसान मगर पिछली गलतियां कभी कभी राह का रोड़ा साबित होकर परेशानी में डाल सकती हैं. बात सीधी और आसान है जिसका सामना फिलवक्त शिवसेना (Shivsena) को करना पड़ रहा है. अयोध्या (Ayodhya)में पीएम मोदी (PM Modi) द्वारा राम मंदिर (Ram Temple) के लिए किये गए भूमि पूजन के दौरान कांग्रेस (Congress) समेत प्रायः सभी दल अपने को पक्का राम भक्त साबित करने की पुरज़ोर कोशिश कर रहे हैं. मौका जब ऐसा हो तो आखिर शिवसेना क्यों पीछे रहती और इसके लिए सामना का सहारा लिया. सामना में एक विज्ञापन छपा जिसने विवाद को जन्म दे दिया है. विज्ञापन में एक तस्वीर छपी है जिसमें एक तरफ बाबरी मस्जिद (Babri Masjid) को गिराते हुए दिखाया गया है तो वहीं दूसरी तरफ जा उसी के बगल में बाल ठाकरे का एक बयान दर्ज है. जिसमें बाल ठाकरे (Bal Thakarey) के जरिये ये कहा गया है कि,' मुझे गर्व है उन लोगों पर जिन्होंने ऐसा किया है.
सामना में छपा एक विज्ञापन सीएम उद्धव ठाकरे की गले की हड्डी बनता नजर आ रहा है
बता दें कि सामना में ये विज्ञापन उस वक़्त आया जब पीएम मोदी भूमि पूजन करने के सिलसिले में अयोध्या पहुंचने ही वाले थे. इंटरनेट पर खूब तेजी से सुर्खियां बटोरते इस विज्ञापन पर अगर गौर किया जाए तो मिलता है कि एक तरफ़ बाबरी विध्वंस की तस्वीरें हैं तो वहीं दूसरी तरफ इसमें बाल ठाकरे का वो बयान दर्ज है जो उन्होंने 1992 में दिया था और जिसमें उन्होंने बाबरी ध्वस्त करने के लिए पहुंचे कारसेवकों की शान में कसीदे पढ़े थे.
बताया जा रहा है कि इस विज्ञापन को शिवसेना के सचिव मिलिंग नर्वेकर ने दिया है और इस विज्ञापन में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और शिवसेना सुप्रेरमो उद्धव ठाकरे और महाराष्ट्र सरकार में मंत्री उनके पुत्र उद्धव ठाकरे की तस्वीरें हैं.
बाला साहब ठाकरे का वो बयान जिसमें उन्होंने कारसेवकों की तारीफ की है
मामले में जो सबसे दिलचस्प बात है वो ये कि शिव सेना या उससे जुड़े किसी भी अन्य नेता को कार्यक्रम के लिए निमंत्रित नहीं किया गया था.बात अगर सामना में छपे इस लेख की हो जो मेन स्ट्रीम मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक सुर्खियां बटोर रहा है तो इसमें बताया गया है कि कैसे राममंदिर आंदोलन में शिवसेना की एक सक्रिय भूमिका रही है. साथ ही लेख में इस बात पर भी दुख प्रकट किया गया है कि कैसे राम मंदिर आंदोलन में एक अहम भूमिका होने के बावजूद शिव सेना से किसी को भी निमंत्रित नहीं किया गया.
गौरतलब है कि महाराष्ट्र में शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस के साथ सरकार चला रही है. बात इन दोनों दलों की हो तो भले ही ट्विटर और फेसबुक जैसे प्लेटफॉर्म पर दोनों ही दल कितना भी राम नाम का जाप क्यों न कर लें मगर जो इनकी पहचान है वो एक सेक्युलर दल की है. ऐसे में अगर विपक्ष ने इस विज्ञापन को मुद्दा बना लिया तो शिवसेना का अपने सहयोगी दलों के साथ गतिरोध होना निश्चित है.
विज्ञापन शिवसेना को कितना परेशान करता है? सीएम उद्धव ठाकरे का राजनीतिक जीवन इस विज्ञापन से कितना प्रभावित होता है जवाब वक़्त देगा. अभी जो समय है वो बस तमाशा देखने और ये समझने का है कि इंसान बदले न बदले उसकी फितरत किसी सूरत में नहीं बदलती है.
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